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सांध्य काकली

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

5 अध्याय
1 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
3 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

निरालाजी की ये अंतिम कविताएँ अनेक दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । उनके विचारों, आस्थाओं ही के सम्बन्ध में नहीं, उनके मानसिक असन्तुलन की उग्रता के सम्बन्ध में भी लोगों में बड़ा मतभेद है । उनकी इन अन्तिम कविताओं से इन विवादग्रस्त विषयों पर विचार करने में सहायता मिलेगी । 

sandhya kakali

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पुस्तक के भाग

1

जय तुम्हारी देख भी ली

12 अप्रैल 2022
2
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जय तुम्हारी देख भी ली रूप की गुण की, रसीली ।      वृद्ध हूँ मैं, वृद्ध की क्या, साधना की, सिद्धी की क्या, खिल चुका है फूल मेरा, पंखड़ियाँ हो चलीं ढीली । चढ़ी थी जो आँख मेरी, बज रही थी जहाँ भ

2

पत्रोत्कंठित जीवन का विष

12 अप्रैल 2022
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पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है, आज्ञा का प्रदीप जलता है हृदय-कुंज में, अंधकार पथ एक रश्मि से सुझा हुआ है दिङ् निर्णय ध्रुव से जैसे नक्षत्र-पुंज में । लीला का संवरण-समय फूलों का जैसे फलों

3

फिर बेले में कलियाँ आईं

12 अप्रैल 2022
1
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फिर बेले में कलियाँ आईं । डालों की अलियाँ मुसकाईं । सींचे बिना रहे जो जीते, स्फीत हुए सहसा रस पीते; नस-नस दौड़ गई हैं ख़ुशियाँ नैहर की ललियाँ लहराईं । सावन, कजली, बारहमासे उड़-उड़ कर पूर्वा

4

(अ) धिक मद, गरजे बदरवा

12 अप्रैल 2022
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अधिक मद, गरजे बदरवा, चमकि बिजुलि डरपावे, सुहावे सघन झर, नरवा       कगरवा-कगरवा ।

5

(आ) समझे मनोहारि वरण जो हो सके

12 अप्रैल 2022
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समझे मनोहारि वरण जो हो सके, उपजे बिना वारि के तिन न ढूह से । सर नहीं सरोरुह, जीवन न देह में, गेह में दधि, दुग्ध; जल नहीं मेह में, रसना अरस, ठिठुर कर मृत्यु में परस, हरि के हुए सरस तुम स्नेह से

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