shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

अपरा

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

11 अध्याय
0 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
0 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

निराला के काव्य में बुद्धिवाद और हृदय का सुन्दर समन्वय है। छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद तीनों क्षेत्रों में निराला का अपना विशिष्ट महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय प्रेरणा का स्वर भी मुखर हुआ है। छायावादी कवि होने के कारण निराला का प्रकृति से अटूट प्रेम है 

apra

0.0(0)

पुस्तक के भाग

1

गीत

12 अप्रैल 2022
0
0
0

जैसे हम हैं वैसे ही रहें, लिये हाथ एक दूसरे का अतिशय सुख के सागर में बहें। मुदें पलक, केवल देखें उर में, सुनें सब कथा परिमल-सुर में, जो चाहें, कहें वे, कहें। वहाँ एक दृष्टि से अशेष प्रणय देख रह

2

बादल राग (भाग 1)

12 अप्रैल 2022
0
0
0

झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर। राग अमर! अम्बर में भर निज रोर! झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में, घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में, सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में, मन में, विजन-गहन-कानन में, आनन-आनन में, रव घ

3

बादल राग (भाग 2)

12 अप्रैल 2022
0
0
0

सिन्धु के अश्रु! धारा के खिन्न दिवस के दाह! विदाई के अनिमेष नयन! मौन उर में चिह्नित कर चाह छोड़ अपना परिचित संसार सुरभि का कारागार, चले जाते हो सेवा-पथ पर, तरु के सुमन! सफल करके मरीचिमाली क

4

बादल राग (भाग 3)

12 अप्रैल 2022
0
0
0

सिन्धु के अश्रु! धरा के खिन्न दिवस के दाह! बिदाई के अनिमेष नयन! मौन उर में चिन्हित कर चाह छोड़ अपना परिचित संसार सुरभि के कारागार, चले जाते हो सेवा पथ पर, तरु के सुमन! सफल करके मरीचिमाली का च

5

बादल राग (भाग 4)

12 अप्रैल 2022
0
0
0

उमड़ सृष्टि के अन्तहीन अम्बर से, घर से क्रीड़ारत बालक-से, ऐ अनन्त के चंचल शिशु सुकुमार! स्तब्ध गगन को करते हो तुम पार! अन्धकार-- घन अन्धकार ही क्रीड़ा का आगार। चौंक चमक छिप जाती विद्युत तडिद्दा

6

बादल राग (भाग 5)

12 अप्रैल 2022
0
0
0

निरंजन बने नयन अंजन! कभी चपल गति, अस्थिर मति, जल-कलकल तरल प्रवाह, वह उत्थान-पतन-हत अविरत संसृति-गत उत्साह, कभी दुख -दाह कभी जलनिधि-जल विपुल अथाह कभी क्रीड़ारत सात प्रभंजन बने नयन-अंजन! कभी कि

7

बादल राग (भाग 6)

12 अप्रैल 2022
0
0
0

तिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुःख की छाया जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया यह तेरी रण-तरी भरी आकांक्षाओं से, घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर उर में पृथ्वी के, आशाओं से

8

जुही की कली

12 अप्रैल 2022
0
0
0

विजन-वन-वल्लरी पर सोती थी सुहाग-भरी--स्नेह-स्वप्न-मग्न अमल-कोमल-तनु तरुणी--जुही की कली, दृग बन्द किये, शिथिल--पत्रांक में, वासन्ती निशा थी; विरह-विधुर-प्रिया-संग छोड़ किसी दूर देश में था पवन जि

9

जागो फिर एक बार

12 अप्रैल 2022
0
0
0

जागो फिर एक बार! प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें अरुण-पंख तरुण-किरण खड़ी खोलती है द्वार जागो फिर एक बार! आँखे अलियों-सी किस मधु की गलियों में फँसी, बन्द कर पाँखें पी रही हैं मधु मौन अथ

10

वसन्त आया

12 अप्रैल 2022
0
0
0

सखि, वसन्त आया भरा हर्ष वन के मन,   नवोत्कर्ष छाया। किसलय-वसना नव-वय-लतिका मिली मधुर प्रिय उर-तरु-पतिका मधुप-वृन्द बन्दी पिक-स्वर नभ सरसाया। लता-मुकुल हार गन्ध-भार भर बही पवन बन्द मन्द मन्

11

सन्ध्या-सुन्दरी

12 अप्रैल 2022
0
0
0

दिवसावसान का समय  मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या-सुन्दरी, परी सी, धीरे, धीरे, धीरे, तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास, मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर, किंतु ज़रा गंभीर, नहीं है उसमें हास

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए