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अर्चना

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

108 अध्याय
1 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
28 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

'अर्चना' में ऐसे गीत भी हैं, जो इस बात की सूचना देते हैं कि कवि अब महानगर और नगरों को छोड़कर अपने गाँव आ गया है ! उनका कालजयी और अपनी सरलता में बेमिसाल गीत 'बांधो न नाव इस ठांव, बंधू !/पूछेगा सारा गाँव, बंधु! ' 'अर्चना' की ही रचना हैं, जिसमें गाँव की एक घटना के सौन्दर्यात्मक पक्ष का चित्रण किया है ! 

archana

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पुस्तक के भाग

1

भव अर्णव की तरणी तरुणा

11 अप्रैल 2022
2
1
0

भव-अर्णव की तरुणी तरुणा । बरसीं तुम नयनों से करुणा । हार हारकर भी जो जीता, सत्य तुम्हारी गाई गीता, हुईं असित जीवन की सीता, दाव-दहन की श्रावण-वरुणा । काटे कटी नहीं जो कारा उसकी हुईं मुक्ति क

2

तन की, मन की, धन की हो तुम

11 अप्रैल 2022
1
0
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तन की, मन की, धन की हो तुम। नव जागरण, शयन की हो तुम। काम कामिनी कभी नहीं तुम, सहज स्वामिनी सदा रहीं तुम, स्वर्ग-दामिनी नदी बहीं तुम, अनयन नयन-नयन की हो तुम। मोह-पटल-मोचन आरोचन, जीवन कभी नही

3

भज, भिखारी, विश्व-भरणा

11 अप्रैल 2022
1
0
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भज भिखारी, विश्वभरणा, सदा अशरण-शरण-शरणा। मार्ग हैं, पर नहीं आश्रय; चलन है, पर निर्दलन-भय; सहित-जीवन मरण निश्चय; कह सतत जय-विजय-रणना। पतित को सित हाथ गहकर जो चलाती हैं सुपथ पर, उन्हीं का तू

4

समझा जीवन की विजया हो

11 अप्रैल 2022
1
0
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समझा जीवन की विजया हो। रथी दोषरत को दलने को विरथ व्रती पर सती दया हो। पता न फिर भी मिला तुम्हारा, खोज-खोजकर मानव हारा; फिर भी तुम्हीं एक ध्रुवतारा, नैश पथिक की पिक अभया हो। ऋतुओं के आवर्त-व

5

पंक्ति पंक्ति में मान तुम्हारा

11 अप्रैल 2022
1
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पंक्ति पंक्ति में मान तुम्हारा| भुक्ति-मुक्ति में गान तुम्हारा। आंख-आंख पर भाव बदलकर, चमके हो रंग-छवि के पलभर, पुनः खोलकर हृदय-कमल कर, गन्ध बने, अभिधान तुम्हारा। विपुल-पुलक-व्याकुल अलि के दल

6

दुरित दूर करो नाथ

11 अप्रैल 2022
1
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दुरित दूर करो नाथ अशरण हूँ, गहो हाथ। हार गया जीवन-रण, छोड़ गये साथी जन, एकाकी, नैश-क्षण, कण्टक-पथ, विगत पाथ। देखा है, प्रात किरण फूटी है मनोरमण, कहा, तुम्ही को अशरण शरण, एक तुम्हीं साथ।

7

भव-सागर से पार करो हे!

11 अप्रैल 2022
1
0
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भव-सागर से पार करो हे! गह्वर से उद्धार करो हे! कृमि से पतित जन्म होता है, शिशु दुर्गन्ध-विकल रोता है, ठोकर से जगता-सोता है, प्रभु, उसका निर्वार करो हे! पशुओं से संकुल सन्तुल जग, अहंकार के ब

8

रमण मन के मान के तन

12 अप्रैल 2022
1
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रमण मन के, मान के तन! तुम्हीं जग के जीव-जीवन! तुम्हीं में है महामाया, जुड़ी छुटकर विश्वकाया; कल्पतरु की कनक-छाया तुम्हारे आनन्द-कानन। तुम्हारी स्वर्सरित बहकर हर रही है ताप दुस्तर; तुम्हारे

9

बन जाय भले शुक की उक से

12 अप्रैल 2022
2
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बन जाय भले शुक की उक से, सुख की दुख से अवनी न बनी। रुक जाय चली गति जो जग की, जन से जन-जीवन की न ठनी। बिगड़ी बनती बन जाय सही, डगड़ी गड़ती गड़ जाय मही, कटती पटती पट जाय तही, तन की मन से तनती न तन

10

लगी लगन, जगे नयन

12 अप्रैल 2022
1
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लगी लगन, जगे नयन; हटे दोष, छुटा अयन; दुर्मिल जो कुछ ऊर्मिल मिल-मिलकर हुआ अखिल, घुल-घुलकर कुल पंकिल घुला एक रस अशयन। छुटे सभी विषम बन्ध विषमय वासना-अन्ध; संशय की गई गन्ध; शय-निश्चय किया चय

11

शिविर की शर्वरी

12 अप्रैल 2022
1
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शिविर की शर्वरी हिंस्र पशुओं भरी। ऐसी दशा विश्व की विमल लोचनों देखी, जगा त्रास, हृदय संकोचनों कांपा कि नाची निराशा दिगम्बरी। मातः, किरण हाथ प्रातः बढ़ाया कि भय के हृदय से पकड़कर छुड़ाया, चप

12

आशा आशा मरे

12 अप्रैल 2022
1
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आशा आशा मरे लोग देश के हरे! देख पड़ा है जहाँ, सभी झूठ है वहाँ, भूख-प्यास सत्य, होंठ सूख रहे हैं अरे! आस कहाँ से बंधे? सांस कहाँ से सधे? एक एक दास, मनस्काम कहाँ से सरे? रूप-नाम हैं नहीं

13

छाँह न छोड़ी

12 अप्रैल 2022
1
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छांह न छोड़ी, तेरे पथ से उसने आस न तोड़ी। शाख़-शाख़ पर सुमन खिले, हवा-हवा से हिले मिले, उर-उर फिर से भरे, छिले, लेकिन उसने सुषमे, आंख न मोडी। कहीं आव, कहीं है दुराव, कहीं बढ़े चलने का चाव,

14

साधो मग डगमग पग

12 अप्रैल 2022
1
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साधो मग डगमग पग, तमस्तरण जागे जग। शाप-शयन सो-सोकर, हुए शीर्ण खो-खोकर, अनवलाप रो-रोकर हुए चपल छलकर ठग। खोलो जीवन बन्धन, तोलो अनमोल नयन, प्राणों के पथ पावन, रँगो रेणु के रँग रग।

15

सोई अखियाँ

12 अप्रैल 2022
1
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सोईं अँखियाँ तुम्हें खोजकर बाहर, हारीं सखियाँ। तिमिरवरण हुईं इसलिये पलकों के द्वार दे दिये अन्तर में अकपट हैं बाहर पखियाँ। प्रार्थना, प्रभाती जैसी, खुलें तुम्हारे लिये वैसी, भरें सरस दर्श

16

तिमिर दारण मिहिर दरसो

12 अप्रैल 2022
2
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तिमिरदारण मिहिर दरसो। ज्योति के कर अन्ध कारा गार जग का सजग परसो। खो गया जीवन हमारा, अन्धता से गत सहारा; गात के सम्पात पर उत्थान देकर प्राण बरसो। क्षिप्रतर हो गति हमारी, खुले प्रति-कलि-कुसु

17

तुम जो सुथरे पथ उतरे हो

12 अप्रैल 2022
1
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तुम जो सुथरे पथ उतरे हो, सुमन खिले, पराग बिखरे, ओ! ज्योतिश्छाय केश-मुख वाली, तरुणी की सकरुण कलिका ली, अधर-उरोज-सरोज-वनाली, अश्रु-ओस की भेंट भरे हो। पवन-मन्द-मृदु-गन्ध प्रवाहित, मधु-मकरन्द,

18

जिनकी नहीं मानी कान

12 अप्रैल 2022
1
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जिनकी नहीं मानी कान रही उनकी भी जी की। जोबन की आन-बान तभी दुनिया की फीकी। राह कभी नहीं भूली तुम्हारी, आँख से आँख की खाई कटारी, छोड़ी जो बाँधी अटारी-अटारी नई रोशनी, नई तान; रही उनकी भी जी की,

19

दीप जलता रहा

12 अप्रैल 2022
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दीप जलता रहा, हवा चलती रही; नीर पलता रहा, बर्फ गलती रही। जिस तरह आग वन में लगी हुई है, एकता में सरस भास है--दुई है, सत्य में भ्रम हुआ है, छुईमुई है, मान बढ़ता रहा, उम्र ढलती रही। समय क

20

आँख लगाई

12 अप्रैल 2022
1
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आंख लगाई तुमसे जब से हमने चैन न पाई। छल जो, प्राणों का सम्बल हुआ, प्राणों का सम्बल निष्कल हुआ, जंगल रमने का मंगल हुआ, ज्योति जहाँ वहाँ अंधेरी घिर आई। राह रही जहाँ वहाँ पन्थ न सूझा, चाह रही

21

दो सदा सत्संग मुझको

12 अप्रैल 2022
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दो सदा सत्संग मुझको। अनृत से पीछा छुटे, तन हो अमृत का रंग मुझको। अशन-व्यसन तुले हुए हों, खुले अपने ढंग; सत्य अभिधा साधना हो, बाधना हो व्यंग, मुझको। लगें तुमसे तन-वचन-मन, दूर रहे अनंग; बाढ

22

चंग चढी थी हमारी

12 अप्रैल 2022
1
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चंग चढ़ी थी हमारी, तुम्हारी डोर न टूटी। आँख लगी जो हमारी, तुम्हारी कोर न छूटी। जीवन था बलिहार, तुम्हारा पार न आया, हार हुई थी हमारी, तुम्हारी जोत न फूटी। ज्ञान गया ऐ हमारा, तुम्हारा मान न

23

नयन नहाये

12 अप्रैल 2022
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नयन नहाये जब से उसकी छबि में रूप बहाये। साथ छुटा स्वजनों की, पाँख फिर गई, चली हुई पहली वह राह घिर गई, उमड़ा उर चलने को जिस पुर आये। कण्ठ नये स्वर से क्या फूटकर खुला! बदल गई आँख, विश्व रूप

24

किशोरी, रंग भरी किस अंग भरी हो

12 अप्रैल 2022
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रंगभरी किस अंग भरी हो? गातहरी किस हाथ बरी हो? जीवन के जागरण-शयन की, श्याम-अरुण-सित-तरुण-नयन की, गन्ध-कुसुम-शोभा उपवन की, मानस-मानस में उतरी हो; जोबन-जोबन से संवरी हो। जैसे मैं बाजार में बिक

25

सरल तार नवल गान

12 अप्रैल 2022
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सरल तार, नवल गान, नव-नव स्वर के वितान। जैसे नव ॠतु, नव कलि, आकुल नव-नव अंजलि, गुंजित-अलि-कुसुमावलि, नव-नव-मधु-गन्ध-पान। नव रस के कलश उठे, जैसे फल के, असु के, नव यौवन के बसु के नव जीवन के

26

पार संसार के

12 अप्रैल 2022
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पार संसार के, विश्व के हार के, दुरित संभार के नाश हो क्षार के। सविध हो वैतरण, सुकृत कारण-करण, अरण-वारण-वरण, शरण संचार के। तान वह छेड़ दी, सुमन की, पेड़ की, तीन की, डेढ़ की, तार के हार क

27

प्रथम बन्दूँ पद विनिर्मल

12 अप्रैल 2022
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प्रथम बन्दूँ पद विनिर्मल परा-पथ पाथेय पुष्कल। गणित अगणित नूपुरों के, ध्वनित सुन्दर स्वर सुरों के, सुरंजन गुंजन पुरों के, कला निस्तल की समुच्छल। वासना के विषम शर से बिंधे को जो छुआ कर से, श

28

पैर उठे, हवा चली।

12 अप्रैल 2022
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पैर उठे, हवा चली। उर-उर की खिली कली। शाख-शाख तनी तान, विपिन-विपिन खिले गान, खिंचे नयन-नयन प्राण, गन्ध-गन्ध सिंची गली। पवन-पवन पावन है जीवन-वन सावन है, जन-जन मनभावन है, आशा सुखशयन-पली।

29

और न अब भरमाओ

12 अप्रैल 2022
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और न अब भरमाओ, पौर आओ, तुम आओ! जी की जो तुमसे चटकी है, बुद्धि-शुद्धि भटकी-भटकी है; और जनों की लट लटकी है? ऐसे अकेले बचाओ, छोड़कर दूर न जाओ। खाली पूरे हाथ गये हैं, ऊपर नये-नये उनये हैं, सु

30

दे न गये बचने की साँस

12 अप्रैल 2022
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दे न गये बचने की साँस, आस ले गये। रह-रहकर मारे पर यौवन के ज्वर के शर नव-नव कल-कोमल कर उठे हुए जो न नये। फागुन के खुले फाग गाये जो सिन्धु-राग दल के दल भरमाये पातों से जो न छये। गले-गले

31

अलि की गूँज चली द्रुम कुँजों

12 अप्रैल 2022
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अलि की गूँज चली द्रुम कुँजों। मधु के फूटे अधर-अधर धर। भरकर मुदे प्रथम गुंजित-स्वर छाया के प्राणों के ऊपर, पीली ज्वाल पुंज की पुंजों। उल्टी-सीधी बात सँवरकर काटे आये हाथ उतरकर, बैठे साहस के आ

32

आज प्रथम गाई पिक पंचम

12 अप्रैल 2022
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आज प्रथम गाई पिक पंचम। गूंजा है मरु विपिन मनोरम। मस्त प्रवाह, कुसुम तरु फूले, बौर-बौर पर भौंरे झूले, पात-गात के प्रमुदित झूले, छाई सुरभि चतुर्दिक उत्तम। आँखों से बरसे ज्योतिःकण, परसे उन्मन-

33

फूटे हैं आमों में बौर,

12 अप्रैल 2022
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फूटे हैं आमों में बौर, भौंर वन-वन टूटे हैं। होली मची ठौर-ठौर, सभी बन्धन छूटे हैं। फागुन के रंग राग, बाग-वन फाग मचा है, भर गये मोती के झाग, जनों के मन लूटे हैं। माथे अबीर से लाल, गाल सेंदु

34

केशर की, कलि की पिचकारी

12 अप्रैल 2022
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केशर की, कलि की पिचकारी पात-पात की गात संवारी। राग-पराग-कपोल किये हैं, लाल-गुलाल अमोल लिये हैं, तरु-तरु के तन खोल दिये हैं, आरति जोत-उदोत उतारी गन्ध-पवन की धूप धवारी। गाये खग-कुल-कण्ठ गीत श

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बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु

12 अप्रैल 2022
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बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! पूछेगा सारा गाँव, बंधु! यह घाट वही जिस पर हँसकर, वह कभी नहाती थी धँसकर, आँखें रह जाती थीं फँसकर, कँपते थे दोनों पाँव बंधु! वह हँसी बहुत कुछ कहती थी, फिर भी अपने म

36

गिरते जीवन को उठा दिया,

12 अप्रैल 2022
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गिरते जीवन को उठा दिया, तुमने कितना धन लुटा दिया! सूखी आशा की विषम फांस, खोलकर साफ की गांस-गांस, छन-छन, दिन-दिन, फिर मास-मास, मन की उलझन से छुटा दिया। बैठाला ज्योतिर्मुख करकर, खोली छवि तमस्

37

धीरे धीरे हँस कर आयी

12 अप्रैल 2022
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धीरे धीरे हँसकर आईं प्राणों की जर्जर परछाईं। छाया-पथ घनतर से घनतम, होता जो गया पंक-कर्दम, ढकता रवि आँखों से सत्तम, मृत्यु की प्रथम आभा भाईं। क्या गले लगाना है बढ़कर, क्या अलख जगाना अड़-अड़क

38

निविड़-विपिन, पथ अराल

12 अप्रैल 2022
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निविड़-विपिन, पथ अराल; भरे हिंस्र जन्तु-व्याल। मारे कर अन्धकार, बढ़ता है अनिर्वार, द्रुम-वितान, नहीं पार, कैसा है जटिल जाल। नहीं कहीं सुजलाशय, सुस्थल, गृह, देवालय, जगता है केवल भय, केवल छ

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सुरतरु वर शाखा

12 अप्रैल 2022
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सुरतरु वर शाखा खिली पुष्प-भाषा। मीलित नयनों जपकर तन से क्षण-क्षण तपकर तनु के अनुताप प्रखर, पूरी अभिलाषा। बरसे नव वारिद वर, द्रुम पल्लव-कलि-फलभर आनत हैं अवनी पर जैसी तुम आशा। भावों के द

40

वेदना बनी, मेरी अवनी

12 अप्रैल 2022
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वेदना बनी; मेरी अवनी। कठिन-कठिन हुए मृदुल पद-कमल विपद संकल भूमि हुई शयन-तुमुल कण्टकों घनी। तुमने जो गही बांह, वारिद की हुई छांह, नारी से हुईं नाह, सुकृत जीवनी। पार करो यह सागर दीन के

41

आंख बचाते हो तो क्या आते हो

12 अप्रैल 2022
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आँख बचाते हो तो क्या आते हो? काम हमारा बिगड़ गया देखा रूप जब कभी नया; कहाँ तुम्हारी महा दया? क्या क्या समझाते हो? आँख बचाते हो। लीक छोड़कर कहाँ चलूं? दाने के बिना क्या तलूं? फूला जब नहीं

42

हरि का मन से गुणगान करो

12 अप्रैल 2022
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हरि का मन से गुणगान करो, तुम और गुमान करो, न करो। स्वर-गंगा का जल पान करो, तुम अन्य विधान करो, न करो। निशिवासर ईश्वर ध्यान करो, तुम अन्य विमान करो, न करो। ठग को जग-जीवन-दान करो, तुम अन्य प्रद

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खुल कर गिरती है

12 अप्रैल 2022
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खुल कर गिरती है जो, उड़ती फिरती है। ऐसी ही एक बात चलती है, घात खड़ी-खड़ी हाथ मलती है, तभी सह-सही दाल गलती है (जो) तिरती-तिरती है। काम इशारा नहीं आया तो जैसी माया हो, छाया हो। मुसकाया, मन क

44

तन, मन, धन वारे हैं

12 अप्रैल 2022
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तन, मन, धन वारे हैं; परम-रमण, पाप-शमन, स्थावर-जंगम-जीवन; उद्दीपन, सन्दीपन, सुनयन रतनारे हैं। उनके वर रहे अमर स्वर्ग-धरा पर संचर, अक्षर-अक्षर अक्षर, असुर अमित मारे हैं। दूर हुआ दुरित, दोष,

45

वे कह जो गये कल आने को

12 अप्रैल 2022
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वे कह जो गये कल आने को, सखि, बीत गये कितने कल्पों। खग-पांख-मढी मृग-आँख लगी, अनुराग जगी दुख के तल्पों। उनकी जो रही, बस की न कही, रस की रसना अशना न रही, विपरीत की टेक न एक सही, दिन बीत चले अल्प

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मानव का मन शान्त करो हे

12 अप्रैल 2022
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मानव का मन शान्त करो हे! काम, क्रोध, मद, लोभ दम्भ से जीवन को एकान्त करो हे। हिलें वासना-कृष्ण-तृष्ण उर, खिलें विटप छाया-जल-सुमधुर, गूंजे अलि-गुंजन के नूपुर, निज-पुर-सीमा-प्रान्त करो हे। विह

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तुम ही हुए रखवाल

12 अप्रैल 2022
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तुम ही हुए रखवाल तो उसका कौन न होगा? फूली-फली तरु-डाल तो उसका कौन न होगा? कान पड़ी है खटाई तो उसकी मौन मिताई, और हिये जयमाल तो उसका कौन न होगा? जिसने किया है किनारा उसीका दलबल हारा, और ह

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नव तन कनक-किरण फूटी है

12 अप्रैल 2022
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नव तन कनक-किरण फूटी है। दुर्जय भय-बाधा छूटी है। प्रात धवल-कलि गात निरामय मधु-मकरन्द-गन्ध विशदाशय, सुमन-सुमन, वन-मन, अमरण-क्षय, सिर पर स्वर्गाशिस टूटी है। वन के तरु की कनक-बान की वल्ली फैली

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घन तम से आवृत धरणी है

12 अप्रैल 2022
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घन तम से आवृत धरणी है; तुमुल तरंगों की तरणी है। मन्दिर में बन्दी हैं चारण, चिघर रहे हैं वन में वारण, रोता है बालक निष्कारण, विना-सरण-सारण भरणी है। शत संहत आवर्त-विवर्तों जल पछाड़ खाता है पर

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नव जीवन की बीन बजाई

12 अप्रैल 2022
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नव जीवन की बीन बजाई। प्रात रागिनी क्षीण बजाई। घर-घर नये-नये मुख, नव कर, भरकर नये-नये गुंजित स्वर, नर को किया नरोत्तम का वर, मीड़ अनीड़ नवीन बजाई। वातायन-वातायन के मुख खोली कला विलोकन-उत्सुक

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पाप तुम्हारे पांव पड़ा था

12 अप्रैल 2022
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पाप तुम्हारे पांव पड़ा था, हाथ जोड़कर ठांव खड़ा था। विगत युगों का जंग लगा था, पहिया चलता न था, रुका था, रगड़ कड़ी की थी, सँवरा था, पथ चलने का काम बड़ा था। जड़ता की जड़तक मारी थी, ऐसी जगने क

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क्यों मुझको तुम भूल गये हो

12 अप्रैल 2022
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क्यों मुझको तुम भूल गये हो? काट डाल क्या, मूल गये हो। रवि की तीव्र किरण से पीकर जलता था जब विश्व प्रखरतर, तुम मेरे छाया के तरु पर डाल पवन से धूल गये हो। विफल हुई साधना देह की, असफल आराधना स

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तुमसे जो मिले नयन

12 अप्रैल 2022
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तुमसे जो मिले नयन, दूर हुए दुरित-शयन। खिले अंग-अंग अमल सर के पातः-शतदल पावन-पवनोत्कल-पल, अलक-मन्द-गन्ध-वयन। खग-कुल कल-कण्ठ-राग फूटे नग, नगर, बाग, अधर-विधुर छुटे दाग, कर-कर सित-सुमन-चयन।

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वन-वन के झरे पात

12 अप्रैल 2022
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वन-वन के झरे पात, नग्न हुई विजन-गात। जैसे छाया के क्षण हंसा किसी को उपवन, अब कर-पुट विज्ञापन, क्षमापन, प्रपन्न प्रात। करुणा के दान-मान फूटे नव पत्र-गान, उपवन-उपवन समान नवल-स्वर्ग-रश्मि-जा

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तुमने स्वर के आलोक-ढले

12 अप्रैल 2022
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तुमने स्वर के आलोक-ढले गाये हैं गाने गले-गले। बचकर भव की भंगुरता से रागों के सुमनों के बासे रंग-रेणु-गन्ध के वे भासे मीड़ों के नीड़ों से निकले। नश्वरता पर सस्वर छाये जैसे पल्लव के दल आये,

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लिया दिया तुमसे मेरा था

12 अप्रैल 2022
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लिया-दिया तुमसे मेरा था, दुनिया सपने का डेरा था। अपने चक्कर से कुल कट गये, काम की कला से हट हट गये, छापे से तुम्हीं निपट पट गये, उलटा जो सीधा ढेरा था। सही आंख तुम्हीं दिखे पहले, नहले पर तुम

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गीत गाने दो मुझे

12 अप्रैल 2022
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गीत गाने दो मुझे तो, वेदना को रोकने को। चोट खाकर राह चलते होश के भी होश छूटे, हाथ जो पाथेय थे, ठग ठाकुरों ने रात लूटे, कंठ रूकता जा रहा है, आ रहा है काल देखो। भर गया है ज़हर से संसार जैसे

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सहज-सहज कर दो;

12 अप्रैल 2022
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सहज-सहज कर दो; सकलश रस भर दो। ठग ठगकर मन को लूट गये धन को, ऐसा असमंजस, धिक जीवन-यौवन को; निर्भय हूँ, वर दो। जगज्जाल छाया, माया ही माया, सूझता नहीं है पथ अन्धकार आया; तिमिर-भेद शर दो।

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वासना-समासीना, महती जगती दीना

12 अप्रैल 2022
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वासना-समासीना, महती जगती दीना। जलद-पयोधर-भारा, रवि-शशि-तारक-हारा, व्योम-मुखच्छबिसारा शतधारा पथ-हीना। ॠषिकुल-कल-कण्ठस्तुति, दिव्य-शस्य-सकलाहुति, निगमागम-शास्त्रश्रुति रासभ-वासव-वीणा।

60

ये दुख के दिन काटे हैं जिसने

12 अप्रैल 2022
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ये दुख के दिन काटे हैं जिसने गिन गिनकर पल-छिन, तिन-तिन। आँसू की लड़ के मोती के हार पिरोये, गले डालकर प्रियतम के लखने को शशिमुख दुःखनिशा में उज्ज्वल अमलिन।

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हार तुमसे बनी है जय

12 अप्रैल 2022
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हार तुमसे बनी है जय, जीत की जो चक्षु में क्षय। विषम कम्पन बली के उर, सदुन्मोचन छली के पुर, कामिनी के अकल नूपुर, भामिनी के हृदय में भय। रच गये जो अधर अनरुण, बच गये जो विरह-सकरुण, अनसुने जो

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अट नहीं रही है

12 अप्रैल 2022
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अट नहीं रही है आभा फागुन की तन सट नहीं रही है। कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो, उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो, आँख हटाता हूँ तो हट नहीं रही है। पत्‍तों से लदी डाल कहीं हरी, कह

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कुंज-कुंज कोयल बोली है

12 अप्रैल 2022
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कुंज-कुंज कोयल बोली है, स्वर की मादकता घोली है। कांपा है घन पल्लव-कानन, गूँजी गुहा श्रवण-उन्मादन, तने सहज छादन-आच्छादन, नस ने रस-वशता तोली है। गृह-वन जरा-मरण से जीकर प्राणों का आसव पी-पीकर

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कौन गुमान करो जिन्दगी का?

12 अप्रैल 2022
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कौन गुमान करो जिन्दगी का? जो कुछ है कुल मान उन्हीं का। बाँधे हुए घर-बार तुम्हारे, माथे है नील का टीका, दाग़-दाग़ कुल अंग स्याह हैं रंग रहा है फीका तुम्हारा कोई न जी का। एक भरोसा, एक सहारा,

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छोड़ दो, न छेड़ो टेढ़े,

12 अप्रैल 2022
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छोड़ दो, न छेड़ो टेढ़े, कब बसे तुम्हारे खेड़े? यह राह तुम्हारी कब की जिसको समझे हम सब की? गम खा जाते हैं अब की, तुम ख़बर करो इस ढब की, हम नहीं हाथ के पेड़े। सब जन आते जाते हैं, हँसते हैं,

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प्रिय के हाथ लगाये जागी

12 अप्रैल 2022
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प्रिय के हाथ लगाये जागी, ऐसी मैं सो गई अभागी। हरसिंगार के फूल झर गये, कनक रश्मि से द्वार भर गये, चिड़ियों के कल कण्ठ मर गये, भस्म रमाकर चला विरागी। शिशु गण अपने पाठ हुए रत, गृही निपुण गृह क

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लघु-तटिनी, तट छाई कलियां

12 अप्रैल 2022
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लघु-तटिनी, तट छाईं कलियां; गूँजी अलियों की आवलियाँ। तरियों की परियाँ हैं जल पर, गाती हैं खग-कुल-कल-कल-स्वर, तिरती हैं सुख-सुकर पंख-भर, रूम घूमकर सुघर मछलियाँ। जल-थल-नभ आनन्द-भास है, किसी वि

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हार गई मैं तुम्हें जगाकर

12 अप्रैल 2022
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हार गई मैं तुम्हें जगाकर, धूप चढ़ी प्रखर से प्रखरतर। वर्जन के जो वज्र-द्वार हैं, क्या खुलने के भी किंवार हैं? प्राण पवन से पार-पार हैं, जैसे दिनकर निष्कर, निश्शर। पंच विपंची से विहीन हैं; ज

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तरणि तार दो अपर पार को

12 अप्रैल 2022
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तरणि तार दो अपर पार को खे-खेकर थके हाथ, कोई भी नहीं साथ, श्रम-सीकर-भरा माथ, बीच-धार, ओ! पार किया तो कानन; मुरझाया जो आनन, आओ हे निर्वारण, बिपत वार लो। पड़ी भँवर-बीच नाव, भूले हैं सभी दांव,

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गीत-गाये हैं मधुर स्वर

12 अप्रैल 2022
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गीत-गाये हैं मधुर स्वर, किरण-कर वीणा नवलतर। ताकते हैं लोग, आये कहाँ तुम, कैसे सुहाये, अनन्तर अन्तर समाये, कठिन छिपकर, सहज खुलकर। कान्त है कान्तार दुर्मिल, सुघर स्वर से अनिल ऊर्मिल, मीड़ से

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हंसो अधरधरी हंसी

12 अप्रैल 2022
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हंसो अधर-धरी हंसी, बसो प्राण-प्राण-बसी। करुणा के रस ऊर्वर कर दो ऊसर-ऊसर दुख की सन्ध्या धूसर हीरक-तारकों-कसी। मोह छोह से भर दो, दिशा देश के स्वर हो, परास्पर्श दो पर को, शरण वरण-लाल-लसी।

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कठिन यह संसार, कैसे विनिस्तार

12 अप्रैल 2022
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कठिन यह संसार, कैसे विनिस्तार? ऊर्मि का पाथार कैसे करे पार? अयुत भंगुर तरंगों टूटता सिन्धु, तुमुल-जल-बल-भार, क्षार-तल, कुल बिन्दु, तट-विटप लुप्त, केवल सलिल-संहार। ॠतु-वलय सकल शय नाचते हैं यहा

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नील जलधि जल

12 अप्रैल 2022
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नील जलधि जल, नील गगन-तल, नील कमल-दल, नील नयन द्वय। नील मॄत्ति पर नील मृत्यु-शर, नील अनिल-कर, नील निलय-लय। नील मोर के नील नृत्य रे, नील कृत्य से नील शवाशय। नील कुसुम-मग, नील नग्न-नग,

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क्या सुनाया गीत कोयल!

12 अप्रैल 2022
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क्या सुनाया गीत, कोयल! समय के समधीत, कोयल! मंजरित हैं कुंज, कानन, जानपद के पुंज-आनन, वर्ष के कर हर्ष के शर बिंध गया है शीत, कोयल! कामना के नयन वंचित, रुचिर रचनाकरों-संचित, मधुर मधु का तथ्य

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भजन कर हरि के चरण, मन!

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भजन कर हरि के चरण, मन! पार कर मायावरण, मन! कलुष के कर से गिरे हैं देह-क्रम तेरे फिरे हैं, विपथ के रथ से उतरकर बन शरण का उपकरण, मन! अन्यथा है वन्य कारा, प्रबल पावस, मध्य धारा, टूटते तन से प

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अनमिल-अनमिल मिलते

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अनमिल-अनमिल मिलते प्राण, गीत तो खिलते। उड़ती हैं छुट-छुटकर आँखें मन के नभ पर और किसी मणि के घर झिलमिल सुख से हिलते। किससे मैं कहूँ व्यथा अपनी जित-विजित कथा? होगी भी अनन्यता छन की लौ के झि

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मुदे नयन, मिले प्राण

12 अप्रैल 2022
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मुदे नयन, मिले प्राण, हो गया निशावसान। जगते-जग के कलरव सोये, उर के उत्सव मन्द हुए स्पन्दित जब, मिले कण्ठ-कण्ठ गान। एक हुए दोनें वर ईश्वर के अविनश्वर, पार हुए घर-प्रान्तर, अन्तर में निरवमा

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जननी मोह की रजनी

12 अप्रैल 2022
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जननी मोह की रजनी पार कर गई अवनी। तोरण-तोरण साजे, मंगल-बाजे बाजे, जन-गण-जीवन राजे, महिलाएँ बनीठनीं। साड़ी के खिले मोर, रेशम के हिले छोर, शिंजित हैं बोर-बोर, चमकी है कनी-कनी। क्षिति पर ह

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उनसे-संसार, भव-वैभव-द्वार

12 अप्रैल 2022
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उनसे-संसार, भव-वैभव-द्वार। समझो वर निर्जर रण; करो बार बार स्मरण, निराकार करण-हरण, शरण, मरणपार। रवि की छवि के प्रभात, ज्योति के अदृश्य गात, गन्ध-मन्द-पवन-जात, उर-उर के हार।

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मधुर स्वर तुमने बुलाया

12 अप्रैल 2022
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मधुर स्वर तुमने बुलाया, छद्म से जो मरण आया। बो गई विष वायु पच्छिम, मेघ के मद हुई रिमझिम, रागिनी में मृत्युः द्रिमद्रिम, तान में अवसान छाया। चरण की गति में विरत लय, सांस में अवकाश का क्षय,

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गवना न करा

12 अप्रैल 2022
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गवना न करा। खाली पैरों रास्ता न चला। कंकरीली राहें न कटेंगी, बेपर की बातें न पटेंगी, काली मेघनियाँ न फटेंगी, ऐसे ऐसे तू डग न भरा। कुछ भी न बता तू रहा पता, सपने-सपने दे रहा घता, जो पूरा-पूर

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कैसे हुई हार तेरी निराकर

12 अप्रैल 2022
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कैसे हुई हार तेरी निराकार, गगन के तारकों बन्द हैं कुल द्वार? दुर्ग दुर्घर्ष यह तोड़ता है कौन? प्रश्न के पत्र, उत्तर प्रकृति है मौन; पवन इंगित कर रहा है--निकल पार। सलिल की ऊर्मियों हथेली मारकर

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तुम आये कनकाचल छाये

12 अप्रैल 2022
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तुम आये, कनकाचल छाये, ऐ नव-नव किसलय फैलाये। शतशत वल्लरियाँ नत-मस्तक, झुककर पुष्पाधर मुसकाये। परिणय अगणन यौवन-उपवन, संकुल फल के गुंजन भाये; मधु के पावन सावन सरसे, परसे जीवन-वन मुरझाये। रवि-

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खोले अमलिन जिस दिन

12 अप्रैल 2022
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खोले अमलिन जिस दिन, नयन विश्वजन के दिखी भारती की छबि, बिके लोग धन के। तन की छुटा गई सुरत, रुके चरण मायामत, रोग-शोक-लोक, वितत उठे नये रण के। तटिनी के तीर खड़े खम्भे थे, वीर बड़े, मेरु के

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तू दिगम्बर विश्व है घर

12 अप्रैल 2022
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तू दिगम्बर विश्व है घर ज्ञान तेरा सहज वर कर। शोकसारण करणकारण, तरणतारण विष्णु-शंकर। अमित सित के असित चित के  त्वरित हित के राम वानर, लक्षणासन संग लक्ष्मण वासनारण-प्रहर-खर-शर। गति अनाहत, तू

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कौन फिर तुझको बरेगा

12 अप्रैल 2022
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कौन फिर तुझको बरेगा तू न जब उस पथ मरेगा? निखिल के शर शत्रु हनकर, क्षत भले कर क्षत्र बनकर, तू चला जबतक न तनकर, धर्म का ध्वज कर न लेगा। देश के अवशेष के रण शमन के प्रहरण दिया तन तो हुआ तू शरण

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हरिण नयन हरि ने छीने हैं

12 अप्रैल 2022
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हरिण-नयन हरि ने छीने हैं। पावन रँग रग-रग भीने हैं। जिते न-चहती माया महती, बनी भावना सहती-सहती, भीतर धसी साधना बहती, सिले छेद जो तन सीने हैं। जाने जन जो मरे जिये थे, फिरे सुकृत जो लिये दिये

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हुए पार द्वार-द्वार

12 अप्रैल 2022
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हुए पार द्वार-द्वार, कहीं मिला नहीं तार। विश्व के समाराधन हंसे देखकर उस क्षण, चेतन जनगण अचेत समझे क्या जीत हार? कांटों से विक्षत पद, सभी लोग अवशम्बद, सूख गया जैसे नद सुफलभार सुजलधार। क

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पथ पर बेमौत न मर

12 अप्रैल 2022
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पथ पर बेमौत न मर, श्रम कर तू विश्रम-कर। उठा उठा करद हाथ, दे दे तू वरद साथ, जग के इस सजग प्रात पात-पात किरनें भर। बढ़ा बढ़ा कर के तन, जगा जगा निश्चेतन, भगा भीरु जीवन-रण सर-सर से उभर सुघर।

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कनक कसौटी पर कढ़ आया

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कनक कसौटी पर कढ़ आया स्वच्छ सलिल पर कर की छाया। मान गये जैसे सुनकर जन मन के मान अवश्रित प्रवचन, जो रणमद पद के उत्तोलन मिलते ही काया से काया। चले सुपथ सत्य को संवरकर उचित बचा लेने को टक्कर,

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साध पुरी, फिरी धुरी

12 अप्रैल 2022
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साध पुरी, फिरी धुरी। छुटी गैल-छैल-छुरी। अपने वश हैं सपने, सुकर बने जो न बने, सीधे हैं कड़े चने, मिली एक एक कुरी। सबकी आँखों उतरे साख-साख से सुथरे, सुए के हुए खुथरे ऊपर से चली खुरी। सजध

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पतित हुआ हूँ भव से तार

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पतित हुआ हूँ भव से तार; दुस्तर दव से कर उद्धार। तू इंगित से विश्व अपरिमित रच-रचकर करती है अवसित किस काया से किस छायाश्रित, मैं बस होता हूँ बलिहार। समझ में न आया तेरा कर भर देगा या ले लेगा ह

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पतित पावनी गंगे!

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पतित पावनी, गंगे! निर्मल-जल-कल-रंगे! कनकाचल-विमल-धुली, शत-जनपद-प्रगद-खुली, मदन-मद न कभी तुली लता-वारि-भ्रू-भंगे! सुर-नर-मुनि-असुर-प्रसर स्तव रव-बहु गीत-विहर जल धारा धाराधर मुखर, सुकर-कर-अ

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चरण गहे थे, मौन रहे थे

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चरण गहे थे, मौन रहे थे, विनय-वचन बहु-रचन कहे थे। भक्ति-आंसुओं पद पखार कर, नयन-ज्योति आरति उतार कर, तन-मन-धन सर्वस्व वार कर, अमर-विचाराधार बहे थे। आस लगी है जी की जैसी, खण्डित हुई तपस्या वैस

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विपद-भय-निवारण करेगा वहीं सुन

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विपद-भय-निवारण करेगा वही सुन, उसी का ज्ञान है, ध्यान है मान-गुन। वेग चल, वेग चल, आयु घटती हुई, प्रमुद-पद की सुखद वायु कटती हुई; जल्पना छोड़ दे जोड़ दे ललित धुन। सलिल में मीन हैं मग्न, मनु अनि

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श्याम-श्यामा के युगल पद

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श्याम-श्यामा के युगल पद, कोकनद मन के विनिर्मद। हृदय के चन्दन सुखाशय, नयन के वन्दन निरामय, निश्शरण के निर्गमन के, गगन-छाया-तल सदाश्रय, उषा की लाली लगे दुख के, जगे के योग के गद। नन्द के आनन्

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काम के छविधाम

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काम के छवि-धाम, शमन प्रशमन राम! सिन्धुरा के सीस सिन्दूर, जगदीश, मानव सहित-कीश, सीता-सती-नाम। अरि-दल-दलन-कारि, शंकर, समनुसारि पद-युगल-तट-वारि सरिता, सकल याम। शेष के तल्प कल शयन अवशेष-प

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हे जननि, तुम तपश्चरिता

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हे जननि, तुम तपश्चरिता, जगत की गति, सुमति भरिता। कामना के हाथ थक कर रह गये मुख विमुख बक कर, निःस्व के उर विश्व के सुर बह चली हो तमस्तरिता। विवश होकर मिले शंकर, कर तुम्हारे हैं विजय वर, चरण

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मुक्तादल जल बरसो, बादल,

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मुक्तादल जल बरसो, बादल, सरिसर कलकलसरसो बादल! शिखि के विशिख चपल नर्तन वन, भरे कुंजद्रुम षटपद गुंजन, कोकिल काकलि जित कल कूजन, सावन पावन परसो, बादल! अनियारे दृग के तारे द्वय, गगन-धरा पर खुले अ

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गगन गगन है गान तुम्हारा

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गगन गगन है गान तुम्हारा, घन घन जीवनयान तुम्हारा। नयन नयन खोले हैं यौवन, यौवन यौवन बांधे सुनयन, तन तन मन साधे मन मन तन, मानव मानव मान तुम्हारा। क्षिति को जल, जल को सित उत्पल, उत्पल को रवि, ज

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बीन वारण के वरण धन

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बीन वारण के वरण घन, जो बजी वर्षित तुम्हारी, तार तनु की नाचती उतरी, परी, अप्सरकुमारी। लूटती रेणुओं की निधि, देखती निज देश वारिधि, बह चली सलिला अनवसित ऊर्मिला, जैसे उतारी। चतुर्दिक छन-छन, छन

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घन आये घनश्याम न आये।

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घन आये घनश्याम न आये। जल बरसे आँसू दृग छाये। पड़े हिंडोले, धड़का आया, बढ़ी पैंग, घबराई काया, चले गले, गहराई छाया, पायल बजे, होश मुरझाये। भूले छिन, मेरे न कटे दिन, खुले कमल, मैंने तोड़े तिन,

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किरणों की परियां मुसका दीं

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किरणों की परियाँ मुसका दों। ज्योति हरी छाया पर छा दी। परिचय के उर गूंजे नूपुर, थिर चितवन से चिर मिलनातुर, विष की शत वाणी से विच्छुर, गांस गांस की फांस हिला दीं। प्राणों की अंजलि से उड़कर, छ

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तुम्हारी छांह है, छल है;

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तुम्हारी छांह है, छल है, तुम्हारे बाल हैं, बल है। दृगों में ज्योति है, शय है, हृदय में स्पन्द है, भय है। गले में गीत है, लय है, तुम्हारी डाल है, फल है। उरोरुह राग है, रति है, प्रभा है, सहज

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मां, अपने आलोक निखारो

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माँ अपने आलोक निखारो, नर को नरक-त्रास से वारो। विपुल दिशावधि शून्य वगर्जन, व्याधि-शयन जर्जर मानव मन, ज्ञान-गगन से निर्जर जीवन करुणाकरों उतारो, तारो। पल्लव में रस, सुरभि सुमन में, फल में दल,

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तपन से घन, मन शयन से;

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तपन से घन, मन शयन से, प्रातजीवन निशि-नयन से। प्रमद आलस से मिला है, किरण से जलरुह किला है, रूप शंका से सुघरतर अदर्शित होकर खिला है, गन्ध जैसे पवन से, शशि रविकरों से, जन अयन से।

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चलीं निशि में तुम, आईं प्रात

12 अप्रैल 2022
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चलीं निशि में तुम आई प्रात; नवल वीक्षण, नवकर सम्पात, नूपुर के निक्वण कूजे खग, हिले हीरकाभरण, पुष्प मग, साँस समीरण, पुलकाकुल जग, हिले पग जलजात।

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तपी आतप से जो सित गात

12 अप्रैल 2022
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तपी आतप से जो सित गात, गगन गरजे घन, विद्युत पात। पलटकर अपना पहला ओर, बही पूर्वा छू छू कर छोर; हुए शीकर से निश्शर कोर, स्निग्ध शशि जैसे मुख अवदात।

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