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अध्याय 3 भरत और रामचन्द्र

9 फरवरी 2022

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इधर भरत अयोध्यावासियों के साथ राम को मनाने के लिए जा रहे थे। जब वह गंगा नदी के किनारे पहुंचे, तो भील सरदार गुह को उनकी सेना देखकर सन्देह हुआ कि शायद यह रामचन्द्र पर आक्रमण करने जा रहे हैं। तुरन्त अपने आदमियों को एकत्रित करने लगा। किन्तु बाद को जब भरत का विचार ज्ञात हुआ तो उनके सामने आया और अपने घर चलने का निमन्त्रण दिया। भरत ने कहा—जब रामचन्द्र ने बस्ती के बाहर पेड़ के नीचे रात बितायी, तो मैं बस्ती में कैसे जाऊं? बताओ, सीता और रामचन्द्र कहां सोये थे ? तब गुह ने उन्हें वह जगह दिखायी, तो भरत अपने आप रो पड़े—हाय, वह जिन्हें महलों में नींद नहीं आती थी, आज भूमि पर पेड़ के नीचे सो रहे हैं! यह दिनों का फेर है। मुझ अभागे के कारण इन्हें यह सारे कष्ट हो रहे हैं। इन घास के कड़े टुकड़ों से कोमलांगी सीता का शरीर छिल गया होगा। रामचन्द्र को मच्छरों ने रात भर कष्ट दिया होगा। नींद न आयी होगी। लक्ष्मण ने जंगली जानवरों के भय से सारी रात पहरा देकर काटी होगी और मैं अभी तक राजसी पोशाक पहने हूं। मुझे हजार बार धिक्कार है !
यह कहकर भरत ने उसी समय राजसी पोशाक उतार फेंकी और साधुओं कासा वेश धारण किया। फिर उसी पेड़ के नीचे, उसी घासफूस के बिछावन पर रातभर पड़ रहे। उस दिन से चौदह साल तक भरत ने साधुजीवन व्यतीत किया।
दूसरे दिन भरत भरद्वाज मुनि के आश्रम में पहुंचे। वहां पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि रामचन्द्र चित्रकूट की ओर गये हैं। रातभर वहां ठहरकर भरत सबेरे चित्रकूट रवाना हो गये।
सन्ध्या का समय था। रामचन्द्र और सीता एक चट्टान पर बैठे हुए सूयार्स्त का दृश्य देख रहे थे और लक्ष्मण तनिक दूर धनुष और बाण लिये खड़े थे।
सीता ने पेड़ों की ओर देखकर कहा—ऐसा परतीत होता है, इन पेड़ों ने सुनहरी चादर ओ़ ली है।
राम—पहाड़ियों की ऊदी रंग की ओस से लदी हुई चादर कितनी सुन्दर मालूम होती है। परकृति सोने का सामान कर रही है।
सीता—नीचे की घाटियों में काली चादर से मुंह ांक लिया।
राम—और पवन को देखो, जैसे कोई नागिन लहराती हुई चली जाती हो।
सीता—केतकी के फूलों से कैसी सुगन्ध आ रही है।
लक्ष्मण खड़ेखड़े एकाएक चौंककर बोले—भैया, वह सामने धूल कैसी उड़ रही है? सारा आसमान धूल से भर गया।
राम—कोई चरवाहा भेड़ों का गल्ला लिए चला जाता होगा।
लक्ष्मण—नहीं भाई साहब, कोई सेना है। घोड़े साफ दिखायी दे रहे हैं। वह लो, रथ भी दिखायी देने लगे।
रामचन्द्र—शायद कोई राजकुमार आखेट के लिए निकला हो।
लक्ष्मण—सबके सब इधर ही चले आते हैं।
यह कहकर लक्ष्मण एक ऊंचे पेड़ पर च़ गये, और भरत की सेना को धयान से देखने लगे। रामचन्द्र ने पूछा—कुछ साफ दिखायी देता है?
लक्ष्मण—जी हां, सब साफ दिखायी दे रहा है। आप धनुष और बाण लेकर तैयार हो जायं। मुझे ऐसा मालूम हो रहा है कि भरत सेना लेकर हमारे ऊपर आक्रमण करने चले आ रहे हैं। इन डालों के बीच से भरत के रथ की झन्डी साफ दिखायी दे रही है। भली परकार पहचानता हूं, भरत ही का रथ है। वही सुरंग घोड़े हैं। उन्हें अयोधया का राज्य पाकर अभी सन्टोष नहीं हुआ। आज सारे झगड़े का अन्त ही कर दूंगा।
रामचन्द्र—नहीं लक्ष्मण, भरत पर सन्देह न करो। भरत इतना स्वार्थी, इतना संकोचहीन नहीं है। मुझे विश्वास है कि वह हमें वापस ले चलने आ रहा है। भरत ने हमारे साथ कभी बुराई नहीं की।
लक्ष्मण—उन्हें बुराई करने का अवसर ही कब मिला, जो उन्होंने छोड़ दिया? आपअपने हृदय की तरह औरों का हृदय भी निर्मल समझते हैं। किन्तु मैं आपसे कहे देता हूं कि भरत विश्वासघात करेंगे। वह यहां इसी उद्देश्य से आ रहे हैं कि हम लोगों को मार कर अपना रास्ता सदैव के लिए साफ कर लें।
रामचन्द्र—मुझे जीतेजी भरत की ओर से ऐसा विश्वास नहीं हो सकता। यदि तुम्हें भरत का राजगद्दी पर बैठना बुरा लगता हो, तो मैं उनसे कहकर तुम्हें राज्य दिला सकता हूं। मुझे विश्वास है कि भरत मेरा कहना न टालेंगे।
लक्ष्मण ने लज्जित होकर सिर झुका लिया। रामचन्द्र का व्यंग्य उन्हें बुरा मालूम हुआ। पर मुंह से कुछ बोले नहीं। उधर भरत को ज्योंही ऋषियों की कुटियां दिखायी देने लगीं, वह रथ से उतर पड़े और नंगे पांव रामचन्द्र से मिलने चले। शत्रुघ्न और सुमन्त्र भी उनके साथ थे। कई कुटियों के बाद रामचन्द्र की कुटी दिखायी दी। रामचन्द्र कुटी के सामने एक पत्थर की चट्टान पर बैठे थे। उन्हें देखते ही भरत भैया! भैया! कहते हुए बच्चों की तरह रोते दौड़े और रामचन्द्र के पैरों पर गिर पड़े। रामचन्द्र ने भरत को उठा कर छाती से लगा लिया। शत्रुघ्न ने भी आगे ब़कर रामचन्द्र के चरणों पर सिर झुकाया। चारों भाई गले मिले। इतने में कौशाल्या, सुमित्रा, कैकेयी भी पहुंच गयीं। रामचन्द्र ने सब को परणाम किया। सीता जी ने भी सासों के पैरों को आंचल से छुआ। सासों ने उन्हें गले से लगाया। किन्तु किसी के मुंह से कोई शब्द न निकलता था। सबके गले भरे हुए थे और आंखों में आंसू भरे हुए थे। वनवासियों का यह साधुओं कासा वेश देखकर सबका हृदय विदीर्ण हुआ जाता था। कैसी विवशता है ! कौशल्या सीता को देखकर अपने आप रो पड़ी। वह बहू, जिसे वह पान की तरह फेरा करती थीं, भिखारिनी बनी हुई खड़ी है। समझाने लगीं—बेटा, अब भी मेरा कहना मानो। यहां तुम्हें बड़ेबड़े कष्ट होंगे। इतने ही दिनों में सूरत बदल गयी है। बिल्कुल पहचानी नहीं जाती। मेरे साथ लौट चलो।
सीता ने कहा—अम्मा जी, जब मेरे स्वामी वनवन फिरते रहें तो मुझे अयोधया ही नहीं, स्वर्ग में भी सुख नहीं मिलेगा। स्त्री का धर्म पुरुष के साथ रहकर उसके दुःखसुख में भाग लेना है। पुरुष को दुःख में छोड़कर जो स्त्री सुख की इच्छा करती है, वह अपने कर्तव्य से मुंुह मोड़ती है। पानी के बिना नदी की जो दशा होती है, वही दशा पति के बिना स्त्री की होती है।
कौशल्या को सीता की बातों से परसन्नता भी हुई और दुःख भी हुआ। दुःख तो यह हुआ कि यह सुख और ऐश्वर्य में पली हुई लड़की यों विपत्ति में जीवन के दिन काट रही है। परसन्नता यह हुई कि उसके विचार इतने ऊंचे और पवित्र हैं। बोलीं—धन्य हो बेटी, इसी को स्त्री का पातिवरत कहते हैं। यही स्त्री का धर्म है। ईश्वर तुम्हें सुखी रखे, और दूसरी स्त्रियों को भी तुम्हारे मार्ग पर चलने की पररेणा दे। ऐसी देवियां मनुष्य के लिये गौरव का विषय होती हैं। उन्हीं के नाम पर लोग आदर से सिर झुकाते हैं। उन्हीं के यश घरघर गाये जाते हैं।
चारों भाई जब गले मिल चुके, तो रामचन्द्र ने भरत से पूछा—कहो भैया, तुम काश्मीर से कब आये? पिताजी तो कुशल से हैं? तुम उनको छोड़कर व्यर्थ चले आये, वह अकेले बहुत घबरा रहे होंगे ?
भरत की आंखों से टप्टप आंसू गिरने लगे। भर्राई हुई आवाज में बोले—भाई साहब, पिताजी तो अब इस संसार में नहीं हैं। जिस दिन सुमन्त्र रथ लेकर वापस
हुए, उसी रात को वह परलोक सिधारे। मरते समय आप ही का नाम उनकी जिह्वा पर था।
यह दुःखपूर्ण समाचार सुनते ही रामचन्द्र पछाड़ खाकर गिर पड़े। जब तनिक चेतना आयी तो रोने लगे। रोतेरोते हिचकियां बंध गयीं। हाय! पिता जी का अन्तिम दर्शन भी पराप्त न हुआ! अब रामचन्द्र को ज्ञात हुआ कि महाराज दशरथ को उनसे कितना परेम था। उनके वियोग में पराण त्याग दिये। बोले—यह मेरा दुर्भाग्य है कि अन्तिम समय उनके दर्शन न कर सका। जीवन भर इसका खेद रहेगा। अब हम उनकी सबसे बड़ी यही सेवा कर सकते हैं कि अपने कामों से उनकी आत्मा को परसन्न करें। महाराज अपनी परजा को कितना प्यार करते थे! तुम भी परजा का पालन करते रहना। सेना के परसन्न रहने ही से राज्य का अस्तित्व बना रहता है। तुम भी सैनिकों को परसन्न रखना। उनका वेतन ठीक समय पर देते रहना। न्याय के विषय में किसी के साथ लेशमात्र भी पक्षपात न करना हर एक काम में मन्त्रियों से अवश्य परामर्श लेना और उनके परामर्श पर आचरण करना। निर्धनों को धनियों के अत्याचार से बचाना। किसानों के साथ कभी सख्ती न करना। खेती सिंचाई के लिए कुएं, नहरें, ताल बनवाना। लड़कों की शिक्षा की ओर से असावधान न होना। और राज्य के कर्मचारियों की सख्ती से निगरानी करते रहना अन्यथा ये लोग परजा को नष्ट कर देंगे।
भरत ने कहा—भाई साहब! मैं यह बातें क्या जानूं। मैं तो आपकी सेवा में इसीलिए उपस्थित हुआ हूं कि आपको अयोध्या ले चलूं। अब तो हमारे पिता भी आप ही हैं। आप हमें जो आज्ञा देंगे, हम उसे बजा लायेंगे। हमारी आपसे यही विनती है, इसे स्वीकार कीजिये। जब से आप आये हैं, अयोध्या में वह श्री ही न रही। चारों ओर मृत्यु कीसी नीरवता है। लोग आपको याद करके रोया करते हैं। अब तक मैं सबको यह आश्वासन देता रहा हूं कि रामचन्द्र शीघर वापस आयेंगे। यदि आप न लौटेंगे, तो राज्य में कुहराम मच जायगा और सारा दोष और कलंक मेरे सिर पर रखा जायगा।
रामचन्द्र ने उत्तर दिया—भैया, जिन वचनों को पूरा करने के लिए पिताजी ने अपना पराण तक दे दिया, उसे पूरा करना मेरा धर्म है। उन्हें अपना वचन अपने पराण से भी अधिक पिरय था। इस आज्ञा का पालन मैं न करुं, तो संसार में कौनसा मुंह दिखाऊंगा। तुम्हें भी उनकी आज्ञा मानकर राज्य करना चाहिये। मैं चौदह वर्ष व्यतीत होने के बाद ही अयाधया में पैर रखूंगा।
भरत ने बहुत परार्थनाविनती की। गुरु वशिष्ठ और परतिष्ठित व्यक्तियों ने रामचन्द्र को खूब समझाया, किन्तु वह अयोध्या चलने पर किसी परकार सहमत न हुए। तब भरत ने रोकर कहा—भैया, यदि आपका यही निर्णय है, तो विवश होकर हमको भी मानना ही पड़ेगा। किन्तु आप मुझे अपनी खड़ाऊं दे दीजिये। आज से यह खड़ाऊं ही राजसिंहासन पर विराजेगी। हम सब आपके चाकर होंगे। जब तक आप लौटकर न आयेंगे, अभागा भरत भी आप ही के समान साधुओं कासा जीवन व्यतीत करेगा। किन्तु चौदह वर्ष बीत जाने पर भी आप न आये, तो मैं आग में जल मरुंगा।
यह कहकर भरत ने रामचन्द्र के खड़ाऊं को सिर पर रखा और बिदा हुए। रामचन्द्र ने कौशल्या और सुमित्रा के पैरों पर सिर रखा और उन्हें बहुत ढाढ़स देकर बिदा किया। कैकेयी लज्जा से सिर झुकाये खड़ी थी। रामचन्द्र जब उसके चरणों पर झुके, तो वह फूटफूटकर रोने लगी। रामचन्द्र की सज्जनता और निर्मलहृदयता ने सिद्ध कर दिया कि राम पर उसका सन्देह अनुचित था।
जब सब लोग नन्दिगराम में पहुंचे, तो भरत ने मंत्रियों से कहा—आप लोग अयोधया जायें, मैं चौदह वर्ष तक इसी पररकार इस गांव में रहूंगा। राजा रामचन्द्र के सिंहासन पर बैठकर अपना परलोक न बिगाड़ूंगा। जब आपको मुझसे किसी सम्बन्ध में परामर्श करने की आवश्यकता हो मेरे पास चले आइयेगा।
भरत की यह सज्जनता और उदारता देखकर लोग आश्चर्य में आ गये। ऐसा कौन होगा, जो मिलते हुए राज्य को यों ठुकराकर अलग हो जाय! लोगों ने बहुत चाहा कि भरत अयोध्या चलकर राज करें, किन्तु भरत ने वहां जाने से निश्चित असहमति परकट कर दी। एक कवि ने ठीक कहा है कि भरतजैसा सज्जन पुत्र उत्पन्न करके कैकेयी ने अपने सारे दोषों पर धूल डाल दी।
आखिर सब रानियां शत्रुघ्न और अयोध्या के निवासी, भरत को वहीं छोड़कर अयाधया चले आये। शत्रुघ्न मन्त्रियों की सहायता से राजकार्य संभालते थे और भरत नन्दिगराम में बैठे हुए उनकी निगरानी करते रहते थे। इस परकार चौदह वर्ष बीत गये। 

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रचनाएँ
रामचर्चा
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राम चर्चा प्रेमचंद द्वारा लिखी गयी बच्चो की पुस्तक है ये पुस्तक लिखने में उनका मुख्य उदेश्य था कि भगवान राम के गुणों को बच्चों तक पहुचाएँ इसी लिए एक वार्तालाप के रूप में इस पुस्तक हो किया गया है जहाँ भगवान राम अपनी पत्नी सीता से बात कर रहे हैं और अपने जीवन का वर्णन दे रहे हैं प्रथम अध्याय में भगवान् राम अपने जन्म से चारों भाई की शादी तक की कथा संमिलित रूप से कही गई है
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अध्याय 1 जन्म

9 फरवरी 2022
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प्यारे बच्चो! तुमने विजयदशमी का मेला तो देखा ही होगा। कहींकहीं इसे रामलीला का मेला भी कहते हैं। इस मेले में तुमने मिट्टी या पीतल के बन्दरों और भालुओं के से चेहरे लगाये आदमी देखे होंगे। राम, लक्ष्मण और

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ताड़का और मारीच का वध

9 फरवरी 2022
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एक दिन राजा दशरथ दरबार में बैठे हुए मन्त्रियों से कुछ बातचीत कर रहे थे कि ऋषि विश्वामित्र पधारे। विश्वामित्र उस समय के बहुत बड़े तपस्वी थे। वह क्षत्रिय होकर भी केवल अपनी आराधना के बल से बरह्मर्षि के प

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विवाह

9 फरवरी 2022
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राम और लक्ष्मण अभी विश्वामित्र के आश्रम में ही थे कि मिथिला के राजा जनक ने विश्वामित्र को अपनी लड़की सीता के स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए नवेद भेजा। उस समय में परायः विवाह स्वयंवर की रीति से होते

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अध्याय 2 वनवास

9 फरवरी 2022
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राजा दशरथ कई साल तक बड़ी तनदेही से राज करते रहे, किन्तु बुढ़ापे के कारण उनमें अब पहलेसा जोश न था, इसलिए उन्होंने रामचन्द्र जी से राज्य के कामों में मदद लेना शुरू किया। इसमें एक गुप्त युक्ति यह भी थी क

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राजा दशरथ की मृत्यु

9 फरवरी 2022
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तमसा नदी को पार करके पहर रात जातेजाते रामचन्द्र गंगा के किनारे जा पहुंचे। वहां भील सरदार गुह का राज्य था। रामचन्द्र के आने का समाचार पाते ही उसने आकर परणाम किया। रामचन्द्र ने उसकी नीच जाति की तनिक भी

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भरत की वापसी

9 फरवरी 2022
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जिस दिन महाराज दशरथ की मृत्यु हुई उसी दिन रात को भरत ने कई डरावने स्वप्न देखे। उन्हें बड़ी चिन्ता हुई कि ऐसे बुरे स्वप्न क्यों दिखायी दे रहे हैं। न जाने लोग अयोध्या में कुशल से हैं या नहीं। नाना की अन

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चित्रकूट

9 फरवरी 2022
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राम, लक्ष्मण और सीता गंगा नदी पार करके चले जा रहे थे। अनजान रास्ता, दोनों ओर जंगल, बस्ती का कहीं पता नहीं। इस परकार वे परयाग पहुंचे। परयाग में भरद्वाज मुनि का आश्रम था। तीनों आदमियों ने त्रिवेणी स्नान

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अध्याय 3 भरत और रामचन्द्र

9 फरवरी 2022
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इधर भरत अयोध्यावासियों के साथ राम को मनाने के लिए जा रहे थे। जब वह गंगा नदी के किनारे पहुंचे, तो भील सरदार गुह को उनकी सेना देखकर सन्देह हुआ कि शायद यह रामचन्द्र पर आक्रमण करने जा रहे हैं। तुरन्त अपने

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दंडकवन

9 फरवरी 2022
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भरत के चले आने के बाद रामचन्द्र ने भी चित्रकूट से चले जाने का निश्चय कर लिया! उन्हें विचार हुआ कि अयोध्या के निवासी वहां बराबर आतेजाते रहेंगे और उनके आनेजाने से यहां के ऋषियों को कष्ट होगा। तीनों आदमी

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पंचवटी

9 फरवरी 2022
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कई दिन के बाद तीनों आदमी पंचवटी जा पहुंचे। परशंसा सुनी थी, उससे कहीं ब़कर पाया। नर्मदा के दोनों ओर ऊंचीऊंची पहाड़ियां फूलों से लदी हुई खड़ी थीं। नदी के निर्मल जल में हंस और बगुले तैरा करते थे। किनारे

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हिरण का शिकार

9 फरवरी 2022
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शूर्पणखा के दो भाई तो मारे गये, किन्तु अभी दो और शेष थे, उनमें से एक लङ्का देश का राजा था। उस समय में दक्षिण में लंका से अधिक बलवान और बसा हुआ कोई राज्य न था। रावण भी राक्षस था, किन्तु बड़ा विद्वान्,

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छल

9 फरवरी 2022
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तीसरे पहर का समय था। राम और सीता कुटी के सामने बैठे बातें कर रहे थे कि एकाएक अत्यन्त सुन्दर हिरन सामने कुलेलें करता हुआ दिखायी दिया। वह इतना सुन्दर, इतने मोहक रंग का था कि सीता उसे देखकर रीझ गयीं। ऐसा

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सीता का हरण

9 फरवरी 2022
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यह कहकर लक्ष्मण तो चल दिये। रावण ने जब देखा कि मैदान खाली है, तो उसने एक हाथ में चिमटा उठाया। दूसरे हाथ में कमण्डल लिया और ‘नारायण, नारायण !’ करता हुआ सीता जी की कुटी के द्वार पर आकर खड़ा हो गया। सीता

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अध्याय 4 किष्किन्धाकांड एवं सीता जी की खोज

9 फरवरी 2022
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राम और लक्ष्मण सीता की खोज में पर्वत और वनों की खाक छानते चले जाते थे कि सामने ऋष्यमूक पहाड़ दिखायी दिया। उसकी चोटी पर सुगरीव अपने कुछ निष्ठावान साथियों के साथ रहा करता था। यह मनुष्य किष्किन्धानगर के

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लंका में हनुमान

9 फरवरी 2022
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रासकुमारी से लंका तक तैरकर जाना सरल काम न था। इस पर दरियाई जानवरों से भी सामना करना पड़ा। किन्तु वीर हनुमान ने हिम्मत न हारी। संध्या होतेहोते वह उस पार जा पहुंचे। देखा कि लंका का नगर एक पहाड़ की चोटी

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अध्याय 5 लंकादाह

9 फरवरी 2022
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अशोकों के बाग से चलतेचलते हनुमान के जी में आया कि तनिक इन राक्षसों की वीरता की परीक्षा भी करता चलूं। देखूं, यह सब युद्ध की कला में कितने निपुण हैं। आखिर रामचन्द्र जी इन सबों का हाल पूछेंगे तो क्या बता

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आक्रमण की तैयारी

9 फरवरी 2022
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हनुमान ने रातोंरात समुद्र को पार किया और अपने साथियों से जा मिले। यह बेचारे घबरा रहे थे कि न जाने हनुमान पर क्या विपत्ति आयी। अब तक नहीं लौटे। अब हम लोग सुगरीव को क्या मुंह दिखावेंगे। रामचन्द्र के साम

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विभीषण

9 फरवरी 2022
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हनुमान के चले जाने के बाद राक्षसों को बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने सोचा, जिस सेना का एक सैनिक इतना बलवान और वीर है, उस सेना से भला कौन लड़ेगा! उस सेना का नायक कितना वीर होगा! एक आदमी ने आकर सारी लंका में

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आक्रमण

9 फरवरी 2022
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विभीषण यहां से अपमानित होकर सुगरीव की सेना में पहुंचा और सुगरीव से अपना सारा वृत्तान्त कहा। सुगरीव ने रामचन्द्र को उसके आने की सूचना दी। रामचन्द्र ने विचार किया कि कहीं यह रावण का भेदी न हो। हमारी सेन

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रावण के दरबार में अंगद

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रामचन्द्र ने समुद्र को पार करके लंका पर घेरा डाल दिया। दुर्ग के चारों द्वारों पर चार बड़ेबड़े नायकों को खड़ा किया। सुगरीव को सारी सेना का सेनापति बनाया। आप और लक्ष्मण सुगरीव के साथ हो गये। तेज दौड़ने

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कुम्भकर्ण

9 फरवरी 2022
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ढेर रावण ने जब सुना कि लक्ष्मण स्वस्थ हो गये तो मेघनाद से बोला—लक्ष्मण तो शक्तिबाण से भी न मरा। अब क्या युक्ति की जाय ? मैंने तो समझा था, एक का काम तमाम हो गया, अब एक ही और बाकी है, किन्तु दोनोंके-दोन

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मेघनाद का मारा जाना

9 फरवरी 2022
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दूसरे दिन मेघनाद बड़े सजधज से मैदान में आया। उसने दोनों भाइयों को मार गिराने का निश्चय कर लिया था। सारी रात देवी की पूजा करता रहा था। उसे अपने बल और शौर्य का बड़ा अभिमान था। रावण की सारी आशायें आज ही

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रावण युद्धक्षेत्र में

9 फरवरी 2022
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रात भर तो रावण शोक और क्रोध से जलता रहा। सबेरा होते ही मैदान की तरफ चला। लंका की सारी सेना उसके साथ थी। आज युद्ध का निर्णय हो जायगा, इसलिए दोनों ओर के लोग अपनी जानें हथेलियों पर लिये तैयार बैठे थे। रा

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अध्याय 6 विभीषण का राज्याभिषेक

9 फरवरी 2022
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एक दिन वह था कि विभीषण अपमानित होकर रोता हुआ निकला था, आज वह विजयी होकर लंका में परविष्ट हुआ। सामने सवारों का एक समूह था। परकारपरकार के बाजे बज रहे थे। विभीषण एक सुन्दर रथ पर बैठे हुए थे, लक्ष्मण भी उ

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अयोध्या की वापसी

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रामचन्द्र ने लंका पर जिस आशय से आक्रमण किया था, वह पूरा हो गया। सीता जी छुड़ा लीं गयीं, रावण को दण्ड दिया जा चुका। अब लंका में रहने की आवश्यकता न थी। रामचन्द्र ने चलने की तैयारी करने का आदेश दिया। विभ

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रामचन्द्र की राजगद्दी

9 फरवरी 2022
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आज रामचन्द्र के राज्याभिषेक का शुभ दिन है। सरयू के किनारे मैदान में एक विशाल तम्बू खड़ा है। उसकी चोबें, चांदी की हैं और रस्सियां रेशम की। बहुमूल्य गलीचे बिछे हुए हैं। तम्बू के बाहर सुन्दर गमले रखे हुए

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अध्याय 7 राम का राज्य

9 फरवरी 2022
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राज्याभिषेक का उत्सव समाप्त होने के उपरांत सुगरीव, विभीषण अंगद इत्यादि तो विदा हुए, किन्तु हनुमान को रामचन्द्र से इतना परेम हो गया था कि वह उन्हें छोड़कर जाने पर सहमत न हुए। लक्ष्मण, भरत इत्यादि ने उन

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सीता वनवास

9 फरवरी 2022
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नदी के पार पहुंचकर सीताजी की दृष्टि एकाएक लक्ष्मण के चेहरे पर पड़ी तो देखा कि उनकी आंखों से आंसू बह रहे हैं। वीर लक्ष्मण ने अब तक तो अपने को रोका था, पर अब आंसू न रुक सके। मैदान में तीरों को रोकना सरल

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लव और कुश

9 फरवरी 2022
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जहां सीता जी निराश और शोक में डूबी हुई रो रही थीं, उसके थोड़ी ही दूर पर ऋषि वाल्मीकि का आश्रम था। उस समय ऋषि सन्ध्या करने के लिए गंगा की ओर जाया करते थे ! आज भी वह जब नियमानुसार चले तो मार्ग में किसी

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अश्वमेध यज्ञ

9 फरवरी 2022
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सीता को त्याग देने के बाद रामचन्द्र बहुत दुःखित और शोकाकुल रहने लगे। सीता की याद हमेशा उन्हें सताती रहती थी। सोचते, बेचारी न जाने कहां होगी, न जाने उस पर क्या बीत रही होगी ! उस समय को याद करके जो उन्ह

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लक्ष्मण की मृत्यु

9 फरवरी 2022
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किन्तु अभी रामचन्द्र की विपत्तियों का अन्त न हुआ था। उन पर एक बड़ी बिजली और गिरने वाली थी। एक दिन एक साधु उनसे मिलने आया और बोला-मैं आपसे अकेले में कुछ कहना चाहता हूं। जब तक मैं बातें करता रहूं, कोई द

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अन्त

9 फरवरी 2022
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रामचन्द्र को लक्ष्मण के मरने का समाचार मिला तो मानो सिर पर पहाड़ टूट पड़ा। संसार में सीताजी के बाद उन्हें सबसे अधिक परेम लक्ष्मण से ही था। लक्ष्मण उनके दाहिने हाथ थे। कमर टूट गयी। कुछ दिन तक तो उन्हों

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