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अश्वमेध यज्ञ

9 फरवरी 2022

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सीता को त्याग देने के बाद रामचन्द्र बहुत दुःखित और शोकाकुल रहने लगे। सीता की याद हमेशा उन्हें सताती रहती थी। सोचते, बेचारी न जाने कहां होगी, न जाने उस पर क्या बीत रही होगी ! उस समय को याद करके जो उन्होंने सीता जी के साथ व्यतीत किया था, वह परायः रोने लगते थे। घर की हर एक चीज उन्हें सीता की याद दिला देती थी। उनके कमरे की तस्वीरें सीता जी की बनायी हुई थीं। बाग के कितने ही पौधे सीताजी के हाथों के लगाये हुए थे। सीता के स्वयंवर के समय की याद करते, कभी सीता के साथ जंगलों के जीवन का विचार करते। उन बातों को याद करके वह तड़पने लगते। आनंदोत्सवों में सम्मिलित होना उन्होंने बिल्कुल छोड़ दिया। बिल्कुल तपस्वियों की तरह जीवन व्यतीत करने लगे। दरबार के सभासदों और मंत्रियों ने समझाया कि आप दूसरा विवाह कर लें। किसी परकार नाम तो चले। कब तक इस परकार तपस्या कीजियेगा? किन्तु रामचन्द्र विवाह करने पर सहमत न हुए। यहां तक कि कई साल बीत गये।
उस समय कई परकार के यज्ञ होते थे। उसी में एक अश्वमेद्य यज्ञ भी था। अश्व घोड़े को कहते हैं। जो राजा यह आकांक्षा रखता था कि वह सारे देश का महाराजा हो जाय और सभी राजे उसके आज्ञापालक बन जायं, वह एक घोड़े को छोड़ देता था। घोड़ा चारों ओर घूमता था। यदि कोई राजा उस घोड़े को पकड़ लेता था, तो इसके अर्थ यह होते थे कि उसे सेवक बनना स्वीकार नहीं। तब युद्ध से इसका निर्णय होता था। राजा रामचन्द्र का बल और सामराज्य इतना ब़ गया कि उन्होंने अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया। दूरदूर के राजाओं, महर्षियों, विद्वानों के पास नवेद भेजे गये। सुगरीव, विभीषण, अंगद सब उस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आ पहुंचे। ऋषि वाल्मीकि को भी नवेद मिला। वह लव और कुश के साथ आ गये। यज्ञ की बड़ी धूमधाम से तैयारियां होने लगीं। अतिथियों के मनबहलाव के लिए नाना परकार के आयोजन किये गये थे। कहीं पहलवानों के दंगल थे, कहीं रागरंग की सभायें। किन्तु जो आनन्द लोगों को लव और कुश के मुंह से रामचन्द्र की चचार सुनने में आता था वह और किसी बात में न आता था। दोनों लड़के सुर मिलाकर इतने पिरयभाव से यह काव्य गाते थे कि सुनने वाले मोहित हो जाते थे। चारों ओर उनकी वाहवाह मची हुई थी। धीरेधीरे रानियों को भी उनका गाना सुनने का शौक पैदा हुआ। एक आदमी दोनों बरह्मचारियों को रानिवास में ले गया। यहां तीन बड़ी रानियां, उनकी तीनों बहुएं और बहुतसी स्त्रियां बैठी हुई थीं। रामचन्द्र भी उपस्थित थे। इन लड़कों के लंबेलंबे केश, वन की स्वास्थ्यकर हवा से निखरा हुआ लाल रंग और सुन्दर मुखमण्डल देखकर सबके-सब दंग हो गये। दोनों की सूरत रामचन्द्र से बहुत मिलती थी। वही ऊंचा ललाट था, वही लंबी नाक, वही चौड़ा वक्ष। वन में ऐसे लड़के कहां से आ गये, सबको यही आश्चर्य हो रहा था। कौशिल्या मन में सोच रही थीं कि रामचन्द्र के लड़के होते तो वह भी ऐसे ही होते। जब लड़कों ने कवित्त गाना परारम्भ किया, तो सबकी आंखों से आंसू बहने शुरू हो गये। लड़कों का सुर जितना प्यारा था, उतनी ही प्यारी और दिल को हिला देने वाली कविता थी। गाना सुनने के बाद रामचन्द्र ने बहुत चाहा कि उन लड़कों को कुछ पुरस्कार दें, किन्तु उन्होंने लेना स्वीकार न किया। आखिर उन्होंने पूछा—तुम दोनों को गाना किसने सिखाया और तुम कहां रहते हो ?
लव ने कहा—हम लोग ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में रहते हैं उन्होंने हमें गाना सिखाया है।
रामचन्द्र ने फिर पूछा—और यह कविता किसने बनायी?
लव ने उत्तर दिया—ऋषि वाल्मीकि ने ही यह कविता भी बनायी है।
रामचन्द्र को उन दोनों लड़कों से इतना परेम हो गया था कि वह उसी समय ऋषि वाल्मीकि के पास गये और उनसे कहा—महाराज! आपसे एक परश्न करने आया हूं, दया कीजियेगा।
ऋषि ने मुस्कराकर कहा—राजा रंक से परश्न करने आया है? आश्चर्य है। कहिये।
रामचन्द्र ने कहा—मैं चाहता हूं कि इन दोनों लड़कों को, जिन्होंने आपके रचे हुएपद सुनाये हैं, अपने पास रख लूं। मेरे अंधेरे घर के दीपक होंगे। हैं तो किसी अच्छे वंश के लड़के?
वाल्मीकि ने कहा—हां, बहुत उच्च वंश के हैं। ऐसा वंश भारत में दूसरा नहीं है।
राम—तब तो और भी अच्छा है। मेरे बाद वही मेरे उत्तराधिकारी होंगे। उनके मातापिता को इसमें कोई आपत्ति तो न होगी?
वाल्मीकि—कह नहीं सकता। सम्भव है आपत्ति हो पिता को तो लेशमात्र भी न होगी, किन्तु माता के विषय में कुछ भी नहीं कह सकता। अपनी मयार्दा पर जान देने वाली स्त्री है।
राम—यदि आप उसे देवी को किसी परकार सम्मत कर सकें तो मुझ पर बड़ी कृपा होगी।
वाल्मीकि—चेष्टा करुंगा। मैंने ऐसी सज्जन, लज्जाशीला और सती स्त्री नहीं देखी। यद्यपि उसके पति ने उसे निरपराध, अकारण त्याग दिया है, किन्तु यह सदैव उसी पति की पूजा करती है।
रामचन्द्र की छाती धड़कने लगी। कहीं यह मेरी सीता न हो। आह दैव, यह लड़के मेरे होते! तब तो भाग्य ही खुल जाता।
वाल्मीकि फिर बोले—बेटा, अब तो तुम समझ गये होगे कि मैं किस ओर संकेत कर रहा हूं।
रामचन्द्र का चेहरा आनन्द से खिल गया। बोले—हां, महाराज, समझ गया।
वाल्मीकि—जब से तुमने सीता को त्याग दिया है वह मेरे ही आश्रम में है। मेरे आश्रम में आने के दोतीन महीने के बाद वह लड़के पैदा हुए थे। वह तुम्हारे लड़के हैं। उनका चेहरा आप कह रहा है। क्या अब भी तुम सीता को घर न लाओगे? तुमने उसके साथ बड़ा अन्याय किया है। मैं उस देवी को आज पन्द्रह सालों से देख रहा हूं। ऐसी पवित्र स्त्री संसार में कठिनाई से मिलेगी। तुम्हारे विरुद्ध कभी एक शब्द भी उसके मुंह से नहीं सुना। तुम्हारी चचार सदैव आदर और परेम से करती है। उसकी दशा देखकर मेरा कलेजा फटा जाता है। बहुत रुला चुके, अब उसे अपने घर लाओ। वह लक्ष्मी है।
रामचन्द्र बोले—मुनि जी, मुझे तो सीता पर किसी परकार का सन्देह कभी नहीं हुआ। मैं उनको अब भी पवित्र समझता हूं। किन्तु अपनी परजा को क्या करुं ? उनकी जबान कैसे बन्द करुं? रामचन्द्र की पत्नी को सन्देह से पवित्र होना चाहिए। यदि सीता मेरी परजा को अपने विषय में विश्वास दिला दें, तो वह अब भी मेरी रानी बन सकती हैं। यह मेरे लिए अत्यन्त हर्ष की बात होगी।
वाल्मीकि ने तुरंत अपने दो चेलों को आदेश दिया कि जाकर सीता जी को साथ लाओ। रामचन्द्र ने उन्हें अपने पुष्पकविमान पर भेजा, जिनसे वह शीघर लौट आयें। दोनों चेले दूसरे दिन सीता जी को लेकर आ पहुंचे। सारे नगर में यह समाचार फैल गया था कि सीता जी आ रही हैं। राजभवन के सामने, यज्ञशाला के निकट लाखों आदमी एकत्रित थे। सीता जी के आने की खबर पाते ही रामचन्द्र भी भाइयों के साथ आ गये। एक क्षण में सीता जी भी आईं। वह बहुत दुबली हो गयी थीं, एक लाल साड़ी के अलावा उनके शरीर पर और कोई आभूषण न था। किन्तु उनके पीले मुरझाये हुए चेहरे से परकाश की किरणेंसी निकल रही थीं। वह सिर झुकाये हुए महर्षि वाल्मीकि के पीछेपीछे इस समूह के बीच में खड़ी हो गयीं।
महर्षि एक कुश के आसान पर बैठ गये और बड़े दृ़ भाव से बोले—देवी ! तेरे पति वह सामने बैठे हुए हैं। अयोध्या के लोग चारों ओर खड़े हैं। तू लज्जा और झिझक को छोड़कर अपने पवित्र और निर्मल होने का परमाण इन लोगों को दे और इनके मन से संदेह को दूर कर।
सीता का पीला चेहरा लाल हो गया। उन्होंने भीड़ को उड़ती हुई दृष्टि से देखा, फिर आकाश की ओर देखकर बोलीं—ईश्वर! इस समय मुझे निरपराध सिद्ध करना तुम्हारी ही दया का काम है। तुम्हीं आदमियों के हृदयों में इस संदेह को दूर कर सकते हो। मैं तुम्हीं से विनती करती हूं! तुम सबके दिलों का हाल जानते हो। तुम अन्तयार्मी हो। यदि मैंने सदैव परकट और गुप्त रूप में अपने पति की पूजा न की हो, यदि मैंने अपने पति के साथ अपने कर्तव्य को पूर्ण न किया हो, यदि मैं पवित्र और निष्कलंक न हूं, तो तुम इसी समय मुझे इस संसार से उठा लो। यही मेरी निर्मलता का परमाण होगा।
अंतिम शब्द मुंह से निकलते ही सीता भूमि पर गिर पड़ी। रामचन्द्र घबराये हुए उनके पास गये, पर वहां अब क्या था? देवी की आत्मा ईश्वर के पास पहुंच चुकी थी। सीता जी निरंतर शोक में घुलतेघुलते योंही मृतपराय हो रही थीं, इतने बड़े जनसमूह के सम्मुख अपनी पवित्रता का परमाण देना इतना बड़ा दुःख था, जो वह सहन न कर सकती थीं। चारों ओर कुहराम मच गया।
सब लोग फूटफूटकर रोने लगे। सबके जबान पर यही शब्द थे—‘यह सचमुच लक्ष्मी थी, फिर ऐसी स्त्री न पैदा होगी।’ कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा छाती पीटने लगीं और रामचन्द्र तो मूर्छित होकर गिर पड़े। जब बड़ी कठिनता से उन्हें चेतना आयी तो रोते हुए बोले—मेरी लक्ष्मी, मेरी प्यारी सीता! जा, स्वर्ग की देवियां तेरे चरणों पर सिर झुकाने के लिए खड़ी हैं। यह संसार तेरे रहने के योग्य न था। मुझ जैसा बलहीन पुरुष तेरा पति बनने के योग्य न था। मुझ पर दया कर, मुझे क्षमा कर। मैं भी शीघर तेरे पास आता हूं। मेरी यही ईश्वर से परार्थना है कि यदि मैंने कभी किसी पराई स्त्री का स्वप्न में ध्यान किया हो, यदि मैंने सदैव तुझे देवी की तरह हृदय में न पूजा हो, यदि मेरे हृदय में कभी तेरी ओर से सन्देह हुआ हो, तो पतिवरता स्त्रियों में तेरा नाम सबसे ब़कर हो। आने वाली पीयिं सदैव आदर से तेरे नाम की पूजा करें। भारत की देवियां सदैव तेरे यश के गीत गायें।
अश्वमेद्ययज्ञ कुशल से समाप्त हुआ। रामचन्द्र भारतवर्ष के सबसे बड़े महाराज मान लिये गये। दो योग्य, वीर और बुद्धिमान पुत्र भी उनके थे। सारे देश में कोई शत्रु न था। परजा उन पर जान देती थी। किसी बात की कमी न थी। किन्तु उस दिन से उनके होंठों पर हंसी नहीं आयी। शोकाकुल तो वह पहले भी रहा करते थे, अब जीवन उन्हें भार परतीत होने लगा। राजकाज में तनिक भी जी न लगता। बस यही जी चाहता कि किसी सुनसान जगह में जाकर ईश्वर को याद करें। शोक और खेद से बेचैन हृदय को ईश्वर के अतिरिक्त और कौन सान्त्वना दे सकता था ! 

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रचनाएँ
रामचर्चा
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राम चर्चा प्रेमचंद द्वारा लिखी गयी बच्चो की पुस्तक है ये पुस्तक लिखने में उनका मुख्य उदेश्य था कि भगवान राम के गुणों को बच्चों तक पहुचाएँ इसी लिए एक वार्तालाप के रूप में इस पुस्तक हो किया गया है जहाँ भगवान राम अपनी पत्नी सीता से बात कर रहे हैं और अपने जीवन का वर्णन दे रहे हैं प्रथम अध्याय में भगवान् राम अपने जन्म से चारों भाई की शादी तक की कथा संमिलित रूप से कही गई है
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अध्याय 1 जन्म

9 फरवरी 2022
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प्यारे बच्चो! तुमने विजयदशमी का मेला तो देखा ही होगा। कहींकहीं इसे रामलीला का मेला भी कहते हैं। इस मेले में तुमने मिट्टी या पीतल के बन्दरों और भालुओं के से चेहरे लगाये आदमी देखे होंगे। राम, लक्ष्मण और

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ताड़का और मारीच का वध

9 फरवरी 2022
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एक दिन राजा दशरथ दरबार में बैठे हुए मन्त्रियों से कुछ बातचीत कर रहे थे कि ऋषि विश्वामित्र पधारे। विश्वामित्र उस समय के बहुत बड़े तपस्वी थे। वह क्षत्रिय होकर भी केवल अपनी आराधना के बल से बरह्मर्षि के प

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विवाह

9 फरवरी 2022
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राम और लक्ष्मण अभी विश्वामित्र के आश्रम में ही थे कि मिथिला के राजा जनक ने विश्वामित्र को अपनी लड़की सीता के स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए नवेद भेजा। उस समय में परायः विवाह स्वयंवर की रीति से होते

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अध्याय 2 वनवास

9 फरवरी 2022
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राजा दशरथ कई साल तक बड़ी तनदेही से राज करते रहे, किन्तु बुढ़ापे के कारण उनमें अब पहलेसा जोश न था, इसलिए उन्होंने रामचन्द्र जी से राज्य के कामों में मदद लेना शुरू किया। इसमें एक गुप्त युक्ति यह भी थी क

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राजा दशरथ की मृत्यु

9 फरवरी 2022
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तमसा नदी को पार करके पहर रात जातेजाते रामचन्द्र गंगा के किनारे जा पहुंचे। वहां भील सरदार गुह का राज्य था। रामचन्द्र के आने का समाचार पाते ही उसने आकर परणाम किया। रामचन्द्र ने उसकी नीच जाति की तनिक भी

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भरत की वापसी

9 फरवरी 2022
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जिस दिन महाराज दशरथ की मृत्यु हुई उसी दिन रात को भरत ने कई डरावने स्वप्न देखे। उन्हें बड़ी चिन्ता हुई कि ऐसे बुरे स्वप्न क्यों दिखायी दे रहे हैं। न जाने लोग अयोध्या में कुशल से हैं या नहीं। नाना की अन

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चित्रकूट

9 फरवरी 2022
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राम, लक्ष्मण और सीता गंगा नदी पार करके चले जा रहे थे। अनजान रास्ता, दोनों ओर जंगल, बस्ती का कहीं पता नहीं। इस परकार वे परयाग पहुंचे। परयाग में भरद्वाज मुनि का आश्रम था। तीनों आदमियों ने त्रिवेणी स्नान

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अध्याय 3 भरत और रामचन्द्र

9 फरवरी 2022
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इधर भरत अयोध्यावासियों के साथ राम को मनाने के लिए जा रहे थे। जब वह गंगा नदी के किनारे पहुंचे, तो भील सरदार गुह को उनकी सेना देखकर सन्देह हुआ कि शायद यह रामचन्द्र पर आक्रमण करने जा रहे हैं। तुरन्त अपने

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दंडकवन

9 फरवरी 2022
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भरत के चले आने के बाद रामचन्द्र ने भी चित्रकूट से चले जाने का निश्चय कर लिया! उन्हें विचार हुआ कि अयोध्या के निवासी वहां बराबर आतेजाते रहेंगे और उनके आनेजाने से यहां के ऋषियों को कष्ट होगा। तीनों आदमी

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पंचवटी

9 फरवरी 2022
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कई दिन के बाद तीनों आदमी पंचवटी जा पहुंचे। परशंसा सुनी थी, उससे कहीं ब़कर पाया। नर्मदा के दोनों ओर ऊंचीऊंची पहाड़ियां फूलों से लदी हुई खड़ी थीं। नदी के निर्मल जल में हंस और बगुले तैरा करते थे। किनारे

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हिरण का शिकार

9 फरवरी 2022
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शूर्पणखा के दो भाई तो मारे गये, किन्तु अभी दो और शेष थे, उनमें से एक लङ्का देश का राजा था। उस समय में दक्षिण में लंका से अधिक बलवान और बसा हुआ कोई राज्य न था। रावण भी राक्षस था, किन्तु बड़ा विद्वान्,

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छल

9 फरवरी 2022
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तीसरे पहर का समय था। राम और सीता कुटी के सामने बैठे बातें कर रहे थे कि एकाएक अत्यन्त सुन्दर हिरन सामने कुलेलें करता हुआ दिखायी दिया। वह इतना सुन्दर, इतने मोहक रंग का था कि सीता उसे देखकर रीझ गयीं। ऐसा

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सीता का हरण

9 फरवरी 2022
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यह कहकर लक्ष्मण तो चल दिये। रावण ने जब देखा कि मैदान खाली है, तो उसने एक हाथ में चिमटा उठाया। दूसरे हाथ में कमण्डल लिया और ‘नारायण, नारायण !’ करता हुआ सीता जी की कुटी के द्वार पर आकर खड़ा हो गया। सीता

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अध्याय 4 किष्किन्धाकांड एवं सीता जी की खोज

9 फरवरी 2022
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राम और लक्ष्मण सीता की खोज में पर्वत और वनों की खाक छानते चले जाते थे कि सामने ऋष्यमूक पहाड़ दिखायी दिया। उसकी चोटी पर सुगरीव अपने कुछ निष्ठावान साथियों के साथ रहा करता था। यह मनुष्य किष्किन्धानगर के

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लंका में हनुमान

9 फरवरी 2022
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रासकुमारी से लंका तक तैरकर जाना सरल काम न था। इस पर दरियाई जानवरों से भी सामना करना पड़ा। किन्तु वीर हनुमान ने हिम्मत न हारी। संध्या होतेहोते वह उस पार जा पहुंचे। देखा कि लंका का नगर एक पहाड़ की चोटी

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अध्याय 5 लंकादाह

9 फरवरी 2022
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अशोकों के बाग से चलतेचलते हनुमान के जी में आया कि तनिक इन राक्षसों की वीरता की परीक्षा भी करता चलूं। देखूं, यह सब युद्ध की कला में कितने निपुण हैं। आखिर रामचन्द्र जी इन सबों का हाल पूछेंगे तो क्या बता

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आक्रमण की तैयारी

9 फरवरी 2022
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हनुमान ने रातोंरात समुद्र को पार किया और अपने साथियों से जा मिले। यह बेचारे घबरा रहे थे कि न जाने हनुमान पर क्या विपत्ति आयी। अब तक नहीं लौटे। अब हम लोग सुगरीव को क्या मुंह दिखावेंगे। रामचन्द्र के साम

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विभीषण

9 फरवरी 2022
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हनुमान के चले जाने के बाद राक्षसों को बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने सोचा, जिस सेना का एक सैनिक इतना बलवान और वीर है, उस सेना से भला कौन लड़ेगा! उस सेना का नायक कितना वीर होगा! एक आदमी ने आकर सारी लंका में

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आक्रमण

9 फरवरी 2022
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विभीषण यहां से अपमानित होकर सुगरीव की सेना में पहुंचा और सुगरीव से अपना सारा वृत्तान्त कहा। सुगरीव ने रामचन्द्र को उसके आने की सूचना दी। रामचन्द्र ने विचार किया कि कहीं यह रावण का भेदी न हो। हमारी सेन

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रावण के दरबार में अंगद

9 फरवरी 2022
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रामचन्द्र ने समुद्र को पार करके लंका पर घेरा डाल दिया। दुर्ग के चारों द्वारों पर चार बड़ेबड़े नायकों को खड़ा किया। सुगरीव को सारी सेना का सेनापति बनाया। आप और लक्ष्मण सुगरीव के साथ हो गये। तेज दौड़ने

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कुम्भकर्ण

9 फरवरी 2022
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ढेर रावण ने जब सुना कि लक्ष्मण स्वस्थ हो गये तो मेघनाद से बोला—लक्ष्मण तो शक्तिबाण से भी न मरा। अब क्या युक्ति की जाय ? मैंने तो समझा था, एक का काम तमाम हो गया, अब एक ही और बाकी है, किन्तु दोनोंके-दोन

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मेघनाद का मारा जाना

9 फरवरी 2022
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दूसरे दिन मेघनाद बड़े सजधज से मैदान में आया। उसने दोनों भाइयों को मार गिराने का निश्चय कर लिया था। सारी रात देवी की पूजा करता रहा था। उसे अपने बल और शौर्य का बड़ा अभिमान था। रावण की सारी आशायें आज ही

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रावण युद्धक्षेत्र में

9 फरवरी 2022
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रात भर तो रावण शोक और क्रोध से जलता रहा। सबेरा होते ही मैदान की तरफ चला। लंका की सारी सेना उसके साथ थी। आज युद्ध का निर्णय हो जायगा, इसलिए दोनों ओर के लोग अपनी जानें हथेलियों पर लिये तैयार बैठे थे। रा

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अध्याय 6 विभीषण का राज्याभिषेक

9 फरवरी 2022
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एक दिन वह था कि विभीषण अपमानित होकर रोता हुआ निकला था, आज वह विजयी होकर लंका में परविष्ट हुआ। सामने सवारों का एक समूह था। परकारपरकार के बाजे बज रहे थे। विभीषण एक सुन्दर रथ पर बैठे हुए थे, लक्ष्मण भी उ

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अयोध्या की वापसी

9 फरवरी 2022
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रामचन्द्र ने लंका पर जिस आशय से आक्रमण किया था, वह पूरा हो गया। सीता जी छुड़ा लीं गयीं, रावण को दण्ड दिया जा चुका। अब लंका में रहने की आवश्यकता न थी। रामचन्द्र ने चलने की तैयारी करने का आदेश दिया। विभ

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रामचन्द्र की राजगद्दी

9 फरवरी 2022
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आज रामचन्द्र के राज्याभिषेक का शुभ दिन है। सरयू के किनारे मैदान में एक विशाल तम्बू खड़ा है। उसकी चोबें, चांदी की हैं और रस्सियां रेशम की। बहुमूल्य गलीचे बिछे हुए हैं। तम्बू के बाहर सुन्दर गमले रखे हुए

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अध्याय 7 राम का राज्य

9 फरवरी 2022
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राज्याभिषेक का उत्सव समाप्त होने के उपरांत सुगरीव, विभीषण अंगद इत्यादि तो विदा हुए, किन्तु हनुमान को रामचन्द्र से इतना परेम हो गया था कि वह उन्हें छोड़कर जाने पर सहमत न हुए। लक्ष्मण, भरत इत्यादि ने उन

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सीता वनवास

9 फरवरी 2022
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नदी के पार पहुंचकर सीताजी की दृष्टि एकाएक लक्ष्मण के चेहरे पर पड़ी तो देखा कि उनकी आंखों से आंसू बह रहे हैं। वीर लक्ष्मण ने अब तक तो अपने को रोका था, पर अब आंसू न रुक सके। मैदान में तीरों को रोकना सरल

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लव और कुश

9 फरवरी 2022
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जहां सीता जी निराश और शोक में डूबी हुई रो रही थीं, उसके थोड़ी ही दूर पर ऋषि वाल्मीकि का आश्रम था। उस समय ऋषि सन्ध्या करने के लिए गंगा की ओर जाया करते थे ! आज भी वह जब नियमानुसार चले तो मार्ग में किसी

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अश्वमेध यज्ञ

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सीता को त्याग देने के बाद रामचन्द्र बहुत दुःखित और शोकाकुल रहने लगे। सीता की याद हमेशा उन्हें सताती रहती थी। सोचते, बेचारी न जाने कहां होगी, न जाने उस पर क्या बीत रही होगी ! उस समय को याद करके जो उन्ह

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लक्ष्मण की मृत्यु

9 फरवरी 2022
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किन्तु अभी रामचन्द्र की विपत्तियों का अन्त न हुआ था। उन पर एक बड़ी बिजली और गिरने वाली थी। एक दिन एक साधु उनसे मिलने आया और बोला-मैं आपसे अकेले में कुछ कहना चाहता हूं। जब तक मैं बातें करता रहूं, कोई द

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9 फरवरी 2022
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रामचन्द्र को लक्ष्मण के मरने का समाचार मिला तो मानो सिर पर पहाड़ टूट पड़ा। संसार में सीताजी के बाद उन्हें सबसे अधिक परेम लक्ष्मण से ही था। लक्ष्मण उनके दाहिने हाथ थे। कमर टूट गयी। कुछ दिन तक तो उन्हों

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