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सीता वनवास

9 फरवरी 2022

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नदी के पार पहुंचकर सीताजी की दृष्टि एकाएक लक्ष्मण के चेहरे पर पड़ी तो देखा कि उनकी आंखों से आंसू बह रहे हैं। वीर लक्ष्मण ने अब तक तो अपने को रोका था, पर अब आंसू न रुक सके। मैदान में तीरों को रोकना सरल है, आंसू को कौन वीर रोक सकता है !
सीताजी आश्चर्य से बोलीं—लक्ष्मण, तुम रो क्यों रहे हो? क्या आज वन को देखकर फिर बनवास के दिन याद आ रहे हैं ?
लक्ष्मण और भी फूटफूटकर रोते हुए सीता जी के पैरों पर गिर पड़े और बोले—नदी देवी! इसलिए कि आज मुझसे अधिक भाग्यहीन, निर्दय पुरुष संसार में नहीं। क्या ही अच्छा होता, मुझे मौत आ जाती। मेघनाद की शक्ति ही ने काम तमाम कर दिया होता तो आज यह दिन न देखना पड़ता। जिस देवी के दर्शनों से जीवन पवित्र हो जाता है, उसे आज मैं वनवास देने आया हूं। हाय! सदैव के लिए !
सीताजी अब भी कुछ साफसाफ न समझ सकीं। घबराकर बोलीं—भैया, तुम क्या कह रहे हो, मेरी समझ में नहीं आता। तुम्हारी तबीयत तो अच्छी है? आज तुम रास्ते पर उदास रहे। ज्वर तो नहीं हो आया ?
लक्ष्मण ने सीता जी के पैरों पर सिर रगड़ते हुए—माता! मेरा अपराध क्षमा करो। मैं बिल्कुल निरपराध हूं। भाई साहब ने जो आज्ञा दी है, उसका पालन कर रहा हूं। शायद इसी दिन के लिए मैं अब तक जीवित था। मुझसे ईश्वर को यही बधिक का काम लेना था। हाय!
सीता जी अब पूरी परिस्थिति समझ गयीं। अभिमान से गर्दन उठाकर बोलीं—तो क्या स्वामी जी ने मुझे वनवास दे दिया है ? मेरा कोई अपराध, कोई दोष ? अभी रात को नगर में भरमण करने के पहले वह मेरे ही पास थे। उनके चेहरे पर क्रोध का निशान तक न था। फिर क्या बात हो गई ? साफसाफ कहो, मैं सुनना चाहती हूं ! और अगर सुनने वाला हो तो उसका उत्तर भी देना चाहती हूं।
लक्ष्मण ने अभियुक्तों की तरह सिर झुकाकर कहा—माता! क्या बतलाऊं, ऐसी बात है जो मेरे मुंह से निकल नहीं सकती। अयोध्या में आपके बारे में लोग भिन्नभिन्न परकार की बात कह रहे हैं। भाई साहब को आप जानती हैं, बदनामी से कितना डरते हैं। और मैं आपसे क्या कहूं।
सीता जी की आंखों में न आंसू थे, न घबराहट, वह चुपचाप टकटकी लगाये गंगा की ओर देख रही थीं, फिर बोलीं—क्या स्वामी को भी मुझ पर संदेह है?
लक्ष्मण ने जबान को दांतों से दबाकर कहा—नहीं भाभी जी, कदापि नहीं। उन्हें आपके ऊपर कण बराबर भी सन्देह नहीं है। उन्हें आपकी पवित्रता का उतना ही विश्वास है, जितना अपने अस्तित्व का। यह विश्वास किसी परकार नहीं मिट सकता, चाहे सारी दुनिया आप पर उंगली उठाये। किन्तु जनसाधारण की जबान को वह कैसे रोक सकते हैं। उनके दिल में आपका जितना परेम है, वह मैं देख चुका हूं। जिस समय उन्होंने मुझे यह आज्ञा दी है, उनका चेहरा पीला पड़ गया था, आंखों से आंसू बह रहे थे; ऐसा परतीत हो रहा था कि कोई उनके सीने के अन्दर बैठा हुआ छुरियां मार रहा है। बदनामी के सिवा उन्हें कोई विचार नहीं है, न हो सकता है।
सीता जी की आंखों से आंसू की दो बड़ीबड़ी बूंदें टपटप गिर पड़ीं। किन्तु उन्होंने अपने को संभाला और बोलीं—प्यारे लक्ष्मण, अगर यह स्वामी का आदेश है तो मैं उनके सामने सिर झुकाती हूं। मैं उन्हें कुछ नहीं कहती। मेरे लिए यही विचार पयार्प्त है कि उनका हृदय मेरी ओर से साफ है। मैं और किसी बात की चिन्ता नहीं करती। तुम न रोओ भैया, तुम्हारा कोई दोष नहीं, तुम क्या कर सकते हो। मैं मरकर भी तुम्हारे उपकारों को नहीं भूल सकती। यह सब बुरे कर्मों का फल है, नहीं तो जिस आदमी ने कभी किसी जानवर के साथ भी अन्याय नहीं किया, जो शील और दया का देवता है, जिसकी एकएक बात मेरे हृदय में परेम की लहरें पैदा कर देती थी, उसके हाथों मेरी यह दुर्गति होती? जिसके लिए मैंने चौदह साल रोरोकर काटे, वह आज मुझे त्याग देता? यह सब मेरे खोटे कर्मों का भोग है। तुम्हारा कोई दोष नहीं। किन्तु तुम्हीं दिल में सोचो, क्या मेरे साथ यह न्याय हुआ है? क्या बदनामी से बचने के लिए किसी निर्दोष की हत्या कर देना न्याय है? अब और कुछ न कहूंगी भैया, इस शोक और क्रोध की दशा में संभव है मुंह से कोई ऐसा शब्द निकल जाय, जो न निकलना चाहिए। ओह! कैसे सहन करुं? ऐसा जी चाहता है कि इसी समय जाकर गंगा में डूब मरुं! हाय! कैसे दिल को समझाऊं? किस आशा पर जीवित रहूं; किसलिए जीवित रहूं? यह पहाड़सा जीवन क्या रोरोकर काटूं? स्त्री क्या परेम के बिना जीवित रह सकती है? कदापि नहीं। सीता आज से मर गयी।
गंगा के किनारे के लम्बेलम्बे वृक्ष सिर धुन रहे थे। गंगा की लहरें मानो रो रही थीं ! अधेरा भयानक आकृति धारण किये दौड़ा चला आता था। लक्ष्मण पत्थर की मूर्ति बने; निश्चल खड़े थे मानो शरीर में पराण ही नहीं। सीता दोतीन मिनट तक किसी विचार में डूबी रहीं, फिर बोलीं—नहीं वीर लक्ष्मण; अभी जान न दूंगी। मुझे अभी एक बहुत बड़ा कर्तव्य पूरा करना है। अपने बच्चे के लिए जिऊंगी। वह तुम्हारे भाई की थाती है। उसे उनको सौंपकर ही मेरा कर्तव्य पूरा होगा। अब वही मेरे जीवन का आधार होगा। स्वामी नहीं हैं, तो उनकी स्मृति ही से हृदय को आश्वासन दूंगी! मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। अपने भाई से कह देना, मेरे हृदय में उनकी ओर से कोई दुर्भावना नहीं है। जब तक जिऊंगी, उनके परेम को याद करती रहूंगी। भैया! हृदय बहुत दुर्बल हो रहा है। कितना ही रोकती हूं, पर रहा नहीं जाता। मेरी समझ में नहीं आता कि जब इस तपोवन के ऋषिमुनि मुझसे पूछेंगे; तेरे स्वामी ने तुझे क्यों वनवास दिया है; तो क्या कहूंगी। कम से कम तुम्हारे भाई साहब को इतना तो बतला ही देना चाहिए था। ईश्वर की भी कैसी विचित्र लीला है कि वह कुछ आदमियों को केवल रोने के लिए पैदा करता है। एक बार के आंसू अभी सूखने भी न पाये थे कि रोने का यह नया सामान पैदा हो गया। हाय! इन्हीं जंगलों में जीवन के कितने दिन आराम से व्यतीत हुए हैं। किन्तु अब रोना है और सदैव के लिए रोना है। भैया, तुम अब जाओ। मेरा विलाप कब तक सुनते रहोगे ! यह तो जीवन भर समाप्त न होगा। माताओं से मेरा नमस्कार कह देना! मुझसे जो कुछ अशिष्टता हुई हो उसे क्षमा करें। हां, मेरे पाले हुए हिरन के बच्चों की खोजखबर लेते रहना। पिंजरे में मेरा हिरामन तोता पड़ा हुआ है। उसके दानेपानी का ध्यान रखना। और क्या कहूं ! ईश्वर तुम्हें सदैव कुशल से रखे। मेरे रोनेधोने की चचार अपने भाई साहब से न करना। नहीं शायद उन्हें दुःख हो। तुम जाओ। अंधेरा हुआ जाता है। अभी तुम्हें बहुत दूर जाना है।
लक्ष्मण यहां से चले, तो उन्हें ऐसा परतीत हो रहा था कि हृदय के अन्दर आगसी जल रही है। यह जी चाहता था कि सीता जी के साथ रह कर सारा जीवन उनकी सेवा करता रहूं। पगपग, मुड़मुड़कर सीता जी को देख लेते थे। वह अब तक वहीं सिर झुकाये बैठी हुई थीं। जब अंधेरे ने उन्हें अपने पर्दे में छिपा लिया तो लक्ष्मण भूमि पर बैठ गये और बड़ी देर तक फूटफूटकर रोते रहे। एकाएक निराशा में एक आशा की किरण दिखायी दी! शायद रामचन्द्र ने इस परश्न पर फिर विचार किया हो और वह सीता जी को वापस लेने को तैयार हों। शायद वह फिर उन्हें कल ही यह आज्ञा दें कि जाकर सीता को लिवा लाओ। इस आशा ने खिन्न और निराश लक्ष्मण को बड़ी सान्त्वना दी। वह वेग से पग उठाते हुए नौका की ओर चले। 

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रचनाएँ
रामचर्चा
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राम चर्चा प्रेमचंद द्वारा लिखी गयी बच्चो की पुस्तक है ये पुस्तक लिखने में उनका मुख्य उदेश्य था कि भगवान राम के गुणों को बच्चों तक पहुचाएँ इसी लिए एक वार्तालाप के रूप में इस पुस्तक हो किया गया है जहाँ भगवान राम अपनी पत्नी सीता से बात कर रहे हैं और अपने जीवन का वर्णन दे रहे हैं प्रथम अध्याय में भगवान् राम अपने जन्म से चारों भाई की शादी तक की कथा संमिलित रूप से कही गई है
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अध्याय 1 जन्म

9 फरवरी 2022
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प्यारे बच्चो! तुमने विजयदशमी का मेला तो देखा ही होगा। कहींकहीं इसे रामलीला का मेला भी कहते हैं। इस मेले में तुमने मिट्टी या पीतल के बन्दरों और भालुओं के से चेहरे लगाये आदमी देखे होंगे। राम, लक्ष्मण और

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ताड़का और मारीच का वध

9 फरवरी 2022
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एक दिन राजा दशरथ दरबार में बैठे हुए मन्त्रियों से कुछ बातचीत कर रहे थे कि ऋषि विश्वामित्र पधारे। विश्वामित्र उस समय के बहुत बड़े तपस्वी थे। वह क्षत्रिय होकर भी केवल अपनी आराधना के बल से बरह्मर्षि के प

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विवाह

9 फरवरी 2022
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राम और लक्ष्मण अभी विश्वामित्र के आश्रम में ही थे कि मिथिला के राजा जनक ने विश्वामित्र को अपनी लड़की सीता के स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए नवेद भेजा। उस समय में परायः विवाह स्वयंवर की रीति से होते

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अध्याय 2 वनवास

9 फरवरी 2022
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राजा दशरथ कई साल तक बड़ी तनदेही से राज करते रहे, किन्तु बुढ़ापे के कारण उनमें अब पहलेसा जोश न था, इसलिए उन्होंने रामचन्द्र जी से राज्य के कामों में मदद लेना शुरू किया। इसमें एक गुप्त युक्ति यह भी थी क

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राजा दशरथ की मृत्यु

9 फरवरी 2022
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तमसा नदी को पार करके पहर रात जातेजाते रामचन्द्र गंगा के किनारे जा पहुंचे। वहां भील सरदार गुह का राज्य था। रामचन्द्र के आने का समाचार पाते ही उसने आकर परणाम किया। रामचन्द्र ने उसकी नीच जाति की तनिक भी

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भरत की वापसी

9 फरवरी 2022
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जिस दिन महाराज दशरथ की मृत्यु हुई उसी दिन रात को भरत ने कई डरावने स्वप्न देखे। उन्हें बड़ी चिन्ता हुई कि ऐसे बुरे स्वप्न क्यों दिखायी दे रहे हैं। न जाने लोग अयोध्या में कुशल से हैं या नहीं। नाना की अन

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चित्रकूट

9 फरवरी 2022
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राम, लक्ष्मण और सीता गंगा नदी पार करके चले जा रहे थे। अनजान रास्ता, दोनों ओर जंगल, बस्ती का कहीं पता नहीं। इस परकार वे परयाग पहुंचे। परयाग में भरद्वाज मुनि का आश्रम था। तीनों आदमियों ने त्रिवेणी स्नान

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अध्याय 3 भरत और रामचन्द्र

9 फरवरी 2022
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इधर भरत अयोध्यावासियों के साथ राम को मनाने के लिए जा रहे थे। जब वह गंगा नदी के किनारे पहुंचे, तो भील सरदार गुह को उनकी सेना देखकर सन्देह हुआ कि शायद यह रामचन्द्र पर आक्रमण करने जा रहे हैं। तुरन्त अपने

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दंडकवन

9 फरवरी 2022
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भरत के चले आने के बाद रामचन्द्र ने भी चित्रकूट से चले जाने का निश्चय कर लिया! उन्हें विचार हुआ कि अयोध्या के निवासी वहां बराबर आतेजाते रहेंगे और उनके आनेजाने से यहां के ऋषियों को कष्ट होगा। तीनों आदमी

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पंचवटी

9 फरवरी 2022
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कई दिन के बाद तीनों आदमी पंचवटी जा पहुंचे। परशंसा सुनी थी, उससे कहीं ब़कर पाया। नर्मदा के दोनों ओर ऊंचीऊंची पहाड़ियां फूलों से लदी हुई खड़ी थीं। नदी के निर्मल जल में हंस और बगुले तैरा करते थे। किनारे

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हिरण का शिकार

9 फरवरी 2022
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शूर्पणखा के दो भाई तो मारे गये, किन्तु अभी दो और शेष थे, उनमें से एक लङ्का देश का राजा था। उस समय में दक्षिण में लंका से अधिक बलवान और बसा हुआ कोई राज्य न था। रावण भी राक्षस था, किन्तु बड़ा विद्वान्,

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छल

9 फरवरी 2022
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तीसरे पहर का समय था। राम और सीता कुटी के सामने बैठे बातें कर रहे थे कि एकाएक अत्यन्त सुन्दर हिरन सामने कुलेलें करता हुआ दिखायी दिया। वह इतना सुन्दर, इतने मोहक रंग का था कि सीता उसे देखकर रीझ गयीं। ऐसा

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सीता का हरण

9 फरवरी 2022
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यह कहकर लक्ष्मण तो चल दिये। रावण ने जब देखा कि मैदान खाली है, तो उसने एक हाथ में चिमटा उठाया। दूसरे हाथ में कमण्डल लिया और ‘नारायण, नारायण !’ करता हुआ सीता जी की कुटी के द्वार पर आकर खड़ा हो गया। सीता

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अध्याय 4 किष्किन्धाकांड एवं सीता जी की खोज

9 फरवरी 2022
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राम और लक्ष्मण सीता की खोज में पर्वत और वनों की खाक छानते चले जाते थे कि सामने ऋष्यमूक पहाड़ दिखायी दिया। उसकी चोटी पर सुगरीव अपने कुछ निष्ठावान साथियों के साथ रहा करता था। यह मनुष्य किष्किन्धानगर के

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लंका में हनुमान

9 फरवरी 2022
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रासकुमारी से लंका तक तैरकर जाना सरल काम न था। इस पर दरियाई जानवरों से भी सामना करना पड़ा। किन्तु वीर हनुमान ने हिम्मत न हारी। संध्या होतेहोते वह उस पार जा पहुंचे। देखा कि लंका का नगर एक पहाड़ की चोटी

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अध्याय 5 लंकादाह

9 फरवरी 2022
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अशोकों के बाग से चलतेचलते हनुमान के जी में आया कि तनिक इन राक्षसों की वीरता की परीक्षा भी करता चलूं। देखूं, यह सब युद्ध की कला में कितने निपुण हैं। आखिर रामचन्द्र जी इन सबों का हाल पूछेंगे तो क्या बता

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आक्रमण की तैयारी

9 फरवरी 2022
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हनुमान ने रातोंरात समुद्र को पार किया और अपने साथियों से जा मिले। यह बेचारे घबरा रहे थे कि न जाने हनुमान पर क्या विपत्ति आयी। अब तक नहीं लौटे। अब हम लोग सुगरीव को क्या मुंह दिखावेंगे। रामचन्द्र के साम

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विभीषण

9 फरवरी 2022
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हनुमान के चले जाने के बाद राक्षसों को बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने सोचा, जिस सेना का एक सैनिक इतना बलवान और वीर है, उस सेना से भला कौन लड़ेगा! उस सेना का नायक कितना वीर होगा! एक आदमी ने आकर सारी लंका में

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आक्रमण

9 फरवरी 2022
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विभीषण यहां से अपमानित होकर सुगरीव की सेना में पहुंचा और सुगरीव से अपना सारा वृत्तान्त कहा। सुगरीव ने रामचन्द्र को उसके आने की सूचना दी। रामचन्द्र ने विचार किया कि कहीं यह रावण का भेदी न हो। हमारी सेन

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रावण के दरबार में अंगद

9 फरवरी 2022
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रामचन्द्र ने समुद्र को पार करके लंका पर घेरा डाल दिया। दुर्ग के चारों द्वारों पर चार बड़ेबड़े नायकों को खड़ा किया। सुगरीव को सारी सेना का सेनापति बनाया। आप और लक्ष्मण सुगरीव के साथ हो गये। तेज दौड़ने

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कुम्भकर्ण

9 फरवरी 2022
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ढेर रावण ने जब सुना कि लक्ष्मण स्वस्थ हो गये तो मेघनाद से बोला—लक्ष्मण तो शक्तिबाण से भी न मरा। अब क्या युक्ति की जाय ? मैंने तो समझा था, एक का काम तमाम हो गया, अब एक ही और बाकी है, किन्तु दोनोंके-दोन

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मेघनाद का मारा जाना

9 फरवरी 2022
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दूसरे दिन मेघनाद बड़े सजधज से मैदान में आया। उसने दोनों भाइयों को मार गिराने का निश्चय कर लिया था। सारी रात देवी की पूजा करता रहा था। उसे अपने बल और शौर्य का बड़ा अभिमान था। रावण की सारी आशायें आज ही

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रावण युद्धक्षेत्र में

9 फरवरी 2022
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रात भर तो रावण शोक और क्रोध से जलता रहा। सबेरा होते ही मैदान की तरफ चला। लंका की सारी सेना उसके साथ थी। आज युद्ध का निर्णय हो जायगा, इसलिए दोनों ओर के लोग अपनी जानें हथेलियों पर लिये तैयार बैठे थे। रा

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अध्याय 6 विभीषण का राज्याभिषेक

9 फरवरी 2022
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एक दिन वह था कि विभीषण अपमानित होकर रोता हुआ निकला था, आज वह विजयी होकर लंका में परविष्ट हुआ। सामने सवारों का एक समूह था। परकारपरकार के बाजे बज रहे थे। विभीषण एक सुन्दर रथ पर बैठे हुए थे, लक्ष्मण भी उ

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अयोध्या की वापसी

9 फरवरी 2022
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रामचन्द्र ने लंका पर जिस आशय से आक्रमण किया था, वह पूरा हो गया। सीता जी छुड़ा लीं गयीं, रावण को दण्ड दिया जा चुका। अब लंका में रहने की आवश्यकता न थी। रामचन्द्र ने चलने की तैयारी करने का आदेश दिया। विभ

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रामचन्द्र की राजगद्दी

9 फरवरी 2022
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आज रामचन्द्र के राज्याभिषेक का शुभ दिन है। सरयू के किनारे मैदान में एक विशाल तम्बू खड़ा है। उसकी चोबें, चांदी की हैं और रस्सियां रेशम की। बहुमूल्य गलीचे बिछे हुए हैं। तम्बू के बाहर सुन्दर गमले रखे हुए

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अध्याय 7 राम का राज्य

9 फरवरी 2022
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राज्याभिषेक का उत्सव समाप्त होने के उपरांत सुगरीव, विभीषण अंगद इत्यादि तो विदा हुए, किन्तु हनुमान को रामचन्द्र से इतना परेम हो गया था कि वह उन्हें छोड़कर जाने पर सहमत न हुए। लक्ष्मण, भरत इत्यादि ने उन

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सीता वनवास

9 फरवरी 2022
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नदी के पार पहुंचकर सीताजी की दृष्टि एकाएक लक्ष्मण के चेहरे पर पड़ी तो देखा कि उनकी आंखों से आंसू बह रहे हैं। वीर लक्ष्मण ने अब तक तो अपने को रोका था, पर अब आंसू न रुक सके। मैदान में तीरों को रोकना सरल

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लव और कुश

9 फरवरी 2022
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जहां सीता जी निराश और शोक में डूबी हुई रो रही थीं, उसके थोड़ी ही दूर पर ऋषि वाल्मीकि का आश्रम था। उस समय ऋषि सन्ध्या करने के लिए गंगा की ओर जाया करते थे ! आज भी वह जब नियमानुसार चले तो मार्ग में किसी

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अश्वमेध यज्ञ

9 फरवरी 2022
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सीता को त्याग देने के बाद रामचन्द्र बहुत दुःखित और शोकाकुल रहने लगे। सीता की याद हमेशा उन्हें सताती रहती थी। सोचते, बेचारी न जाने कहां होगी, न जाने उस पर क्या बीत रही होगी ! उस समय को याद करके जो उन्ह

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लक्ष्मण की मृत्यु

9 फरवरी 2022
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किन्तु अभी रामचन्द्र की विपत्तियों का अन्त न हुआ था। उन पर एक बड़ी बिजली और गिरने वाली थी। एक दिन एक साधु उनसे मिलने आया और बोला-मैं आपसे अकेले में कुछ कहना चाहता हूं। जब तक मैं बातें करता रहूं, कोई द

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9 फरवरी 2022
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रामचन्द्र को लक्ष्मण के मरने का समाचार मिला तो मानो सिर पर पहाड़ टूट पड़ा। संसार में सीताजी के बाद उन्हें सबसे अधिक परेम लक्ष्मण से ही था। लक्ष्मण उनके दाहिने हाथ थे। कमर टूट गयी। कुछ दिन तक तो उन्हों

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