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मै औरत हूं... इसलिए

21 जुलाई 2022

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"झरना तुम्हें पता है ना एक औरत ही घर बनाती है और एक औरत ही घर का सर्वनाश भी कर देती है । क्यों मै ठीक कह रहा हूं ना।"अमित झरना की ओर मुखातिब होता हुआ बोला।
तभी सुरेश बोल पड़ा,"भाभी इसकी बातों पर ध्यान मत दो ये पल मे तोला और पल मे माशा हो जाता है।"
झरना हंसते हुए बोली,"जी मुझे पता है ये ऐसे ही है।"

झरना और अमित अभी अभी इस शहर मे ट्रांसफर होकर आये थे। यहां दोनों की एक उच्च कम्पनी मे नौकरी लगी थी अपनी सेविंग से दोनों ने पैसे इकट्ठा किए और एक फ्लैट खरीदा था।
आज सुबह उठकर जब अमित किचेन में आया तो आते ही बोला,"सुनो आज मैने अपने कम्पनी के कुछ दोस्तों को बुलाया है तुम अच्छा सा कुछ बना देना।"
झरना खीझ उठी एक तो रविवार का दिन सारे सप्ताह के काम बाकी थे करने के लिए ऊपर से महाशय कभी भी किसी को बुलाये गे तो पहले नही बताएं गे।ताकि वो पहले से कुछ तैयारी करके रखती।और नही तो छोले भटूरे ही बना देती पर नही कभी भी नही बताएंगे कि कोई आने वाला है।
उसने फटाफट आलू उबाले।एक तरफ खीर चढ़ा दी और पूरी का आटा गूंथ दिया।बाकि पुलाव के लिए सब्जी काटने को वो काम वाली बाई को बोल गयीऔर स्वयं नहाने चली गयी।जब नहा कर बाहर निकली तो क्या देखती है अमित काम मे हाथ बंटाने की तो छोड़ो अखबार मे ही मुंह डाले बैठे है ।उसने फटाफट अमित को धक्के से उठाया और नहाने भेजा और स्वयं वाशिंग मशीन मे कपडे डालकर किचेन मे आ गयी । नौकरानी के भरोसे नही छोड़ सकती थी सब कुछ।वो पुलाव बनाते समय सोच रही थी कि वो किस बात मे अमित से कम है उससे अच्छे पद पर कार्यरत हैं और तनख्वाह भी उसकी ज्यादा है अमित से।पर काम की सारी जिम्मेदारी उसकी।
इतने मे डोर बैल बजी शायद मेहमान आ गये थे। झरना ने सब की आवभगत की पहले ठंडा और फिर खाना लगा दिया।खाना बड़ा ही स्वादिष्ट बना था अमित के दोस्त तारीफ करते नही थक रहे थे पर अमित के मुंह से दो शब्द भी नही निकले तारीफ के ।वो तो बस सारा समय मेरा घर,मैने खरीदा,मेरे कारण सिर पर छत हुई है बस यही सब करता रहा।
झरना अंदर से कट कर रह गयी। फ्लैट मे उसकी अमित से ज्यादा सेविंग लगी थी पर अमित के मुंह से बस यही निकल रहा था मेरा फ्लैट ,मैने लिया।
जब सब दोस्त खा पी कर चले गये तब झरना ने अमित से पूछा ,"सुनो ये फ्लैट हम दोनों के प्रयास से लिया गया है तो तुम अपने दोस्तों के सामने मेरा फ्लैट,मैने लिया ये सब क्यों बोल रहे थे।"
इस पर अमित एकदम तुनक कर बोला,"तो क्या गलत कह रहा हूं।मै पति हूं तुम्हारा, तुम्हारी सब चीजों पर मेरा हक है और मै घर का मुखिया हूं। फ्लैट भी मेरे ही नाम है।"
झरना ये सुनकर चुप हो गयी वो कुछ नही बोलना चाहती थी क्योंकि अमित से बहस मे वो कभी नही जीत पाती थी।बस मनमे यही सोचती रही कि औरत के क्या केवल कर्तव्य ही होते है अधिकार कुछ नही होता।सारा जीवन जिस घर को दे देती है उसमे उसके नाम की नेमप्लेट भी नही लगती वो तो बस उस घर का काम करने के लिए , मेहमानों को अटैंड करने के लिए और बच्चे पैदा करने के लिए ही है ये अंतर क्यों है आखिर क्यों?
क्यों कि वो एक औरत है इसलिए।
Durga katrya

Durga katrya

Bahut hi badiya thi

26 सितम्बर 2022

jain rajsulo

jain rajsulo

पता नहीं हमने तो संयुक्त रूप से फ्लेट खरीदा है और उसने तो आधे से ज्यादा पैसे लगाए ,तब ऐसा क्यों?

4 सितम्बर 2022

इन्द्र कुमार शर्मा

इन्द्र कुमार शर्मा

स्त्री का योगदान का मूल्यांकन करने की जरूरत है

2 सितम्बर 2022

aasfa sami

aasfa sami

100% real hy thi hota hy

2 सितम्बर 2022

राजा

राजा

बकवास कहानी कुछभी लिखा हुआ है

22 अगस्त 2022

Parvati Arora

Parvati Arora

Lady ko kabhi bhi wo respect nhi milti jo wo deserve karti h. Hamari society ka himan ego h

13 अगस्त 2022

Saroja

Saroja

Kya baat bahut acche se ek naari ke jivan ki dikaya ha

10 अगस्त 2022

Monu

Monu

औरत के मनोभावों को एक औरत ही उकेर सकती है । बहुत सुंदर रचना।

31 जुलाई 2022

Rakesh c pandey

Rakesh c pandey

आज के परिवेश पर सुंदर लेखन.... स्त्री के मेहनत लगन और समर्पण के सापेक्ष में पुरुष वादी सोच पर प्रश्नचिन्ह तो है...👍👍

29 जुलाई 2022

कविता रावत

कविता रावत

औरत जब तक अपने को बेचारी समझती रहेगी तब तक कुछ पुरुष उसे यूँ ही उस पर अपना हक़ जताते रहेंगे . अच्छी कहानी

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