एक बात जो दिमाग अक्सर सोचता है कि
इतनी बड़ी दुनिया मेरे लिए छोटी क्यों हो जाती है ?
बात जब भी मेरी खुशी की आती है ।
मैने तो इतना बड़ा कुछ मांगा भी नहीं....किसी से नहीं, किसी से भी नहीं....
अपनी औकात से ज्यादा तो कुछ चाहा भी नहीं।
उछलकर आसमान को छूने की कोशिश जरूर की,
पर पैरों पर तो हमेशा अपने ही खड़ी रही ।
फिर क्यों ऐसा बार- बार होता है कि लोग मुझे छोड़ने पर राजी होते हैं, मजबूरियों के नाम पर ज़िंदगी क्यों हमेशा बहाने बना लेती है?
हर बिगड़ी चीज एक समय पर आकर सही होती है,
नुकसान जो भी हो सुना है भरपाई कभी तो जरुर होती है,
फिर ऐसा क्यों है कि मुझे अब तक इन्हीं किताबी बातों की आस में बस खाली हाथ रह जाना पड़ा है?
बात जब मेरी हो तो सबको बस मुंह फेरकर गुजर जाना पड़ा है।
कैसे कहूं कि बंधना हर बार गुलामी ही नहीं है, आजादी हमेशा आजादी नहीं है।
कब जानेगी ये दुनिया अहमियत मेरी? कब मानेगी कि
मैं सहारा हूं बोझ नहीं, हिम्मत हूं कमजोरी नहीं, उम्मीद हूं ज़रिया नहीं, पानी हूं दरिया नहीं ।
खैर...जानती हूं कि ये तमन्ना मेरी पूरी कभी नही होगी
शायद ये दोमुंही दुनिया , मेरी कभी नहीं होगी ।