आज की सुबह कुछ अलग है
आँखें वही देख रही हैं
जो देखना चाहती रही हैं
वही महसूस कर रही हैं
जैसा करीब से महसूस होता है
जो मीलों की दूरी में हमेशा उलझ सा
जाता रहा है आज बिल्कुल पास है
जिसे छुआ जा सकता है
हर उस चीज को जिसपर शायद
कभी हाथ फेरे हो तुमने
फूल पत्तियां मिट्टी घर आँगन दरवाज़े
सब तुम्हारे हैं
जिनपर तुम्हारी नजरें कई बार ठहरी होंगी
मैं भी हर वो चीज देख सकती हूँ आज
दूर ही सही पर पास हो तुम
तुम्हारे ही लोग हैं आस-पास तुम्हारी बातें भी हैं
गुज़रे हुए दिन तुम्हारे, बीती रातें भी हैं
ऐसा लग रहा है
जैसे कल्पना कोई अंदर से बाहर झांक रही हो
और खुद को सच बता रही हो ...