कुछ मेरा है कुछ तुम्हारा है,
अच्छा-बुरा हर लम्हा हमारा है ।
हालातों की बेसुध-बेरंग लय पर,
बनता-बिगड़ता हर साज़ हमारा है ।
लकीरों की सोची-समझी साज़िशों में,
डूबता-उबरता हर मंजर हमारा है ।
दूर तलक फैले मशहूर-बदनाम किस्सों में,
जीता-मरता हर किरदार हमारा है ।
वक़्त की बरसों पुरानी दीवारों का,
चढ़ता-उतरता हर रंग हमारा है ।
अंधेरे-उजाले की चौखट पर बेखौफ़ हर रोज़,
सोता-जागता हर ख़्वाब हमारा है ।
तीन ही सहारों पर सिमटती है ज़िन्दगी,
नदी है, उफ़ान है, किनारा है ।