आगे सब ठीक रहा तो हर बात लिखेंगे,
रातों में उगते सूरज का भी राज़ लिखेंगे...
कितनी तोड़ी-मरोड़ी गयी है दुनिया अपनी,
बीतते वक़्त की एक-एक करामात लिखेंगे...
डूबती कस्ती में सामानों का बोझ रहा कितना,
किनारे पर ग़र पहुंचे तो हिसाब लिखेंगे...
हर चेहरा बनाएंगे पन्ने पर बेईमानी के मद्दे नज़र,
हर चेहरे का दीन-ओ-ईमान लिखेंगे...
बन गए तो दुनिया देगी गवाही भी हक में,
टूट गये तो यही लोग हमें बर्बाद लिखेंगें...
जब तक जिंदा हैं शब्द भी चल रहे हैं मुताबिक अपने,
मर गए तो हम ही पर सौ इल्ज़ाम लिखेंगे...
सजदों में मिला खुदा पत्थर का था या शीशे का,
हाथ खाली रहे तो इसकी भी पहचान लिखेंगे...
बचाया जो भी है जमाने से थोड़ा बहुत अपने लिए,
सब समेटेंगे और सबपर एक नाम लिखेंगे...
अंजाम लिख रहा है ज़माना कई सालों से साथ बैठकर,
हम मिलेंगे तो बैठकर आगाज़ लिखेंगे...