बात अगर सिर्फ़ तुम्हारे समझ लेने भर की हो तो समझ लो
सूरज चारों दिशाओं से निकल सकता है,
समंदर में भी प्यास हो सकती है,
हाथ फैलाकर हवाओं को समेटा जा सकता है,
कल को आसमां भी जमीं पर आ सकता है...
बात अगर सिर्फ़ तुम्हारे समझ लेने भर की हो तो समझ लो
कि जो हो रहा है सब सही है,
हथेलियों पर खिंची लकीरें दागों के अलावा कुछ नहीं हैं,
माथे से गिरती पसीने की बूंदे केवल मौसम है,मेहनत नहीं है,
सांस लेना सिर्फ़ एक आदत है जीवन नहीं है,
रातों में अंधेरों जैसी कोई बात नहीं है,
दिन के होने में उजालों का कोई हाथ नहीं है...
बात अगर सिर्फ़ तुम्हारे समझ लेने भर की हो तो समझ लो ये मिट्टी,
रेत, बर्फ, आकाश, नदियाँ, पहाड़... सारी कुदरत हाथों से गढ़ी गयी है...
ये मकान, दीवारें, छत, खिड़की-दरवाजें सब अपने आप बन उठे हैं,
पानी का रंग बेरंग नहीं है,
सफ़ेद....काला... कोई रंग नहीं हैं, रेत हाथों से फिसलती नहीं हैं,
कच्चे घरों को बारिशों का डर नहीं है, न बागों में अमराइयाँ हैं न वीरानों में चीखें...
न बीहड़ों में छाए दूर-दूर तक सन्नाटे हैं न भीड़ में कोई अकेला है...
न परिंदों में कोई उड़ान है न गज़र की अपनी कोई चाल...
बस समझना ही तो है....समझ लो....