कोशिशें तुम से तुम तक पहुंचने की,
आदतें तुम ही पर ठहरने की,
मिन्नतें तेरे बार-बार रुकने की,
ख्वाईशें तुझे मिलकर कुछ कहने की,
मोहब्बत में ये कुछ 'चीजें' हमने भी देखी हैं,
अंधेरी अकेली रातों में तुझसे हर रोज़ बाते की हैं...
भरी बरसात में बिन भींगे लौटे हैं,
हम मिलकर उससे बिन कुछ कहे लौटे हैं।
साहिलों से टकराती ये तेज़ लहरें क्या जानें,
हम ठहरे हुए पानी में कैसे डूबे-उतरे हैं।
मोहब्बत की ये कुछ रश्में हमने भी पूरी की है,
जानते है हमे दूर करके उसने खुद से दूरी की है...
मुझे खोने के अफ़सोस में वो जी रहा है,
ऐ खुदा!!ये कैसी ग़लती वो कर रहा है?
मेरी कलम हर रोज़ पिरो रही है उसे पन्नों पर,
वो खुद को कोरे कागज़ों में ढूंढ रहा है...
मोहब्बत के ये कुछ राज़ हमने छुपाये रखे हैं,
बीते हर पल ज़िन्दगी के हमने सजाये रखे हैं।