तुम अगर मेरे बाद बदल से गये हो,
तो हम भी पहले कहाँ ऐसे थे...
रो बेशक दिया करते थे कुछ न मिलने पर,
इतने आँसू तो आँखों में कभी न थे...
मांग लिया करते थे बेहिचक जो पास न होता था,
यूं घुटकर रह जानेवालों में से हम कभी न थे...
बेपरवाह बड़े थे उन दिनों प्यार-मोहब्बत जैसे फ़सानों को लेकर,
दिल लगाने वालों में से हम कभी न थे...
बोला खूब करते थे दोस्तो-यारों की महफिलों में
अब सब कहते हैं हम इतने चुप तो कभी न थे...
समय के दायरे में रहकर किया करते थे काम सारे दुनियादारी के
यूं अंधेरों में लफ्ज़ बुननेवालों में से हम कभी न थे...
बदला तो मुझमें भी बहुत कुछ तुम्हारे साथ के बाद,
वरना इश्क़ के तरफ़दारों में शामिल हम कभी न थे...