मैं इनकार हूँ तुम्हारा यूँ बेकार न समझो,
मुझे ढ़हती हुई-सी कोई कमज़ोर दीवार न समझो।
तुम्हें पाने की कोशिश में कई बार हारती रही हूँ,
मैं हर बार ज़िन्दगी से बढ़कर तुम्हें चाहती रही हूँ।
ये बात और है कि साबित हालातों से कुछ हो न सका,
पर ये सच है कि तेरी जगह कोई फ़िर ले न सका।
लोग कह रहे हैं कि मुझमें सहने की ज़ुर्रत बहुत है,
इन्हें कौन बताये दिखावे के लिए इतनी फ़ितरत बहुत है।
मैं जानती हूँ ख़ामोशी से बढ़कर कोई ज़ुबान नहीं है,
पर मुझे अकेले भी तो रहना है...और,
मेरे कमरे में कोई रोशनदान नहीं है....