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कभी तुम संभाल लेना कभी मैं

3 फरवरी 2024

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कभी तुम संभाल लेना कभी मैं
एक डोर ही तो है हल्की-सी
इस चोट खाये रिश्ते की
जिसमें पाने को कुछ नहीं 
सब खोने को ही है
पर ध्यान रखना अब और कुछ नया 
नहीं बांधना है इससे
जो है जितना है बहुत है
अच्छा-बुरा जो है सब अपना है
अब और बोझ नहीं देना है इसपर फ़िज़ूल की उम्मीदों का
जिससे इसका वज़ूद ही टूटकर बिखर जाये
पहले ही वक़्त की मार से अधमरा सा बेबस
दुनिया के ढकोसलों से लड़ रहा है
उसपर से बेमतलब के रिवाजों से घिरा
आखिर बचे तो बचे कैसे ...
तुम बस इतना करना कि ग़र हथेलियाँ थकने लगें
तो मुझे आगाह कर देना ताकि 
मैं अपनी पकड़ और मज़बूत कर सकूँ
तुम्हारे फैसलों में हर बार अपनी जगह ले सकूँ ।




प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत पंक्तियां लिखीं आपने बहन❣️❣️❣️❣️❣️❣️😊🙏

5 फरवरी 2024

Kamini Yadav

Kamini Yadav

5 फरवरी 2024

धन्यवाद बहन 🙏😊

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रचनाएँ
बातूनी कलम
5.0
ये किताब समूह है ज़िंदगी के अलग-अलग भावों का या यों कहें कि अनुभवों की ऐसी दुनिया जहां हर शब्द जीया गया है,सहा गया है,निभाया गया है। ये हूबहू वैसा ही है जैसा घटा जिसमें कुछ जोड़ा नहीं गया और टूटी चीजों के टुकड़ों को संजोकर पिरोए गए एहसास हैं जो खुद से जोड़े रखते हैं। कुछ कोट्स तो कुछ मन के वो विचार जो ज़िंदगी से सीखे गए ।एक वाक्य में कहें तो अनुभवों की डायरी जिसे बस शब्दों के उलट-फेर से सजा दिया गया है । कलम से अच्छा कोई साथी नहीं है और पन्ने से बड़ा कोई हितैषी नहीं जो उनपर लिखे गए शब्द को संजो कर रखती है । भूमिका के तौर पर इतना ही कहते हुए अप सब से अनुरोध करती हूं कि जिंदगी की जद्दोजहद से थोड़ा वक्त निकाल कर इस किताब को पढ़ें और इसे एक पहचान दें।
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सबसे कम,सबसे ज़्यादा

28 जनवरी 2024
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सबसे मुश्किल चीज़ है 'इंसान होना 'सबसे आसान 'मुकर जाना ....'सबसे बड़ी खुशी है 'अपने 'सबसे बड़ा दुख 'खो देना ....'सबसे ज़्यादा तकलीफ देता है 'इंतजार 'सबसे बड़ी राहत है 'म

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संभव नहीं था ?

3 फरवरी 2024
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जीवन के अंतिम क्षणों तकमेरा एक प्रश्न जो हमेशाखुली हवाओं से भरेमेरे आंगन मेंअपने अस्तित्व के लिएजूझता रहेगाकिक्या मुझे बचाये रखने के लिएकिवाड़ों काबंद हो जानासंभव नहीं था?किसी कोने मेंसहेजकर रखा जानासं

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एहसास

3 फरवरी 2024
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कोशिशें तुम से तुम तक पहुंचने की, आदतें तुम ही पर ठहरने की, मिन्नतें तेरे बार-बार रुकने की, ख्वाईशें तुझे मिलकर कुछ कहने की, मोहब्बत में ये कुछ 'चीजें' हमने भी देखी हैं, अंधेरी अकेली रातों में तुझसे ह

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बदले से दो लोग

3 फरवरी 2024
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तुम अगर मेरे बाद बदल से गये हो, तो हम भी पहले कहाँ ऐसे थे... रो बेशक दिया करते थे कुछ न मिलने पर, इतने आँसू तो आंखों में कभी न थे... मांग लिया करते थे बेहिचक जो पास न होता था, यूं घुटकर रह जानेवालों म

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ऐसा क्यों है ?

3 फरवरी 2024
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एक बात जो दिमाग अक्सर सोचता है कि इतनी बड़ी दुनिया मेरे लिए छोटी क्यों हो जाती है ?बात जब भी मेरी खुशी की आती है ।मैने तो इतना बड़ा कुछ मांगा भी नहीं....किसी से नहीं, किसी से भी नहीं....अपनी औकात

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तुम्हें मेरा होना चाहिए था

3 फरवरी 2024
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यूं कायदे से होना तो ये चाहिए था कितुम्हे हर हाल में मेरा होना चाहिए था ।ग़र्ज़ तो बहुत थे जमाने को हमसे भी और तुमसे भी मगरकुछ जगहों पर हमें खुदग़र्ज़ शायद होना चाहिए था ।खुद को पूरा-पूरा दिया तुमने अपनी

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समझ लो .....

3 फरवरी 2024
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बात अगर सिर्फ़ तुम्हारे समझ लेने भर की हो तो समझ लो सूरज चारों दिशाओं से निकल सकता है,समंदर में भी प्यास हो सकती है, हाथ फैलाकर हवाओं को समेटा जा सकता है, कल को आसमां भी जमीं पर आ सकता ह

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हर बात लिखेंगे

3 फरवरी 2024
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आगे सब ठीक रहा तो हर बात लिखेंगे,रातों में उगते सूरज का भी राज़ लिखेंगे...कितनी तोड़ी-मरोड़ी गयी है दुनिया अपनी,बीतते वक़्त की एक-एक करामात लिखेंगे...डूबती कस्ती में सामानों का बोझ रहा कितना,किनारे पर ग़र

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शिद्दत

3 फरवरी 2024
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मैं हर रोज पन्ने पर एक ही गम लिख रही हूँ,रात की बेबसी और दिन का सितम लिख रही हूँ ...अब इससे ज्यादा क्या ही लिखूँ मैं हकीकत अपनी कि,अपने ज़िंदा होने को ही ज़िन्दगी लिख रही हूँ ...बूंदों से अंदाजा न लगाया

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दुनिया भर की बातें

3 फरवरी 2024
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कहने को तो सब कहते हैं जितना है उतना ही बहुत हैपर एक बात बताये कोईमेरे घर में कई दिनों से न दीवारें है न छत हैऐसे में इन किताबी बातों को लेकर कहाँ जाए कोई ...इंतज़ाम तो मैंने सारे कर रखे है रोटी-दाल के

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कभी तुम संभाल लेना कभी मैं

3 फरवरी 2024
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कभी तुम संभाल लेना कभी मैंएक डोर ही तो है हल्की-सीइस चोट खाये रिश्ते कीजिसमें पाने को कुछ नहीं सब खोने को ही हैपर ध्यान रखना अब और कुछ नया नहीं बांधना है इससेजो है जितना है बहुत हैअच्छा-बुरा

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लिखेंगे....

11 अप्रैल 2024
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आगे सब ठीक रहा तो हर बात लिखेंगे,रातों में उगते सूरज का भी राज़ लिखेंगे...कितनी तोड़ी-मरोड़ी गयी है दुनिया अपनी,बीतते वक़्त की एक-एक करामात लिखेंगे...डूबती कस्ती में सामानों का बोझ रहा कितना,किनारे पर ग़र

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मेरा...तुम्हारा....

11 अप्रैल 2024
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कुछ मेरा है कुछ तुम्हारा है,अच्छा-बुरा हर लम्हा हमारा है ।हालातों की बेसुध-बेरंग लय पर,बनता-बिगड़ता हर साज़ हमारा है ।लकीरों की सोची-समझी साज़िशों में,डूबता-उबरता हर मंजर हमारा है ।दूर तलक फैले मशहूर-बदन

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जीत तुम्हारी होगी....

11 अप्रैल 2024
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मैं हर रोज पन्ने पर एक ही गम लिख रही हूँ,रात की बेबसी और दिन का सितम लिख रही हूँ ...अब इससे ज्यादा क्या ही लिखूँ मैं हकीकत अपनी कि,अपने ज़िंदा होने को ही ज़िन्दगी लिख रही हूँ ...बूंदों से अंदाजा न लगाया

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फ़िक्र

11 अप्रैल 2024
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बात जब उसकी नसलामती की होती हैतब दूरियाँ सबसे ज़्यादा ज़हर लगती है...आये दिन नई उलझनों का सिलसिला कुछ नया तो नहीं है परतब हालातों की मनमानी हद से ज़्यादा लगती है ...मैंने कोशिश की है लिखकर कुछ मन ह

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नजदीकियां

11 अप्रैल 2024
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आज की सुबह कुछ अलग हैआँखें वही देख रही हैंजो देखना चाहती रही हैं वही महसूस कर रही हैं जैसा करीब से महसूस होता हैजो मीलों की दूरी में हमेशा उलझ साजाता रहा है आज बिल्कुल पास हैजिसे छुआ ज

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माँ कहती है ....

11 अप्रैल 2024
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ये दुनिया आये दिन मेरे हौसले आज़माती है,मैं जितना चलना चाहूँ उतना गिराती है,ज़िन्दगी हर कदम पर संभलने का ही नाम है,माँ हर बार मुझे यही समझाती है।खुशियाँ कीमती होती है यूं ही नहीं मिलेंगी,परेशानियाँ कितन

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बदलाव....

11 अप्रैल 2024
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तुम अगर मेरे बाद बदल से गये हो,तो हम भी पहले कहाँ ऐसे थे...रो बेशक दिया करते थे कुछ न मिलने पर,इतने आँसू तो आँखों में कभी न थे...मांग लिया करते थे बेहिचक जो पास न होता था,यूं घुटकर रह जानेवालों में से

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ठहरा हुआ इश्क...

11 अप्रैल 2024
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मैं इनकार हूँ तुम्हारा यूँ बेकार न समझो,मुझे ढ़हती हुई-सी कोई कमज़ोर दीवार न समझो।तुम्हें पाने की कोशिश में कई बार हारती रही हूँ,मैं हर बार ज़िन्दगी से बढ़कर तुम्हें चाहती रही हूँ।ये बात और है कि साबित हा

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अजीबो-गरीब हालात

11 अप्रैल 2024
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बड़ा अजीबो गरीब चल रहा है सब कुछकमनसीबी कुछ मिलने नहीं देती,बदनसीबी मिला हुआ भी छीन लेती है ।दिल का अपना ही रोना है,दिमाग दिल से परेशान है।आँखें बोलना चाहती हैं,ज़ुबान साथ नहीं देती।रातें बेनींद गुज़रती

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सवाल....

11 अप्रैल 2024
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चलो माना वो पहले वाली बात न रहीतुम्हें भी अब हमसे कोई आस न रहीपर मन के किसी कोने में दफ़्न मेरा नाम ही सहीकोई गिरी-पड़ी सी खंडहर दीवार ही सहीये ढेर पड़े मलबे सारेकभी तो पूछेंगे तुमसे कि मेरा ठिकाना कहाँ

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