जमाने के हर गम पर मैं सदा मुस्कुराता रहा ।
कुछ इसी तरह "श्री हरि" हर दिन बिताता रहा ।।
पत्थर भी कम ना फेंके थे लोगों ने मेरी राह में ।
बस उनसे ही पुल बनाकर मैं मंजिलें पाता रहा ।।
सुबह से ही चलने लगती हैं नफरतों की आंधियां ।
हंसते हंसते राह में प्रेम के फूल बिखराता रहा ।।
चारों तरफ व्याप्त है नकारात्मकता का अंधेरा सा ।
सकारात्मकता का एक दीप रोज मैं जलाता रहा ।।
जय पराजय भूलकर "निष्काम कर्म" करता गया ।
श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश ये राह दिखाता रहा ।।
श्री हरि
20.10.22