विजयदशमी के पावन पर्व पर सबको हार्दिक शुभकामनाएं
दोहे
क्रोध लोभ मद मोह सुन इनसे महाविनाश ।
काम, वासना, ईर्ष्या, द्वेष करते सत्यानाश ।।
नवां दोष आलस्य है सब दोषों की खान ।
घृणा जो करते हैं कभी सुखी ना रहते जान ।।
दस दोषों के इस रावण का कर लो तुम संहार ।
जिसने ऐसा कर लिया हुआ भवसागर से पार ।।
प्रेम अमर फल है सदा जीवन से भरपूर ।
जहां प्रेम है वहां सदा खुशियां रहें जरूर ।।
सत्य प्रत्यंचा पर चढे मेहनत का जब तीर ।
मंज़िल पर जाके रुके हर लेता सब पीर ।।
श्री हरि
5.10. 22