माना कि तुम पर कोई हक नहीं
पर यादों को कैसे रोक पाओगे
जब भी आयेगा बहारों का मौसम
तुम यादों में आकर बस जाओगे
जब देखता हूं कोई मेंहदी वाले हाथ
महक बनकर सांसों में बस जाओगे
ये तो बता दो कि और कब तक तुम
इस दिल पे बिजलियां गिराते जाओगे
झील के किनारे जाना छोड़ दिया है
कमल की तरह फिसल तो ना जाओगे
किरणों में तेरा अक्स झलकता है
खुद को कहां और कैसे छिपाओगे
ऐसी कौनसी जगह है जहां तुम नहीं
जिधर नजर जायेगी तुम नजर आओगे
अच्छा किया जो तुमने हमें भुला दिया
तुम तो कम से कम चैन से सो पाओगे
रोज शाम को तन जाता है यादों का शामियाना
अहसासों के मखमली बिछौने पे क्या सुला पाओगे
इस दिल के समंदर में इस तरह डूबी हो तुम
चाहे लाख कोशिश कर लो, निकल नहीं पाओगे
श्री हरि
24.9.22