छल प्रपंच की दुनिया से ये मन भर गया
झूठ के बोझ तले दबकर इंसान मर गया
फरेब के बियाबान में ईमान कहीं गुम गया है
बेईमानी के सर्फ से काला मन और निखर गया
जिसे देखो वही दोहरी जिंदगी जी रहा है
हंसी होठों पे सजा कर घुट घुट के जी रहा है
हर चेहरे पे अनेक सुंदर मुखौटे सजे हुए हैं
ये शातिराना अंदाज इस दिल को अखर गया
कोई निगाहों से तो कोई आहों से वार करता है
धोखा उन्हीं से खाता है जिन पर ऐतबार करता है
हम भी बड़े नादान थे जो कातिल को मसीहा समझ बैठे
जब चोट दिल पर लगी तो शीशे की तरह बिखर गया
चलो, अंतरिक्ष में चलते हैं वहां पर तो प्यार होगा
सत्य का बोलबाला होगा ना झूठ का व्यापार होगा
कुत्सित मन दूषित तन बेईमानी का धन तो नहीं होगा
ये हसीं सपना देखते देखते वक्त न जाने कब गुजर गया
श्री हरि
15.10.22