भौतिकतावाद अवसान गढ रहा है
चारों तरफ आज अवसाद बढ रहा है
बरबादी का सामान कंधों पर उठाकर
इंसान अपनी मौत की सीढी चढ रहा है
कोई बम फोड़ रहा है कोई सिर तोड़ रहा है
कोई आंखें दिखा रहा है कोई बाहें मरोड़ रहा है
अकेलेपन के दर्द में इस कदर डूबा है आदमी
कि अवसाद में अपना रिश्ता मौत से जोड़ रहा है
ना बुजुर्गों का मान ना महिलाओं का सम्मान
हर आदमी नजर आता है जैसे खुद से परेशान
खुद के बनाए हुए हालातों में घिर गया है आदमी
नैराश्य के भंवर में दुनिया लगती है जैसे वीरान
धर्म से मुंह मोड़ के कर्म से नाता तोड़ के
ये कहां आ गये हैं हम सच की राह छोड़ के
अंधी गली में फंस गया है आदमी
अवसादों में घिर गया है आदमी ।।
श्री हरि
7.10.22