सुबह-सुबह पापा का मोबाइल बजा। पापा के हेलो कहते ही -
"भाई साहब अच्छा हमने आपके यहां रिश्ता किया, मनु (राज का छोटा भाई) का एक्सीडेंट हो गया। मेरे तो दोनो लड़के हाथ से गए।" उधर से माताजी की मधुर आवाज आई।
ये प्रत्येक शनिवार और इतवार का कार्यक्रम है। सुबह मोबाइल बजते ही ऐसा लगता है जैसे किसी ने आतंकवादी हमला कर दिया हो। सब छुपने लगते की कौन फोन उठाए और फ्रंटलाइन पर जाकर शब्दरूपी बाण सीने पर खाए।
अनिष्ठ की आशंका से कलेजा कांप गया। मम्मी पापा जल्दी जल्दी तैयार होकर राज के घर गए। एक कमरे में पूरे परिवार को घर पर ही देख कर जो राहत की सांस आई ये वो ही जानते है।
"बेटा कहां चोट आई?" पापा ने आवाज को यथासंभव नॉर्मल बनाते हुए पूछा।
"पूरी हथेली छिल गई भाईसाहब। स्कूटर वाला साइड से टक्कर मार गया। लड़का सड़क पर पड़ा रहा, खुद ही चल कर घर तक पहुंचा। क्या करे! कोई हमारी सुनता ही नही! पंडितजी से दुबारा विचरवा लो। हमे तो लगता है, जबरदस्ती दोनो की कुंडलियां मिलवा दी गई है।" माताजी का रूदन जारी था।
"मनु की शादी तय हो गई..…? पापाजी ने कहा।
"अरे! हम राजू की बात कर रहे है। हमारे कानपुर से इतने अच्छे अच्छे रिश्ते आ रहे थे….…......." माताजी किसी राजनेता से कम नहीं है।
पापाजी ने कहा मनु बेटा डॉक्टर से पट्टी करा लो। माताजी बड़बड़ाई डॉक्टर आजकल हाथ लगाने के भी 200 रुपए ले लेते है। बैंडेज लगाने और एक गिलास हल्दी वाला दूध पीने की सलाह देकर मम्मी और पापाजी घर आ गए।
एकाएक मम्मी ने कहा देखो जी अभी तो लड़की बाप के घर में ही है, क्यों जिंदगी भर की मुसीबत मोल ले रहे हो। शादी तोड़ दो। मैं अपनी लड़की इस घर में नही दे सकती जहां सब गूंगे बहरे हों एक प्रपंची। एक दिन की बात थोड़े ही है, कैसे ये जिंदगी निभा पाएगी उस घर में। अब मुझे भी गुस्सा आने लगा है। शादी करनी जरूरी थोड़े ही है। कितने लोग है जो शादी नही करते। आंखों देखी मक्खी कैसे निगल लूं। ऐसा लग रहा है जैसे हम लोग जबरदस्ती उनके लड़के का पकड़वा विवाह कर रहे हैं।
राज से मैने बात की कि यदि तुम्हारे घर में इस शादी को लेकर सभी, खासकर आपकी माताजी खुश नहीं हैं तो तोड़ दो शादी वरना हम दोनो की पूरी जिंदगी हराम हो जायेगी। क्या फायदा होगा ऐसी शादी का जहां ना परिवार खुश होगा, ना हमें खुश रहने देगा। आप ही मना कर दो। अगर हम लोग मना करेंगे, तो उनके अहम को ठेस लगेगी।
लेकिन राज नहीं माने और बोले ऐसी बात दिमाग में लाना भी मत। सब ठीक हो जाएगा।
करवाचौथ का त्योहार आने वाला है। मम्मी अपनी साड़ी वगैरह तैयार कर रही है। माताजी का संदेश आया है कि उनके यहां सास और ननद को साड़ी, फल, मेवा और हैसियत अनुसार पैसे रखे जाते है। किसकी हैसियत? मेरी या उनकी? ये नही बताया। अभी तो शादी हुई नही है। पापाजी और भाई ने तो माना कर दिया ले कर जाने से। बात खर्चे की नही है, पर मन में खुशी भी तो हो!
राज ने बोला इग्नोर करो। मम्मी को खाली बैठे बैठे ऐसे बहुत से ख्याल आते है। पर कभी कभी मुझे लगता कि राज को प्रॉब्लम फेस करना आता भी है?
वर्किंग डे में ना तो मेरे लिए व्रत रखना संभव था और ना ही नीतिगत। अभी तो यही नहीं पता कि फाइनली शादी होगी भी या कि नही। शाम को हम दोनों मिले और रेस्टोरेंट में डिनर किया। राज मेरे लिए एक प्यारा सा गिफ्ट लेकर आए । ये उनका पहला गिफ्ट था इसलिए कुछ स्पेशल फील हुआ। बोलते हम दोनो ही कम थे, पर अब तो हमारी बाते केवल घरेलू समस्याओं पर ही होने लगी हैं।
लेकिन तल्खिया कम होने का नाम ही नही ले रही थीं। कभी कहते सावन में सावनी नही भेजी। दिवाली पर भेजे गिफ्ट तो ऐसे ही थे। ठीक से मान सम्मान ही नही हो रहा। हमारे कानपुर में तो ऐसा होता है। समिता को फोन करो तो फोन नही उठाती बाद में अपनी मर्जी से कॉल करती है। फलां की बहु रोज गुडमॉर्निंग और सॉरी बोलती है। ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला......
मेरे लिए क्या ऑफिस में किसी भी वक्त फोन उठाकर घरेलू, बेसिर पैर की बातें करना संभव है? पर ठीक है क्या कर सकती हूं सुनने के सिवाय। केवल राज के शांत और केयरिंग स्वभाव के कारण ना तो कोई निर्णय ले पा रही हूं और ना ही इस रिश्ते में रम पा रही हूं। दिन तो ऑफिस के कामों की व्यस्तता में बीत जाता है पर रातभर इस रिश्ते के भविष्य के बारे में सोचती रहती हूँ ।
ना जाने कब तक ये अनिश्चितता की स्थिति बनी रहेगी!
क्रमश: