अपने -अपने क्षेत्र और जाति के रीति-रिवाज और पंचांग के अनुसार विवाह में वर और वधू, दोनों की कुंडलियों को मिलाया जाता है। जिसे कहते हैं, कुंडली मिलान या गुण मिलान। इसमें वर और कन्या की कुंडलियों को देखकर उनके 36 गुणों को मिलाया जाता है। जब दोनों के न्यूनतम 18 से 32 गुण मिल जाते हैं तो ही उनकी शादी के सफल होने की संभावना बनती है। फिर सही गुण मिलने पर भी इतने अलगाव क्यों होते हैं, मुझे आज तक समझ नहीं आया।
जब गुण मिलान की प्रक्रिया संपन्न हो जाती है, तो वर-वधू की जन्म राशि के आधार पर विवाह संस्कार के लिए निश्चित तिथि, वार, नक्षत्र तथा समय को निकाला जाता है, जो विवाह मुहूर्त कहलाता है। अब हमारे गुण मिले साढ़े तेईस!! और ये जो आधा हैं ना, आज तक परेशान कर रहा है। कभी इधर आता है तो कभी उधर लुढ़क जाता है।
पण्डित जी ने 25 फरवरी की डेट निकाली और अभी 25 अप्रैल थी। पंडित जी से दुबारा पत्रा देखकर तारीख विचारने का अनुरोध किया गया। पर पंडितजी नाराज हो गए ।
"कोई तारीख निकल ही नही रही, तो कैसे निकाले।"
अगले दिन राज अपने एक दोस्त के साथ फल, मिठाई और कुछ दक्षिणा लेकर पंडितजी से मिलने गए। पैर छुए और सब भेंट किया। पंडितजी ने सब कुछ रख लिया और कुछ करने का आश्वासन दिया। राज ने खुश होकर मुझे फोन किया कि बात बन गई।
अगले दिन पंडितजी ने मम्मी को फोन किया। "अपने लड़के को दुबारा ना भेजें। जब कोई नजदीकी डेट है ही नही तो कैसे बता सकते है!" मम्मी ने कहा कि उन्होंने तो किसी को नहीं भेजा। जरूर पंडितजी के किसी और जजमान का बेटा होगा। पर शायद मम्मी को समझ आ गया। इतना लंबा टाइम..…...…।
अब राज की फैमिली से गाहे-बगाहे कोई न कोई मिलने आने लगा। हम सब का वीकेंड उन लोगों की खातिरदारी में ही निकल जाता। ना तो मैं आराम कर पाती और ना ही शॉपिंग के लिए जा पाती। अगर कभी चली भी जाती तो इतनी पूछताछ होती कि लगता गलत फैसला तो नही ले लिया? पर राज कहते ये तो उन लोगों का लगाव है। टेक इट ईजी!
ऐसे ही मिलाप सम्मेलन के दौरान, राज की बुआजी एक दिन मिलने आई।
"ऑफिस में लड़के भी होंगे?"
"जी"
"तो कभी घर भी आते होंगे?"
"ऐसी तो कभी कोई जरूरत ही नहीं पड़ी।"
"अब हम क्या कहें? हमारा राजू तो राम है राम। उसके मुंह में तो जुबान ही नही है। भाभी की रूझबूझ है इंस्पेक्टर लड़की को कैसे निभाएंगी .........."
राज है तो सचमुच राम। डिसेंट, हैंडसम एंड केयरिंग ब्वॉय।
लेकिन इंस्पेक्टर लड़की के लिए क्या लंबी ज़ुबान वाला चाहिए? और इतने भी सीधे नही हैं जनाब!
....…….
काफी हाउस हम लोगों का मीटिंग प्लेस बन गया। हम दोनों बहुत कम बात करते, बस काफी लेकर बैठे रहते और वापिसी में, वो मुझे घर छोड़ देते। इतने दिनो में यह तो समझ आ गया कि जनाब सचमुच केयरिंग और सॉफ्ट स्पोकन है।
"कल से मेरी ट्रेनिंग है" मैने कहा।
"कहाँ?" राज ने पूछा ।
"DTRTI (प्रत्यक्ष कर क्षेत्रीय प्रशिक्षण संस्थान), वसंत कुंज, नई दिल्ली में। यह प्रशिक्षण कुल एक महीने का होगा जिसमें गैर-कार्य दिवस भी शामिल होंगे। प्रशिक्षण व्यापक और समय लेने वाला होगा जिसमें वित्तीय लेखा और एडवांस अकाउंटिंग में डबल एंट्री सिस्टम, पूंजी और राजस्व व्यय, परीक्षण संतुलन तैयार करने (Preparation of Trial Balance) और अंतिम खातों (Final Accounts) को हैंडल करने का प्रशिक्षण मिलेगा।" मैने बताया।
"समझ नही आ रहा कैसे जाऊंगी?"
"कब से जाना है? मैं सुबह मिलने आऊंगा ।"
"मंडे से। लेकिन आप अपने ऑफिस के लिए लेट हो जाओगे, मैं चली जाउंगी। " मैने कहा पर मन आश्वस्त नहीं था।
सुबह 6:30 ही मैं बस स्टॉप पर पहुंच गई। देखा राज स्कूटर लेकर पहले से ही खडे है ।
"ये किसका है?"
"मेरा है! मेरी ट्रेनिंग है ना एक महीने की, इसलिए खरीद लिया वरना टाइम पर कैसे पहुंचता?" राज ने कहा।
सुबह वहां मुझे 9 बजे पहुंचना था पर मंडे को मैं 7:30 बजे ही पहुंच गई। पूरे महीने की ट्रेनिंग इतने आराम से हो गई कि मैंने सोचा भी नही था। मेरा रिजल्ट भी बहुत अच्छा रहा।
दिन पंख लगा कर उड़ रहे थे। लेकिन सीता को राम इतनी आसानी से तो नही मिले। आसुरी शक्तियां भी तो अपना महत्व दिखाएंगी। तड़का का वध हुए बिना तो राम मिथिला जायेंगे नहीं।
गिरते हैं शहसवार ही
मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ्ल क्या गिरे
जो घुटनों के बल चले।।
क्रमश: