कच्ची मिट्टी पानी
में घुलकर
मटकी का जिस्म
पाती है
पर आंच के घर से जब
बाहर दुनिया में आती
है
फिर पानी घुलती नहीं
और आंच पर चड़ जाती
है
तुम भी कच्ची मिट्टी
के
सफ़र को जीवन में ढालो
एक बार आग से गुज़र
कर
फिर आग पर काबू पा
लो.
9 अक्टूबर 2015
कच्ची मिट्टी पानी
में घुलकर
मटकी का जिस्म
पाती है
पर आंच के घर से जब
बाहर दुनिया में आती
है
फिर पानी घुलती नहीं
और आंच पर चड़ जाती
है
तुम भी कच्ची मिट्टी
के
सफ़र को जीवन में ढालो
एक बार आग से गुज़र
कर
फिर आग पर काबू पा
लो.
49 फ़ॉलोअर्स
लफ़्ज़ों और रंगो से अपने अहसासों को बिखेर देती हूँ . मैं अर्चना हर बूँद में अक्स अपना देख लेती हूँ ।D
विजय जी ।….sabhi रचनाओ को आपकी प्रतिक्रिया मिली ।..bahut धन्यवाद
25 अक्टूबर 2015
तेजपाल जी रचना आपको पसंद आई बहुत धन्यवाद
25 अक्टूबर 2015
अवदेश जी बहुत आभार
25 अक्टूबर 2015
सफल होने के लिए उत्कृष्ट सुझाव देती एक बहुत ही अच्छी रचना
25 अक्टूबर 2015
बहुत सुंदर रचना
25 अक्टूबर 2015
तुम भी कच्ची मिट्टी के सफ़र को जीवन में ढालो एक बार आग से गुज़र कर फिर आग पर काबू पा लो. बहुत सुन्दर !
25 अक्टूबर 2015
धन्यववाद आशा जी
11 अक्टूबर 2015
प्रेणनादायक कविता है अर्चना जी की !
10 अक्टूबर 2015
ओमप्रकाश जी .....धन्यवाद .....आपने कीमती समय रचना के साथ दिया .......जीवन में कठिन वक़्त हमें मज़बूत करता है ......और बड़े कामो को करने के लिए फौलाद बनता है
10 अक्टूबर 2015
"तुम भी कच्ची मिट्टी के सफ़र को जीवन में ढालो"...कविता के माध्यम से बहुत सुन्दर सन्देश !
9 अक्टूबर 2015