विकास की दौड़ में,हो गया हूं मै अंधा, प्रतियोगिता के इस चरम पर, पहुंच गया ये बंदा।बुद्धि का हुआ जैसे जैसे विकास,प्रकृति का किया वैसे वैसे सत्यानाश।विकास की दौड़ में ,हो गया हूं मैं अंधा ।रास्ता बदलने को किया मजबुर,खिलखिलाती इन नदियों को किया,बहुतों से दूर।जंगल काटे ,शहर बस