साहब सिर्फ पांच हजार रुपये का कर्ज लिया था, आज चुकाते हुए एक वर्ष हो गए। फिर भी यह साहूकार कहता है कि दस हजार बकाया है, पांच हजार रुपये हर महीने का देता है। छः हजार रूपये तो दे चुका हूं और कितना दू, इससे अच्छा तो मैं मर ही जाऊं।
समझ नहीं आता कि परिवार के लिए कमा रहा हूं या साहूकार के लिए ऊपर से हर दिन एक घंटे की मजदूरी करता हूं इनके यहां....
बीच में साहूकार टोकते हुए कि मैं क्या करूं। मैंने थोड़ी ही कहा था पैसे लेने का...
तुमसे खुद पंद्रह टका ब्याज की शर्त पर पैसा लिये और अब मुकर रहे हो, और यह देखो कागज यह वही कागज है ना.....
शांत रहो....ज्यादा चालाकी मत दिखाओ। तुम्हारे जैसे लोगों के कारण ही लोग डाकू बनने को मजबूर होते हैं। अभी जा कर जो कह देगा न तो फिर तुम भागकर आओगे मेरे पास, और जितना दिए हो उसका दस गुना छीन लिए हो।
कलेक्टर साहब तमतमाते हुए बोले सबने बड़ी आश्चर्य भरी निगाहों से कलेक्टर की ओर देखा, क्योंकि पहली बार भरी सभा में किसी ने अनुशासन बनाने वाले को एक डाकू की तरफदारी करते देखा, और आज अचानक इतना प्यार कैसे और क्यों???
सभी अचंभित होकर कलेक्टर साहब की ओर देख रहे थे और वह बोले जा रहे थे। अब बोलिए क्या कहना है, कितना बचा???? नहीं साहब हो गया बोलते हुए साहूकार चुप बैठ बैठ गया।
तभी जोरदार गोलियों से सारा आकाश गूंज उठा। तभी बिगुल (बाजा )की जानी पहचानी आवाज ने सबके रोंगटे खड़े कर दिए।
यह क्या यह तो उस घाटी के कुख्यात डाकू रामदास के आने का आगाज है। भली-भांति सभी इस आवाज से परिचित थे। गांव का बच्चा-बच्चा जानता था जो जहां है वहीं खड़े रहे, क्योंकि डाकू रामदास के आने के बिगुल के बाद थोड़ी भी हरकत उसे बर्दाश्त नहीं।
उसके आने से पहले उसके साथी आ चुके होते हैं। थोड़ी भी हरकत याने मौत को बुलावा देना I बिगुल की आवाज लगातार नजदीक आती सुनाई दे रही थी, और सभी के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगी।
तभी एक विशेष आभा मंडल ने जैसे सब के डर को काफ़ूर सा कर दिया, क्योंकि सफेद फ्रॉक में लाल चुनर ओढ़े श्यामवर्ण के घोड़े पर सवार कुमुद अपने खुले केस के साथ हवा में चेतक (घोड़ा )को जैसे लहराते हुए चली आ रही थी। उसका सुंदर चेहरा, तीखे नयन और मन मोहिनी मुस्कान ने जैसे सबका मन मोह लिया।
ऐसा लगता था जैसे साक्षात सरस्वती ने पधारपन किया हो, लेकिन फिर भी सभी सचेत अवस्था में अपनी जगह पर खड़े हो गए। सबसे आगे कुमुद अपने श्याम वर्ण चेतक के साथ और उसके पीछे रामदास की पूरी सेना। इतने गुंडों का एक साथ में समूह आते देख ऐसा जान पड़ता जैसे घाटी से नहीं जैसे ऊंची पहाड़ी से स्वयं गंगा बहती चली आ रही है।
तिकोनी आकार में सजी सेना की प्रमुख कुमुद आज एक विचित्र मुस्कान लिए, हाथ में सफेद झंडे को लहराते हुए आगे बढ़ी चली आ रही थी। सबसे विचित्र बात तो यह थी कि सभी डाकू के हाथ में सफेद झंडे के कतार दिखते थे। ऐसा लग रहा था जैसे यह सब को कुमुद ने ही करवाया हो।
कलेक्टर साहब के चेहरे की प्रसन्नता और उत्सुकता साफ बता रही थी, वह सब कुछ जानते थे। तभी स्वयं एस.पी. ने आगे बढ़कर नम आंखों से सीधे तन कर कुमुद को एक जोरदार सेल्यूट किया , और खुद अपना हाथ आगे बढ़ाकर कुमुद को नीचे उतारा।
वही कुमुद बड़ी सावधान मुद्रा में मंच की ओर ऐसे जा रही थी, जैसे वह खुद उस सभा की मुखिया हो। पूरा जनसमुदाय अब डर के माहौल से निकलकर एक आश्चर्यजनक विस्मय भरी निगाहों से सिर्फ कुमुद को निहारते जा रहे थे। जैसे उस प्यारी बच्ची ने सबका मन मोह लिया हो I जैसे कोई भी उसे अपनी दृष्टि से एक पल के लिए भी ओझल नहीं होने देना चाहता था।
तभी अचानक.......... आखिर कौन है कुमुद????
क्रमशः...........