तुम्हें नहीं लगता हम यूँ ही दुःखी है
सब ठीक होने पर भी जिंदगी रुखी है
मैं कौन हूँ ?,
मैं क्या हूँ? ,
कहाँ जाना है? ,
मेरा लक्ष्य क्या है ?
यह सवाल मैं खुद
से करता था
लेकिन आज वक्त बदल गया है
आज खुद के लिए वक्त नहीं है
हाथ में घड़ी है
लेकिन खुद के हाथ में एक घड़ी पल नहीं है
क्यों क्या हम यहां सुविधा भोगने के लिए आये है?
या पिंडी चलाने के लिए ?
या दुःखी होने के लिये ?
क्या कभी हम खुद से बढ़कर कुछ विचारते है ?
पता नहीं ?
क्या मृत्यु जिंदगी का अंत है ?
या अंत जिंदगी का आरंभ ?