सुबह से शाम हो रही है न्याय के लिए आँखें रो रही है कभी निर्भया तो कभी हाथरस जैसी घटनाए हर रोज हो रही है लगता है आज कल धरती पर मानव तो है लेकिन म
15 अक्टूबर 2020
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सुबह से शाम हो रही है न्याय के लिए आँखें रो रही है कभी निर्भया तो कभी हाथरस जैसी घटनाए हर रोज हो रही है लगता है आज कल धरती पर मानव तो है लेकिन मानवता धीरे धीरे जग से खो रही है किसको फर्क पड़ता है यहां न्यायपालिका में लाखों मुकदमे विचाराधीन है निर्दोष भी कारा गृह में मौन है अब यह गाँधी का देश नहीं है यहां अब गरीबों को पूछा जाता है तेरा क्या धर्म और तू किस देश का है और तू कौन है तू कौन है लेखक -सीताराम