हार गई वह नारी अपराधों के बोझ से मेरा अपना कौन है इस खोज से किस पर विश्वास करूं किस पर नहीं इस सोच से बस नारी पैदा हुई इस दोष से घर और समाज के शोषण से असमानता के कुपोषण से विज्ञापनों में उपभोग कि वस्तु बना देने से न्याय नहीं मिल पाने से बुरे को अच्छा समझने की भूल से हार गई वह नारी अपराधों के बोझ से हार गई वह नारी अपराधों के उद्घोष से