प्रकृति का कर्ज है
क्या हो रहा है चित्त कहा खो रहा है खिले हुए फूल मुझे बुलाते है यह पेड़ पौध कुछ कहना चाहते है हवाए मुझे कुछ सुना रही है कानो के पास आकर गुन गुना रही है यह पक्षी ,यह अंबर ,यह जल की बुँदे चीटियों के झुंड रात में चमकते तारे बारिश में चलती बहारेयह पठार यह मिट्टी ,छिपकली मछर मक्खी मोबाइल मोमबत्ती जैसे मे