1 अक्टूबर 2020
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तुम खुशबू हो तो मैं हवा हूँ
तुम भावना हो तो मैं विश्वास हूँ
तुम धड़कन हो तो मैं सांस हूँ
थोड़ी सी डरती हूँ थोड़ी झगड़ती हूँ प्यार बहुत सारा भाई से करती हूँ। ... मै मेरे भाई की परी हूँ जब भी साथ वो होते किसी से नहीं डरी हूँ सारी दुनिया में एक भाई तो है जिस पर विश्वास करी हूँ एक अच्छा भाई सुलभ प्राप्त नहीं होता वो तो लाखो में एक होता है भाई को जो बहन रक्षा ब
क्या हो रहा है चित्त कहा खो रहा है खिले हुए फूल मुझे बुलाते है यह पेड़ पौध कुछ कहना चाहते है हवाए मुझे कुछ सुना रही है कानो के पास आकर गुन गुना रही है यह पक्षी ,यह अंबर ,यह जल की बुँदे चीटियों के झुंड रात में चमकते तारे बारिश में चलती बहारेयह पठार यह मिट्टी ,छिपकली मछर मक्खी मोबाइल मोमबत्ती जैसे मे
नाम आप ही देना स्वर्ग में कन्हैया से राधा कहती जीवन भर मैं तेरे इंतजार में रोती रहती कन्हैया नाम रात दिन रटती रहती लौट आएगा मेरा कन्हैयाखुद को यह झूठा दिलासा देती तू राजा बनकर अंहकारी हो गया तभी से मेरा कन्हैया संसार से खो गया कन्हैया बिना राधा नहीं उस दिन के बाद मैने एक दिन भी निकाला नहीं तू राजा
जब हम मिले तो चाहे कम ही मिले लेकिन जब भी मिले सतरंगी फूल हो खिले सूरज हो लाल मुस्कुरा रहे हो गाल मोरनी सी हो चाल खेतो में पकी हो दाल चिडियाए हमें देख रही हो बैठी डाल - डाल मेरी आँखे तेरी आँखो में तेरी आँखे मेरी आँखो में आँखो आँखो में यू ही गुजर जाए सालो साल...
हवा की लहर ने पत्ते को कली से अलग किया सच्चा प्रेम था ,सच्चे प्रेम को एक लहर ने दर्द दिया। ... कली रोती हुई कहती है मुझे में शक्ति थी की मैं चाहती तो अलग ना होती लेकिन पेड़ के प्रति जिम्मेदारियों ने मुझसे मेरा प्रेमी छिन लिया लोग कहते है प्रेम में शक्ति होती है तो कहा गई वो शक्ति क्या प्यार इतना
सारा जहाँ प्रेम का भूखा है जहां मिला वहां झुका है जो खुद से प्रेम नहीं करता वो दूसरों से क्या प्रेम करेगा ?जो खुद का ज़ख्म नहीं भरसकता वो दूसरों का क्या भरेगा ?जो खुद खुश नहीं रह सकतावो दूसरों को खुश रखने का वादा करेगा खुशी खुद में है यह ढूढ़ने का ना इरादा करेगाजो खुद से प्रेम नहीं करता वो दूसरों से क
जिंदगी पल दो पल की ना कल थी ना कल की पल में जिंदगी खिलती और आज में जिंदगी मिलती..
ना तुमसे हमें मिलते ना हमसे तुम दिल लगाते ना हम हैरान होतेतेरे छोड़ जाने पर ना हम रोते इस दुनिया के नियम खास तुम्हें पता होते तो हमसे दिल ना लगाते ना हम तुम पर मेहरबान होते ना तुमसे दिल लगाते ना तुम हमें याद यू आते तेरी यादों में ना खुद को यू रुलाते ना कविता लिखते ना कलम चलाते ना खिलें फूलों को स
हाथों में फूल, मूड है कूल सोना चाँदी से सजी है मूर्ति सीताराम की और से आप सभी को हैप्पी गणेश चतुर्थी। .
अभी तो तुझे जलना है जलकर ही बनता सोना है खुद से अभी संघर्ष होना है थोड़ा रोना है थोड़ा खोना है टूटना है बिखरना है जुड़ना है जोड़ना है मंज़िल अब दूर नहीं राही तुझे मंज़िल का होना है...
दुनिया से ममता चुरा लाऊंगा प्यार सारे जहाँ का मैं पाउँगा आप नाराज़ हो मेरी नवाज हो मेरी धड़कन आप से ,आप मेरी साज़ हो...
उनके भी आयें है तेरे भी आयेंगे बुढ़ापे के दिन तुझे भी सतायेंगे पल पल बदले रहा है समय तेरा यह ना भूल समय ने डाला है घेरा इस जग में ना तेरा,ना है कुछ मेरामृत्यु के काल ने नहीं होने दिया सवेरा
तुम खुशबू हो तो मैं हवा हूँ तुम भावना हो तो मैं विश्वास हूँ तुम धड़कन हो तो मैं सांस हूँ तुम ग़ुलाम हो तो मैं दास हूँ तुम आसमान हो तो मैं धरती हूँ तुम कमीज़ हो तो मैं धोती हूँ तुम लहसुन हो तो मैं पोती हूँ तुम धैर्य हो तो मैं शांति हूँ तुम आंदोलन हो तो मैं क्रांति हूँ।
चारों तरफ लगी है आग अब तो प्यारे तू जाग मज़हब के नाम पर लड़ाते राजनेता जहरील है नाग बचपन से मीठा जहर पिलाते हमको लड़ाते और खुद शांति से शासन करते जाते गरीबो की इनको चिंता नहीं इनकी योजनाएँ कागज़ों में पड़ी है कहीं थोड़ा सा काम क्या कर दे विज्ञापनों में दोहराते है वही इनको मंदिर की पड़ी है इनको मस्जिद
सुनो मंझिलो दौड़ कर हम नहीं आएँगे खुद को तेरे काबिल हम बनाएँगे तेरे मुसाफिर खुद हमें बुलाने मेरा दरवाज़े खटखटाएंगे
होने दो हवा को चलने दो बारिश को आने दो शेर को खाने दो जो हो रहा होने दो बादल बनेंगे बिगड़ेंगे तूफान आयेगा जाएगा मुझे इससे क्या लेना जो हो रहा होने दो कोई भूख से रोता है तो कोई अन्याय से तो क्या ?इनको रोने दो जो हो रहा है होने दो किसी को वोट की पड़ी है तो किसी को देश भक्ति की बाढ़ से किसी
जब तुम मुस्कराते हो तो मुरझाए फूल खिल जाते है हवाएँ ठंडी हो जाती है पर्वत झुक जाते है नदियाँ गीत गाती है चिड़िया नृत्य करती है पगडंडी पर घास फैल जाती है अंधेरा खुद को समेट लेता है सूरज अपनी किरणों को बड़ा देता है सागर लहरों को नीचे कर लेता है दरिया गड्डो को जल से भर देता है तेरे मुस्कुराने से जो नही
आँखो में तेरे नूर है जब से तुझे देखा है मेरे दिल में तेरा ही तेरा चढ़ा सुरूर है बड़ी बड़ी अखिया है रब ने तेरे होठों पर रखी खुशीयाँ है...
दो फूल खिले है एक इस किनारे दूसरा उस किनारे बीच में नदी पड़ती है इसने उसको देखा नहीं उसने इसको देखा नहीं सपने में कल्पना करते है वो खुशबू वाला कौन है? रहता कहाँ है ?कैसा होगा ?क्या हम कभी मिल पाएंगे ?किनारा पार कर पाएंगे?यहाँ जीवन भर अपना प्रेम खुसबू से ही फैलाते रहेंगे
मैं रोता हूँ तो साथ तुम होती हो मैं हंसता हूँ तो साथ तुम होती होमैं झूठ भी बोलू तो साथ होती हो मेरे विचारों में मेरे शब्दों में तुम जब तुझमें मिलतातो हो जाता हूँ गुम तुमसे मेरा प्रेम का रिश्ता हैनिर्मल भावों की जैसे सरिता है जो ना कभी रुकती है ना कभी थकती है जो पर्वत से लेकर घाटी तक जो घाटी से ले
हमेशा मुस्कुराते है ग़लती होने पर भी प्रेम से समझाते हैउनके बारे में क्या कहूँवो तो वह शख़्सियत है जो प्रकृति प्रेमी हैसारे जहाँ को अपना घर मानते है हर बच्चे की प्रतिभा को जानते है उनके दिल में हमेशा होती है माँ उन महापुरुष कानाम है रामकृष्ण शर्मा
जो अच्छा बुरा नहीं देखती विचारों से जो महकती उसने एक बार दिल लगाया था प्यार को दिल से निभाया था कहते है ना तेरे रास्ते में हम कांटे बिछाएंगे तेरे में ताकत हो तो चल ?उसी प्रकार उसका साथी बेवफा निकला तो उसकी अन्तरात्मा ने कहाँ हा वो बेवफ़ा है और तुझमें हिम्मत है तो तू यह प्यार निभाना उसकी यादों
तू मिला सब कुछ नष्ट हो गया है फिर भी एक दीप जला है बंजर भूमि में आशा का एक पेड़ खिला है डूबते को जैसे मिलता एक तिनके का सहारा वैसे ही मुझको तू मिला है ...
चले कदम तेरी और पहुँच नहीं हुआ भोर तेरे पास जान से क्यों रुक जाते है पैर प्रेम से उनको क्या है बेर तेरा मुझसे होना दूरबताओ मेरा क्या था कसूर यह जिंदगी एक पहली है क्या यार प्रेम के दुश्मनों के हाथों में है तलवार आँखें यह तुझे ही ढूंढे हर जगहा हर बार तेरा भूत मुझे पर होने लगा है अब सवार पत्थर दिल क
यह अंबर यह बादल यह चमकते तारेजंगल में लगी है आग गगन इसे बुझा रे यह चिड़िया यह चेतक यह कोयल पुकारे इनकी दिल की बातों को दिल से लगा रे शब्दों के बाणों से मेरा लहू न बहा रे सपनों में सांझ को लोट आ रेमधुर और लघु तू गीत सुना रे है सीताराम इस गीत को गुन गुना रे तू मिलने झरने पर नदी के किनारे प्रेम की
तपते सूरज में पसीने से नहाता किसान दुनिया का अन्नदाताभीख मांग कर क्यों बीज लाता?क्यों फांसी पर लटक जाता ?क्यों अन्नदाता को दो वक्त का अन्न नहीं मिलता क्यों इतनी जी तोड़ मेहनत के बाद चेहरा नहीं खिलता आखिर क्यों किसान का चेहरा एक सवाल होता उचित दाम के ने मिलने पर रोता क्यों किसान के सपने को मा
मैं आपके समाज का भाग हूँ आपके शब्दों का मैं राग हूँ रूप देखकर रिश्ता ना तोड़ो भावनाओं से रिश्ता तुम जोड़ो सात बहनों की पुत्री हूँ उस दुःख से मैं गुजरी हूँ गलत हमको कहते हो तमीज से नहीं रहते हो भेदभाव क्यों करते हो मार पिट कर लहू लुहान करते हो हमको देख कर घूरते हो चीनी समझ कर फेफुरते हो क्यों हमें दिल
हार गई वह नारी अपराधों के बोझ से मेरा अपना कौन है इस खोज से किस पर विश्वास करूं किस पर नहीं इस सोच से बस नारी पैदा हुई इस दोष से घर और समाज के शोषण से असमानता के कुपोषण से विज्ञापनों में उपभोग कि वस्तु बना देने से न्याय नहीं मिल पाने से बुरे को अच्छा समझने की भूल से हार गई वह नारी अपराधों के बोझ स
दिन रात ऐसा कोई पल नहीं जब तू याद ना आया हो ऐसी कोई सांस नहीं ली जब तुझे मैंने भुलाया हो //
तुम्हें पता है मेरा दिल तब टूट गया था जब तुमने यह मुस्कराकर कहाँ अब हमारे बीच में कोई रिश्ता नहीं सब भूल जाओ
तुम बताओ कैसे भूल जाऊँ तुझे जिसने प्यार का अर्थ बताया मुझे //
दुनिया ना दबाव से जीती जाती है ना तलवार से दुनिया को बदलना काफ़ी है एक विचार सेजिसके पास धन है दौलत है शोहरत वह अमीर नहीं जिसके पास मुस्कुराने के दो पल है अमीर वहीं। ..
गर्दन को पकड़ कर जल में कोई डुबो रहा है और मैं छटपटा रहा हूँ छोड़ दो मुझे प्लीज़ - चिल्ला रहा हूँ। . करियर का दबाव जवानी का दबाव फैमिली का दबाव यह तीनों दबाव मुझे जल में डुबो रह है और में करा रहा हूँ कैसे करूँ में तीनों का मुकाबला।।
तुम्हें नहीं लगता हम यूँ ही दुःखी है सब ठीक होने पर भी जिंदगी रुखी है मैं कौन हूँ ?,मैं क्या हूँ? ,कहाँ जाना है? ,मेरा लक्ष्य क्या है ?यह सवाल मैं खुद से करता था लेकिन आज वक्त बदल गया है आज खुद के लिए वक्त नहीं है हाथ में घड़ी है लेकिन खुद के हाथ में एक घड़ी पल नहीं है क्यों क्या हम यहां सुविधा भ
नशा है हमें तिरंगे में लिपटकर घर आने का अपने खून से तिरंगा सजाने का अपने देश के लिए अपनी जान गवाने का भारत माँ कि आन बान शान के लिए किसी से भी लड़ जाने का नशा है हमें तिरंगे में लिपटकर घर आने का।
लोट आओ है गाँधी तेरा भारत तुझे पुकारे स्वराज का सपना अधूरा स्वराज के दुलारे।
चरणों में पुष्प अर्पण करूँहे माँ तेरा ही तेरा दर्शन करूँ मेरा पहला शब्द है माँ मुझे जीवन देने वाली माँ हर संकट में याद आये वो माँ चोट लगने पर मुंह से निकलता माँ तेरी भी माँ मेरी भी माँ जग तुझसे बना माँ जहाँ जाऊँ जिधर जाऊँप्रेम की मूर्त माँ को पाऊँ इस दुनिया में कितना भी अच्छा ख
तेरी सुंदरता और भी बढ़ जाती है जब माथे पर लगी होती है बिंदी निकालने वाले तो चाँदनी की भी निकालते है चिंदी कलम भी गर्व महसूस करती है जब कागज पर लिखते है हिंदी हिंदी के शब्द सुनकर तोप्राचीन काल में मोहिनी हुई थी जिंदी संस्कृत की पुत्री है सिंधी की बहन मेरी मात्र भाषा और मेरी माँ है हिंद
सुबह से शाम हो रही है न्याय के लिए आँखें रो रही है कभी निर्भया तो कभी हाथरस जैसी घटनाए हर रोज हो रही है लगता है आज कल धरती पर मानव तो है लेकिन मानवता धीरे धीरे जग से खो रही है किसको फर्क पड़ता है यहां न्यायपालिका में लाखों मुकदमे विचाराधीन है निर्दोष भी कारा गृह में मौन है अब यह गाँधी का देश नहीं है
है मनुष्य इतना घमंड ना कर प्रकृति का तू दमन ना कर यह जग सबका है पशु पक्षियो को खत्म ना कर यह जीव जंतु दुश्मन नहीं तेरे साथी है इनके बिना तू कुछ नहीं यह तेरे जीवन के बाराती है पंछी चाहे कितना ही ऊंचा उड़ जाए खाने के लिए धरती पर झोली फैलाए
करियर चौराहे पर बैठामैं रास्तों को गिन रहा कभी रास्ते को नापता ,तो कभी चुपके से रास्तों में झांकता जाना तो मुझे करियर बनाने को है लेकिन यह रास्तेयह संकट मुसीबतें मुझे रोकने के लिए लगातार ताक रहे हैहर रास्ते में एक घोड़ा लिए बुद्धिमान खड़े हैसबके पास दिखाने को प्रमाण है यह देखिए जनाब हमारे घोड़े पर
जिन पैरो से सारा जहां नाप आते इस छत से उस छत पर कूद जाते सब साथ होते दादा दादी सुनाते परियों के जहां में वो हमको घुमाते संस्कार का बीज कहानी से लगाते डाटते हमको गलत करने से डराते बचपन के वो दिन बहुत याद आते। स्कूल में हम भी बहुत मजा करते बड़े होकर वो करेंगे सपने सजाते खेल में घोड़ियों को नचाते जो
दूर ना जाना ,पास आनाविचारों के सागर में संग ग़ोता लगाना मनमोहक सपने दिखाना सपनों में मंजिल को खोजते हुए रास्तों से इश्क हो जाना मंजिल के मिल जाने पर भी रास्तों से मोह न जाना यह कुछ वैसा ही है जैसे मृत्यु रुपी मंजिल तक जानाऔर पथ रूपी जिंदगी से लगन लग जाना।
उनसे मिलकर मै बदल गया हूं