समीरा का जी बस में नहीं था; ममा का फोन आया था. इधर- उधर की बात करने के बाद, कहने लगीं, ‘सिमो...शादी की पहली सालगिरह भी निकल गई...अब तुम दोनों को, बेबी प्लान कर लेना चाहिए ’ ‘लेकिन ममा...’ ‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं...तुम कोई बच्ची नहीं हो...डोंट बी चाइल्डिश...’ समीरा से प्रतिकार करते ना बना. माँ को हाई बी. पी. की शिकायत रहती थी, इस कारण वह उन्हें उत्तेजित नहीं करना चाहती थी. फिलहाल चुप्पी साध लेना ही बेहतर लगा.
ऐसा नहीं था कि उसके भीतर, माँ बनने की इच्छा नहीं जागती थी; परन्तु अपने पति नवीन का ध्यान आते ही उसका विश्वास डगमगा जाता...उनके संदिग्ध व्यवहार और विचित्र रवैये के चलते, वह परिवार बढ़ाने जैसा, अहम निर्णय, कैसे ले सकती थी? कभी कभी ज्यादा सोचने से, तबीयत भारी होने लग जाती. अपने मन की उलझन, वह कहे तो किससे कहे?! ममा से कहना संभव नहीं...डैड भी दिल के मरीज ठहरे. छोटी बहन, विदेश, पढाई करने गई; उसे परेशान करना उचित नहीं...फिर विकल्प, क्या हो सकता था??
बहुत सोच- समझकर उसने, अपनी बालसखी रमा से चर्चा की. रमा भी उसका दुखड़ा सुनकर, हैरान थी. आखिर कोई इंसान, इतना तानाशाह कैसे हो सकता था... जो पढ़ी- लिखी जीवनसंगिनी को भी, हाथ की कठपुतली बना लेना चाहता हो; वह कहाँ जाए...किससे बोले...क्या खाए...क्या पहने- सब निर्धारित करता हो! स्वच्छंद हवा सी बहने वाली समीरा, उन अवांछित प्रतिबंधों को, जाने कैसे झेलती होगी!!
नवीन भी एक दिन, ममा के सुर में बोलने लगे, ‘सिमो! बुआ कह रही थीं कि अब हमें दो से तीन हो जाना चाहिए.’ यह सुनकर, सिमो कटकर रह गयी. नवीन के लिए, बुआ का सुझाव, आदेश जैसा था; परन्तु समीरा की छोटी- बड़ी मांगें... वह बड़ी सफाई से टाल जाते. बहरहाल रमा का एक तर्क, उसे ठीक जान पड़ा- यह कि नवीन का उजड्ड बर्ताव, कहीं न कहीं, उनके अतीत से जुड़ा था. बातचीत से मामले की तह तक पंहुचा जा सकता था. किन्तु क्या पतिदेव, इसकी अनुमति देते? नहीं...कभी नहीं!
समीरा को कैसे भी, वह सच, खोदकर निकाल लेना था. बुआ सास ने दबी जबान से, कुटुंब के कुछ ‘विलक्षण’ किस्से सुनाये; जिन्हें सुनकर, परिवार का इतिहास, रहस्यमय जान पड़ा. धीरे धीरे, राज फाश तो हुए पर तस्वीर अभी धुंधली थी... ऐसे में कोई राय बनाना, अँधेरे में तीर चलाने जैसा था. नवीन के बड़े भाई प्रवीन, कई बरस पहले, घरवालों से रूठकर, कहीं चले गये थे. सासूमाँ और ससुरजी, बेटे से मिला आघात सह ना सके और चंद महीनों में ही दुनियाँ से कूच कर गये. बात सम्भवतः, प्रवीन भाई के असफल विवाह की थी. उनका ब्याह, घर के बड़ों ने तय किया. पत्नी से नहीं बनी तो तलाक तक बात आ पहुंची. भाई, भाभी से अधिक, माता- पिता को जिम्मेवार मानते थे- जिनकी अदूरदर्शिता ने, एक अयोग्य स्त्री को, उनके पल्ले बाँध दिया.
दूसरी तरफ माता- पिता, प्रवीन को ही दोषी समझते जो बीबी की लगाम, नहीं कस पाए. विवाह- विच्छेद का सही कारण, परिवार के गिने- चुने लोग जानते थे; वह रहस्य, किसी प्रेत की तरह, उनकी यादों में दफन था. समीरा की गांठ, नवीन संग बाँधने के पहले; मैके वालों को, इस बात की भनक मिली किन्तु जंवाई के ऊंचे ओहदे को देख, उन्होंने उसे अहमियत नहीं दी...स्वप्न में भी न सोचा होगा...कि जिसे वे दामाद चुन रहे थे; ब्याह के बाद उनकी बिटिया से , अशिष्टता करेगा. नवीन की वक्र चितवन तो समीरा ने, मधुयामिनी पर ही देख ली थी. पहली रात, जब वर, वधू मीठी- मीठी बातें करते हैं; भविष्य के सपने देखते हैं...नवीन ने ऊलजलूल प्रश्न दागने शुरू कर दिए.
‘तुम्हें पता है- मेरा पहला क्रश माधुरी दीक्षित थी और दूसरी ऐश्वर्या राय’ पति की इस स्वीकारोक्ति ने, सिमो को गुदगुदा दिया था और वह बेतरह हंस पड़ी. हंसी में उसका साथ देने के बजाय, नवीन एकाएक गम्भीर हो गये, ‘व्हाट अबाउट यू?’ ‘ऋतिक रोशन...’ पति की गम्भीर मुद्रा को देख, उसने सहमकर कहा. ‘और रियल लाइफ में?’ ऐसे अभद्र सवाल का, उसके पास कोई जवाब ना था. वह स्तब्ध होकर, कुछ देर उन्हें ताकती रही फिर धीरे से बोली, ‘कोई नहीं...कोई भी नहीं...’ ‘ वाह रे...!’ अस्वीकृति की मुद्रा में, वे बोले. फिर एक मलिन मुस्कान, होंठों पर सजाकर, कहने लगे, ‘मुझे कोएड वाले कॉलेज में, पढ़ने का मौका, मिला होता... तो लड़कियों से दोस्ती, जरूर करता...खैर...!’
शादी के कुछ दिन बाद, कॉलेज के साथी, समीरा से मिलने आये थे. उनमें पुरुष सहपाठी भी थे. नवीन यह बात, पचा नहीं पा रहे थे. उनकी सामान्य बातों का भी वे गलत अर्थ निकाल रहे थे. कॉलेज के टीचरों और प्रोजेक्ट्स की बातें...उनके बैच के, भविष्य में होने वाले, गेट- टुगेदर की बातें, क्या गलत थीं?? साथियों से मिले, ज्यादातर तोहफे या तो टेडी- बेयर थे या फिर चॉकलेट के डिब्बे. इस पर नवीन की त्योरियाँ चढ़ गईं, ‘कैसी वाहियात गिफ्ट्स हैं!’ ‘वाहियात?! लेकिन मुझे तो यही पसंद हैं!’ समीरा को भी गुस्सा आने लगा था. ‘श्रीमतीजी...यह सब वेस्टर्न कल्चर की उपज है. वेलेंटाइन के मौसम में, बेलिहाज लड़के- लडकियाँ, ऐसे ही उपहारों का आदान- प्रदान करते हैं!’
पति की तंगदिली से समीरा परेशान थी. उसने वे सब गिफ्ट्स, अनाथालय के बच्चों में बाँट दिए. नवीन जब तब सिमो का मोबाइल खंगाल लेते, उसके व्हाट्सएप स्टेटस, फेसबुक सन्देश, फोन कॉल्स- सबका चोरी- छिपे हिसाब रखते. पत्नी की, किसी से भी आत्मीयता, उन्हें स्वीकार्य ना थी- भले ही वह इंसान एक स्त्री हो. अपने दोस्तों की बीबियों तक से, उसे दूर रखते; जब वह उनसे बहनापा जोड़ने लगती- स्नेह के उन सूत्रों को, कतर देने का जतन करते. श्रीमती वर्मा, समीरा से नाराज हो गईं क्योंकि वे सोचती थीं कि उसने, उनके कपड़ों की आलोचना की थी. इसी तरह श्रीमती डेविड भी खफा थीं. उन्हें लगा कि सिमो को, उनका केश- विन्यास नहीं सुहाता. समीरा चकित हुई. उसने तो ऐसा कुछ नहीं कहा. बाद में पता चला- वह रायता, पतिदेव का फैलाया हुआ था!
सिमो को महसूस हुआ कि वे उसकी जड़ों को ही काट देना चाहते थे ताकि उसे नियंत्रित कर सकें! उनकी रुग्ण मानसिकता को समझने के लिए, उनके दिवंगत माता- पिता और लापता भाई के विषय में, जानना आवश्यक था. समीरा ने अपनी तरह से, तथ्यों की पड़ताल शुरू कर दी. वह बुआ और दूसरी करीबी महिलाओं से, घुमा- फिराकर, पूछताछ करने लगी ताकि वे उसका इरादा भांप न पायें. इस क्रम में कई महत्वपूर्ण बातें पता चलीं. रमा और उसके पति वेद ने भी सहायता की. उन्होंने प्रवीन के मित्रों से सम्पर्क साधा और कुछ ऐसी जानकारियां, हासिल कीं जो सिमो के बहुत काम की थीं. इधर नवीन के रंग- ढंग... निराले थे! वे समीरा पर, अपनी मनमानी को लेकर, लज्जित अवश्य थे परन्तु अपने अहम के चलते, क्षमायाचना न कर पाते.
कभी कभी उन्हें सिमो को, सॉरी बोलने की प्रबल इच्छा होती किन्तु फिर अपने पिता रामचरन की, वह बात याद आती, ‘’बेटा... औरत को काबू में रखना, बहुत जरूरी है...घर को बचाने के लिए!’ ऐसा वह, प्रवीन भाई की, अय्याश पत्नी को लक्ष्य करके कहते. बड़े घर से नाता जोड़ने के लोभ में, रामचरन ने, होने वाली बहू के बारे में छानबीन नहीं की. बाद में पता चला कि वह नशे की आदी और बला की रंगीनमिजाज़ थी. प्रवीन भाई का जीवन, नरक हो गया. ऐसी बीबी का क्या करते, जो आये दिन, दारू- पार्टियों से, धुत्त होकर लौटती- वह भी गैर- मर्द की बाहों में झूलती हुई!
प्रवीन को माँ- बाप ने, उनकी प्रेयसी रत्ना से, शादी नहीं करने दी; क्योंकि वह विजातीय थी. उनकी ब्याहता, उन्हें कोई सुख न दे सकी; इसी से रह- रहकर, रत्ना की याद सालती. परिणाम घातक रहा. वे विवाह का बंधन ही नहीं, रिश्तों के बंधन भी तोड़कर, चल दिए. नवीन को उनसे सहानुभूति तो थी पर उतनी ही घोर विरक्ति भी! भाई ने घर से निकलने के बाद, एक बार भी...पलटकर, नहीं देखा; यह कि उनके जाने के बाद, किस तरह परिवारवाले, अपना गुजारा कर रहे थे! माँ- बाप बीमार रहे और संसार तक छोड़ गये, लेकिन प्रवीन का इस सबसे, कोई वास्ता नहीं था!!
समय धीरे धीरे, अनुभव के कड़वे घूँट, पिला रहा था. मरुथल में मीठे सोते की तरह... यदा कदा...कुछ अच्छे पल भी नसीब होते. नवीन की सालगिरह, पास आ रही थी. उनके दिल पर दस्तक देने के लिए, समीरा, इस अवसर को, भुना लेना चाहती थी. उसने एक नामी दुकान से, केक आर्डर कर दिया. समुद्र - किनारे, सुंदर बीच पर... शानदार रेस्टोरेंट में... टेबल बुक करवा ली. नवीन ने इन बातों को, तटस्थ भाव से ग्रहण किया. अपने स्वभाव के अनुरूप, पत्नी का विरोध तो नहीं किया; पर कोई उत्साह भी नहीं दिखाया!
आखिरकार वह बहुप्रतीक्षित दिन आ ही गया. सब कुछ सही चल रहा था; किन्तु उसी दिन, समीरा ने एक सेल्समैन से, मसाले खरीद लिए. वह सोसाइटी के गेट पर, खड़ा होकर, अपना सामान बेच रहा था. समीरा के फ्लैट में सूख रही चादर, नीचे गिर गई थी. वह उसे उठाने, वहां आयी थी. इतने में वह व्यक्ति, नजर आ गया. सिमो को, पति की पसंदीदा सब्जियों के लिए, कुछ मसाले चाहिए थे. क्लब- हाउस के केयरटेकर से, पैसे उधार लेकर, उसने झट खरीदी कर ली. दुर्भाग्यवश उसी समय पतिदेव, प्रकट हो गये! वे ऑफिस से, जल्दी चले आये थे. उन्होंने खूंखार तरीके से, मामले की शिनाख्त की तो सिमो को, सच बताना ही पड़ा.
घर आते ही, वह उस पर बरस पड़े! एक अजनबी इंसान से, सामान लेना और दो कौड़ी के केयरटेकर से, उधार मांगना- उनकी नजर में, गुनाह ठहरे. कहीं न कहीं... सिमो को महसूस हो रहा था कि वे उस पर शक कर रहे थे. उसका जी खट्टा हो गया. बेमन से केक कटा. पूर्वनियोजित कार्यक्रम के अनुसार, पति पत्नी बाहर निकले. उनके मन खिन्न थे. गाड़ी पार्क करके, वे समुद्र की ओर बढ़े. नवीन के मिजाज़, दुरुस्त ना थे- इस कारण, वे सामने से आने वाली, मेटाडोर को, देख नहीं सके. सिमो ने फुर्ती से, उन्हें परे हटा दिया और मेटाडोर के धक्के से, सड़क पर लुढ़कती चली गयी.
समीरा की आँखें, अस्पताल में खुलीं. तब नवीन का दूसरा ही रूप, देखने को मिला. वे दिलोजान से, उसकी सेवा में लगे थे. उनके मन का मैल, धुल गया. सिमो को गहरी चोटें आई थीं. ठीक होने में कितना समय लगेगा, यह नियत नहीं था. तीन महीने बाद, उसका भी जन्मदिन था. उसके पहले ही नवीन, उसे स्वस्थ देखना चाहते थे. रमा और वेद के सौजन्य से, प्रवीन एक दिन, सिमो का हालचाल लेने पहुँच गये. उन्हें रत्ना के साथ देखना, सुखद आश्चर्य था. पता चला कि रत्ना का पहला विवाह, उसे लम्बे समय तक, सौभाग्य नहीं दे सका. ब्याह के कुछ महीने ही बीते होंगे, जब सौभाग्य का सिन्दूर पुंछ गया और वैधव्य का दुर्योग बना. वह स्वयम को बेसहारा और असहाय पा रही थी कि तभी प्रवीन से, आकस्मिक भेंट हो गई. उनका आपस में, यों टकराना, सुखद रहा. मधुर स्मृतियों ने पंख फैलाए तो कोमल सम्वेदनाएँ...आप- ही- आप, जागने लगीं और... दो बिछड़े प्रेमी, मिलकर एक हो गये.
प्रवीन को खुशहाल पाकर, नवीन प्रमुदित हुए. उन्होंने भैया को लेकर. तरह तरह की कुंठाएं पाल रखी थीं. वे ग्रंथियां, एक एक कर, स्वतःखुलती चली गईं! निराशाजन्य अतृप्त भावनाएं, तिरोहित हुई तो व्यक्तित्व भी निखर आया. अब नवीन का आचरण, पहले की भांति, असामान्य नहीं था. नवीन के साथ, रमा, वेद, प्रवीन और रत्ना भी समीरा की, देखभाल में लगे थे. सिमो को जब चिकित्सालय से रिहा होना था, तभी उसका जन्मदिन पड़ा. नवीन ने कार्यालय से अवकाश ले लिया. वार्ड में पसरा हुआ, सारा तामझाम समेटकर; उन्होंने खुद, कार में रखा. अस्पताल की सारी औपचारिकताओं का, निर्वाह करने के बाद, जब वे घर पहुंचे- समीरा भौंचक होकर, अपने कमरे को, देखती रह गई.
वहां चारों तरफ , प्यारे प्यारे टेडी बेयर, सुशोभित थे. सुस्वादु चॉकलेटों के पैकेट, गिफ्ट- रैप में लपेटकर, रखे हुए थे. खुशी से सिमो के आंसू छलक आये. अंततः उसके जीवन को दिशा, मिल ही गई!!