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दूसरे दौर की प्रताड़ना

10 दिसम्बर 2021

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अमन शर्मा झल्ला रहे थे. उनकी भूरी वाली टी. शर्ट पर, इस्तरी नहीं फेरी गई. देविना रोज रोज की नाराजगी से तंग आ चुकी थीं. पतिदेव का मिजाज़ आजकल, सातवें आसमान पर रहता. झगड़े का कोई न कोई बहाना, उन्हें मिल  जाता. नीली बिटिया के ब्याह की बात चल रही थी. एक ऑडी कार और पंचसितारा होटल में विवाह की व्यवस्था, वरपक्ष की मांग थी. सब कुछ लगभग तय था लेकिन लड़के वालों की सुई, ४० लाख पर आकर, अटक गई. अमन चाहते तो यह मांग भी पूरी कर सकते थे; परन्तु छोटी बिटिया भी कतार में थी. छुटकी की बारी आने पर...कुछ ‘दान- दक्षिणा’ तो जुटानी ही पड़ेगी. तब वे हाथ झाड़कर, खड़े नहीं हो सकते. ऐसे में अमन को, पत्नी देविना का खयाल आया...देविना को अपने पिता की वसीयत में, जमीन का एक टुकड़ा मिला था.

उस प्लाट की कीमत करीब ५० लाख रही होगी. पहले वह इलाका, गाँव से जुड़ा था; किन्तु तेजी से विकास होने के कारण, वहां की शक्ल ही बदल गयी. अमन की आखिरी उम्मीद, वह सम्पत्ति थी; लिहाजा जमीन के कागज- पत्तर, बटोरे और लग गये ग्राहक की तलाश में...उनके अरमानों पर पानी फिर गया, जब उन्होंने जाना कि वह प्लाट विवादास्पद था. कोई जाना माना बिल्डर, उस जगह पर, अपनी दावेदारी ठोंक रहा था. अमन निराश हो गये और उनका सारा गुस्सा, देविना पर फूट पड़ा.

‘ उस जमीन को, पहले ही  बेच देना चाहिए था... वहां तेजी से शहरीकरण हुआ...बहुतों की नजर, रही होगी- उस पर’ देविना ने सकपकाकर, प्रतिवाद किया.

‘तुम्हारे भाइयों को क्यों नहीं दिया- वह फालतू प्लाट...वह तो मजे से गाँव का घर, खेत और बाग- बगीचे लिए बैठे हैं...कोई झगड़ा... कोई टंटा नहीं!’

‘लेकिन पिताजी ने आपकी सहमति से जायदाद का बंटवारा किया था. तब आपने ही बोला...उस पिछड़े हुए गाँव में, आपकी कोई दिलचस्पी नहीं!’

‘चुप कर... मूरख औरत! अकल के पीछे लठ लेकर पड़ गई है...’ पति की रोष भरी घुड़की, पत्नी को बेतरह चुभ गई. वह डबडबाई आँखों को पोंछते हुए, वहां से चली गईं.

अमन के व्यवहार से, उनको प्रायः लज्जित होना पड़ता. पति का लालच और उजड्डता, मैके से उनके सम्बन्ध बिगाड़ रहे थे. भाई तो पहले ही भाभियों के हो चुके; अब तो अम्मा भी देविना से खिंची- खिंची रहने लगी थीं. दामाद के नखरे, नाकाबिले- बर्दास्त होते जा रहे थे. देविना को लगता है, ‘काश! पिताजी आज जीवित होते...ऐसे में उनका विवेक, जरूर काम आता.’ इधर पतिदेव की रणनीति, स्पष्ट थी. उनके अनुसार, सब दोष- देविना के नैहरवालों का था ; उनकी अदूरदर्शिता से ही, समस्या पैदा हुई; इसलिए समाधान का दायित्व भी, उन्हीं का था.

कितु देविना का स्वाभिमान, मायके वालों के आगे हाथ फैलाने से, उन्हें रोकता था. कितनी बार पति के कारण...जगहंसाई हुई थी; यहाँ तक कि उनके रक्त- सम्बन्ध फीके पड़ने लगे थे. अमन उन सबसे, लेना ही जानते थे ; देने के नाम पर हाथ खींच लेते. मांगलिक उत्सवों में जब कुछ देने की परम्परा होती...वे रस्मों को, सस्ते में निपटा देना चाहते. ‘मान्य’ की श्रेणी में होने के कारण, बात बात पर रौब झाड़ना यहाँ तक कि बदसलूकी कर बैठना, उनकी फितरत में था. पति के  इस स्वभाव के चलते, देविना अपनी जड़ों से कटती जा रही थीं...जबकि ससुराल पक्ष के, अनचाहे सम्बन्धों को ढोना, उनकी लाचारी थी.

देविना को इन दिनों रह- रहकर, अपने ब्याह के शुरुआती दिन याद आते हैं. सासू-माँ को तब, ‘सास की पिटारी’ में आभूषणों की कमी अखर रही थी. पिताजी की खानदानी, हीरे की अंगूठी, सेवा में पेश हुई- तब जाकर, उनकी त्योरियाँ, ढीली पड़ीं. व्यंग्योक्तियाँ तब भी सुनी थीं और अब भी...शादी के २४- २५ साल बाद भी...सुनने को मिल रही हैं - यह तो उन्होंने, स्वप्न में भी न सोचा था! वह तो किसी दूसरे ही भ्रम में जी रही थीं. पतिदेव उनको मालकिन बुलाते थे और वे स्वयम भी, ऐसा समझने लगी थीं. इस घर को उन्होंने, अपने रक्त- स्वेद से सींचा था, निजी खर्चों में कतर- ब्यौंत करके, देवर- नन्द के ब्याह, निपटाए थे. घोर श्रम किया था- गृहस्थी जमाने में...लेकिन इसका कोई एहसान तक नहीं!!

पतिदेव जाहिरी तौर पर कुछ नहीं कहते थे; किन्तु दबी जबान से जो कुछ कहते, उन्हें आहत करने के लिए काफी था. शिकायतें - जो गजल के मिसरे की तरह, दोहराई जा रही थीं! ऐसे में दोनों बेटियां- नीली और मिली, बहुत याद आतीं; जो देहली के प्रतिष्ठित कॉलेजों में, अपनी शिक्षा पूरी कर रही थीं.  इधर कुछ दिनों से अमन, उनकी आयरन की दवा, जानकर भूल रहे थे.  पहले तो जब, दवा का स्टॉक ख़तम होने में १५ दिन रह जाते थे- दौड़कर ले आते थे. देविना के चश्में का नम्बर भी बढ़ गया था- शायद! आँखों की चेकिंग कराना तो दूर, उसका जिक्र सुनकर ही टालमटोल शुरू हो जाती. इस कारण पढ़ना- लिखना, फिलहाल छोड़ रखा है, उन्होंने. आयरन टेबलेट के बजाय, मायके से लाया हुआ कोई आसव गटक लेती हैं.  अमन में यदि अकड़ है तो वे भी कुछ कम नहीं; पतिदेव बात बात में भन्नाते हैं- कुछ उस तरह, जैसे वर- दक्षिणा , हाथ न आने पर, नया- नया  दूल्हा भन्नाता हो! अर्श से फर्श तक पहुँच जाने की स्तिथि बन गयी है...गृहस्वामिनी न होकर, अवांछित अतिथि बन गयी हों मानों!

परिवारवालों की देखभाल में; उन्होंने खुद को निछावर कर दिया... अच्छी खासी नौकरी को छोड़, घरवालों की नौकरी बजाई. अपनी पहचान धुंधलाकर, कुटुंब की किस्मत चमकाई. और अब...! जेठजी के बहकावे में आकर, अमन बड़बड़ाते हैं , ‘अरे वह जमीन नहीं तो खेत का कुछ हिस्सा ही हमारे नाम कर दें, तुम्हारे मइके वाले... गाँव में पुरानी दुकान भी तो है तुम लोगों की!’ जेठजी उनके वैवाहिक जीवन के प्रारम्भिक दिनों में भी अमन के यूँ ही कान भरते थे. वह भी तब, जब देविना के माँ- बाप ने,विवाह में, हैसियत से बढ़कर पैसा दिया.

अमन को यह तक याद न था कि डेढ़- दो माह में, उनके विवाह की रजत- जयंती थी. सप्ताह भर न हुआ होगा, वे लोग, एक दोस्त की ‘सिल्वर एनिवर्सरी’ मनाने गये थे. दोस्त ने अपनी पत्नी को महंगी कार भेंट की. इसका कारण पूछने पर वे बोले , ‘मेरी पत्नी ने मुझे एक प्यारा सा घर, दो सुंदर बच्चे और शानदार ज़िन्दगी का तोहफा दिया है...उसके आगे, ये कार तो कुछ नहीं...!’ और अमन...क्या उनके लिए, पत्नी की तपस्या का, कोई मोल है??  देविना   को लगने लगा है कि सब स्त्रियों का भाग्य, एक सा नहीं होता. घर में वैसी कद्र नहीं होती, जैसी कि होनी चाहिए. इतने वर्षों तक, बिना वेतन के; खटने के बाद, कोई पारिश्रमिक नहीं मिलता - उलटे ही उनसे, वसूली की अपेक्षा रहती है.

सभ्यता का यह कैसा चेहरा? गृहलक्ष्मी, अन्नपूर्णा, पूज्यनीय नारी कहकर- नारी को परखने की कसौटियां बना दी गई हैं...सीता जैसी पवित्रात्मा को भी अग्नि- परीक्षा देनी पड़ी थी. सम्बन्धों का हर हाल में निर्वहन, उसकी परख है. इसके लिए भले ही, आत्मा को तार- तार होना पड़े! देविना  अपने बालों में पड़े, रुपहले धागों को देखती हैं. उम्र की गरिमा चेहरे पर उतर आई है; किन्तु जो आदर, संघर्षों में तपकर पाया था- बेमानी लगने लगा है. हाल में ही किसी विवाहेतर सम्बन्ध की चर्चा होने पर, अमन तमककर बोले थे, ‘क्या दूसरी शादी मैं नहीं कर सकता? बिलकुल कर सकता हूँ.’ वह स्तब्ध सी पति को देखती रह गयी थीं. उनका रसिक स्वभाव, उन्हें सदा कचोटता रहा...किन्तु यह बात, कुछ ज्यादा ही कचोट गयी थी!

यह  औरत जात की नाकदरी का नतीजा  ही तो है कि हरियाणा व राजस्थान के कुछ इलाकों में, दहेज मिलना तो सोच के परे है... बल्कि वहां दुल्हनें, खरीद कर लानी पड़ती हैं- जात- बिरादरी को ताक में रखकर! उसांस लेकर, वह अपनी विचार- तन्द्रा से बाहर निकलीं. ‘अरे बहू किस सोच में हो?  शाम वाली बैठक का इन्तजाम करना है या नहीं?’ देविना हड़बड़ाईं...ज्यों किसी ने पत्थर मारकर, शांत चित्त को, व्यग्र कर दिया हो! सासू अम्मा अभी अभी ससुर जी और जेठजी के साथ, घर में घुसी थीं. आते ही सवाल दागने लगीं. देविना पूरी तरह सचेत हो गईं. इस समय दोपहर के साढ़े तीन बजे थे. अभी जेठानी जी का आगमन होना था.

उनको अपने ‘सपूतों’ संग पधारना था. ये ‘तथाकथित’ सपूत रिक्की और विक्की, बला के आवारा और नालायक थे; परन्तु फिर भी जेठानी जी को उन पर गर्व था. वे दोनों दादा और दादी को सहारा देकर चलाते फिराते और उठाते बिठाते. इसी से उन्हें अक्सर, उनके साथ, कर दिया जाता. जेठानीजी को, बेटों की माँ होने का घमंड कुछ ऐसा कि गाहे - बगाहे... देविना पर, तानाकशी करना न भूलतीं- ‘दो दो बेटियां जनकर बैठी है...हे राम! कैसे पार लगेगी नैया’ तब देविना का मन कहता, ‘मेरी बेटियां तो मेधावी हैं...आप अपनी सोचो जिज्जी!’ जिज्जी की जबान, सरौते की धार जैसी थी; किन्तु जेठजी भी कम ना थे. परिवार के बड़े बेटे होने के कारण उन्होंने अमन की शिक्षा में, आर्थिक- योगदान दिया और कुछ अन्य जिम्मेदारियां भी निभाई थीं. इसी से देविना का अपमान करना, वे अपना अधिकार समझते.

उस बर्ताव का, एक मनोवैज्ञानिक कारण भी था.  देविना यदि नौकरी न छोड़तीं तो अध्यापिका से प्रधानाध्यापिका बन ही जातीं . देविना की शैक्षणिक योग्यता को देखते हुए, जेठ भगतराम का कद, बौना पड़ गया. उन्हें ठेस पहुंचाकर, भगतराम का चोटिल अहम तुष्ट होता.  स्वयम उनकी पत्नी मंदा, कम पढ़ी- लिखी थी. एक विदुषी स्त्री को नीचा दिखाकर, उनके भीतर का कमतर पुरुष,  हिंसक आनन्द का अनुभव करता. अमन पत्नी का अनादर देखकर भी मुंह सिये रहते. जाने यह भैया के पुराने उपकारों का बदला था या फिर रूढ़ियों का प्रभाव...! शाम की सभा, नीली के  दहेज़ को लेकर, आर्थिक समस्या पर ‘मनन’ हेतु, बुलाई गई थी.

देविना जानती थीं कि घूम- फिरकर बात, उनके मैके वालों पर केन्द्रित होगी, तदुपरांत वाक्वाणों की दिशा, स्वतः उनकी ओर मुड़ जायेगी... कुटुंब की इस बैठक में, बार- बार, उन्हीं का तिरस्कार होगा! सासूमाँ तो पहले ही इसकी चैंपियन रह चुकी हैं...और ससुर जी...!  यूँ तो वे चुप रहते हैं पर कभी कभी, किसी मंजे हुए खिलाड़ी की तरह, वार कर जाते हैं. ‘कितना अच्छा होता यदि नीली इस समय, यहाँ होती’ देविना का मन, व्याकुल होकर, कह उठा. लड़के वालों ने उसे, रिश्तेदारी में हुए, किसी समारोह में देखा था. लड़का देखने- सुनने में ‘ठीकठाक’ ही लगा. इसी से, नीली ने बात आगे बढ़ाने की, अनुमति दे दी. अपने विवाह को लेकर, अभिभावकों की विकलता, वह जानती थी. सहमति का यह भी एक कारण रहा होगा; किन्तु बातचीत, अपने अंतिम- चरण तक पहुँच चुकी थी- इसकी उसे, भनक तक न थी... लेन- देन के बारे में तो कतई नहीं! कॉलेज से मिले, शीतकालीन अवकाश के चलते, वह घर आयी थी. इस दौरान तीन बार, अनौपचारिक तौर पर, उसकी ‘देखाई’ हुई. औपचारिक ‘देखने-दिखाने’ से, उसे सख्त नफरत थी.

इस घृणा के पीछे, एक ठोस कारण था. वह था पिछले साल, श्रीमान और श्रीमती कौशिक का आगमन. वे  औपचारिक तौर पर ही, उनके यहाँ पधारे थे. वैवाहिक- विज्ञापन, किसी मैट्रीमोनिअल -साईट पर पढ़कर, उन्होंने कन्या को देखने का, विचार बनाया था. नीली की सुन्दरता पर रीझकर, श्रीमती कौशिक ने, अपने बेटे ऋत्विक के लिए, उसका फोटो और बायोडेटा माँगा था. उस सिलसिले का खयाल आते ही ...आज भी, दिल कसक उठता है! विवाह की बात, प्रारम्भिक स्तर पर, आगे बढ़ी. वे लोग उनके घर भी गये. तब ऋत्विक, लॉन- टेनिस खेलने, क्लब जा रहा था. उस सुदर्शन व्यक्तित्व ने उन्हें, बहुत प्रभावित किया था. नीली पहले ही उससे, किसी सहेली के यहाँ, मिली थी. वहां कोई पार्टी रही होगी... शायद. उसे जब  ऋत्विक का फोटो दिखाया गया, वह बावरी सी हो गई थी. ऐसे आकर्षक युवक संग, गाँठ जुड़ना, किसी सुंदर सपने जैसा था. मौका मिलने पर, चोरी-छिपे; उसकी फोटो को, डैड की दराज खोलकर... देख लिया करती; लेकिन...उसके अरमानों पर एक दिन, गाज गिर गई!

लड़के वालों को ‘स्तरीय’ विवाह चाहिए था. अमन शर्मा सेक्रेट्रियेट में कार्यरत थे. पैसे तो खूब कमाए...परन्तु संयुक्त परिवार के दायित्वों ने, उनकी झोली को, रिक्त भी किया. बैंक में पदाधिकारी ऋत्विक, उनके ‘बजट’ में ‘फिट’ ना हो पाया. निराशा की उस घड़ी में, नीली ने ही, देविना को सम्बल दिया, ‘एक बार, पढ़ाई पूरी, कर लेने दो माँ...फिर देखना- कैसे शीशे में उतारती हूँ- इन लड़केवालों को!’ उदासी को परे रख, बिटिया, जीवन- धारा से पुनः जा मिली. उसकी जीवटता ने ही, माँ को भी संभाला था.

लिविंग रूम की हलचलों से, देविना की अन्यमनस्कता, भंग हुई. उसी समय, घड़ी ने, चार का घंटा बजाया. उन्होंने फटाफट, जूस और पानी की बोतलें, वहां पहुंचा दीं; साथ ही बिजली से चलने वाली केतली, दूध पाउडर, चाय के प्याले, चीनी का मर्तबान...कई दूसरे तामझाम भी, फैला दिए गये. गम्भीर वार्तालाप के दौरान, यदि गला सूखने लगे तो उसे तर करने के लिए- कुछ तो चाहिए था... ‘बैटरी’ को ‘रिचार्ज’ करने का ईंधन भी! घरेलू संसद की कार्यवाई  शुरू हुई. अध्यक्ष पद पर, ससुरजी को आसीन होना था किन्तु चिलचिलाती दोपहर में, ए.सी. का सुख मिलते ही, उनकी देह पर आलस छा गया और वे अधसोए से, आरामकुर्सी पर ढह गये. वैसे भी उनको, दूसरों के कंधे पर रखकर, बंदूक चलाने की आदत थी;  किसी पर, प्रत्यक्ष निशाना साधने से वे बचते थे. ऊपर से निर्लिप्त बने रहते किन्तु अंदर ही अंदर, मक्कारियों का जाल बुनने की योग्यता, अवश्य रखते थे!

अध्यक्ष पद की बागडोर, सासूमाँ के हाथ में थी. वे पूरे दमखम से, बैठक के बीच वाले सोफे पर जम गईं. पान का बीड़ा मुंह में रख, इत्मीनान से चबाने लगीं. उनकी ठसक देखते ही बनती थी. मंदा और भगतराम की मुद्रा भी खासी आक्रामक थी. लड़कों को बाहर भेज दिया गया.  बड़ों के बीच, उन्हें बोलने की अनुमति नहीं थी. लिहाजा वे, ‘संसद’ के बाहर वाले बरामदे में; चौकीदार की तरह, सुशोभित हो गये. वहां मोटे टाट वाले परदे लगे थे और कूलर चल रहा था. इसी से उन्हें, कोई तकलीफ भी ना हुई. इधर, घरेलू बैठक के, हाल निराले थे. कटघरे में तो देविना को खड़ा होना था. परिवार में दोष, किसी सदस्य का हो, घुमा- फिराकर- उन पर ही मढ़ने का, लक्ष्य बना रहता!  यदि वे भी जेठानी की तरह, कर्कशा और मुंहफट होतीं तो उनसे उलझने की हिम्मत, कोई नहीं जुटा पाता!!

चिन्तन का क्रम, पुराने ढर्रे पर, चल रहा था. संभावित धन- श्रोत- जहाँ से पैसा मिल सकता था...लोन लेने के विकल्प और ...जैसा कि पूर्वनियोजित था- बातचीत की सुई, देविना के खानदान पर आकर, अटक गई! प्रेम से, सम्बन्धों की बखिया उधेड़ी गई. अंत में सबकी तिर्यक दृष्टि, देविना पर जा टिकी...मानों जवाबदेही भी, उनकी ही हो! बिन अपराध, दोषी ठहराए जाने की पीड़ा, असहनीय होती जा रही थी. सासूमाँ, ससुरजी, भगतराम, मंदा...अमन- सारे चेहरे, किसी कोतवाल की तरह, उन्हें लानत भेज रहे थे. इतने में कॉलबेल की तीखी आवाज ने, माहौल का मिजाज़, बदल दिया.

समय- असमय, कुटुंब की गुप्त- सभा में, विघ्न डालने, भला कौन आया होगा?? छुट्टी का दिन था. शाम के पौने पाँच बजे तो, धूप भी, अपने फैलाव को समेट नहीं पाती...लोग अलसाए से घरों में पड़े रहते हैं. ‘माँ ...डैड...! देखो कौन आया है!!’ नीली का स्वर, सबको जड़ कर गया. देविना को स्वयम, इस तरह, उसके ‘धावा बोलने’ की भनक न थी. सकपकाए हुए रिक्की और विकी, नीली के साथ ही भीतर प्रविष्ट हुए.

इससे भी बड़ा झटका, द्वार पर खड़े, आगन्तुक को देखकर लगा. ‘यह तो ऋत्विक कौशिक है...यह यहाँ कैसे?!’ फुसफुसाकर मंदा ने, अपने पति भगतराम को, कोहनी मारी. ‘गलत टैम पर आया है...अमन पहले ही, चिढ़ा बैठा है... उसका दिमाग भी गरम हो रखा है... कौशिक की तो खैर नहीं!’ भगतराम ने मच्छर की तरह भिनभिनाकर जवाब दिया. ‘क्या माजरा है...कोई हमें भी तो बताये’ अमन, भगतराम के बूढ़े पिता, उद्विग्न हो उठे. नीली का यूँ, प्रकट होना और चुपचाप...सबको अनदेखा कर, भीतरी कमरे में घुसना- उनसे हजम नहीं हो पाया.

‘सॉरी दादाजी! हमने ही... आज की मीटिंग के बारे में, नीली को बतलाया’ रिक्की ने कहा और विक्की ने तत्काल, सर झुकाकर, ‘अपराध’ को स्वीकार किया.

‘क्या?!’ दादी अपने क्रोध को दबा नहीं पाईं, ‘तुम्हें मालूम था कि नीली, दहेज के नाम से, भड़क जाती है! सब कुछ, उससे छुपकर...तय होना था...’

‘उसने तो बस, हालचाल लेने के लिए, फोन किया था. गलती से, मेरे ही...मुंह से निकल गया. माफ़ कर दो’ विक्की गिड़गिड़ा रहा था. ‘उसने पूरी बात पूछी तो मैं भी छिपा नहीं सका’ रिक्की लपेटे में आ गया. दोनों लड़के स्तब्ध थे - काटो तो खून नहीं. ‘जब देखो नाक कटवाते हैं, बेवकूफ!’ बात- बेबात, बेटों का पक्ष लेने वाली मंदा भी, भभक उठी थीं.

नीली और ऋत्विक, अपने संग देविना और अमन को भी खींच ले गये. अंदर, जाने कौन सी, खिचड़ी पक रही थी!  थोड़ी देर बाद, वे बाहर आये तो उनके चेहरे खिले हुए थे. नीली बोल पड़ी , ‘कोई कुछ नहीं पूछेगा...मैं सब बताती हूँ’. उसने एक गहरी नजर, हर तरफ दौड़ाई . लोग सन्नाटे में थे. उच्छ्वास लेकर, उसने बताया, ‘ मैंने माँ को कॉल करके बोला कि जल्द उन्हें एक सरप्राइज दूंगी...’ थोड़ी देर, रहस्यमय चूप्पी छाई रही. उत्सुकता के चलते, हवा में सुगबुगाहट पसर गई थी...मौन भंग करते हुए, नीली की आवाज गूंजी, ‘मुझे एम. ए. में सबसे ज्यादा मार्क्स मिले हैं...यह पहला सरप्राइज है’ उसकी इस घोषणा से, दादा, दादी प्रफुल्लित हुए; किन्तु मंदा ताईजी का चेहरा, लटक गया.  रिक्की, विक्की, बहन की कामयाबी के आगे, खुद को बौना महसूस कर रहे थे; जबकि भगतराम अभी असमंजस में थे. कदाचित उनको दूसरे ‘धमाके’ की प्रतीक्षा थी.

भैया की जिज्ञासा पढ़कर, अमन चुप न रह सके, ‘नीली सुबह से यहीं थी- इसी शहर में...अपनी सहेली के पास.  अपने रिजल्ट से, हमें चौंका देना चाहती थी...मिली के भी बी. बी. ए. सेकंड- इयर में, अच्छे अंक आये हैं. वह बेस्ट- आलराउंडर, चुनी गयी है. फिलहाल... अपने सीनियर्स की फेयरवेल पार्टी तक, वहीं रुक गई है’ बेटियों की उपलब्धियां, गिनाते हुए, अमन का मुख, गर्व से दमक उठा था.

‘एक सरप्राइज मेरी तरफ से...’ यह ऋत्विक था. सारी आँखें, तत्क्षण, उस पर गड़ गईं. वह अपने में डूबा, बोलता  जा रहा था, ‘मुझे जरा भी अंदेशा न था कि साल भर पहले देविना आंटी, मंदा ताईजी और अमन अंकल, मेरे घर आये थे. रिश्ते की चर्चा ने... मुझ तक पहुँचने के पहले ही, दम तोड़ दिया...बहुत लज्जित हूँ मैं- अपने माता- पिता के व्यवहार पर...क्षमा करें’ कहते कहते उसने हाथ जोड़ दिए. नीली सोच रही थी, ‘विधि का यह कैसा विधान है- ऋत्विक का किसी काम से दिल्ली आना...वहां अपने दोस्त से मिलना, दोस्त के साथ, उसके छोटे भाई उमंग के कॉलेज पंहुचना...वहां एनुअल- फंक्शन में, नीली का सम्मान होते देखना...और दूसरे ही पल- उसे दिल दे बैठना!’

‘कैसा चक्र रचा है ईश्वर ने’, देविना भी सोच में थीं, ‘दहेज़- लोलुपों से, हमारी जान छूटी...बिटिया को, उसका मनपसन्द वर, मिलने वाला है’

‘ऋत्विक... मेरी सफलता के पीछे, माँ का स्नेह और आशीर्वाद है...यह उन्हीं की प्रेरणा है...कि दहेज़ की मांग के आगे, मेरा सर नहीं झुका’ नीली अपने होने वाले दूल्हे को बता रही थी...उसके नेत्रों का कोप, घरवालों पर बरस पड़ा था- जो देविना के खिलाफ, बैठक कर रहे थे. नीली ने पाया कि वे सब, शर्मिंदगी से, लाल पड़ गये! दूसरे दौर की प्रताड़ना से, उसकी माँ, अब उबर चुकी थीं !!

विनीता शुक्ला

विनीता शुक्ला

आभार अनीता जी।

27 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

सुन्दर

27 दिसम्बर 2021

विनीता शुक्ला

विनीता शुक्ला

धन्यवाद ज्योति जी.

20 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

👍

20 दिसम्बर 2021

16
रचनाएँ
जीवन के रंग
5.0
जीवन के खट्टे- मीठे अनुभवों की कहानियां .
1

एक्स

10 दिसम्बर 2021
10
4
4

<p>केतकी आज फिर पीछे पड़ गयी थी, ‘ चल यार, आज कोई मूवी देखने चलते हैं’ ‘लेकिन प्रोजेक्ट रिपोर्ट लिखनी

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असहमति

10 दिसम्बर 2021
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<p>‘चल फटाफट...अभी शॉपिंग बाकी है ...तेरे लिए नये सैंडल और लिपस्टिक लेनी है’ ‘सैंडल तो ठीक है...पर ल

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मास्क

10 दिसम्बर 2021
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1
4

<p>नमिता अजब उलझन में थी. कोरोना काल में हवाई- यात्रा, अविवेकपूर्ण थी; पर उसके पास, दूसरा विकल्प भी

4

अन्ततः

10 दिसम्बर 2021
3
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<p>समीरा का जी बस में नहीं था; ममा का फोन आया था. इधर- उधर की बात करने के बाद, कहने लगीं, ‘सिमो...शा

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धोबी की गधैया

10 दिसम्बर 2021
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1
4

<p>पूरा परिवार, गाँव के रिहायशी मकान में, छुट्टियाँ मनाने आया था. अगले ही दिन, कुनबे की इकलौती बेटी

6

सपनों की सरगम

10 दिसम्बर 2021
5
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4

<p>नव्या कॉलेज- लाइब्रेरी से निकलकर, उस शानदार रेस्तरां तक आ पहुंची थी. वहाँ मंद- मंद संगीत की स्वरल

7

चिन्ना वीदू

10 दिसम्बर 2021
2
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4

<p>जबसे नमित अपने ननिहाल से आया है, लगातार रोये जा रहा है. वह रह रहकर, अपनी माँ मीनाक्षी को, कोस रहा

8

झूठी शान

10 दिसम्बर 2021
2
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4

<p>तनु दुविधा में थीं. माइक ऑटोवाले ने, उनके पति सुकेश को फोन करके, अच्छी- खासी रकम उधार माँगी

9

साक्षात्कार

10 दिसम्बर 2021
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4

<p>साक्षात्कार का दूसरा दौर चल रहा था. फैशन की दुनियाँ में तहलका मचा देने वाली, अंतर्राष्ट्रीय कम्पन

10

रागों की वापसी

10 दिसम्बर 2021
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<p>लॉकडाउन के दौर में, वह चिरपरिचित चेहरा, मानों कहीं खो सा गया है...उस मधुर कंठ से निःसृत, अन

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दूसरे दौर की प्रताड़ना

10 दिसम्बर 2021
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<p>अमन शर्मा झल्ला रहे थे. उनकी भूरी वाली टी. शर्ट पर, इस्तरी नहीं फेरी गई. देविना रोज रोज की नाराजग

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संक्रमण

10 दिसम्बर 2021
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<p>‘आंटी...कल फेसबुक पर, तन्वी की फोटो देखी. शी वाज़ लुकिंग गॉर्जियस! उसके साथ क्यूट सा एक लड़का था...

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रिश्तों का बहीखाता

10 दिसम्बर 2021
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<p>“गोदी होरिलवा तब सोहैं, जब गंगा पै मूड़न होय गंगा पै मूड़न तब सोहैं, जब गाँव कै नउवा होय” बुलौवे वा

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एक ढका छुपा सच

10 दिसम्बर 2021
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<p>सोमेश चौधरी के हाथ काँप रहे थे. वकील की नोटिस, थामकर रखना, मुश्किल हो गया. सरकारी आदेश था. रितेश

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दूसरी भग्गो

10 दिसम्बर 2021
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4

<p>सुमेर मिसिर हिचकते हुए, उस दहलीज़ तक आ पहुंचे थे, जहाँ कभी आने की, सोच भी नहीं सकते थे. क्या करते?

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एक कतरा आसमान

10 दिसम्बर 2021
4
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<p>आज का ये ‘सो काल्ड ख़ास दिन’...महक को वहशत सी हो रही है, सोचकर. अंतस की परतों में जमा लावा, कुछ इस

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