केतकी आज फिर पीछे पड़ गयी थी, ‘ चल यार, आज कोई मूवी देखने चलते हैं’ ‘लेकिन प्रोजेक्ट रिपोर्ट लिखनी है; उसका क्या?’ ‘बाद में लिख लेना’ ‘पर...!’ नीलू का मरियल सा प्रतिरोध, कुछ काम न आया. हारकर वह, सिनेमा के लिए, मान गयी. केतकी उर्फ़ कैटू परेशान थी... दुःख से, बाहर आने की, कोशिश कर रही थी और एक अच्छी सहेली की तरह, उसका साथ देना, नीलू का दायित्व बन गया. कैटू का अपने बॉय- फ्रेंड गुन्नू से, ब्रेकअप हुआ था. गुन्नू और कैटू, बचपन के दोस्त थे- एक- दूजे को अच्छे से, जानते रहे होंगे. दोनों साल भर से ‘डेट’ कर रहे थे; उसके बावजूद भी...!
गुन्नू से अलग होने के बाद, कैटू, नीलू के साथ; वर्किंग लेडीज़ हॉस्टल में रहने लगी थी. उन दो युवतियों की, जल्द ही दोस्ती हो गयी. केतकी अवसाद से गुजर रही थी. अपनी रूममेट से, वह मन की बातें, साझा करने लगी. नीलिमा, जिसका प्यार का नाम नीलू था- कैटू की बातें, ध्यानपूर्वक सुनती और उसे तसल्ली देती. केतकी का अनुभव, विचलित कर देने वाला था. बचपन से लेकर युवावस्था तक, उसने सिर्फ और सिर्फ गुन्नू को चाहा था... कई बार संकेतों में, उससे अपना प्यार, जता भी चुकी थी. वह सब देखता- सुनता और समझता; इसी से, एक दिन, गंभीरता से बोला, ‘केतकी...मैं जानता हूँ, तुम्हारे दिल की बात’
‘तो मान क्यों नहीं लेते?!’ ‘कैटू...तुम्हें तो पता है- अपनी मम्मी, पापा की डिस्टर्व्ड- मैरिज का गवाह रहा हूँ. शादी- विवाह को लेकर, मेरी राय कुछ अच्छी नहीं’ ‘एक मौका दो गुन्नू. तुम्हारी राय, बदलकर दिखाऊँगी.’ केतकी अड़ी रही परन्तु गुन्नू टस से मस न हुआ. आखिरकार मनुहार करने पर, वह मान गया; लेकिन उसने बहुत अजीब सी शर्त रखी, ‘तुम्हें मेरे साथ पत्नी की तरह रहना होगा. अगर मुझे तुम्हारा साथ भा गया...तो हमेशा के लिए तुम्हारा हो जाऊँगा; तुम्हारी मांग में सिन्दूर भर दूंगा...पर अगर...’ आगे कैटू ने उसे बोलने ही ना दिया. झट उसके मुंह पर हाथ रख दिया.
केतकी को अपने प्रेम पर विश्वास था. कहते हैं, प्रेम अंधा होता है. उसका विश्वास भी अंधा साबित हुआ! साल भर में ही, गुन्नू अपनी प्रेमिका से ऊब गया; लिहाजा, पीछा छुडाने की गरज से बोला, ‘कैटू...तुम्हारे साथ...अब और नहीं रह सकता’ ‘पर क्यों?!’ केतकी पर तो मानों, गाज गिर गई. ‘ब्याह के पहले जो लडकियाँ, अपना सब कुछ दे देती हैं... भरोसे के लायक नहीं होतीं’ ‘पर तुम्हीं ने कहा था - वह सब कुछ करने को...’ केतकी का चेहरा तमतमा गया. ‘मैंने कहा अवश्य...पर तुम्हें कुछ तो विरोध करना चाहिए था...परम्पराओं की दुहाई दे सकती थीं’
गुन्नू बोलता गया लेकिन कैटू, और नहीं सुन सकी. उसने कानों पर हाथ रख लिए थे. वर्तमान में केतकी, मूवी के लिए, कपड़े बदल रही थी पर अतीत की विषैली यादें, उसे डंस रही थीं. सहेली को पुनः उदास होता देख, नीलिमा ने समझाबुझाया और आग्रहपूर्वक बाहर ले गयी. फिल्म- थिएटर में आकर, केतकी का जी तो बहल गया पर नीलू का मन भारी हो चला. वह सोचने लगी कि उसके मंगेतर गगन और केतकी के लिव- इन- पार्टनर में जमीन- आसमान का फर्क था! गगन कहते थे, ‘यह आजकल जो लिव- इन का चक्कर चला है- बहुत घटिया है...’
‘हाँ गगन...मुझे भी यह बहुत बेकार लगता है...इससे औरतों का ही नुकसान होता है. सामाजिक प्रताड़ना, अवांछित गर्भ, लोकनिंदा...सब उनके ही पल्ले पड़ता है’ ‘तुम कितनी समझदार हो...मुझे गर्व है तुम पर’ होने वाले पति से तारीफ सुनकर, नीलू फूली नहीं समाई. गगन ने बात बढ़ाई थी, ‘और एक हमारे नलिन भैया, ऐसी औरत ब्याह लाये हैं जो किसी दूसरे को ‘डेट’ कर चुकी थी’ ‘पर नलिन भैया भी तो किसी और लड़की के साथ...’ ‘छोड़ो भी...ऐसे प्रसंगों में, हम अपना सर क्यों खपायें?!’ बात बदलने में गगन माहिर थे. नीलिमा उनके वाक्चातुर्य पर मुग्ध थी. उसकी आँखों के आगे, बड़े परदे पर, कई दृश्य आ- जा रहे थे. पर वह उन्हें देखकर भी नहीं देख रही थी...सुनकर भी नहीं सुन रही थी...गगन के बारे में सोचने से, उसे फुरसत कहाँ थी?!
इस बीच मध्यांतर हो गया. केतकी टॉयलेट जाने को उठी. नीलिमा के जी में आया कि जब कैटू अच्छे मूड में होगी, उसे अपनी मंगनी के बारे में बता देगी. हालाँकि केतकी ने भी उससे बहुत कुछ छुपा रखा था. उसने नहीं बताया कि गुन्नू कहाँ रहता था, क्या करता था...यहाँ तक कि उसका ऑफिशियल नाम तक नहीं बताया! खैर...जिस राह जाना नहीं, उसका पता क्या पूछना?! नीलिमा के विचार बाधित हुए, जब कोई चिरपरिचित स्वर कानों में पड़ा. उसने पलटकर देखा. पीछे वाली सीट से, गगन उतरकर नीचे जा रहे थे. खुशी से उसकी चीख ही निकल पड़ी! गगन ने भी उसको देख लिया. ‘नीलू तुम!’ वह हर्षमिश्रित आश्चर्य से बोल पड़े.
‘हाँ एक सहेली के साथ आयी थी’ नीलिमा ने बताया. ‘चलो, मेरे साथवाली सीट पर चलो. मेरे संग मेरा कलीग रंजन है...उसे तुम्हारी सीट पर भेज दूंगा’ ‘फिर कभी गगन’ नीलू ने संकोच से कहा, ‘मेरी सहेली बुरा मान जायेगी’ गगन फिर भी अपनी बात मनवाना चाहते थे कि इतने में केतकी वापस आते दिखी. उसे देखते ही, उनकी सिट्टी- पिट्टी गुम हो गयी और वे बिना कुछ कहे, सीढ़ियाँ उतरते चले गये. नीलिमा हतप्रभ थी. ‘किससे बात कर रही थीं?’ कैटू ने पास आकर, बैठते हुए पूछा तो नीलू बोली, ‘मेरी बुआ का परिचित है’
बात सही थी. बुआ ने ही नीलिमा की शादी तय करवाई थी; लेकिन मंगनी की चर्चा, वह सार्वजनिक स्थान पर, केतकी से करना नहीं चाहती थी- सो छिपा गयी.
‘तुम्हें पता है- वह मेरा एक्स है’ केतकी ने बेपरवाही से कहा और रंगीन परदे पर आँख गड़ा दीं. मूवी शुरू हो चुकी थी, इस कारण वह; अपनी सहेली के चेहरे पर, उड़ती हुई हवाइयां, नहीं देख पाई!!