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झूठी शान

10 दिसम्बर 2021

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तनु दुविधा में थीं. माइक ऑटोवाले ने, उनके पति सुकेश को फोन करके, अच्छी- खासी रकम  उधार माँगी थी. माइक यूँ तो एक साधारण ऑटोवाला था लेकिन कॉलोनी में, वह हर किसी के सम्मान का पात्र रहा. छोटे बच्चों को, समीप वाले स्कूल, वह अपने ऑटो में पहुंचाता; और वहां से ले भी आता. इसके लिए, उसे कई पारियों में, आना- जाना होता; किन्तु इससे, फुर्ती में कमी ना आती. उसकी मुस्तैद निगाह के चलते, कोई बच्चा, कभी छूटता नहीं था, जिम्मेदार इतना कि बच्चों के सामान का, बराबर खयाल रखता; वह सुनिश्चित कर लेता कि किसी का टिफिन, पानी की बोतल या फिर स्कूल बैग छूट तो नहीं रहा. जब कभी कामकाजी माएं, समय की कमी के कारण, बच्चे की फीस भरने का अनुरोध करतीं, वह सहर्ष स्वीकार कर लेता.

बड़े बच्चों को कोचिंग- क्लास, हॉबी या ट्यूशन- क्लास तक छोड़ आना भी उसका काम था. सयानी हो रही बच्चियों की मम्मियां, उन्हें बेखटके माइक के संग भेज देतीं. उसकी नीयत पर उनको पूरा भरोसा था. इधर तनु भी अपनी किटी पार्टी के आयोजनों में, सखियों के साथ, बाहर घूमने व लंच आदि के लिए जातीं तो उनकी मंडली को ले जाना, माइक के ही जिम्मे रहता. उनका बेटा जब छोटा था तो स्कूल- इंटरवल में, उसके लिए, गरमागरम खाने का टिफ़िन भी माइक ले जाता था. कॉलोनी के दूसरे कई बच्चों का लंच- बॉक्स भी, वह ले जाया करता. तनु के लिए, माइक के हाथों टिफ़िन भिजवाना या घूमने जाना, सस्ता पड़ता; क्योंकि माइक का पारिश्रमिक, मिलकर दिया जाता.

इसी कारण तनु, समूह की शक्ति पर भरोसा करती थीं. किटी की सहेलियों में किसी का जन्मदिन हो या फिर विवाह की वर्षगांठ, सबसे पैसे लेकर, कोई अच्छा सा उपहार दे दिया जाता. इस प्रकार औपचारिकता का निर्वाह तो होता, धन की बचत भी हो जाती. अलग से कुछ भी देना, मंहगा जो पड़ता था. असल में, तनु की ससुराल में, महाजनी का धंधा चलता था; इसी से सोच, रोकड़े पर ही केन्द्रित रहती. उनके बेटे वैभव ने फुटबॉल भी, दोस्तों के सहयोग से, खरीदी थी...जब थोड़े खर्चे में काम चल जाए, कोई अपनी जेब क्यों कटवाए?? मिलेजुले पैसों से ही, सुकेश ने, अपनी और मित्रों के व्यायाम की व्यवस्था, साइकिल लेकर की थी. यह बात और थी कि बाप- बेटा दोनों, समूह की संपत्ति को, धीरे- धीरे अपना समझने लगे.

नेतागिरी, इस कुटुंब की, रग- रग में थीं. तनु किटी- क्लब की कर्ताधर्ता.. सुकेश कुमार उर्फ एस. के. कॉलोनी में, पुरुष- वर्ग के नेता और वैभव कुमार... संग खेलने वालों का मुखिया. ‘चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए’ वाली रणनीति पर अमल करना, ये कभी न भूलते. कहीं से कोई गिफ्ट आइटम, सस्ते में या थोक में मिलता तो झट उसे खरीद लेते- भविष्य में उपयोग के लिए! वैभव बड़ा होकर, विदेश पढ़ने गया तो वहां अपनी टांग तोड़ बैठा. माँ- बाप को उससे, इतनी भी सहानुभूति नहीं थी कि ऐसी हालत में, उसे अपने पास बुला लेते... फ्लाइट का टिकट, उनके बजट पर, बहुत भारी था!

निसंदेह, माइक के आर्थिक सहायता के अनुरोध ने, उन्हें सोच में डाल दिया. लॉकडाउन में माइक का कामकाज, लगभग ठप हो चुका था. वह भला उधार, कैसे चुकता कर पाता?! माइक गोम्स को यह अच्छे से पता था कि अतिरिक्त आमदनी के लिए एस. के. सर, ऊंचे ब्याज पर ऋण देते थे. यदा कदा स्थानीय सब्जी वाला, उनसे सुबह- सवेरे पैसे लेता और शाम तक चुका भी देता. सुकेश खूब समझते कि सब्जी वाले की सब्जियां, हाथोंहाथ बिक जातीं थीं. वह ब्याज सहित, उनका धन लौटाने की पात्रता रखता था...लेकिन माइक...!

उसे ‘ना’ कहना भी बुरा लग रहा था. आखिर वह अपनी माँ के, क्रिया- कर्म के लिए ही तो रूपये  मांग रहा था. आकस्मिक आवश्यकता नहीं होती तो वह कदाचित, ऐसी याचना नहीं करता. किसको नहीं पता कि वह एक स्वाभिमानी व्यक्ति था. ऐसे में, तनु ने माइक को फोन करके बोला कि फिलहाल सुकेश, उसकी मदद नहीं कर सकेंगे क्योंकि उन्होंने उधारखाता बंद कर दिया है; किन्तु वह कहीं और से, कुछ जुगाड़ करने की कोशिश करेगी. माइक, अपनी माँ का शव, बगल वाले गिरिजाघर तक, ले जाने वाला था. वहां कुछ पूजा- प्रवचन होना था. बाद में, दफन के लिए, मृत शरीर को, कब्रगाह ले जाया जाना था.

तनु के मन में, एक विचार कौंधा- ‘क्यों न यहाँ पर भी, सामूहिक योगदान का सहारा लिया जाए.’ कॉलोनी में, सुकेश के ऑफिस के लोग रहते थे. इसी से, सामूहिक भागीदारी का प्रश्न, बार- बार उठता. किसी राष्ट्रीय या प्राकृतिक आपदा के समय, जरूरतमंदों की सहायता का लक्ष्य हो या फिर पदोन्नति पाने वाले, कर्मचारियों की, संयुक्त पार्टी का सवाल; कॉलोनीवासी सहकर्मियों द्वारा, मिलकर व्यय किया जाता था; लेकिन सुकेश और तनु, साफ- साफ़ कन्नी काट जाते थे. इस रवैये से, बॉस और श्रीमती बॉस रुष्ट रहते; क्योंकि उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा, काफी- कुछ, ऐसे आयोजनों पर निर्भर थी...यहाँ उन्हें ‘चौधरी’ बनने का मौका जो मिलता था! माइक को आर्थिक- सहारा देकर, तनु, श्रीमती बॉस उर्फ़ सौम्या शर्मा की, अपने बारे में, धारणा को बदलना चाहती थी.

किटी- ग्रुप के व्हाट्सएप पर उसने, सदस्याओं से, माइक के लिए, मदद की पेशकश की. माइक को सभी पसंद करते थे; इस कारण, ५००/- रूपये, प्रति सदस्या देने की सहमति, आराम से बन गयी. ६० महिलाओं के मिलाकर ३०,००० हो जाने थे. तनु ने आनन फानन में, यह राशि जमा की और सौम्या जी की खासमखास, प्रतिमा वर्मा को साथ लेकर, माइक के घर की तरफ चल दीं. प्रतिमा को, अपनी ‘दरियादिली’ का, गवाह बनाना था! दोनों स्रियाँ, माइक के दरवाजे पहुँचीं तो वह चर्च के लिए, निकलने ही वाला था. तनु ने, किसी मंजी हुई अभिनेत्री की तरह, अपनी सहानुभूति जताई और बड़ी अदा से, रुपयों का लिफाफा, बढ़ाते हुए बोलीं, ‘माइक यह तुम्हारे लिए...हमारे महिला- क्लब की तरफ से’

देखते ही देखते, माइक के, हाव- भाव बदल गये...दृष्टि आग्नेय सी हो गयी! अपने भीतर, ढेर सा आक्रोश, समेटते हुए भी, वह फट पड़ा, ‘तनु जी मैंने उधार माँगा था, खैरात नहीं...फिलहाल पड़ोसियों से कर्ज मिल गया है...गाँव की फसल से, पैसे मिलने ही वाले हैं. जल्द ही हिसाब बराबर कर दूंगा.’ तनु की विचलित अवस्था को, अनदेखा कर उसने आगे कहा, ‘मैडमजी...मैंने हमेशा, अपनी मेहनत पर भरोसा किया है,,,किसी की दया का, मोहताज नहीं रहा...चंदा करके, अपनी माँ का अंतिम- संस्कार करूं...इतना गया- गुजरा भी नहीं!’ तनु के चेहरे पर, मानों, किसी ने, स्याही मल दी हो...प्रतिमा जी भी उन्हें, आँखों ही आँखों में, घुड़क रही थीं. उनकी झूठी शान, भरभराकर ढह गई थी!!

विनीता शुक्ला

विनीता शुक्ला

आभार अनीता जी।

27 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

बढ़िया

27 दिसम्बर 2021

विनीता शुक्ला

विनीता शुक्ला

आभार ज्योति जी.

20 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

👌

20 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
जीवन के रंग
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जीवन के खट्टे- मीठे अनुभवों की कहानियां .
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