पूरा परिवार, गाँव के रिहायशी मकान में, छुट्टियाँ मनाने आया था. अगले ही दिन, कुनबे की इकलौती बेटी रजनी ने, अपनी दादी चमेली देवी को, सूचित किया, ‘धोबन काकी आयी हैं, आपने बुलाया था ना?’ ‘हां बिटिया...इधरै भेज दिहौ’ दादी ने उत्साहित होकर, रजनी से कहा. अगले ही क्षण, धोबन प्रकट हुई. उसकी झलक पाते ही, चमेली देवी के मुख से निकला, ‘रधिया...! तुई त बहुतै झुरा गई हउ...कउनो तकलीफ रही?’ ‘ई त जिनगी क खेला हय मलकिन’ कहते कहते रधिया ने उनके पैर छुए और जमीन पर आलथी- पालथी मारकर बैठ गयी. ‘मलकिन, हमका काहे बुलवाइन? कोऊ ख़ास बात रही?’ उसने बैठते ही प्रश्न किया.
‘ख़ास बात का होई ? मुला ई दैयां हम, होली मनाकर जइबे. २०- २५ दिन हियाँ रुकैं का है. घर भरै कै कपड़ा, इस्तरी करैं क परी...एहिलिये तोहका संदेसा भिजवाइन. तोहरा जौन पइसा बनब, दै देब’ इतने में, रजनी की माँ, सावित्री का प्रवेश हुआ. ‘परनाम बहूजी’ रधिया ने बैठे- बैठे हाथ जोड़ दिए. ‘कैसी हो रधिया?’ ‘आप लोगन क किरपा हय बहूजी’ ‘तुम्हारा मरद कैसा है? अभी भी दारू पीकर, हाथ उठाता है?’ सावित्री पूरी ‘रामायण, महाभारत’ जाने बिना, छोड़ने नहीं वाली थी.
इस पर रधिया सकुचा गयी. धीरे से बोली, ‘ हमरे लगे नवी बहुरिया हइ...एही कारन उतपात नाहीं करित...कभु दारू पियत त बहरै बइठ रहित हय, भीतर नाहीं अउतै’ ‘तब तो कोई समस्या नहीं’ सावित्री ने निष्कर्ष निकाला. ‘समस्या काहे नाहीं...उइ नसे मां, अंटसंट बड़बड़ात रहे... तौ पड़ोसी रिसिया गयेन...’ ‘उससे तुम्हें क्या? तुम्हारे आदमी से... वे खुद ही निपट लेंगे’ ‘ओसे कोऊ ना निपटी...सब हमहिन क गरियइहैं...’ ‘ऐसा क्या??’ सावित्री ने मानों, आग में पेट्रोल, छिड़क दिया!
‘हमरे नैहर वालन क, एहिका ब्योहार, नीक नाहिं लागत...बिटवा, बहुरिया भी परेसान रहित हैं...फिरौं कोउ एहिते, कछू न बोली... सब सिकायत, हमहिं क सुनैं क परी’ रधिया की बात खतम होते होते, रजनी के दोनों भाई आ गये. बड़का कह उठा, ‘राम राम धोबन काकी! कैसी हो?’ ‘ठीक हन बिटवा’ रधिया ने, बुझे स्वर में, उत्तर दिया. ‘बाहर जो फटफटिया खड़ी है...तुम्हारी है? इस बार छोटका बोला. ‘हौ...’ धोबन का जी, बात करने का नहीं था...उसका बेटा, जो उसे, फटफटिया पर बिठाकर लाया था; बाहर खड़ा था. वह कपड़ों के इन्तजार में थी. ‘पहले तो गधा साथ आता था?’ छोटके ने चुटकी ली. ‘गधा नहीं पगले! गधी...’ बड़के ने परिहास करते हुए कहा.
‘हाउ इंटरेस्टिंग! मैंने आज ही, वह कहावत पढ़ी...’ ‘कौन सी?’ ‘अरे वही- जो धोबी पर बस न चला तो गधैया के कान उमेठे’ छोटके ने, चहककर बताया था. ‘हमहूँ गधैया हन बिटवा’ अनायास ही, रधिया की आर्त प्रतिक्रिया ने, सबको चौंका दिया.