नव्या कॉलेज- लाइब्रेरी से निकलकर, उस शानदार रेस्तरां तक आ पहुंची थी. वहाँ मंद- मंद संगीत की स्वरलहरी, हवाओं में तैर रही थी; मोमबत्ती- कवर से छनकर, रौशनी के जादुई कोलाज, हर मेज पर छितरे हुए थे; ट्रे लेकर बैरे, यहाँ से वहां, आ– जा रहे थे...हँसते- बोलते लोग और प्रेमी- जोड़ों की फुसफुसाहटें... कुल मिलाकर, एक रोमानी माहौल. नव्या अपनी आरक्षित टेबल पर, जाकर बैठ गयी. यह अनोखी शाम, उसके मन में गुदगुदी पैदा कर रही थी. हर बार रचित, उसका इन्तजार करता था. इस बार, वह पहले चली आयी. वे किसी पार्क या बीच जैसी खुली जगहों पर मिलते रहे थे...पर आज! इस सजीले होटल के, एकांत केबिन में, वह रचित के साथ अकेली होगी, सोचकर मन की गुदगुदी और बढ़ गयी!
उन दोनों को लेकर, उसकी सहेलियाँ कौतुक से भर जाती हैं. एक संगीत का प्राध्यापक और दूसरी एम. ए. मनोविज्ञान की विद्यार्थी...एक- दूजे से बिलकुल उलट... १८० डिग्री जैसा अंतर! भला आपस में कैसे जुड़े होंगे?? “मैडम आपको कुछ चाहिए?” वेटर के प्रश्न ने, नव्या की विचार- तन्द्रा भंग कर दी थी. “अभी नहीं...थोड़ी देर बाद”. उसकी प्रतिक्रिया जानकर, वह सर झुकाकर, वहां से चला गया. नव्या बैग में हाथ डालकर, अपना मोबाइल खंगालने लगी ताकि रचित को कॉल कर सके. इससे पहले कि वह फोन ढूंढ पाती, रचित केबिन में मौजूद था. “सॉरी फॉर द डिले...ट्रैफिक जाम में फंस गया था” उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. नव्या उसी पल समझ गयी कि यह मुलाकात, रोमांटिक- डेट नहीं हो सकती. यहाँ दूसरा ही माजरा था!
“कुछ आर्डर किया?” वह शायद, किसी गंभीर चर्चा की भूमिका बना रहा था. “नहीं...तुम परेशान दिख रहे हो. क्या हुआ?” बात आगे बढ़ाने में, नव्या ने सहायता की तो उसका संकोच जाता रहा, “डैड ने जिद पकड़ ली है...” “कौन सी जिद?” “क्या बताऊँ डिअर! पहले हमारी- तुम्हारी दोस्ती को, शादी में बदल देने का इरादा था...लेकिन अब...” “लेकिन अब?!” नव्या को झटका सा लगा. “ अब खुद का अफेयर लेकर बैठ गये हैं!” रचित ने शब्दों को, मानों चबा- चबाकर प्रस्तुत किया. “मतलब?!” “मतलब...! मेरे पिता श्रीयुत अभिनव वर्मा...नामी वकील, प्लस गणमान्य नागरिक... प्लस सो एंड सो.. अपना बरसों पुराना प्रेम- प्रसंग खोद रहे हैं”. भावावेश चरम पर था. “साफ़- साफ़ कहो...क्या कहना चाहते हो” “कोशिश तो कर रहा हूँ”. ना चाहते हुए भी, एक झल्लाहट सी, रचित के लहजे में उतर आयी.
“कूल डाउन...रिलैक्स!” नव्या ने पानी का गिलास, उसकी तरफ बढ़ाया. वह गटागट पानी डकार गया. इतने में वेटर फिर चला आया. बैरे को टालने के लिए, उन दोनों ने, काफी के साथ, दो- तीन स्नैक्स मंगवा लिए. “नवू...” प्रेयसी को, प्यार के नाम से पुकारते हुए, रचित शून्य में ताक रहा था. “कहो रिशू...” नव्या का संबोधन भी, प्यार का संबोधन ही था. साहस करके, वह बोल पड़ा, “ममा से विवाह के पहले, वे किसी और लड़की से... प्रेम करते थे!” “तो...” इस बार, नवू के बोलों में भी हिचक समा गयी थी और थोड़ा कम्पन भी!! “ममा के देहांत के बाद, वे घुमा- फिराकर, यह भेद बतला देना चाहते थे. गोलमोल बातों और संकेतों का सहारा लेकर, उम्मीद रखते थे कि मैं उनका आशय समझ लूँगा...” “आगे कहो रिशू” रचित को सांत्वना देता हुआ, आर्द स्वर उभरा.
“जब डैड को लगा कि संकेतों से काम नहीं बनेगा... उन्हें बात खोलकर, कहनी पड़ी” नव्या की आँखों में, जिज्ञासा झलक उठी. रचित ने उस जिज्ञासा को पढ़ा और उसका समाधान भी किया, “डैड की बालसखी मौली, एक लोककलाकार थीं. छोटी उम्र में ही मौली ने, लोकगीतों की धुनें बनाईं और बोल भी लिखे. उनकी प्रतिभा, अपनी आयु से कहीं बढ़कर थी. समय के चक्र ने, अभिनव वर्मा, यानि मेरे डैड को, अपनी प्यारी सहेली से, दूर ला फेंका...वे उसे अभी तक, भूल नहीं पाए हैं” “परन्तु इसमें समस्या किस बात की?” नवू ने पूछा. “समस्या!!..समस्या ही समस्या है डिअर...उनके पास मौली के गीतों की, कुछ पुरानी रिकॉर्डिग्स हैं. वे चाहते हैं कि मैं उन गीतों को, एक नये कलेवर के साथ, लांच करूं...नये कलाकार, नई आवाज़; लेकिन धुनें वही!”
“व्हाट अ नाइस आईडिया!” “व्हाट इज नाइस इन दिस??” उत्तेजना में, रिशू के होश उड़ गये थे, “बुढ़ापे में, पहले प्यार का ढिंढोरा पीटेंगे?! देखो नवू...हमारे परिवार की एक पब्लिक- इमेज है...समाज में हमारी कुछ इज्जत है...” कहते- कहते वह रुक गया, क्योंकि वेटर उनकी तरफ ही आ रहा था. जब वह सलीके से, खाने- पीने का सामान सजाकर चला गया; रचित ने धीमे से कहा, “प्लीज कैरी ऑन...काफी इज पाइपिंग हॉट एंड स्मेलिंग गुड”. नव्या को ना तो कॉफ़ी सुहा रही थी और ना ही एपेटाइजर्स; लेकिन रचित का मिज़ाज देखकर, विरोध करने की हिम्मत नहीं हुई. कुछ पलों तक वे बेमन से, कुकीज़ टूंगते हुए, गर्मागर्म पेय का घूँट भरते रहे; फिर नवू ने ही मौन तोड़ा, “बुरा मत मानना रचित...तुम इसे अपने अहम से जोड़ रहे हो...तुम्हारे डैड को व्यक्तिगत- स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए...आई मीन, ही शुड हैव हिज पर्सनल- स्पेस”
रिशू ने नवू की बात को सुना, पर इस बार, उसके तेवर आक्रामक नहीं हुए. उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा, “नव्या! यह बात मन को खटक रही है कि उन्होंने ऐसा ही कोई प्रयास, मेरी ममा के लिए क्यों नहीं किया...और पता है, म्यूजिक- एल्बम का नाम भी कितना विलक्षण रखा है- सपनों की सरगम! यू नो...आई लिट्रेली फील जेलस!!” “ऐसा मत बोलो रिशू...तुम्हारी स्वर्गीय माँ की अभिरुचि, संगीत में नहीं थी. तो फिर... उनके नाम से, वे एल्बम कैसे बनाते?! ठन्डे दिमाग से सोचो और अपनी सोच बड़ी रखो. लोग तो अपने विधुर पिता का विवाह तक करवाते हैं...और तुम! डोंट बी सो मीन रचित!!” नवू ने एक मनोवैज्ञानिक की तरह, अपने दोस्त को समझाया तो वह समझ गया.
रचित ने डैड की योजना को, हरी झंडी दिखा दी. काम जोर- शोर से चलने लगा. नव्या के मन में एक संशय जरूर था. इस म्यूजिक- वीडियो में, कैप्शन दिया जाना था- ‘प्रिय सहचरी मौली की स्मृतियों को समर्पित”. ये सामाजिक- मर्यादा का, अतिक्रमण जैसा लगा. यदि मौली विवाहित हुईं तो यह उपशीर्षक, उनके परिवार को खटक सकता था. अंततः संशय का निदान हो गया. अभिनव वर्मा ने यह स्पष्ट कर दिया कि मौली नाम, उनके दिमाग की उपज है. इसे या तो वह जानते थे या फिर उनकी प्रिया. अब कोई बाधा नहीं थी. रिशू पहले भी, ऐसे वीडियोज बना चुका था जो काफी लोकप्रिय हुए थे. संगीत की दुनियां में उसकी, कई पेशेवर लोगों से जान- पहचान थी.
अब वीडियोग्राफर और म्यूजिक– बैंड वालों से सम्पर्क साधना, पहली आवश्यकता थी. इस काम के लिए निकल ही रहा था कि मोबाइल स्क्रीन पर, नव्या का नाम फ्लैश होने लगा. उसने फोन उठाया और नवू से आग्रह किया कि वह आज, उससे मिल नहीं सकेगा. “लेकिन रिशू...कॉलेज में पूजा- हॉलीडेज चल रहे हैं. मेरे साथ फ्लैट में, जो गीतू और मीनू दीदी रहती हैं, वे भी अपने लोकल- गार्जियंस के यहाँ गयी हैं...मैं अकेली बहुत बोर हो रही हूँ”. नव्या बच्चों की तरह मचलने लगी. “आई एम सो सॉरी...प्रोफेशनल्स के साथ, मीटिंग फिक्स हो चुकी है...अब पीछे नहीं हट सकता” “यू कैरी ऑन विद योर वर्क...पर एक बात है...मुझे भी साथ ले चलो ना प्लीज! मैं भी देखना चाहती हूँ कि एल्बम कैसे बनता है. वादा करती हूँ, तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करूंगी”
थोड़ी बहुत नानुकुर के बाद, रचित मान ही गया. नव्या का साथ, उसे भी तो पसंद था. पहले मिलना था वीडियोग्राफर हिरेन चौधरी से. गयी रात चौधरी जी ने ज्यादा चढ़ा ली थी; लिहाजा नींबू- पानी पीने के बाद, शावर ले रहे थे. कोशिश थी कि हैंगओवर से उबर पायें और ‘प्रेजेंटेबल’ हालत में, रचित के सामने पेश हों. दरवाजा उनकी श्रीमती, नीतू चौधरी ने खोला. पति के अव्यवसायिक- रवैये ने, उन्हें शर्मिंदा कर दिया था. जैसे ही हिरेन लिविंग- रूम में आये, श्रीमतीजी उन पर बरस पडीं, “तुम्हारी बीवी बेसुरी भाभी जैसी होती तो आटे- दाल का भाव पता चलता! आजकल सीधी बीवी को, पूछता कौन है?! बेसुरी भाभी तो ऐसे में...” नीतू के तेवर देखकर, मेहमानों का ख़ासा मनोरंजन हुआ. नवू ने धीमे से पूछा, “ये बेसुरी भाभी कौन हैं?” इस पर रिशू ने, उसे शांत रहने का इशारा किया.
तभी ऑर्केस्ट्रा- मैनेजर घनश्याम जी का फोन आया. हिरेन के कारण, रचित को उनसे मिलने में, विलम्ब हो रहा था. वे लोग जब, उनके दरवाजे पहुंचे; तो भीतर से, पति- पत्नी के झगड़ने की आवाजें आ रही थीं. मैडम जी कह रही थीं, “तुमने बोला था, मुझे शॉपिंग कराओगे. अब क्या हुआ?” “मैं क्या करूं, जो रचित को आने में देर हो रही है! अब तक तो बातचीत निपट चुकी होती” “तुम कोई न कोई बहाना बनाकर, मेरी हर बात टाल देते हो... तुम्हारे संग तो, मेरा जीवन ही बर्बाद हो गया,! शादी भी तुमने इसलिए की, क्योंकि तुम्हारी माँ कैंसर की मरीज थीं और मुफ्त की नौकरानी, तुम्हें चाहिए थी... सेवाटहल के लिए” “बात को कहाँ से कहाँ ले जाती हो!” “बात तो आप घुमाते हैं...मैं कहाँ कुछ कर पाती हूँ मिस्टर! और बताएं, क्या हाल-चाल हैं- आपकी नयी फुलझड़ी के!!” “तुम भी भागवान! कभी तो कुढ़ना बंद करो...वे सब मेरी कुलीग्स हैं और कुछ नहीं”
“क्यों नहीं जनाब! दुनियाँ इनके मुंह पर थूक रही है...पर जरा मासूमियत तो देखो!! क्या बचा है ज़िन्दगी में...बच्चे भी दूर हो गये हैं... थोड़ा बड़े क्या हुए, उन्हें सैनिक- स्कूल भेज दिया...!” “बच्चों की आड़ लेकर, आरोप मत लगाओ. जो कुछ किया...उनकी भलाई के लिए किया...और देखो- नीरा के बारे में तमीज से बात किया करो, वह हमारे बैंड की बेहतरीन कलाकार है!” “तो क्या मैं उससे कुछ कम हूँ? उसका मुझसे क्या मुकाबला...पर तुम्हें मेरी कदर कहाँ!” “बहुत सुन चुका तुम्हारी यशोगाथा! तुम्हारा काम घर संभालना है, वही करो...मेरी बॉस बनाने की कोशिश मत करो”
“हाँ हाँ...औरत को नोन, तेल, लकड़ी में उलझा दो और खुद ऐश करते रहो!!” जब यह प्रकरण चल रहा था, रिशू ने नवू से कहा, “नवू... तुम बेसुरी भाभी के बारे में पूछ रही थीं; जो चिल्ला रही हैं ना, वही बेसुरी भाभी हैं! पड़ोसी, दूधवाले, सब्जीवाले- किसी का भी सुर बिगाड़ सकती हैं...इसी से” “ओह...इंटरेस्टिंग!” “और घनश्याम राय जी! पत्नी से, इस कदर घबराए रहते हैं कि घर में पैर नहीं टिकता...पर हाँ! भाभी को चिढ़ाने के लिए, बैंड की किसी न किसी गायिका को, उनसे मिलवाते रहते हैं”
“वाह क्या सीन है! नव्या मुस्करा दी. भीतर से आवाजें आनी बंद हो गयीं तो रचित ने कॉलबेल बजाई. औपचारिक चर्चा के बाद, उन्होंने राय दम्पति से विदा ली. रास्ते में रचित ने नव्या से कहा, “मेरी वजह से, तुम्हारा आज का दिन, बहुत हैक्टिक हो गया नवू.” “नहीं रिशू...ऐसा नहीं है. मुझे लोगों से मिलना- जुलना अच्छा लगता है.” “हाँ, हाँ क्यों नहीं! तुम्हारे मनोविज्ञान में, जो केस- हिस्ट्री होती है; वह शायद ऐसे ही लोगों से, इंटरेक्शन का नतीजा होती है.” “तुम्हारा अनुमान सही है रिशू.” “एंड बाई द वे – बेसुरी भाभी का असली नाम सुरीली है- कैन यू बिलीव?!” “बाबू मोशाय...दुनियां में, हर नाम के पीछे, कोई ना कोई कहानी होती है” नवू ने दार्शनिक जैसा चेहरा बनाकर कहा और दोनों हंस पड़े.
अभिनव, नव्या को अपने प्रोजेक्ट में रूचि लेते देख, बहुत खुश हुए. एक दिन उन्होंने, उसे अपने पास बुलाया. उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा तुम इस इवेंट के लिए, बहुत मेहनत कर रही हो. आई एम रियली इम्प्रेस्ड” अपनी प्रशंसा से, नवू कुछ संकुचित सी हो गयी थी. “ हमारी टीम एक परिवार की तरह है. घनश्याम राय, टीम के सदस्यों के लिए, घनश्याम भाई हैं और हिरेन चौधरी, हिरेन दा. यहाँ तक कि कम उम्र के सदस्य भी, सबकी देखादेखी, उन्हें ऐसे ही बुलाते हैं”
“हां...और उनकी पत्नियों को भाभी” नव्या ने चर्चा का, दूसरा सूत्र थाम लिया. “अच्छा... उनके बारे में तो मुझे पता नहीं; पर तुम कैसे जानती हो?” अभिनव ने उत्सुकता जताई. “रचित के साथ, उनके घर गयी थी. वहीं मिली थी” “देखता हूँ, रिशू को तुम्हारा साथ, बहुत रास आ गया है...क्यों ना तुमको हमेशा के लिए, अपने घर बुला लूँ!” इस बात पर, नवू के गाल लाल हो गये और मुखड़ा नीचे को झुक गया. “मेरी कोई बेटी नहीं है. लेकिन तुम्हें देखकर लगता है कि तुम्हारे रूप में, मुझे अपनी बेटी मिल गयी है” अभिनव अंकल से यह सुनकर, नव्या ने उनकी तरफ देखा. वे गंभीर थे.
उन्होंने कहा, “आज तुमको वो राज बताऊंगा, जो मेरे सिवा कोई नहीं जानता...” नवू को ध्यान से सुनता पाकर, वे फिर बोलने लगे, “वह सबसे अलग थी...अद्भुत संभावनाओं से भरपूर! उसका नाम नहीं बताऊँगा... प्यार जैसी पवित्र भावना का मान रखने के लिए, गोपनीयता जरूरी होती है.” “जी अंकल” नव्या ने हामी भरी. अभिनव ने आगे कहा, “७ साल की होते ही, वह मेरे पिताजी से, गायन का प्रशिक्षण लेने लगी. १५ की आयु तक, वह कई जाने- माने मंचों से, गायकी का लोहा मनवा चुकी थी. उसे बाल- कलाकार के रूप में सम्मान भी मिला था...पिताजी ने उसके कई गानों को रिकॉर्ड किया; वे गीत आज तक, खजाने के तौर पर, मेरे पास महफूज़ हैं ” वे पल भर को रुके और गहरी सांस भरी. नव्या की दृष्टि, उन पर ही गड़ी थी. उसे संबोधित करते हुए, एक विचित्र भाव, उनके मुख पर था, “बेटा...सब दिन, एक से नहीं होते. सब कुछ, अच्छा चलता रहता है...फिर एक दिन...कोई अनहोनी, जिन्दगी का रुख ही बदल देती है!”
कथा उफान पर थी, “उसके माता –पिता, एक दुर्घटना में चल बसे. वह इस सदमे से उबरी भी न थी कि बड़े भाई ने, एक कर्कशा युवती से शादी रचा ली. भाभी के मन में, उसको लेकर जलन, सदा से रही. लोकगीतों की थाती, उसे अपनी दिवंगत माँ और दादी से मिली थी; किन्तु भाभी के अत्याचारों ने, उसकी जिजीविषा को तोड़कर रख दिया...अब वह गाती नहीं थी, सिर्फ और सिर्फ आंसू बहाती थी. भाई की पत्नी, उस पर हाथ तक उठा लेती...घर के कामों में, कोल्हू के बैल सदृश, जोते रहती और भाई साहब...! बहन के बचाव में, एक शब्द तक, उनके मुखकमल से नहीं फूटता!! एक दिन...वह हमारे घर आयी. उसकी पूरी देह नीली पड़ी हुई थी. शरीर पर पिटाई और खरोंचों के निशान थे. बैंक में उसके नाम पर, जो फिक्स्ड- डिपाजिट, माँ- बाप ने कर रखा था था, उसे भाई- भाभी हड़प लेना चाहते थे. उस दिन वह १८ की हुई थी; बालिग़ होने के साथ ही, उसे पैसा मिलने वाला था.
मन को झकझोर देने वाली गाथा में, नवू पूरी तरह डूब चुकी थी; संगीत की तरह, उसकी अपनी ही लय थी, “तब मैं वकालत की पढ़ाई कर रहा था. मेरी माँ ने तय किया कि वे मौली संग, मेरा लगन करा देंगी ताकि वह उस नरक से निकल सके... उनको हमारे आपसी लगाव की जानकारी थी” घटनाक्रम, चरम- बिंदु तक पहुँचने ही वाला था. नव्या की उत्सुकता भी चरम पर थी. अभिनव जी ने कहानी का सिलसिला, फिर शुरू किया, “स्थानीय नारी- संगठन से हमने, मौली के लिए सहायता मांगी; शिकायत- पत्र पर, पड़ोसियों के हस्ताक्षर भी लिए. मौली के भाई- भाभी के खिलाफ, साक्ष्य के तौर पर, उसे प्रस्तुत किया जाना था...लेकिन!” “लेकिन?!” “उन दुष्टों को, जाने कहाँ से, इस बात की भनक लग गयी... और वे रातोंरात... मौली को लेकर, चम्पत हो गये!! उनका फ्लैट किराए का था. बहुत खंगालने पर भी, वहां से कोई सुराग न मिला.”
नव्या स्तब्ध थी. एक प्रेमी की पीड़ा, उसकी प्रतिबद्धता से अभिभूत भी! अंकल की भावना, अब जाकर, ठीक से समझ पाई थी. उनके संकल्प के साथ, अब उसकी श्रद्धा भी जुड़ गयी. नवू और रिशू, वह संकल्प पूरा करने को, जीजान से जुट गये थे. आखिर वह दिन आ ही गया, जिसका उन्हें शिद्दत से इंतज़ार था. एक भव्य प्रेक्षागृह को, कार्यक्रम के लिए चुना गया. ध्वनि तथा प्रकाश आदि के नवीनतम उपकरण लगावाये. आयोजन को, विशेष रंग देने के लिए; संगीतज्ञ, पत्रकार और कला- पारखी बुलाये गये. ऑर्केस्ट्रा के कलाकारों ने, समां बांध दिया; जब एल्बम के गीतों का, सजीव मंचन किया. प्रोजेक्टर से वीडियो की, महत्वपूर्ण झलकियाँ दिखाई गयीं. जो गीत, नृत्य के लिए उपयुक्त थे, वे नृत्य- प्रदर्शन के लिए, पार्श्व से बज रहे थे. लोकार्पण का, एक फेसबुक- इवेंट भी बनाया गया. कुल मिलाकर, बेहद सफल समारोह रहा. वीडियो- रिलीज़ होते ही, नव्या और रचित ने, आपस में हाथ मिलाया.
रिशू झट से बोला, “पता है डिअर, नीतू भाभी की रिक्वेस्ट पर, मैंने उन्हें और बेसुरी भाभी को, प्रोग्राम के पास दे दिए” “सो...?” “गेस व्हाट? अब जाकर, आ पाई हैं.” “ओह नो...इतनी लेट!” “हाँ...रास्ते में जुलूस मिल गया था ना...इसलिये. बट दिस ओनली, इज द परफेक्ट टाइमिंग! प्रोग्राम से अभी- अभी फुर्सत मिली है... तभी तो हिरेन दा, बार के आसपास मंडरा रहे हैं और घनश्याम भाई, अपनी नयी ‘फुलझड़ी’...आई मीन- न्यूली एपॉइंटेड सिंगर के साथ!... एंड यू नो द आफ्टर इफ़ेक्ट- जब दोनों भाभियाँ इन्हें देखेंगी!!” “रचित यू आर अ डेविल!” इस पर रिशू ने खुलकर ठहाका लगाया. उसे हँसता हुआ पाकर, अभिनव वहां खिंचे चले आये. नव्या, रचित और अभिनव को साथ खड़ा देख; घनश्याम की दोस्त नीरा ने, उन्हें उसी तरफ खींचा और बेसुरी भाभी...पति के साथ, पराई नार को देखते ही, बेकाबू हो उठीं और उनकी ‘क्लास लेने’ पहुँच गयीं. .
इतने में अभिनव की निगाह, बेसुरी से टकराई और ना चाहते हुए भी, उनके मुख से निकल पड़ा, “मौली!” घनश्याम ठगे से खड़े रहे...मुंह पर मानों, कोई अदृश्य स्याही पुती हो! उनकी नयी सहेली का, कोई अता- पता ना था....पत्रकार अभिनव की खोज में थे पर उन्हें ढूंढ नहीं पाए... रिशू और नवू, सन्न लग रहे थे और बेसुरी भाभी! अपने बिगड़े हुए सुरों के साथ, चित्रलिखित सी खड़ी थीं. वे फटी- फटी आँखों से, उस बैनर को घूर रही थीं, जिस पर लिखा था- “सपनों की सरगम” !!!