‘चल फटाफट...अभी शॉपिंग बाकी है ...तेरे लिए नये सैंडल और लिपस्टिक लेनी है’ ‘सैंडल तो ठीक है...पर लिपस्टिक क्यों? बेजान चेहरे पर, जितना भी मुलम्मा चढ़ाओ, बेजान ही रहता है’ दूर्वा ने असहज होते हुए कहा. ‘ऐसी बातें न कर...असगुन होता है’ कहते कहते नीमा आंटी की दृष्टि, एस्केलेटर से नीचे आ रही, एक युवती पर पड़ी. कान पर हाथ रखते हुए वे बड़बड़ाईं, ‘असगुन का नाम लिया नहीं और वह दिखाई भी देने लगा!’ नीमा आंटी ने झट, दूर्वा का हाथ पकड़कर, उसे कोने में कर लिया; ताकि बच्ची को थामकर, सहेली संग; स्वचालित- सीढ़ी से उतरती हुई, युवती मंजुला, उन्हें देख ना पाए.
मंजुला से आँख बचाकर, वे बुत बनी खड़ी थीं किन्तु उसके पास से गुजरते ही दूर्वा, बेतरह चौंक पड़ी. इस बात से बेखबर, नीमा फुसफुसाईं, ‘अच्छा हुआ, उसकी नजर हम पर नहीं पड़ी...यही तो है समर की पहली पत्नी...मनहूस कहीं की!’ दूर्वा का मन, एक ही पल में, ना जाने किन- किन बवंडरों से गुजर गया!! नीमा आंटी दूसरी ही धुन में थीं नहीं तो उसके मनोभावों को अवश्य पढ़ लेतीं. इतने में मंजुला के साथ चल रही, सुन्दरी ने मुड़कर देखा. नीमा दूर्वा से, वहीं प्रतीक्षा करने को कहकर, वाशरूम जा रही थीं. उन्हें जाता देख, सुन्दरी किसी अदृश्य चुम्बकीय शक्ति से, खिंचती चली आयी.
वह ठीक दूर्वा के सामने जाकर, ठिठक गई. उसकी आँखों में उभर आये, प्रश्न से उद्वेलित होकर, बोल उठी, ‘मैं सुन्दरी...आप समर की वुड बी हैं?’ दूर्वा को संकुचित पाकर, वह शीघ्रता से कहने लगी, ‘आपको सावधान करना, अपना कर्तव्य समझती हूँ...मेरी सहेली मंजुला, उससे शादी करके फंस गयी! सहेली में कोई कमी नहीं...कमी तो समर में है. वह उसे सन्तान नहीं दे सकता. वह बेचारी अनाथालय से, एक बच्ची ले आयी तो कोहराम मच गया...पति और बुआ सास, बच्ची की जान लेने पर उतारू हैं.’ जल्दी- जल्दी बोलने से उखड़ रही सांस, काबू करने को, वह तनिक रुकी; फिर रहस्यमय ढंग से बोल उठी, ‘ नीमा चौधरी ही उसकी बुआ सास हैं’
‘क्या?!’ आतंक से दूर्वा, काँप उठी. ‘हाँ बहना! वह अपने पोते को, मंजुला की गोद में, डालना चाहती थीं...समर की जायदाद पर, नज़र है उनकी!’ दूर से सुन्दरी को, किसी महिला संग बतियाते पाकर, उसकी सहेली ने इशारे से बुलाया. राज की बात उगलकर, सुन्दरी वहां से चलती बनी. थोड़ी देर में नीमा जी भी आ पहुँचीं. उन्हें जरा भी भनक नहीं लगी कि उनकी पोल खुल चुकी थी! दूर्वा मन में जानती थी कि अगर यह राज, उसे पता न चलता तो भी वह समर की बदनीयती से अनजान नहीं रह गई थी. जिस पल उसने जाना, मंजुला दी समर की पत्नी हैं... वह आप ही, बहुत कुछ समझ गई!!
मंजुला दी की यादें, उसे बरसों पीछे, ले गईं. वह एक अभिशप्त दिन था जब गुंडों ने उसे घेर लिया था. ऐसे में दी, किसी देवदूती की तरह आ गईं- उसकी अस्मिता को बचाने! कराटे के दांव लगाते हुए, वे मानों चंडी बन गईं...और राक्षसों को चित्त कर डाला. वह मनहूस घड़ी...कॉलेज से घर जाने में देर हुई तो दूर्वा ने मजबूरन, शार्टकट लिया था- सूनी सी एक राह जो उसे जल्द मंजिल तक ले जाती. वह गलत निर्णय, उसे कहाँ से कहाँ पहुंचा सकता था... सही समय पर दी नहीं आतीं तो...! विचार मात्र से ही दूर्वा का सर्वांग काँप उठा. ऐसी देवी समान स्त्री के लिए, समर ऊलजलूल बकते रहे. उन्हें स्वार्थी, पागल, घटिया औरत जैसे विशेषणों से नवाजते रहे.
और वह...! वह भी तो उनके कहे में आ गई! समर ने विवाह का प्रस्ताव दिया तो वह झूम उठी थी. यह पहली बार हुआ, जब उसका रंगरूप, अड़चन नहीं बना; हर बार...गहरा रंग और साधारण नाक-नक्श, उसके ब्याह की सम्भावना, रद्द कर देते. दूर्वा को लगा था- उसके गुणों का गाहक, उसकी कदर करने वाला, समर से बेहतर...कोई हो ही नहीं सकता! आपसी रजामंदी से उनका, पहली पत्नी से तलाक भी होना था. सहमति- पत्र पर, पति- पत्नी के हस्ताक्षर भी हो चुके. मात्र कानूनी कार्यवाही की देर थी. ऐसे में किस बात का खटका?!
दूर्वा के शुभचिंतकों और उसकी विधवा माँ ने उसे कितना समझाया. यह कि पूरी ज़िंदगी का सवाल है. होने वाले वर की जांच- पड़ताल कर लेनी चाहिए. किन्तु प्रेम अंधा होता है...अंधा ही क्यों, गूंगा और बहरा भी होता है- उसको स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता नहीं होती... न ही किसी से कुछ सुनने की जरूरत!! कितनी प्रतीक्षा के बाद तो बसंत ने, दूर्वा के द्वार पर दस्तक दी; वह और प्रतीक्षा नहीं चाहती थी...मन में उत्पात मचा था... उसे बसंत का आलिंगन करना था...शीघ्रातिशीघ्र!
यथार्थ की कठोर भूमि से टकरा कर, उसके वह सपने, अब बिखर चुके थे. मंजुला दी ने बेटी की रक्षा के लिए, सात फेरों को नकार दिया. दूर्वा को भी कुछ कर गुजरना था! उसने जी कड़ा किया और आगे की रूपरेखा, तय कर ली. दो दिन बाद उसकी सगाई थी. नीमा आंटी ने पार्लर में मेकअप के लिए, अपॉइंटमेंट लिया था. नियत समय और स्थान पर, उसे पहुंचना था. सगाई के अवसर पर, मुंह को लीपना- पोतना, सामाजिक आवश्यकता जो थी!
परन्तु जब वह नहीं आई; नीमा ने उसका मोबाइल नम्बर, उसके वर्किंग लेडीज़- हॉस्टल का नम्बर, उसके दफ्तर का कांटेक्ट नम्बर- सभी सम्पर्क- सूत्र खंगाल लिए. आखिर में पता चला कि दूर्वा, गोपनीय रूप से, कार्यालय में, अपना त्यागपत्र रखकर, चली गई. उसने शहर ही छोड़ दिया था!!