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संक्रमण

10 दिसम्बर 2021

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‘आंटी...कल फेसबुक पर, तन्वी की फोटो देखी. शी वाज़ लुकिंग गॉर्जियस! उसके साथ क्यूट सा एक लड़का था...क्या नाम था...हाँ कार्तिक! कार्तिक हैण्डसम तो नहीं; पर बहुत क्यूट दिखता है. उसके छल्लेदार बाल तो झक्कास लग रहे थे! सुंदर जोड़ी है; बधाई आप लोगों को’

‘किस बात की बधाई? कहना क्या चाहती हो? कार्तिक बस उसका डांस- पार्टनर था...यू नो, फॉर डांस- प्रॉम’

‘लेकिन आंटी...लोग तो कमेंट में, कार्तिक के लिए,  प्रॉम- डेट शब्द का इस्तेमाल कर रहे थे...उससे तो ऐसा लगा, मानों डेट पर जा रहे हों’

‘यह उस तरह की डेट नहीं है जैसा तुम समझ रही हो...यह महज एक रस्म है; जिसमें बारहवीं कक्षा के छात्र, स्कूल से विदा लेने के पहले.... डांस- पार्टी करते हैं ... हमारे स्कूलों में भी तो... फेयरवेल- पार्टी होती थी ना?’ ना चाहते हुए भी, मैथिली जी के शब्दों में, कम्पन समा गया और वे अटक अटक कर, बोल पा रही थीं. ‘सॉरी आंटी. मुझे लगा कि आप लोगों ने, तन्वी की शादी फिक्स कर दी है...१८ की होने वाली है ना?’ मैथिली जी ने खीजकर फोन रख दिया. दिमाग का दही हो गया था.

मैथिली जी ने अनमने भाव से, मोबाइल पर, के. एस. चित्रा का गाना लगा दिया. संगीत की मीठी छुअन ने उनके मस्तिष्क की नसों को, तनिक ढीला किया ही था कि फोन फिर बज उठा. मधुर स्वर लहरी, स्मार्टफोन की तीखी रिंगटोन से दब गयी थी. पहले सोचा कि कॉल को डिसकनेक्ट कर दें...फिर लगा कि इस वाली को भी ‘निपटा’ ही दें. दूसरे छोर पर उनकी सहेली मणिका थी. छूटते ही बोल पड़ी, ‘यह क्या मिट्ठू...अपनी तन्वी के लिए, कैसा लड़का  चुना है...एकदम छिपकली जैसा दिखता है!  हाइट भी तन्वी से कम है...हाई हील के जूते पहनकर भी उसके बराबर नहीं पहुंचता!’

मणिका को भी जैसे- तैसे टाला. अब मैथिली जी सर पकड़कर बैठ गईं. उनकी नातिन तन्वी की, छवि मलिन  होती जा रही थी. यह सब तन्वी के पिता और उनके दामाद नवीन की गलती थी. आधुनिकता के नशे में, यह कैसा फोटो- एल्बम... अपलोड कर दिया?? दामाद तो छोड़ो; उनकी बेटी वंशिका ने भी तो ...उन बेहूदा पिक्स को, शेयर किया था!  वेलेंटाइन डे पर भी कुछ वैसा ही नजारा देखने को मिलता है . प्रेमी फूल और चॉकलेट देकर, प्रेमिका को डेट पर ले जाने के लिए, प्रपोज करता है. दोनों बाँहों में बाहें डालकर, पोज़ देते हैं...लड़का, लड़की के लिए, कार का दरवाजा खोलता है और फिर...! दोनों कार में बैठ जाते हैं!!

मैथिली जी और उनके पति अशोकन जी देख नहीं सके कि नवीन ने तन्वी और उस ‘छिपकली मार्का’ कार्तिक की, रूमानी मुद्रा में, तस्वीरें उतारी थीं! डांस पर जाने से पहले, तन्वी ने, उन संग भी कुछ फोटुएं खिंचवाई थीं. कार्तिक और उसकी बहन नीता भी... उनके कमरे तक आये थे. वे तब सोकर उठे थे. बच्चों के आने का प्रयोजन, समझ न आया. कैमरे ने नीता और कार्तिक के, मरगिल्ले थोबड़ों को भी, साथ ही  कैद किया! अधिकतर तस्वीरों में, कार्तिक और तन्वी, सटकर बैठे थे. यह बात, मैथिली और अशोकन को खटक गई. पारिवारिक फोटो-सेशन में, ‘बाहर वालों’ का अतिक्रमण, रुचिकर न था. उनके चेहरे, इस बात की गवाही दे रहे थे. कुल मिलाकर यह सिलसिला, किसी फॅमिली- फंक्शन का भ्रम देता था.

उनकी नवासी को डांस के लिए, कोई गाउन पहनना था. वंशिका ने तन्वी के लिए, इंडियन गाउन यानी  घाघरा- चोली का चयन किया. कार्तिक सूट- बूट में था. इसी से फेसबुक पर लोग, टिप्पणी कर रहे थे- ‘इंग्लिश बाबू, देसी मेम! पारिवारिक उत्सव जैसा लगने वाला, चित्रों का यह क्रम; भारत में रहने वाले परिचितों और रिश्तेदारों को भ्रान्ति में डाल रहा था. वे सब इसे सगाई का ‘मॉडर्न वर्शन’ समझ रहे थे- यू . एस. के नागरिक वंशिका और नवीन की लाडली तन्वी की सगाई! यहाँ तक कि यू. एस. में रहने वाले, इंडियन कम्युनिटी के, कुछ बुजुर्ग लोग भी, ऐसा ही समझ रहे थे क्योंकि वे अमेरिका की जीवन- शैली को, आत्मसात नहीं कर पाए.

अशोकन ने इस बात को लेकर वंशिका का घेराव किया तो वह बुरा सा मुंह बनाकर बोली, ‘अप्पा! डोंट साउंड लाइक ओल्ड स्कूल! यह तो रिवाज है. बच्चे अपना डांस- पार्टनर ढूंढते है...जोड़े में नाचते हैं. वहां नाच के लिए, दूसरे जोड़े भी होंगे. कार्तिक हमारे फैमिली- फ्रेंड का बेटा है...उसके साथ तन्वी सुरक्षित रहेगी. आप इसे इतना सीरियसली क्यों ले रहे हैं...वी शुड मेन्टेन आवर स्पिरिट ऑफ़ फन! थियेटर में भी तो नाटक खेले जाते हैं- ऐसा ही कुछ समझ लें. दिस इज जस्ट अ पार्ट ऑफ़ लाइफ’ अशोकन जी मौन हो गये. चाहकर भी प्रतिकार नहीं कर सके.  इकलौती संतान के हठ के आगे, वे सदैव, अवश हो जाते थे!

कैसे मान लें कि हर घटना, ‘पार्ट ऑफ़ लाइफ’ मात्र है! उनके जीवन में बहुत कुछ ऐसा घटा है जो अपरिहार्य ही नहीं, अप्रिय भी रहा; यथा- मैथिली की सहेली, गौरी के घर पर, वंशिका और नवीन का मिलना...प्रायः वहीं पर ‘टकराना’ और फिर मेलजोल. उस मेलजोल की परिणिति, क्या हुई, कहने की आवश्यकता नहीं! एक कुलीन आयंगर ब्राह्मण की पुत्री, निम्न कुल के लड़के से बंध गयी; वह लड़का- जो शक्ल- सूरत से मामूली और मांसाहार का आदी था! गोवन विरासत, नवीन को जन्म से मिली थी. कभी कभी ‘फेनी’ (गोवा की प्रसिद्द शराब) भी चढ़ा लेता. पंडितों के यहाँ तो मांस- मदिरा को हाथ लगाना भी वर्जित है, खाना तो दूर की बात!

वे हर बार बेटी के प्रेम में, अमेरिका आ तो जाते है; किन्तु यहाँ की व्यस्त जीवनचर्या, उन्हें नापसंद है. किसी को किसी के लिए समय नहीं. हर व्यक्ति, अपनी व्यक्तिगत- परिधि में सिमटा हुआ. बच्चों को अभिभावकों के शयनकक्ष में जाने की अनुमति नहीं. वे अपने कमरे में, लैपटॉप से जूझते रहते हैं या फिर लॉन में जाकर, कुत्ते के साथ खेलते हैं. वृद्ध नाना- नानी के लिए, अलग से समय निकाल पाना, उनके लिए सम्भव नहीं. इससे तो अपने देश की, संयुक्त परिवार वाली, अवधारणा ही भली!  संतोष इस बात का है कि सप्ताहांत में यहाँ, भारतीय समुदाय के लोग; मनबहलाव के लिए कुछ न कुछ अवश्य करते हैं.

किन्तु उनके क्रियाकलापों में भी पाश्चात्य रंग- ढंग झलकते रहते. यह तो फिर भी यू. एस. है... भूमंडलीकरण और सिनेमा के सौजन्य से, पश्चिमी सभ्यता, भारतीयता के लिए खतरा बनती जा रही है. अपनी आस्था पर होने वाले, अनवरत सांस्कृतिक हमले, अशोकन जी को त्रस्त कर देते हैं. रविवार वाली पिकनिक की ही लो. डिस्को- संगीत पर सखियों संग, तन्वी ठुमके लगा रही थी कि बीच में कार्तिक घुसकर नाचने लगा. मैथिली जी को भी यह बहुत, नागवार गुजरा. माना कि वह तन्वी का बालसखा और सहपाठी है परन्तु अब वह बच्चा नहीं रहा. उसे अपनी बचकानी हरकतों से बाज आना चाहिए.

पति- पत्नी ने संकल्प लिया था कि इस वर्ष स्वदेश में ही रहेंगे. यू . एस. की रंगीनियाँ, उन्हें रास नहीं आतीं. लेकिन क्या करते? करोना- काल में अशोकन जी को पक्षाघात का आंशिक दौरा पड़ा. महामारी के डर से, कोई मित्र, कोई आत्मीय...कोई परिजन...झाँकने तक ना आया. ऐसे में बिटिया का ही आसरा था- उनकी अकेली औलाद वंशिका! इसके लिए, कैसे - कैसे पापड़ बेलने पड़े. जैसे - तैसे टीकाकरण और फ्लाइट- टिकट की व्यवस्था की...करोना की लहर के चलते, दोनों ही कार्य दुष्कर थे. पक्षाघात से पूरी तरह उबर भी ना पाए और अशोकन जी को बेटी के पास, पिट्सबर्ग  पहुँचने का जुगाड़ बैठाना पड़ा. करोना की छूत से डरकर भागे थे किन्तु यहाँ तो दूसरी ही छूत लगी हुई है... दूषित आचार- विचार की छूत...इससे तो अच्छा था, अपने देश में ही मर खप जाते!

कार्तिक और तन्वी को लेकर, कुछ भी, दबी जबान से कहो तो वंशिका भभक उठती है, ‘अम्मा...अप्पा...! आप लोगों के विचार, दकियानूसी हैं...जो बच्चों को आगे बढ़ने से रोकते हैं...उन्हें कुंठित कर देते हैं’ अशोकन जी ने इस बात को, पचाने की कोशिश की- परिस्थितियों को यथास्थिति स्वीकार कर लेने में ही, मानसिक शान्ति है. वह तो किसी भांति, खुद को समझा लें पर धर्मपत्नी... येन केन  प्रकारेण, विवाद खड़ा कर देती है. जबसे मैथिली ने अपनी चचेरी बहन नित्या से, वीडियो चैट किया; उसका मन बहुत अस्थिर है. नित्या कह रही थी, ‘ आजकल व्हाट्स एप वीडियोज और फेसबुक पिक्स में, तन्वी के अगल- बगल, वह लड़का कार्तिक... नजर आता है. सुना है, उसकी जड़ें भी गोआ में हैं. लगता है नवीन की बिरादरी का है’

मैथिली रटा रटाया सा जवाब दे देती है, ‘नहीं री...ऐसी वैसी कोई बात नहीं. नवीन कह रहा था, दोनों बचपन से साथ रहे हैं. अब उनको, अलग- अलग कॉलेजों में जाना पड़ेगा...इसी से, एक- दूसरे के संग... ज्यादा समय बिता रहे हैं.’ कहने को तो उन्होंने कह दिया परन्तु मन आशंकित रहता. वे तो शुरू से, पति पर दबाव बनाती रहीं कि तन्वी की शादी, बालपन में ही तय कर दी जाए- जैसा उनके जमाने में होता था. पुराने लोग जबान के पक्के होते थे. अशोकन अपने कुल में, किसी सुपात्र को ढूंढकर, यदि ऐसा कर सके होते तो आज यह दिन... देखना न पड़ता... लेकिन क्या किया जाय?! भाग्य में जो लिखा है- होकर ही रहता है. यों भी अशोकन जानते थे कि ‘वर्णसंकर’ होने के कारण, कोई प्रतिष्ठित ब्राह्मण- परिवार, शायद ही तन्वी को अपनाएगा!

किन्तु फिर भी नवासी को संस्कारित करने के प्रयास जारी रहते. नवासे अंकुर पर तो उनका बस नहीं चलता...क्योंकि वह महज, १४ बरस का, नासमझ बच्चा है ! जो भी हो... अशोकन, अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटते. उनकी धरती के पर्व, वेशभूषा, परम्पराएं- इन सबसे, बच्चों को जोड़ने का प्रयत्न करते हैं. अमेरिका प्रवास के दौरान ही तो उनका तमिल त्यौहार, ‘विशू’ पड़ा था. बच्चों के लिए आशीर्वाद स्वरूप, वे भारत से चांदी के सिक्के लाये थे- जो विशू पर उन्हें भेंट किये. कृष्ण भगवान की पूजा भी, उन्होंने बालकों को, जागरूक करने हेतु सम्पन्न की.

बालकों पर इस सबका, कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा. तन्वी के लिए , अपना ‘ग्रेजुएशन- फंक्शन’ ही सबसे बड़ा त्यौहार ठहरा. वह सेलेब्रेशन तो कई दिनों तक चला- कन्वोकेशन गाउन और कैप में फोटो उतरवाना...स्कूल और घर में होने वाले समारोह...घर के ठीक सामने- तालाब में, कतारबद्ध होकर खड़े... राजहंसों का, आभासी दृश्य...! ठीक कहते हैं, अशोकन के मित्र सुजय- अमेरिकन बच्चे पढ़ते कम, नौटंकी ज्यादा करते हैं! तिस पर कपड़े तो देखो- कैसे खुले, खुले! अशोकन, तन्वी के मिनी स्कर्ट पहनने पर, आपत्ति जताना चाहते हैं...किन्तु साहस नहीं होता! लड़की के अभिभावक, स्वयं, ऐसी बातों को, बढ़ावा जो दे रहे हैं...यह कैसा देश, जहाँ १४- १५ बरस की किशोरियां भी, गर्भ धारण कर लेती हैं!

‘तो आप यहाँ बैठे हैं...व्हाट्स एप पर शिखा से बातें हो रही थीं. आपके बारे में पूछ रही थी.’ मैथिली ने उनके विचारों को बाधित किया. ‘अच्छा’ कहते हुए अशोकन, अपनी सोच से बाहर निकले. ‘वह कह रही थी, आप लोग बड़े लकी हैं ; भारत में करोना की दूसरी लहर से लोग, कीड़े- मकोड़ों की तरह मर रहे हैं. अच्छा हुआ जो आप दोनों अमेरिका चले आये’ ‘सही तो कह रही थी’ अशोकन जी ने हल्की सी सहमति जताई. ‘क्या ख़ाक अच्छा हुआ!’ मैथिली जी उत्तेजनावश, बस इतना ही बोल पाईं. ‘क्यों, क्या बात है...?’

‘बात क्या है- आप नहीं जानते?! हम करोना के इन्फेक्शन से तो बच गये लेकिन यहाँ जो जनम- जिन्दगी का इन्फेक्शन लगा है...उसका क्या??’ ‘मतलब...?’ अशोकन जी बहुत कुछ जानकर भी अनजान बने हुए थे. ‘नवीन घर में नॉन- वेज पकाना शुरू करने वाला है’ ‘क्या?!’ पत्नी की बात सुनकर, पति मानों आसमान से गिरे, ‘लेकिन वंशिका तो इसकी स्वीकृति नहीं देती थी’

‘हर बार वे लोग, मांसाहार, अपने रेस्टोरेंट से मंगवा लेते थे...लेकिन इस बार करोना के कारण, विशिष्ट मांसाहारी पकवानों की पैकिंग... बहुत कम हो गई थी- इसी से, वहां... बनना बंद हो गये हैं’ ‘तो?’ अशोकन बेवकूफों की तरह, पत्नी का मुंह ताक रहे थे. ‘ तो क्या...बच्चों की लम्बी छुट्टियाँ हैं और वे...नॉन- वेज के लिए, तरस रहे हैं’ इस पर काफी देर, चुप्पी छाई रही फिर अशोकन धीरे से बोले, ‘हाँ पर वे लोग, मांसाहार के लिए, अलग बर्तन रखते हैं’

‘सही कहा आपने. सच यह भी है कि उनका भोजन... रसोईं में न बनकर, रसोईं से सटे बरामदे में... बारबेक्यू- ग्रिल पर बनेगा...लेकिन!’

‘लेकिन?’

‘भोजन से उड़ने वाली गंध और भाप तो रसोईं तक पहुंचेगी’

‘देखो मैथिली...हमें कहीं न कहीं तो समझौता करना पड़ेगा’

‘देखिये जी...यह बुनियादी समस्या है...मुझे रोज सुबह जल्दी उठकर, हम दोनों के लिए खाना, बनाना पड़ेगा; क्योंकि गोश्त की बदबू, मुझसे सहन नहीं होती.’

‘पर वंशिका तो अपने लिए, शाकाहार बनाएगी ही...हम उसी में...’

‘मांसाहारी भोजन पकने से, हवा तक अपवित्र हो जाती है. उस अपवित्र वातावरण में, पकाया गया शाकाहार भी वर्जित होता है’

‘सोच लो...रसोईं ऊपर वाले कमरे में है. तुम्हें बार- बार, ऊपर- नीचे करना पड़ेगा...वह भी बुढ़ापे में’ अशोकन अब खीजने लगे थे. ‘सोच लिया’ मैथिली का दो टूक जवाब था. वे निरुत्तर हो गये थे. इसके बाद तो मैथिली जी का मुश्किल समय आ गया. आँख खुलते ही उनकी कवायद शुरू हो जाती... सुबह- सवेरे जल्दी उठकर, नाश्ता बनाना...साथ ही दोपहर के भोजन की व्यवस्था करना; इससे पहले कि नवीन, बड़ा वाला छुरा लेकर, चिकन या लैम्ब काटना शुरू करे. संतोष इस बात का था कि उनके कमरे में सिंक लगी थी, एक अदद इलेक्ट्रिक वाटर- हीटर और वाटर- फ़िल्टर भी; साथ ही कुछ छुटपुट सामान-  मिनी रेफ्रिजरेटर और माइक्रोवेव... खाने- पकाने के चंद बर्तन... दूध - पाउडर और चाय, काफी के पाउच... लिहाजा चाय, काफी का इंतज़ाम कमरे में हो जाता. रात के भोजन में, दूध गर्म करके, चिवड़े या कॉर्नफ़्लेक्स के साथ खा लेते. सब्जी- फल काटने जैसे काम और माइक्रोवेव में छोटी- मोटी कुकिंग, वे नीचे ही कर लेतीं. यह सब इसलिए, ताकि बार- बार किचेन में जाना न पड़े. वहां जाने से विरक्ति सी हो गई थी.

पाक- शास्त्र में पारंगत मैथिली जी का, अब कुछ भी पकाने का मन नहीं करता- नवीन की हरकतों के चलते. कभी कभी वे सोचती हैं कि सबसे बड़ा छुतहा रोग तो नवीन ने ही उनकी किस्मत को लगा दिया है; जिसके आगे करोना भी फेल है. यह और बात है कि इस विचार के लिए, बाद में खुद को झिड़कती भी हैं; आखिर नवीन उनका जंवाई है!  दोबारा शिखा से बात हुई तो उनके भीतर दबी पीड़ा, मुखर हो उठी. दुखड़ा रोकर, मन का बोझ, कुछ हलका जरूर हुआ, पर समस्या...जस की तस! मैथिली, अमेरिका की नागरिकता लेने में, हिचकिचाती हैं. सोचा था, भारत में आध्यात्मिक  ठिकानों की कमी नहीं...उधर किसी आश्रम को, अपना आख़िरी पड़ाव बना लेंगी. उन्होंने तो ऐसा स्थान ढूंढ भी निकाला... परन्तु वहां भोजन की उचित व्यवस्था न थी. स्वदेश जाने के बाद, दूसरा कोई विकल्प खोजना था.

सबसे अधिक चिंता तो तन्वी को लेकर होती. अब तन्वी की उनसे भरतनाट्यम सीखने में, रूचि नहीं रही... न ही उनके द्वारा लाए गये, नृत्य - परिधानों में. यही नहीं, उसके व्यवहार में बचपना, बढ़ता ही जा रहा है. सयानी लड़की को सतर्क रहना चाहिए; विशेषकर पुरुष जाति से! उच्च- शिक्षा के लिए, कॉलेज में दाखिला लेना है; व्यवहारिक तो होना पड़ेगा! शिखा को बताया तो वह उन्हें ही समझाने लगी, ‘मामी, हर सिक्के के दो पहलू होते हैं- एक अच्छा और एक बुरा. विदेशों में ज़िन्दगी की रफ्तार, कुछ ज्यादा ही तेज है; लेकिन आगे बढ़ने के समान अवसर हैं...लडकियाँ हर क्षेत्र में सफल हो रही हैं. आपने देखा होगा कि क्वीन फिल्म में कंगना रनावत कैसे लड़कों के साथ, एक ही डॉरमेट्री में रहती है और निर्विघ्न रूप से, विदेश-यात्रा पूरी कर लेती है..मामी, यदि लिंगभेद नहीं होता तो हम कितनी तरक्की कर गए होते!’

शिखा से गपशप करके, मैथिली का चित्त, शांत हो जाता है.  वह उनकी बातें ‘इधर से उधर’ नहीं करती. उसकी बेटी प्रिया भी तो लन्दन में, अकेले रहकर, नौकरी कर रही है. माँ बाप ने रोक लगाई होती तो यह कदापि सम्भव न होता. वर्जनाएं भी तो कन्याओं को, विद्रोही बना देती है...कदाचित उनकी वंशिका भी इसीलिये...! शिखा ने उनके दिमाग की, कई खिड़कियाँ खोल दी थीं, ‘मामी आपने मामा से कहा कि करोना से भी बड़ी छूत, आपको सता रही है. वे बेचारे इस तरह की बातों से, परेशान हो जाते होंगे. वे तो बेटी- दामाद से, सामंजस्य बनाना चाहते हैं; और आप...? संक्रामक परम्पराएं या जीवन-शैली नहीं; सोच होती है, मंशा होती है. जिसकी सोच बुरी नहीं, नीयत खोटी नहीं; वह हर खराबी से, अछूता रहेगा.’

मैथिली जी अब, बिटिया के घर में, समायोजन का प्रयास करने लगीं; परन्तु रसोईं की सीढ़ियाँ चढ़ने से, पैरों में सूजन आने लगी थी. एक दिन तलवों में तेज दर्द उठा और उनको अस्पताल ले जाना पड़ा. इस बीच शिखा ने, व्हाट्स एप पर सम्पर्क किया था पर वे खुलकर, अपना हाल कह नहीं पाईं. शिखा अवश्य, बहुत कुछ कह गई थी...उसका कंठ भरा हुआ था. बिना किसी भूमिका के बोल पड़ी, ’आज तो मैं भी बहुत दुखी हूँ मामी’

‘क्यों?’

‘आपको पता है, लड़केवालों ने शादी से मना कर दिया’

‘पर क्यों...प्रिया तो बहुत अच्छी लड़की है’

‘कहते थे- लड़की अकेली रह रही है , ऐसी लड़कियों के चरित्र का, कोई भरोसा नहीं’

‘अरे!’ मैथिली स्तब्ध रह गईं. ‘मामी आप ही बताइए...वह किसी के संग, लिव- इन में तो नहीं रह रही...अकेले रहकर लड़की का, नौकरी करना पाप है क्या?!’ मैथिली जी सन्नाटे में आ गई थीं. जवाब देते नहीं बना. शिखा क्रोध में बोलती चली गई, ‘हमारे समाज में कुंवारी कन्या के लिए... किसी ना किसी, संरक्षक का होना, अनिवार्य है; ऐसा व्यक्ति- जो जासूसी कुत्ते की तरह, विश्वसनीय हो और कन्या के आचरण की गवाही दे सके!’

‘नहीं यह ठीक नहीं...बिलकुल भी नहीं’ मैथिली जी सप्रयास इतना ही कह पाईं. ’मामी जैसा आपको लग रहा था...वैसा ही कुछ, मुझे भी लग रहा है. करोना से भी बुरा संक्रमण...खाए जा रहा है, मुझे!’ आवेश से भरी, सांसों को संयमित कर, शिखा बोली, ‘हम स्वयं, अपनी नैतिकताओं के खोल में छिपे रहते हैं किन्तु दूसरों पर कीचड़ उछालने से बाज नहीं आते... बात- बात पर, विदेशी परिवेश को दोषी ठहराते हैं किन्तु क्या हमारी संकीर्णताओं, हमारे पूर्वाग्रहों ...हमारे दोहरे मापदंडों का- कोई दोष नहीं??’

शिखा तो अपनी वेदना सुनाकर, हल्की हो गयी पर मामी के सीने पर, एक भार सा छोड़ गई थी- उनको आत्ममंथन पर, विवश करके!  शिखा और उसका पति बैजू, प्रिया के दूर चले जाने से, दुखित थे. इसी से, उसके लिए, भारत में रहने वाला वर, खोज रहे थे. एक प्रतिष्ठित व्यवसायिक घराने से, रिश्ते की बात चली. वे लोग भी प्रिया से प्रभावित थे. वह ब्रिटिश कोलम्बिया विश्वविद्यालय से, एम. बी. ए. जो थी. विवाहोपरांत, उनके कारोबार को संभाल सकती थी...विशेष तौर पर, प्रबन्धन को; किन्तु उन लोगों के संकरे मानदंड, प्रिया की सच्ची परख ना कर सके! होने वाली बहू, अकेले फ्लैट लेकर रहने के बजाय, वर्किंग- लेडीज़ हॉस्टल में, या फिर पेइंग- गेस्ट बनकर रह रही होती तो बात दूसरी थी.

मैथिली जी, शिखा को लेकर व्यथित थीं; परन्तु डॉक्टर ने उन्हें, तनाव से दूर रहने की सलाह दी...उनका पैर तो धीरे धीरे ठीक हो रहा था पर रक्तचाप बढ़ा हुआ था. इस कारण वे, नकारात्मक विचारों को, सायास झटक देतीं. रोज हैडफ़ोन लगाकर भजन सुनना और सत्संग का आनंद लेना- उनकी दैनिकचर्या में, समाविष्ट हो गये. तन्वी, नानी की सेवा में थी. रोज फूलों का गुच्छा लेकर आती. उनके लिए, दलिया और खिचड़ी पकाना भी, सीख लिया था उसने. घर में फिलहाल, निरामिष भोजन ही बन रहा था. कैसरोल में नानी का खाना, तन्वी खुद ही पैक करती. बीच बीच में कार्तिक भी आता. कार्तिक और तन्वी की भोली नोकझोंक सुनकर, मैथिली के अंतस की धुंध, स्वतः छंटने लगी. इधर नवीन, कामकाज से छुट्टी लेकर, ससुरजी की देखरेख कर रहा था.

एक दिन तन्वी ने बताया, ‘अम्मायी(नानी)...आपके कमरे से लगा, जो स्टोररूम था ना- उसका रेनोवेशन हो रहा है. वहां किचेन बनेगी. अप्पा ने इंडक्शन कुकर और गैस- बर्नर भी आर्डर किया है. वहां माँ और मैं मिलकर, आपके लिए, वेजिटेरियन डिशेज बनायेंगे.’ इस पर निहाल होकर, उन्होंने नातिन को, गले लगा लिया था. इस बीच शिखा से पता चला कि अमेरिका में रहने वाला, भारतीय बिरादरी का एक सुयोग्य लड़का, उसे बिटिया के लिए पसंद है . प्रिया की काबिलियत देखकर, उन लोगों ने खुद उसका हाथ माँगा. मैथिली जी यह जानकर हर्षित हुईं. वे स्वयं भी, खिन्न मनःस्थिति से,उबरने लगीं थीं...नवीन को लेकर, कुढ़ना भी छोड़ दिया.

अमेरिका में जनजीवन सामान्य हो चला था. करोना उनकी पहुंच से दूर था. बाहर का मौसम ही नहीं, ‘भीतर का मौसम’ भी खुशगवार रहने लगा. ऐसे में, उन्होंने शिखा को, व्हाट्स एप संदेश दिया, ‘अब तो मास्क लगाने की जरूरत नहीं; करोना का डर भी नहीं... ना ही उससे होने वाले संक्रमण का. रही बात दूसरी तरह के संक्रमण की- तो तुम सही थीं शिखा! खराबी, दुनियां की रीत या चलन में नहीं; मन में होती है...विचारों में होती है. यदि मन और विचार, नियन्त्रण में रहें तो कोई कलुष...कोई भी संक्रमण... हमें छू नहीं सकता.’

विनीता शुक्ला

विनीता शुक्ला

हार्दिक धन्यवाद!

20 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

बहुत अच्छा

20 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
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संक्रमण

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<p>‘आंटी...कल फेसबुक पर, तन्वी की फोटो देखी. शी वाज़ लुकिंग गॉर्जियस! उसके साथ क्यूट सा एक लड़का था...

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रिश्तों का बहीखाता

10 दिसम्बर 2021
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<p>“गोदी होरिलवा तब सोहैं, जब गंगा पै मूड़न होय गंगा पै मूड़न तब सोहैं, जब गाँव कै नउवा होय” बुलौवे वा

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दूसरी भग्गो

10 दिसम्बर 2021
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<p>सुमेर मिसिर हिचकते हुए, उस दहलीज़ तक आ पहुंचे थे, जहाँ कभी आने की, सोच भी नहीं सकते थे. क्या करते?

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