साक्षात्कार का दूसरा दौर चल रहा था. फैशन की दुनियाँ में तहलका मचा देने वाली, अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी ‘ मैजिक इन स्टाइल’ के, प्रोजेक्ट- मैनेजर पद हेतु, कुछ चुने हुए अभ्यर्थी, कतार में थे. ग्रुप- डिस्कशन हो चुका था. उस आधार पर ही, यह उम्मीदवार चयनित हुए थे. सूची में कुछ ‘सिफारशीलाल’ भी थे. उनमें से एक थे मुरलीधर वर्मा. उनका नम्बर आने पर, वे फाइलों को संभालते; आत्ममुग्धता में रची- बसी, ‘मारक’ मुस्कान सहेजे, प्रस्तुत हुए- एच. आर. राउंड के लिए.
एच. आर. श्रीमती नलिनी नाथ ने पहले तो उन पर सरसरी निगाह डाली; फिर गौर से उनके चेहरे को पढ़ा. मुरली की नलिनी के केबिन में, एंट्री हो- उससे पहले ही सेल्स - मैनेजर ने इंगित किया कि बन्दा हमारा परिचित है. श्रीमती नाथ ने वर्मा महाशय में, ऐसा कुछ देखा कि वे विचलित हो उठीं! यंत्रवत कुछ प्रश्न, मुख से फूटते चले गये-
‘आपका नाम?’ ‘एम. डी. वर्मा’ ‘क्या करते हैं?’ ‘रेडीमेड गारमेंट्स का कारोबार है’ ‘गुड...उसे छोड़कर यहाँ क्यों आना चाहते हैं’ ‘ फॅमिली- बिजनेस देखने के लिए और भी कई लोग हैं...मैं कुछ हटकर करना चाहता हूँ...इसीलिये तो एम. बी. ए. की डिग्री हासिल की.’ कहते कहते वे गर्व से फूलने लगे. ‘हमारी ही कम्पनी क्यों...श्रीमान?’ नलिनी जी उनकी अहंकारी मुद्रा को लेकर, सहज नहीं थीं. इस बार जनाब थोड़ा अचकचाए फिर संभलकर बोले- ‘आपकी कंपनी ने फैशन की दुनियाँ में बड़ा नाम कमाया है. मैं व्यक्तिगत तौर पर...फिट और स्मार्ट लोगों को पसंद करता हूँ. आप लोग अपटूडेट फैशन के कपड़े तैयार करते हैं...इसलिए...’
‘फैशन स्टेटमेंट से आप क्या समझते हैं? इसके अनुरूप चलते हुए, कंपनी का सामान बेचना हो तो कैसे बेचेंगे?’ जवाब पूरा होते ना होते, दूसरा सवाल दाग दिया गया. नलिनी जी के भव्य व्यक्तित्व की चकाचौंध में, मुरली की अकड़ धरी की धरी रह गयी. वे हकलाकर कहने लगे, ‘ ऐसा फैशन...जो अलग तरह से आपकी पहचान...बनाता हो ...आई मीन...’ ‘देखिये मिस्टर वर्मा...इंटरव्यू तो बहुतेरे लोगों का लिया जाता है पर चुना कोई एक जाता है- सो बी अ स्पोर्ट...नतीजा आने पर आपको बता दिया जाएगा’ श्रीमती नाथ के स्वर में रुक्षता थी.
मुरलीधर पिटी हुई गोट की तरह केबिन से बाहर निकले. जाहिर था कि वे एच. आर. महोदया पर अपना रंग नहीं जमा पाए थे. इसके अलावा कुछ और भी बात थी जो उन्हें कचोट रही थी...और वे उसकी तह तक...पहुँच नहीं पा रहे थे. इधर नलिनी, गुजरे हुए समय को जीने लगी थीं. हर बार की तरह, उस बार भी माँ- पिताजी, विवाह के नाम पर उसकी प्रदर्शनी लगाने चले थे. उसके विरोध पर माँ ने समझाया था, ‘ बात बन ही गयी समझो...लड़के की दादी ने तुम्हें, उनकी रिश्तेदारी के किसी फंक्शन में देखा था...तुम उन्हें पसंद हो...और लड़का उनकी बात, कभी नहीं टालता’
नलिनी के लिए ‘जियो या मरो’ का प्रश्न था. इस बार वह, कैसे भी मोर्चा जीतना चाहती थी. लड़के ने उससे, एकांत में, बात करने की इच्छा जताई तो चाहते ना चाहते, माँ- पिताजी को अनुमति देनी ही पड़ी. देखने में तो वह शरीफ ही लगता था...मगर...! एकाध औपचारिक प्रश्नों के बाद, उसने वह अनर्गल प्रश्न दाग दिया , ‘क्या आपका किसी से अफेयर है?’ सुनकर नलिनी का चेहरा तमतमा गया था. बड़ी मुश्किल से वह कह पाई, ‘जी नहीं...’ नलिनी के क्रोध को देखकर भी अनदेखा कर, महाशय ने कहा, ‘यदि है तो बताइए, मैं आपको इस ब्याह से बचा लूँगा’ यह सुनकर, एक स्वाभिमानी लड़की.... वहां कैसे रुक सकती थी, भला...?! नलिनी उठकर जाने लगी तो महानुभाव ने अंतिम बाण चला दिया, ‘ देखिये नलिनी जी...इंटरव्यू तो बहुतेरे लोगों का लिया जाता है पर चुना कोई एक जाता है’
आज बरसों बाद, नलिनी ने उसका वह सम्वाद, उस पर ही चिपका दिया था...उस नपुंसक इंसान को वह पहचान गयी थी जिसने अपने घरवालों की मर्जी के खिलाफ, प्रेमिका से शादी करने के लिए...उस जैसी मासूम के कन्धों पे रखकर, बंदूक चलानी चाही! और मुरलीधर ‘द ग्रेट’ ....! सोच में था कि एच. आर. महोदया के वे शब्द, उसे इतना क्यों चुभ रहे थे...इतने जाने- पहचाने, क्यों लग रहे थे?!!