सम्पूर्ण विश्व में योग से भला कौन परिचित नहीं होगा. यूं तो पहले ही अनेक योग गुरुओं, जिनमें बाबा रामदेव का नाम प्रमुख है, योग को जबरदस्त ढंग से प्रचारित और प्रसारित कर दिया था, लेकिन जिस ढंग से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग की है, उसने प्रत्येक भारतीय की छाती 56 इंच की वास्तव में कर दी है. राष्ट्रीय स्तर पर भी योग को लेकर तमाम राजनीतिक दल अपने अपने हित देखते हुए विरोध या समर्थन कर रहे हैं, किन्तु इसको लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रही राजनीति कुछ ज्यादा ही दिलचस्प दिखती है. आगे की चर्चा से पहले यह बात दोहराना आवश्यक है कि नरेंद्र मोदी ने बेहद सक्रियता से विश्व में भारत का मेक ओवर करने के इस अवसर को मजबूती से पकड़ लिया है. उनके पिछले चुनावी भाषणों में वह कहा करते थे कि 'कॉमनवेल्थ गेम्स' जैसे अवसर भारत को विश्व में मजबूत सम्मान दिला सकते थे, जो कांग्रेस सरकार के घोटाले से बदनुमे दाग में बदल गए. सच कहा जाय तो उन भाषणों में नरेंद्र मोदी की कसक दिखती थी और अब उनके सामने जब 'योग दिवस' के रूप में अवसर आया तो उन्होंने इसे हाथ से फिसलने नहीं दिया. जानना दिलचस्प होगा कि, जिस आनन-फानन में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' के रूप में 21 जून का समय घोषित किया, उससे कई भारतीयों को भी आश्चर्य हुआ. यह बात हम सब जानते ही हैं कि नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय परिदृश्य पर उदय से पहले ही वह चर्चित अंतर्राष्ट्रीय हस्ती बन चुके थे. चुनाव के बाद तो उनके क्रियाकलापों की खबरें पूरे वैश्विक परिदृश्य पर ही छाई रहीं. ऐसे में उनकी महत्वाकांक्षा और अंतर्राष्ट्रीय छवि हासिल करने की चाहत को अमेरिकी नीतिज्ञों ने बेहद तेजी से पकड़ा. ज़रा गौर कीजिये, आनन-फानन में न सिर्फ उन पर लगाया गया प्रतिबन्ध हटाया गया, बल्कि बराक ओबामा ने तमाम आंकलनों को गलत साबित करते हुए 26 जनवरी पर भारत की मेजबानी तक कबूल की. इसके बाद भी ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिनमें असैनिक परमाणु करार की उलझनों को दूर करना भी शामिल है, जिनसे साफ़ जाहिर होता है कि अमेरिका नरेंद्र मोदी को लेकर किस हद तक सजग था. ऐसे में, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को बेहद जल्दी मान्यता मिलने को भी, भारत और नरेंद्र मोदी के प्रति अमेरिकी झुकाव की तेजी की ओर इंगित करना माना जा सकता है. इस कड़ी में, अमेरिकी झुकाव से चीन की नाराजगी को दूर करने की कोशिश भारत ने तुरंत की और 26 जनवरी के तुरंत बाद पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन का दौरा करके क्षेत्रीय संतुलन साधने की कोशिश भी की. समस्या तब दिखी जब भारत के पारम्परिक मित्र रहे रूस के राष्ट्रपति का, नरेंद्र मोदी प्रशासन द्वारा अनदेखा करने का दर्द सामने आया. जब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंच की एक बैठक में बताया गया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग के लिए अलग से मंत्रालय शुरू किया है तो उनका हैरानी भरा सवाल था, क्या मोदी स्वयं योग करते हैं? योग के लिए अलग से मंत्रालय पर संदेह जताते हुए पुतिन ने यह भी कहा कि आखिर हर कोई यह क्यों करेगा? पुतिन यहीं नहीं रुके, बल्कि उन्होंने खुद की तुलना मोदी से किये जाने को भी स्पष्ट शब्दों में नकार दिया, साथ ही साथ स्वयं और मोदी के बारे में कहा कि 'मैं सख्त नहीं हूं, बल्कि हमेशा समझौते करना चाहता हूं, जबकि उनका (मोदी) रुख कड़ा होता है.' अंतर्राष्ट्रीय राजनेताओं की बातें इतनी सरल नहीं होती हैं कि उसकी व्याख्या एक लाइन में कर दी जाएँ. ऐसे में पुतिन के योग दिवस के अवसर पर दिए इन बयानों के अर्थ निकलने की कोशिश लम्बे समय तक की जाती रहेगी. वैश्विक स्तर की राजनीति कितनी जटिल होती है, यह अपने एक साल कि कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने निश्चित रूप से महसूस कर लिया होगा. सवाल उभरता ही है कि क्या वैश्विक परिदृश्य में रूस जैसे बड़े और शक्तिशाली देश को अनदेखा किया जा सकता है, वह भी तब जब भारत में उसकी बेहद महत्वपूर्ण परियोजनाएं चल रही हों और वह आगे बढ़कर, वगैर प्रचार किये तमाम तकनीकि सहायता देने में संकोच न करता हो या फिर विश्व के दो बड़े ध्रुवों में संतुलन साधने में भारतीय प्रशासन से कहीं चूक हो रही है. इससे भी बड़ा, मगर सम्बंधित सवाल है कि क्या अमेरिकी दबाव में भारत ने रूस को अनदेखा करने की कोशिश की? योग की मूल परिभाषा ही 'संतुलन' के सिद्धांत पर टिकी है. जो 'संतुलित' है, वह योगी है. देखना दिलचस्प होगा कि विदेश नीति में दिलचस्पी रखने वाले हमारे प्रधानमंत्री अमेरिका, रूस सहित विभिन्न देशों के साथ किन योगासनों का प्रयोग करते हैं. आम जनमानस के विपरीत सरकार के लिए यह कठिन परीक्षा की स्थिति है और रूसी राष्ट्रपति ने अपनी खुली राय व्यक्त करके इसे और दिलचस्प बना दिया है. खुद अपनी पार्टी में आडवाणी जैसे वरिष्ठों का विरोध झेल रहे और देश में विपक्षी पार्टियों के निशाने पर रहे प्रधानमंत्री की अंतर्राष्ट्रीय सक्रियता अब कई देशों को भी चुभेगी, यह लगभग तय है. उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारे प्रधानमंत्री इन सबके बीच संतुलन साधने में कामयाब रहेंगे और विवादों को काम करते हुए योग को पूरे विश्व में गुटबाजी का शिकार होने से बचाने में सफल रहेंगे. यही तो सार्थकता है, योग की, और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की भी.
- मिथिलेश, नई दिल्ली.