'दाल रोटी' का जुगाड़ करना किसी इंसान का पहला धर्म होता है, लेकिन हालिया दिनों में न केवल दाल महँगी होती जा रही है, बल्कि यह 'मुन्नी' की तरह बदनाम भी की जा रही है. एक तरफ गरीब, इसकी तरफ देखने से परहेज कर रहे हैं तो दूसरी ओर राजनीतिक हथियार के रूप में 'दाल-बम' का खूब इस्तेमाल किया जा रहा है. जिधर देखो, उधर लोग इसको मुद्दा बनाते नज़र आ रहे हैं. इसकी आसमान छूती कीमतों के चलते चोरों की भी इस पर नजर पड़ गयी है और इस बात का ख़ामियाजा नागपुर के एक व्यापारी को भुगतना पड़ा, जिसकी करीब 25 टन दाल को गायब करने के मामले में 2 लोग गिरफ्तार हुए हैं. यही नहीं, बदायूं में दाल ले जा रहे ट्रक-ड्राइवर से लूटपाट और हत्या की खबर भी सुनने में आ रही है! अब तो इसकी महत्ता माननी ही पड़ेगी, क्योंकि अगर इसकी चोरी होने लगी, हत्या होने लगे तो निश्चित रूप से इसकी कीमतों पर गौर करना ही पड़ेगा. हालाँकि, हंगामा मचने के बाद केंद्र सरकार ने दालों की बढती हुई कीमतों के मद्देनजर आम जनता को राहत देते हुए अरहर दाल को केंद्रीय भंडार और सफल के स्टोर पर 120 रुपए प्रति किलो पर उपलब्ध कराने का फैसला लिया है. इसके साथ ही सरकार ने दो हजार मीट्रिक टन अरहर दाल और एक हजार मीट्रिक टन उड़द की दाल की अतिरिक्त मात्रा को आयात करने का फैसला लिया है. इस क्रम में, केंद्र ने राज्य सरकारों से जमाखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को भी कहा है, जिसके तहत छत्तीसगढ़ के विलासपुर से 2 करोड़ की दाल जब्त हुई है. राज्य सरकारों द्वारा अन्य जगहों पर भी छापे मारे जा रहे हैं. दाल की कीमतों को नियंत्रण में लाने के लिए ताबड़तोड़ प्रयास के तहत कैबिनेट सचिव और अन्य अधिकारी लगातार उपभोक्ता मामलों, कृषि, वाणिज्य और अन्य मंत्रालयों के सचिवों के साथ बैठक कर रहे हैं, जिसमें दालों की कीमत, उत्पादन, खरीद और उपलब्धता की समीक्षा ही हो रही है.
यह अलग बात है कि तमाम मोर्चों पर धड़ाधड़ प्रोग्राम लांच कर रही मोदी सरकार इस मोर्चे पर घिर गई है और इसके राजनीतिक विरोधी इस पर निशाना साधने में कोई कोताही नहीं कर रहे हैं. बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि अच्छे दिन तो छोड़िये, जनता को बुरे दिन ही लौटा दीजिये जब दाल सस्ती थी! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि चुनाव के दौरान उन्होंने (भाजपा ने) देश भर में घूम घूम कर वायदा किया था कि वे महंगाई को रोकने का फार्मूला देंगे, अब समय आ गया है कि वे अपने फार्मूले पर कार्य करें.’ बेचारी दाल इस राजनीति में फंसकर कराह ही रही थी कि विवादित बयान देने के सरताज बन चुके मार्कण्डेय काटजू ने अपनी भड़ास निकालते हुए कह दिया कि 'जनता दाल और प्याज न खाए, बल्कि 'गाय का गोबर और गोमूत्र' खाए! दाल बेचारी सोच रही होगी कि उसका रिश्ता तो अब तक रोटी के साथ था, कहाँ वह राजनीति और बयानबाजी में फंस गयी है. वैसे, इन राजनीतिक हमलों के लिए कहीं न कहीं दोष भी केंद्र सरकार का ही है. आखिर, वह कैसे भूल सकती है कि महंगाई ने इस देश में कई-कई बार सरकारें बदल दी हैं. सच बात यही है कि जमाखोरी पर राज्य सरकारों को निर्देश जारी करने के सिवा केंद्र सरकार ने समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जिसका परिणाम जनता को भुगतना पड़ रहा है तो इज्जतदार 'दाल' को भी बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है. इसी कड़ी में महंगाई को लेकर नीतीश और लालू के महागठबंधन की ओर से किये जा रहे हमलों पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधने की कोशिश जरूर की है, लेकिन केंद्रीय मंत्री महोदय द्वारा दाल की बढ़ती कीमतों के लिए पूरी तरह से राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराना लोगों को शायद ही हजम हुआ हो! हालाँकि, इसके विपरीत सच यह भी है कि तीन वषों में बिहार राज्य में दाल का उत्पादन घटा है.
बारीकी से देखा जाय तो दाल पर खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान का यह कहना कि चुनाव बाद एनडीए की सरकार बनने जा रही है और बिहार में दाल की कीमत घट जायेगी, अपने आप में आश्चर्यजनक और हास्यास्पद बयान है. उन्होंने किस आधार पर यह बयान दिया, यह उनको जरूर बताना चाहिए. आखिर, केवल बिहार में तो दाल की कीमतें बढ़ी नहीं है, बल्कि देश भर में लोग इससे परेशान हैं. भाजपा राज्य सरकारों पर भी दोष नहीं मढ़ सकती, क्योंकि कई राज्यों में तो खुद इसी की सरकारें चल रही हैं. इस बीच, रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कीमतों पर अंकुश के लिए आपूर्ति पक्ष के उपायों पर ध्यान दिये जाने की जरुरत बताई है. लेकिन, अहम सवाल यह है कि यह सभी उपाय पहले क्यों नहीं किये जाते हैं और हर बार जनता महंगाई से परेशान क्यों होती है? कई बार ऐसा लगता है कि किसी वस्तु-विशेष की कीमत, विशेष समय में बढ़ना कृत्रिम है और साजिशन जमाखोरों का समूह इसको अंजाम देता है. समस्या यह भी रही है कि तमाम जगहों पर नेता, मंत्री ही इनको संरक्षण प्रदान करते हैं, इसलिए 'कृत्रिम-महंगाई' आ ही जाती है. दरअसल दाल के दर्द को वही महसूस कर सकता है, जिसने एक वक्त की दाल किसी परचून की दुकान से खरीदी हो या किसी और को खरीदते हुए देखा हो. हां, यह उसी समाज के लोग हैं, जो दिनभर का गुजारा 25 या 32 रुपये से नीचे में कर लेते हैं. जरूरत है इनका दर्द और समस्या महसूस करने की. अब तो राजनीतिक स्थिरता है, केंद्र में मजबूत सरकार है, जमाखोरों के खिलाफ फैसले लेने में वह सक्षम है, इसलिए दाल की कीमतें बढ़ने की जिम्मेदारी उसे लेनी ही होगी. न केवल जिम्मेदारी लेनी होगी, बल्कि सरकार आगे के लिए इससे सीख भी ले, अन्यथा जनता उसे चुनावों में बेहतर ढंग से सीख दे सकती है.
दाल स्वास्थ्य के लिहाज से इस हद तक महत्वपूर्ण है कि इसको अनदेखा करना खतरनाक हो सकता है. वैज्ञानिक ढंग से देखा जाय तो, प्रोटीन की बड़ी स्रोत अरहर (तूर) की दाल भारत में प्रमुखता से खायी जाती है. इससे होने वाले फायदे की बात करें तो, अरहर की दाल खाने से बॉडी को कई न्यूट्रिशंस प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट्स जैसे पोषक तत्व मिलते हैं तो इसे कॉलेस्ट्रॉल फ्री भी माना जाता है. यही नहीं, बल्कि अरहर की दाल आयरन, फोलिक एसिड, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, विटामिन बी और मिनरल्स की कमी को पूरा करता है. अरहर दाल में मौजूद फोलिक एसिड महिलाओं को बहुत फायदा पहुंचाता है, खासतौर पर गर्भवती महिलाओं के लिए. एक रिसर्च के मुताबिक, भरपूर मात्रा में फोलिक एसिड लेने से दिमाग और रीढ़ की हड्डियों संबंधित बीमारियों से बच सकते हैं. इसके अतिरिक्त, दाल में मिलने वाले तत्वों से बॉडी, दिमाग और नर्वस सिस्टम को भी एनर्जी मिलती है. अरहर दाल फाइबर का भी एक बढ़िया स्रोत हैं जिससे कब्ज की समस्या से राहत मिलती है, जिससे दिल संबंधी रोग, स्ट्रोक, कई तरह के कैंसर, कार्डियोवस्कुलर डिजीज और टाइप 2 डायबिटीज से बचा जा सकता है. जाहिर है, दाल कोई प्याज नहीं है, जिसे अनदेखा कर दिया जाय बल्कि खाद्य पदार्थों में इसकी महत्ता ऊपरी श्रेणी में है. अमीरों के डायनिंग टेबल पर 'दाल-फ़्राय' तो गरीबों की रोटी के साथ दाल .. हर जगह मौजूद है. मरीजों को 'दाल' खाने की सलाह डॉक्टर देते ही हैं तो बच्चों से लेकर महिलाओं तक के लिए इसका सेवन अपरिहार्य है. जाहिर है, हर रोज इसकी नकारात्मक चर्चा होना केंद्र सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय है. उम्मीद की जानी चाहिए की वह डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों जितनी अहमियत इस 'दाल' को भी देगी और येन, केन, प्रकारेण इसकी बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण करेगी, अन्यथा 'दाल के दलदल' में धंसने के बाद ... !!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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