एक हिंदी लेखक, पत्रकार और वेबसाइट उद्यमी के रूप में पिछले 8 सालों से कार्यरत... देश भर की पत्र-पत्रिकाओं में लगभग रोज ही किसी न किसी मुद्दे पर लेखों का प्रकाशन. और जानकारी के लिए मेरे ब्लॉग पर जाएँ: http://editorial.mithilesh2020.com
0.0(0)
28 फ़ॉलोअर्स
2 किताबें
अभी हाल ही में, चीन ने जासूसी के संदेह में जापानी नागरिकों को गिरफ़्तार किया तो, जापान सरकार के प्रवक्ता मिस्टर सूगा ने टोक्यो में कहा कि जापान दुनिया में कहीं भी जासूसी नहीं कराता है. हालाँकि, चीन में अगर इन लोगों पर आरोप साबित होते हैं तो उन्हें मौत की सज़ा दी जा सकती है. जापानी मीडिया के अनुसार,
मेरे जानने वाले एक परिचित की दो बेटियां हैं, लेकिन मेरा यह अनुभव कुछ समय पहले का है जब उनकी दूसरी संतान आने वाली थी. चूंकि, उनकी पहली संतान बेटी थी, इसलिए उनके घरवालों और खुद उनका मन भी था कि उनकी अगली संतान 'बेटा' हो! बस फिर क्या था, घर-परिवार और सगे-सम्बन्धियों में इस बात का पूरा माहौल बनाया गया औ
आज (12 अक्टूबर 2015) की बड़ी और वैचारिक खबरों की ओर देखा तो तीन खबरों में एक तरह का साम्य दिखा, जो भाजपा से सम्बंधित भी दिखीं. पहली खबर थी मुंबई में सुधीन्द्र कुलकर्णी के ऊपर स्याही पोतने की तो दूसरी खबर थी रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर द्वारा दादरी घटना पर संजीदा बयान देने की तो तीसरी खबर का सम्बन्ध था
विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क, 16 लाख से भी अधिक कर्मचारी रखने वाला संगठन और माल वाहन के साथ सवारी वाहन का सबसे महत्वपूर्ण साधन होने के बावजूद भारतीय रेलवे को वह सम्मान और विश्वास हासिल नहीं हो सका है, जो कि होना चाहिए था. बावजूद इसके इस बात से किसी प्रकार का इंकार नहीं होना चाहिए कि यह हमारे
बहुत दिन नहीं हुए, जब बहुत से लोग हवाई जहाज से जीवन में एक बार जाने की सोचते थे और उसके किस्से दूसरों को सुनाया करते थे. हालाँकि, आकाश में उड़ना अब शौक से अधिक जरूरत का विषय बन गया है. एक तो ज़िन्दगी की रफ़्तार ने समय की किल्लत उत्पन्न कर दी है और दूसरी ओर बढ़ती आबादी ने ज़मीनी यातायात पर अत्यधिक दबाव बन
Opposition of Modi, hindi artilce by mithilesh
हाल फिलहाल, ईरान वैश्विक राजनीति में कई कारणों से चर्चित हुआ है. एक तो सऊदी अरब द्वारा ईरान के खिलाफ तगड़ी गुटबाजी वैश्विक सुर्खियां बन रही हैं तो दूसरी ओर सीरिया के गृहयुद्ध मामले में इस देश को अनदेखा करना वैश्विक बिरादरी के लिए लगभग असंभव सा बन गया है. जाहिर है, ऐसे समय अमेरिका और वैश्विक बिरादरी द
नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने आने के तुरंत बाद ही 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की तौर पर मनाने की पहल शुरु कर दी थी. प्रधानमंत्री की पहल पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन की घोषणा कर दी. इस सन्दर्भ में योग दिवस की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग करने के लिए
'दाल रोटी' का जुगाड़ करना किसी इंसान का पहला धर्म होता है, लेकिन हालिया दिनों में न केवल दाल महँगी होती जा रही है, बल्कि यह 'मुन्नी' की तरह बदनाम भी की जा रही है. एक तरफ गरीब, इसकी तरफ देखने से परहेज कर रहे हैं तो दूसरी ओर राजनीतिक हथियार के रूप में 'दाल-बम' का खूब इस्तेमाल किया जा रहा है. जिधर देखो
अपनी सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और दक्षता के बावजूद यदि ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और फ़्रांस जैसे देश आतंकियों के निशाने पर आ जाएँ तो विश्व के दुसरे विकासशील देशों में भय का माहौल उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है. आतंक के शिकार अब तक तीसरी दुनिया के देश ही हुआ करते थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस ट्रेंड ने विकसित
'वसुधैव कुटुंबकम' मतलब सम्पूर्ण संसार ही हमारा परिवार है, का मन्त्र और तंत्र देने वाला हमारा भारत संसार से घटकर, असहिष्णु राजनीति (हालिया मुद्दे) , उससे घटकर असामाजिक तंत्र (जातिवादी, भीड़तंत्र मानसिकता), उससे घटकर संयुक्त परिवार विघटन और उससे भी घटकर एकल परिवार में तलाक जैसे मामलों के लगातार बढ़ने तक
मुझे एक पुरानी लेकिन मशहूर कहानी याद आ रही है, जिसमें एक राजनेता का बेटा अपने बाप से पॉलिटिक्स सीखने की ज़िद्द करता है तो उसका बाप उसे पहले तो मना करता है, लेकिन जब उसकी ज़िद्द बढ़ती जाती है तब अपने बेटे को वह छत पर भेज देता है. नीचे खड़े होकर वह अपने बेटे से कहता है कि छत से कूद जाओ... उसका बेटा डरते ह
दिल्ली के बाराखंबा पर अख़बार के एक दफ्तर में शाम को बैठने जाता हूँ. मेट्रो के गेट न. 5 से निकलने पर वहां बाहर एक भुट्टे वाला, भुट्टे उबालकर बेचता है. हालाँकि, भुट्टे तो बचपन से खाता रहा हूँ, लेकिन सच कहूँ तो उबले भुट्टे मैंने पहले नहीं खाए थे. एक दिन टेस्ट किया तो बेहद स्वादिष्ट लगा, नींबू और काला नम
गाँव में मछली पकड़ने के लिए कुछ लड़के या लोग 'केंचुआ' की तलाश करते हैं और उसे कांटे में फंसाकर फिर तालाब की मछली को... खैर, यहाँ जिस कहावत को बताने की कोशिश की है, वह 'केंचुए की तलाश में सांप निकल आने से है'. अब कुछ लोग इस कहावत के एक सिरे पर अलग-अलग राय रख सकते हैं कि सीबीआई 'केंचुए' की तलाश में थी य
भाजपा की पहली पूर्ण बहुमत सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी को अगर किसी मुद्दे पर सरदर्द हुआ है तो वह निश्चित रूप से किसानों की बदहाली का ही मसला है. यदि यह बात कही जाए कि किसानों की यह हालत कोई एक दिन में नहीं हुई है तो कोई गलत नहीं होगा, किन्तु इसके साथ यह भी उतना ही सच है कि किसानों के मसले पर अपने एक
जब हम सिनेमा में कोई फिल्म देखते हैं और वह हमें पसंद नहीं आती है, तो उसके लिए फिल्म के किसी एक करेक्टर को आसानी से दोषी ठहरा देते हैं! मसलन, अमिताभ बच्चन की वो फिल्म बड़ी बकवास थी, शाहरुख़ की नयी रिलीज 'दिलवाले' बेहद बकवास फिल्म थी... फलाना, ढिमका! किन्तु, क्या वाकई इन हीरो या हीरोइनों पर ही फिल्म की
नैंसी अपने बॉयफ्रेंड के साथ भारत आयी थी और यहीं उसने सतीश के साथ शादी करने का फैसला भी ले लिया. दोनों शहर के एक बड़े मंदिर में शादी करने की फोर्मेलिटीज पता करने पहुंचे थे. वहां काफी गहमागहमी थी और गेरुआधारी पुजारियों के साथ झक सफ़ेद कुरता पहने नेता टाइप के लोग भी जमा थे. किसी मुद्दे पर चर्चा चल रही थी
समाचार" | न्यूज वेबसाइट बनवाएं. | सूक्तियाँ | छपे लेख | गैजेट्स | प्रोफाइल-कैलेण्डरआखिर, किसी पार्टी के आधे से ज्यादे विधायक बगावत पर उतर आएं तो आप इसे सामान्य परिस्थिति नहीं मान सकते! अरुणाचल प्रदेश में पिछले साल 16 दिसंबर से राजनीतिक संकट है जब कांग्रेस के 21 विद्रोही विधायकों ने विधानसभा की बैठक
अरविन्द केजरीवाल और उनकी तथाकथित नैतिकता के ऊपर खूब लिखा-पढ़ा जा रहा है, लेकिन मेरी तरह और भी कई लोगों का स्पष्ट मानना है कि अब वह राजनीति में हैं और उन्हें येन केन प्रकारेण अपनी सत्ता कायम रखनी ही होगी. किन्तु, जब उनके क्रियाकलापों को राजनीति के पैमाने पर तोलने बैठते हैं, तो वह बड़े मजबूर और असफल नजर
जेएनयू का मुद्दा निश्चित रूप से बेहद गंभीर मुद्दा है, लेकिन क्या वाकई यह इतना महत्वपूर्ण मुद्दा था कि इसमें अमित शाह, नीतीश कुमार, अरविन्द केजरीवाल, टॉप कम्युनिस्ट लीडर्स के संग हाफीज़ सईद को भी शामिल कर लिया गया! यही हाल कुछ दिन पहले दादरी में एखलाक की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के समय हुआ था, जिसमें संयु
नयी केंद्रीय सरकार की दूरदर्शी योजनाओं में एक और मील का पत्थर शामिल हो गया है. प्रधानमंत्री के अति महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट के रूप में दर्ज 'स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट' को निश्चित रूप से एक दूरदर्शी प्रोजेक्ट के रूप में देखा जा सकता है. गाँवों से पलायन करते लोगों की संख्या जिस प्रकार बड़े शहरों में बढ़ती जा
बहुत दिन नहीं हुआ, जब शिवसेना द्वारा पाकिस्तानी गायकों, पाकिस्तान के साथ क्रिकेट संबंधों को लेकर जबरदस्त विरोध जताया जा रहा था. सवालों पर शिवसेना का तर्क यही था कि जिस देश के साथ हमारे सम्बन्ध हमेशा ही दुश्मनी के हों, जो बात-बात पर परमाणु हमले की धमकी देता हो, भारत के अभिन्न हिस्से जम्मू कश्मीर पर
तमाम एंटीवायरस सुरक्षा के बावजूद यदि आपके कंप्यूटर में वायरस आ जाते हैं तो इसका मतलब कहीं न कहीं आपसे चूक हो रही है. कई बार अवांछित प्रोग्राम/ सॉफ्टवेयर आपकी अनचाही सहमति इतनी जल्दी और घुमावदार तरीके से ले लेते हैं कि आपको पता ही नहीं चलता है. जैसे कई बार ऐसी पॉप-अप विंडो खुल जाती है, जिसमें क्लोज क
सोना सदैव से मानव इतिहास में महत्वपूर्ण रहा है. अर्थव्यवस्था में तो इसका रोल रहा ही है, व्यक्तिगत सम्पन्नता के मामले में भी सोने का रोल अद्वितीय रहा है. हमारे भारतीय घरों में तो सोने के लिए क्या-क्या महाभारत नहीं होता है. सच कहा जाय तो नारी सशक्तिकरण के दौर से पहले, सोना ही औरतों की एकमात्र थाती रही
देश में जबसे नरेंद्र मोदी सरकार ने कार्यभार संभाला है, तबसे उन्होंने जबरदस्त तरीके से विदेश यात्राएं की हैं. इस बात के लिए उनकी सराहना और आलोचना दोनों की जा रही है. कोई कह रहा है कि उनकी यात्राओं से भारत का गौरव और रूतबा बढ़ रहा है, तो कोई कह रहा है कि वह कूटनीति की बजाय किसी 'इवेंट मैनेजर' की तरह शो
सीरिया में जिस तरह से तमाम वैश्विक महाशक्तियां दिलचस्पी ले रही हैं, उसने तमाम विश्लेषकों को चिंता में डाल दिया है कि कहीं यह तृतीय विश्व युद्ध का शुरूआती बीज तो नहीं. प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के भयावह परिणामों को दुनिया आज तक नहीं भूल सकी है और द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त हुए अभी 100 साल भी नह
फ़्रांस आतंकी हमलों का नया पसंदीदा ठिकाना बन गया है. विशेषकर, 2015 के शुरू से ही एक के बाद एक हमले ने इस पश्चिमी देश को डराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. आतंकियों का वर्तमान हमला इस साल फ्रांस में होने वाला छठा आतंकी हमला है. थोड़ा पीछे से चला जाय तो, 7 जनवरी, 2015 को पेरिस में मशहूर व्यंग्य पत्रिका चा
कांग्रेस नेता और संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की ओर से महासचिव पद का चुनाव लड़ चुके शशि थरूर आजकल काफी चर्चा में हैं. चर्चा की कई वजहें हैं, जिनमें एक सोनिया गांधी द्वारा उनको साफगोई के लिए डांट पड़ना था तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनकी काउंटर तारीफ़ करना भी चर्चा के कारणों में शामिल रहा है.
उद्योगपतियों और मजदूर वर्ग की संघर्ष की दास्तानें सदियों पुरानी हैं और यह समस्या आज 21वीं सदी में भी मुंह बाए खड़ी दिखती है. विशेषकर, जब हम भारत जैसे देश की बात करते हैं तब इसकी एक विशाल आबादी का हित हमारे सामने होता है तो बदलते दौर में औद्योगीकरण का बढ़ता कम्पीटीशन, जिसमें चीन जैसे देश हमें पीछे करते
रोज की तरह निर्मल अपने नर्सरी में पढ़ने वाले बेटे को छोड़ने स्कूल गया तो गेट पर उसकी क्लास टीचर खड़ी थीं. स्वभाववश निर्मल ने अभिवादन किया तो इशारे से मैडम ने उसे अपने पास बुलाया तो उसे लगा कि बेटे के बारे में कुछ सुझाव या शिकायत होगी शायद! जी मैडम! वो आपसे कुछ बात करनी है... जी! प्रिंसिपल सर से नह
सांप और छछूंदर की कहानी तो हम सब जानते ही हैं, मगर राजनीति करने वालों के लिए आज के समय में भ्रष्टाचार का रूप भी कुछ ऐसा ही हो गया है. कभी-कभी यह बात समझ से बाहर हो जाती है कि आखिर एक नेता राजनीति से पहले ईमानदारी की बात करता है और जब वही राजनीति में घुस जाता है तो फिर भ्रष्टाचार को रोकने की बात तो द
अपने वेबसाइट बनाने के कार्य के लिए एक संस्थान की मैडम के पास मेरा जाना हुआ तो वहां एक दूसरी मैडम बैठी थीं. मुझे देखते ही उन्होंने मेरा परिचय कराते हुए कहा कि जब तू एनजीओ बनाएगी तब इनकी जरूरत तुझे पड़ेगी! उन दूसरी मैडम ने झट से मुझसे कहा "आपका भी एनजीओ है!" मैंने कहा, जी नहीं! मैं वेबसाइट बनाता हूँ,
आप उनसे प्यार कर सकते हैं, आप उनसे नफरत करा सकते हैं, लेकिन आप उन्हें 'अनदेखा' नहीं कर सकते हैं ... किसी हाल में नहीं! जी हाँ, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अचानक पाकिस्तान यात्रा ने सीधे-सीधे कई प्रभावों और संभावनाओं को जन्म दिया है. इन सरगर्मियों को सनसनी टाइप ब्रेकिंग स्टाइल में देखा जाय तो
कई मित्रों ने फेसबुक पर, कई ने फोन करके मुझे पूछा कि फेसबुक से कमाई कैसे होगी. आखिर उनका काफी सारा समय इस प्लेटफॉर्म पर यूँही व्यतीत हो जाता है. जो कुछ मैंने उन्हें अलग-अलग बताया, उसको आपके सामने यहाँ रखता हूँ- १. कंटेंट (Content is king) : यह सिर्फ फेसबुक के लिए नहीं, बल्कि पूरे इंटरनेट व्यवसाय के
सुप्रीम कोर्ट में 159 पृष्ठों की रिपोर्ट सौंपने के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए जस्टिस लोढ़ा ने अपने रिपोर्ट की व्यापकता के सन्दर्भ में कहा कि उन्होंने बोर्ड अधिकारियों, क्रिकेटरों और अन्य हितधारकों के साथ 38 बैठकें की और उस आधार पर तैयार रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट यह फैसला करेगा कि भारतीय क्रिके
तोड़ दे हर 'चाह' किनफरत वो बिमारी हैइंसानियत से हो प्यारयही एक 'राह' न्यारी है बंट गया यह देश फिरक्यों 'अकल' ना आयीरहना तुमको साथ फिरक्यों 'शकल' ना भायी 'आधुनिक' हम हो रहेया हो रहे हम 'जंगली'रेत में उड़ जाती 'बुद्धि'सद्भाव हो गए 'दलदली' हद हो गयी अब बस करोनयी पीढ़ी को तो बख्स दो'ज़हरीलापन' बेवजह क्यों
कबीर दास जैसा लोकप्रिय, यथार्थवादी और अभिव्यक्ति की आज़ादी का जश्न मनाने वाला कवि भला दूसरा कौन होगा? किसको उन्होंने नहीं घेरा है और किसकी परतें उन्होंने नहीं उधेड़ी हैं? पर उन्होंने भी कह ही दिया है कि-'ऐसी बानी बोलिए, मन का आप खोयऔरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय'देखा जाय तो, काफी कुछ इस दोहे में छिपा
कैसी हो रश्मि! मार्च में पड़ने वाले अपनी देवरानी के बच्चे के बर्थडे पर आनंदी उसके घर आयी थी. ठीक हूँ दीदी, आप कैसी हैं! मैं भी ठीक हूँ, रागिनी आ गयी है. आने ही वाली है, फोन आया था उसका. गाँव से आकर बड़े शहर के अलग-अलग हिस्सों में रहने वालीं तीन संपन्न बहुओं में रागिनी सबसे छोटी थी. शाम को केक कटने के
यह बात कोई दबी छुपी नहीं है कि अरविन्द केजरीवाल की महत्वाकांक्षा राष्ट्रीय राजनीति को लेकर रही है और वह कोई दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश से तो पूरी होगी नहीं! इसके लिए, उन्हें यहाँ से बाहर कदम बढ़ाने ही थे और इसकी पहली सटीक शुरुआत होने जा रही है पंजाब से. आने वाले समय में यूं तो कई राज्यों में चुन
रोज बदलती चुनौतियों में किसी भी देश के लिए उसकी वायुसेना का महत्त्व किसी भी अन्य सैनिक माध्यम की तुलना में काफी हद तक बढ़ गया है और इस क्रम में भारतीय सेना भी अपवाद नहीं है. हाल ही में भारतीय वायु सेना की चर्चा तब हुई जब अचानक ही दादरी के अख़लाक़ को भीड़ द्वारा दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से मार डाला गया. अख़ल
देश में अगर हर मामले का हल उच्चतम न्यायालय के आदेशों से ही निकले तो फिर समझना मुश्किल नहीं है कि देश में प्रशासनिक व्यवस्थाएं किस हद तक चरमरा गयी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि वह जवाब दाखिल कर बताए कि सभी राज्यों में समाज कल्याणकारी योजनाओं का स्टेट्स क्या है? क्या लोगों को जरूरत की
आर्थिक मुद्दे सदा से मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं, किन्तु आज के समय में लोग 'अर्थ' की प्रधानता को सर्वव्यापी व सभी समस्याओं के एकमात्र समाधान के रूप में भी देखते हैं. इस हवा में दूसरी बहुत महत्वपूर्ण चीजें भी गौण हो चुकी हैं, मसलन सम्बन्ध, चरित्र, सहयोग, शिक्षा, उद्यम इत्यादि. भारतवर्ष के वर्
अभी पिछले साल की ही बात है, जब विवादित सिंगर मीका द्वारा थप्पड़ मरने की घटना पर एक डॉक्टर के कान का परदा फट गया था और उनको डिप्रेसन तक में जाना पड़ा! इस ममले में बॉलीवुड के सिंगर मीका सिंह को दिल्ली पुलिस ने अरेस्ट भी किया था, हालांकि मीका को तुरंत बेल भी मिल गई थी. तब पुलिस ने पीड़ित डॉ. श्रीकांत की श
तब्बू की मशहूर चांदनी बार के बाद बन्नी और बबलू नाम से हिंदी फिल्म देखी, जो दिल को छू गयी. 2010 में रिलीज हुई इस फिल्म को युनुस साजवाल ने निर्देशित किया है तो उमेश चौहान ने इसका निर्माण किया है. धांसू अभिनेता के रूप में पहचान बना चुके के.के.मेनन और राजपाल यादव ने इस फिल्म में फाइव स्टार होटल और मुंबई
पिछले दिनों एक वैश्विक रिपोर्ट में जब दावा किया गया कि पाकिस्तान अपने यहाँ तेजी से परमाणु हथियारों का ज़खीरा बढ़ा रहा है, ठीक तभी से पाकिस्तान की परमाणु शक्ति संपन्न देश होने की जिम्मेदारी पर भी गंभीर चर्चाएं हो रही हैं. अपनी परमाणु तकनीक की तस्करी के लिए कुख्यात पाकिस्तान की बिडम्बना देखिये कि जबसे भ
डर लगता है मुझे ही नहीं सबको क्योंकि, ऐसा कोई बचा नहीं 'मच्छर' ने जिसको डंसा नहीं जी हाँ! एक ऐसा प्राणी जो कभी भेदभाव नहीं करता अमीर-गरीब, युवा-बुजुर्ग, ज्ञानी-मूर्ख पर डंक का एक समान प्रहार करता है शाम होते ही इनसे बचने की जुगत में लग जाते हैं सब दरवाजे, खिड़कियाँ बंद क्वायल, हिट, इंसेक्ट किलर, ओडोम
सुबह निकलने से पहले ज़राबैठ जाता उन बुजुर्गों के पासपुराने चश्मे से झांकती आँखेंजो तरसती हैं चेहरा देखने कोबस कुछ ही पलों की बात थी ________________लंच किया तूने दोस्तों के संगकर देता व्हाट्सेप पत्नी को भीसबको खिलाकर खुद खाया यालेट हो गयी परसों की ही तरहकुछ सेकण्ड ही तो लगते तेरे ________________निक
आज के समय में सोशल मीडिया के इस्तेमाल न सिर्फ स्टेटस सिम्बल के लिए, बल्कि एक जरूरत के रूप में आकार ले चूका है. इस बात में कोई शक नहीं है कि इंटरनेट क्रांति के दौर में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के रूप में दुनिया को एक बेहतरीन तोहफा मिला है. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सप्प, पिंटरेस्ट, टंब्लर, ग
कभी कभी किसी मुद्दे को छोड़ देना, छेड़ने से ज्यादा असरकारी होता है और पुरानी कहावत भी है कि 'मांगे बिन मोती मिले, मांगन मिले न भीख'! आज जिन हालातों में वैश्विक समीकरण उलझे हुए हैं, उसमें भारतीय प्रशासन द्वारा बार-बार सुरक्षा परिषद के लिए रट्टा मारना कुछ उसी तरह से निरर्थक है, जिस प्रकार कश्मीर मुद्दे
हां! उसके दोस्त उसे यही कहते थे. सुरेन्द्र नाम था उसका. धीर-गंभीर व्यक्तित्व, शांति से बात करने वाला, मजबूत तर्कों का स्वामी और सटीक आंकलन उसके खूबियों में शुमार थे. गाँव की चुनावी चौपाल से उसने राजनीतिक गुणा-गणित सीखा था, उसके बाद देश की राजधानी दिल्ली में कई पत्र-पत्रिकाओं में उसके राजनीतिक लेख छप
किसी शायर ने ठीक ही कहा है: हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती !!आखिर क्या मजबूरी रही होगी एक प्रधानमंत्री के समक्ष कि विकास की बात करते-करते, उसने अपनी एक रैली में कांग्रेस को 'सिक्ख दंगे' का काला अध्याय याद दिला डाला. आप बेशक, उस पर वोट-बैंक की राजनीति
जन गण मन 'अधिनायक' जय हे ... बचपन से इसे हम सब गाते रहे हैं और इसकी धुन कहीं सुन भी लें तो अपने आप सावधान की मुद्रा बन जाती है. दुःख की बात यह है कि हृदय और आत्मा तक घुस चुके इस गीत पर भी विवाद खड़ा करने से लोग खुद को रोक नहीं पाते हैं. इस बार राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने भारत के राष्ट्र गान प
जम्मू कश्मीर सदा से ही भारतवासियों के गले की हड्डी रहा है. हालाँकि, वर्ष 1989 में शुरु हुए घाटी में सशस्त्र विद्रोह को 1996 में नियंत्रित कर लिया गया और चरमपंथियों को आत्मसमर्पण के बाद भारतीय सुरक्षा बलों के सहयोगियों के तौर पर सक्रिय करने की नीति अपनाई गई ताकि चरमपंथ का मुकाबला किया जा सके. बावजूद
दूसरे की तकलीफ़ तुम्हें ज़रा भी समझ नहीं आती है, कभी किचेन में दो रोटियां बनाओ फिर एक हाउसवाइफ का दर्द पता चलेगा, रागिनी ने भड़कते हुए कहा! उसका पति रमेश भी कहाँ कम था, ताना मारते हुए बोला- कभी हमारी तरह धूप में बाहर निकलो और ऑफिस की पॉलिटिक्स झेलो, तुम्हें भी आटे-दाल का भाव पता चल जायेगा. उन दोनों की
पिछले दिनों म्यांमार का नाम भारतवासियों के बीच तब खासा चर्चित हुआ था जब, भारतीय सेना ने म्यांमार की सीमा के अंदर उग्रवादियों के शिविरों पर कार्रवाई कर 50 से अधिक उग्रवादियों को मार गिराया था और उनके ठिकानों को तहस नहस कर दिया था. भारत की इस कार्रवाई से सहमे पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए तब अपनी प्
हाल ही में अमित शाह द्वारा दिया गया बयान बड़ा चर्चित रहा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि पांच साल मोदी सरकार के लिए काफी नहीं हैं. इससे पहले उन्होंने काले धन को लेकर बयान दिया था कि यह एक 'चुनावी जुमला' था. इन प्रश्नों के सहारे यदि हम राजनीतिक दलों के खर्चों और चंदों की जड़ तक पहुँचने की कोशिश करें तो
आम चुनाव में नीतीश का भाजपा विरोध स्टैंड लेना और उसके बाद नरेंद्र मोदी के भारी बहुमत से सत्ता में आ जाने के बाद ऐसा लगा था कि नीतीश कुमार की राजनीति चूक गयी है. लेकिन, नीतीश कुमार ने चुनाव जीतकर और जीतने के बाद अपनी सधी हुई नीतियों से बार-बार फिर साबित किया है कि उन्हें बिहार की राजनीति का चाणक्य यू
भारत में वेतन आयोग का लम्बा इतिहास रहा है. 1946 में गठित पहले वेतन आयोग से लेकर 2013 में गठित सांतवे वेतन आयोग के गठन का सामान्य तौर पर एक ही मकसद रहा है कि सरकारी कर्मचारियों की वेतन विसंगतियों को दूर किया जाय. आश्चर्य है कि समय-समय पर यह आयोग वेतन में सहूलियतों को तो बढ़ावा देता रहा है, किन्तु आज 2
मार्च 1993 में मुंबई में एक के बाद एक हुए 12 धमाके हुए थे. इन धमाकों में 257 लोग मारे गए थे और 700 से ज़्यादा लोग ज़ख्मी हुए थे. इस केस में कई लोगों पर मुकदद्मे दर्ज हुए, जिनमें दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन मुख्य थे. मेमन को छोड़कर बाक़ी 10 दोषियों की फांसी की सज़ा को उम्रकैद में बदल दिया गया था और अ
2002 में जब नयी दिल्ली में 8वें जलवायु परिवर्तन कांफ्रेंस का आयोजन किया गया तो उसमें विकसित देशों द्वारा विकासशील और पिछड़े देशों को उच्च तकनीक के ट्रांसफर की बात कही गयी थी, जिससे उनके ऊपर जलवायु परिवर्तन को लेकर कम दबाव और समूचा विश्व उद्देश्यों की ओर आगे बढ़ सके. रूस, जो अकेले 17 फीसदी कार्बन उत्सर
जब मैंने पापा को 'थैंक यू' कहा तो वह भावुक हो गए. उन्हें यह शब्द सुने कई साल हो गए थे शायद! हाँ, अपनी आर्मी की नौकरी में उन्होंने खूब 'थैंक यू' खूब सुना है. कभी खाली समय में वह अपने सूटकेस को खोलते हैं, तो उनके सर्टिफिकेट देखकर हैरानी होती है. एनसीसी के बेस्ट कैडेट से लेकर, बेस्ट टीम लीडर, बेस्ट मोट
हालाँकि, हेडिंग में प्रयोग किये गए दो शब्दों 'सेलरी और प्रदूषण' में कोई सीधा-सीधा तालमेल नहीं है किन्तु दिल्ली की सरकार इन दो शब्दों की वजह से ही खूब चर्चा बटोर रही है. दिल्ली की केजरीवाल सरकार, जो अक्सर विवादों में ही रहती है और अपने विधायकों की बेहतहाशा सेलरी बढ़ाने को लेकर वह फिर विवादों में घिर ग
साहब! बाइक की सर्विसिंग आप लेट मत कराया कीजिये, इंजिन को नुकसान पहुँचता है, देखिये बहुत कम तेल बचा है और इसका लुब्रिकेशन भी खत्म हो चुका है. हाँ! हाँ! अगली बार जल्दी करा लूंगा, कहकर राहुल ने अपने मुंहलगे मैकेनिक से पल्ला झाड़ लिया. वह अक्सर अपनी बाइक उसी मैकेनिक से ठीक कराया करता था. आदतन, अगली बार भ
भारतीय राजनीति में यह सबसे बड़ी बिडम्बना रही है कि यहाँ बात-बेबात संसद को न चलने की धमकी दी जाती है और उस धमकी पर तमाम सांसद बखूबी अमल भी करते हैं. एक मजबूत शख्शियत के रूप में अपनी पहचान बना चुके हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मामले को लेकर बेहद परेशान हो जाते होंगे, जब उनके तमाम जतन के बावजूद सं
एक बार जगा गौरव है चहुंओर दिखा सौरभ है समझो महिमा भारत की फिर आज खड़ा 'कौरव' है विक्रमादित्य के 'तेज' तुम्हीं हे भरत! न्याय के पुंज तुम्हीं राणा, शिवा, आज़ाद, भगत हो राष्ट्र ध्येय के 'अंग' तुम्हीं 'संत्रास' झेलती भारत माँ कातर पुकारती भरती 'आह' आया कहाँ से बोलो ये 'भेद' है नष्ट हो रहा सकल 'स्नेह' ब
जब हम देश में विभिन्न स्तर पर चुनावों का संपादन देखते हैं तो सकारात्मक भाव से लगता है कि राजतन्त्र से लोकतंत्र का सफर लगातार मजबूत हो रहा है. हालाँकि, विभिन्न स्तर पर हमारे देश में चुनावों की अधिकता ने विकास की रफ़्तार को भी धीमा किया है तो तकनीक की दक्षता की अभी काफी कुछ गुंजाइश नज़र आती है, जिससे पा
सुप्रीम कोर्ट के रूम नंबर चार में तीन जजों जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस प्रफुल्ल पंत और जस्टिस अमिताभ रॉय की लार्जर बेंच ने सुबह सुनवाई शुरू की. यहाँ, याकूब की ओर से तीन वकील आए थे और उन्होंने दो बातें कहीं- क्यूरेटिव पीटिशन पर दोबारा सुनवाई होनी चाहिए और डेथ वारंट जारी करने का तरीका गलत था. इसके
रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार (2012) भारत के राष्ट्रपति के द्वारा सम्मानित होने के बावजूद, राष्ट्रपति द्वारा ही राष्ट्रीय महिला आयोग के नए भवन ‘’निर्भया भवन’’ की आधारशिला रखे जाने के बावजूद और इंटरनेशनल वुमन ऑफ करेज अवार्ड, 2013 अमेरिका द्वारा सम्मानित किये जाने के बावजूद 'निर्भया' शब्द आज भी मस्ति
लोकतंत्र मूर्खों का तंत्र है, ऐसा किसी विचारक ने कहा है तो दुसरे विचारकों ने इस भीड़ बनाम भेड़-तंत्र की संज्ञा देने से भी गुरेज नहीं किया है. भीड़ तंत्र से अभिप्राय यह निकाला जा सकता है कि वगैर सही अथवा गलत की परवाह किये, एक के पीछे दूसरा और फिर उसके पीछे अंधी दौड़ लगाने का सिलसिला चल निकलता है. यूं तो
फेसबुक पर आप बैठ जाइए तो किसी मुद्दे की इतनी परतें उधड़ती हैं कि कभी-कभी सोचना मुश्किल हो जाता है कि आखिर असल मुद्दा था क्या? निर्भया केस में खुद को बुद्धिजीवी कहने वाले एक महानुभाव निर्भया के माँ-बाप पर ही पिल पड़े थे कि उन्होंने इस केस के लिए मुआवजा क्यों लिया, और बलिदान क्यों नहीं हो गए! अगर वह बलि
बहुत ज्यादे दिन नहीं हुए जब जदयू नेता शरद यादव ने संसद में बयान देते समय दक्षिण भारत की महिलाओं के फिगर और कसावट को लेकर बयान दिया था. तब हंगामा भी हुआ और होहल्ला भी मचा, किन्तु कभी सर्वश्रेष्ठ सांसद का खिताब पा चुके शरद यादव ने अपने बयान पर माफ़ी नहीं मांगी. अपने देश में ही क्यों, अमेरिका की प्रथम म
हर नया साल कुछ अवसर, कुछ चुनौतियां साथ लेकर आता है, इसलिए 2016 की शुरुआत के समय इस बात का एक आंकलन अवश्य किया जाना चाहिए कि 2015 में सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप से पूरे विश्व ने किन चुनौतियों का, किस हद तक सामना किया. इस बात से हमें नए वर्ष का स्वागत सजगता के साथ करने में काफी हद तक सहूलियत तो ह
रिपोर्ट में तो 'एचआईवी पॉजीटिव' के लक्षण दिख रहे हैं, लिफाफे से लैब के कागज़ों को निकालकर देखते हुए उस डॉक्टर ने कहा! अवधेश को काटो तो खून नहीं. हज़ारों युवकों की तरह, वह बिहार के एक गाँव से नोएडा आया था. मन उसका भी काम में नहीं लगता था, लेकिन उसके बाबूजी ने उसे जबरदस्ती शहर भेज दिया. गाँव पर उसका घर
सीरिया मुद्दे पर बंटे इस्लाम जगत में एक बार फिर भूचाल सा आ गया है और इस बार वजह बने हैं शिया नेता निम्र अल निम्र. सऊदी अरब में वैसे भी मौत की सजा बात-बात पर दी जाती रही है और इसी सन्दर्भ में जारी एक आंकड़े के अनुसार, इस इस्लामिक कंट्री में वर्ष 2015 में कम से कम 157 लोगों का सिर कलम कर उन्हें सजा-ए-म
Hindi article and irresponsible corporate, depth analysis by mithilesh
कभी-कभी यह सोचना बेहद अजीब और दोहरा अहसास देता है कि इस दुनिया में जब सब अच्छे हैं, तो बुराई इतनी तेजी से फैलती कहाँ से है? आप किसी भी व्यक्ति, समूह या संस्थान से उसका पक्ष जान लीजिये, अंततः आप यही निष्कर्ष निकालेंगे कि सब लोग ईश्वर के कितने भक्त हैं, एक दूसरे का कितना ख़याल रखते हैं... बला, बला... औ
बुद्धिजीवियों के एक समूह में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को हल्के रूप में पेश करने की प्रतिस्पर्धा सी चल पड़ी है. आप तमाम विचारकों के लेखों को देखिये अथवा सोशल मीडिया पर नए रंगरूटों द्वारा चलाये जा रहे अभियानों पर गौर करें तो पाएंगे कि दिल्ली सरकार जैसी-तैसी, लड़खड़ाती, संभलती राजनीति के लंग
कहते हैं कि अगर आप समस्याओं की तरफ देखोगे तो समाधान ढूंढना तो दूर सोचना भी दूभर हो जाता है. हालांकि, इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप व्यवहारिकता के धरातल से इतना ऊपर उठकर सोचें कि गिरने पर आपकी हड्डी-पसली एक हो जाए. इसलिए वह चाहे व्यक्ति हो, संस्था हो या देश ही क्यों न हो, उसे वर्तमान और भविष्य की चु
अंग्रेजी काल के बारे में जब हम पांचवी या छठी कक्षा में यह पढ़ते थे कि उस समय हिन्दू मुसलमान के बीच में फूट डालने के लिए अंग्रेज अधिकारी कभी मंदिर में गाय का मांस और मस्जिद में सूअर का मांस डाल देते थे, तब बड़ा अजीब लगता था और बालमन के हिसाब से यह समझ से बाहर की बात थी. थोड़े और बड़े हुए तो मंगल पाण्डेय
चुनावी लोकतंत्र में अगर सिद्धांतों की बात की जाय तो यह सिरे से ही एक जुमला कहा जाएगा, क्योंकि इसका अंत उसी प्रकार से होता है कि अंततः येन केन प्रकारेण जीत किस प्रकार हासिल की जाय! और फिर जब देश के सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश में चुनावी बिसात की बात आती है तो फिर यह और भी दिलचस्प हो जाता है. उत्तर प्र
लिखना तो बहुत चाहता हूँ, पर आज नहीं! आज भारत की जीत की दुआ करूँगा फ़रियाद करूँगा यूं तो रहता हूँ दूर हर 'टोटके' से पर आज नहीं! आज रात भर टूटते तारे को देखूँगा आँखें बंद करके बुद-बुदाऊँगा नापसंद करता हूँ इन कमाऊं क्रिकेटरों को पर आज नहीं! आज इन्हें असली 'सैनिक' सोचूंगा बल्ले से बार
16 जनवरी को, बिहार की राजधानी पटना के श्रीकृष्णपुरी थाना क्षेत्र में अज्ञात अपराधियों ने दिन-दहाड़े एक स्वर्ण व्यवसायी की गोली मारकर हत्या कर दी. कारण था, जबरन पैसों की मांग! इसके पहले 12 जनवरी को, बिहार के सीतामढ़ी जिले के सुप्पी सहायक थाना क्षेत्र में हथियारबंद अपराधियों ने एक सीमेंट व्यवसायी की ग
हम सबके प्यारे बच्चा भाई देश में चल रहे माहौल से परेशान हैं. बड़ा कुरेदने पर उन्होंने आश्चर्य से बताया कि, यार! क्या छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, नेता-अभिनेता, शिक्षित-अशिक्षित और ऐसी ही दूसरी तमाम कैटेगरीज के लोग असीमित गुस्से में डूबते जा रहे हैं! आगे बताया बच्चा भाई ने कि लोग शिकार तो हो रहे हैं वह एक बा
कई विश्लेषक खूब जोर-शोर से अमित शाह के दोबारा भाजपा अध्यक्ष बनाये जाने पर किन्तु-परन्तु करने में लगे हुए थे, किन्तु पटकथा लगभग तैयार ही थी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुहर के बाद भाजपा की चुनावी प्रक्रिया एक औपचारिकता भर ही थी. इस क्रम में, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपने दूसरे कार्यकाल के लिए निर्विर
घेरने हैं आ गयी वो फ़ौज देखो बदलियों की फिर से मौज देखो छुप गया सूरज गगन की ओट में मुस्कान है लगी खिलखिलाने लोटने -------- जेठ की तपती अगन में भी मगन खेत में चलता न दुखता उसका मन बीज जो डाले हैं उसने जतन से इस बार भी रोये न अपने पतन से -------- शहरों में भी कम नहीं दुश्वारियां बदहवास हो भागते नर न
समाचार" | न्यूज वेबसाइट बनवाएं. | सूक्तियाँ | छपे लेख | गैजेट्स | प्रोफाइल-कैलेण्डरपिछले दिनों एनसीआर में एक प्लॉट का पावर ऑफ़ अटार्नी कराने की बात आयी तो कई दलालों से बात करने के बाद भी 28 हजार पर बात बनी. मुझे अंदाजा था कि इसमें कम से कम आधी फीस तो गवर्नमेंट को जाएगी ही, बाकी आधी दलालों की जेब में
बाबा रामदेव उन शख्सों में हैं, जिनकी आम जनमानस में एक व्यापक छवि है. इसके लिए उन्होंने लम्बा संघर्ष भी किया है जिसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया जाना चाहिए. हालाँकि, हालिया दिनों में बाबा रामदेव सरकार के साथ अपने संबंधों का इस्तेमाल अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए करते देखे जा रहे हैं तो ऐसे में स्वाभाविक
पत्रकार, लेखक और उद्यमी मिथिलेश की...बहु प्रतीक्षित किताब 'एक कदम आगे, दो कदम पीछे' !!|| (प्रिंट और ई-बुक दोनों फॉर्मेट में) ||लेखक, पत्रकार और उद्यमी मिथिलेश द्वारा रचित 'एक कदम आगे, दो कदम पीछे' का ई-वर्जन और पेपरबैक आप पब्लिशर से आर्डर कर सकते हैं. राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर आधारित इस किताब मे
आया चुनाव नजदीक है, बन लोकतंत्र की लाज देखो, सुनो परखो जरा, यह है ज़रूरी काज। यह है ज़रूरी काज, नाच नेता की देखो। छल कपट दंश प्रपंच, वक्त पर तुम भी समझो। कहते 'अनभिज्ञ' सही, दूर हो मोह व माया शांत बुद्धि से वोट दो, दिन तुम्हारा आया। साठ साल तक राज में, ना उभरा दूजा और | कांग्रेस की दुर्गति में, यह
आतंकियों के भाषण, तक़रीर से हेडली जैसे मुसलमानों का ब्रेनवाश किस कदर होता है, अगर किसी को यह समझना हो तो उसे वीडियो कांफ्रेंस द्वारा भारतीय अदालत को दिए गए बयान को जरूर ही सुनना चाहिए. खुलेआम हाफिज सईद, अज़हर मसूद और दुसरे ऐसे आतंकी, पाकिस्तानी आवाम का ब्रेनवाश तो कर ही रहे हैं, इसके साथ ही साथ वह पाक
एक बड़ी मार्मिक, लेकिन सुनी सुनी कहानी जब मैंने अपने फेसबुक वॉल पर शेयर किया तो जबरदस्त लाइक और कमेंट के साथ कई लोगों ने उसे री-शेयर भी किया. लेख को आगे बढ़ाएं, उससे पहले किसी अज्ञात महानुभाव द्वारा लिखित यह छोटी कहानी आपके सामने रखता हूँ, जिसके अनुसार:एक बेटा अपने बूढ़े पिता को वृद्धाश्रम एवं अनाथालय
'वेलेंटाइन डे' के नाम से किस जवां दिल में गुदगुदी नहीं होती होगी. अब तो यह बाकायदा एक मल्टीनेशनल स्टाइल में सेल्स-वीक की तरह मनाया जाने लगा है. जी हाँ! 'सेल्स-वीक' के नाम से आप कन्फ्यूज नहीं होइए, क्योंकि तमाम बड़ी कंपनियां प्रेम के नाम पर कारोबार का बड़ा सुनहरा जाल बिछाए हुए हैं. वेलेंटाइन डे से लगभग
सम्पूर्ण विश्व में योग से भला कौन परिचित नहीं होगा. यूं तो पहले ही अनेक योग गुरुओं, जिनमें बाबा रामदेव का नाम प्रमुख है, योग को जबरदस्त ढंग से प्रचारित और प्रसारित कर दिया था, लेकिन जिस ढंग से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग की है, उसने प्रत्येक भारतीय की छा
कहते हैं कि 'जिनके घर शीशे के होते हैं, उन्हें दूसरे के घरों पर पत्थर फेंकने से बचना चाहिए'. इस कहावत को 2014 के आम चुनाव में मिली जबरदस्त हार के बाद कांग्रेस पार्टी ने बहुत जल्दी भुला दिया और सहिष्णुता-असहिष्णुता इत्यादि मुद्दों को लेकर संसद तक को ठप्प करने की एकतरफा कार्रवाई इतने ज़ोरदार ढंग से करन
भारत की राजनीति में कई बड़बोले नेता हैं, जिनकी गंभीर बातों को भी मजाक बना दिया जाता है, किन्तु आम जनमानस के साथ विश्लेषकों को भी तब भारी आश्चर्य हुआ जब अनेक गंभीर और अपेक्षाकृत साफ़ छवि के नेताओं ने अपने बयानों से अपनी छवि ख़राब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कई बार बेवजह तो कई बार अधूरी जानकारी के कारण स
शाम को लौटते हुए अक्सर मैं बच्चा भाई की बैठक में चला जाता था, लेकिन आज वह खुद मेरे घर पधारे हुए थे. छूटते ही चहक कर बोले, सुधीन्द्र कुलकर्णी के बाद आज शिवसैनिक बीसीसीआई के ऑफिस में भी गुंडागर्दी करने घुस गए! ऐसे मुद्दे पर उनकी ख़ुशी देखकर मेरे चेहरे पर आश्चर्यमिश्रित गुस्सा उभर आया, क्योंकि खुद बच्चा
हिंदू सनातन धर्म 'संयुक्त परिवार' को श्रेष्ठ शिक्षण संस्थान मानता है। धर्मशास्त्र कहते हैं कि जो घर संयुक्त परिवार का पोषक नहीं है उसकी शांति और समृद्धि सिर्फ एक भ्रम है। आज के बदलते सामाजिक परिदृश्य में संयुक्त परिवार तेजी से टूट रहे हैं और उनकी जगह एकल परिवार लेते जा रहे हैं, लेकिन बदलती जीवन
ज़मीनी हकीकत की दृष्टि से अगर उत्तर प्रदेश की बात की जाय तो जब समाजवादी पार्टी की सरकार आती है तो यादव दबंगों की गुंडई बढ़ जाती है, जब बहुजन समाज पार्टी की सरकार आती है तो दलित नेता अपना दुष्प्रभाव दिखाने लगते हैं और जब भाजपा सत्ता में आती है तो अगड़े अपनी दबंगई दिखाने के लिए बदनाम हैं ही. यही हाल बिहा
तेरे हज़ार जवाबों से अच्छी मेरी ख़ामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रख ली. यह एक शेर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के सवालों के बाद कहा था. यूपीए से 10 वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह का देश की अर्थव्यवस्था को उदारीकरण के रास्ते पर ले जाने में बड़ा ह
पिछले 22 सितम्बर को जब गुडगाँव से 'कार फ्री डे' मनाने की खबर आयी तो मन के किसी कोने ने यह सोचने का दुस्साहस कर लिया कि बढ़ते प्रदूषण पर लोग चिंतित होना शुरू कर रहे हैं. सुबह 7 बजे से शाम के 7 बजे तक लोगों से अपनी गाड़ियों को सड़कों पर न उतारने को कहा गया, हालाँकि सड़कों पर इसका ज्यादा असर नहीं दिखा, बाव
यदि आप मोबाइल बैंकिंग इस्तेमाल करते हैं, तो इसके लिए सिर्फ ऑफिसियल एप्स ही इस्तेमाल करें. इसके अतिरिक्त बैंकिंग के लिए पब्लिक वाई-फाई का इस्तेमाल कतई न करें. इसके अतिरिक्त बैंकिंग से जुड़ी इंफोर्मेशन जैसे यूजरनेम, पासवर्ड, ट्रांजैक्शन पासवर्ड इत्यादि मोबाइल में कदापि सेव न करें. अपने फोन को पासवर्ड
अचानक और अप्रत्याशित रूप में अगर आपको पिछले 20 साल से फरार डॉन की गिरफ्तारी की ख़बर मिले तो एकबारगी आपको आश्चर्य जरूर होगा. तात्कालिक रूप से दो सवाल आपके मन में उठेंगे कि अब तक यह अपराधी सरकार को चकमा देने में सफल कैसे हुआ जबकि सीबीआई ने मुंबई पुलिस के अनुरोध पर जुलाई, 1995 में ही उसके खिलाफ रेड कॉर्
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ दिनों से 'घरेलु गैस' के ऊपर सब्सिडी छोड़ने की ज़ोरदार अपील कर रहे हैं. देश के विकास के लिए चिंतित हमारे पीएम इस अपील को कई कई बार दोहरा चुके हैं. हालाँकि, देश की संसद के सदस्य और खुद भाजपा से जुड़े नेता भी इस अपील पर कितना ध्यान दे रहे हैं, यह देखने वाली बात है. सब्सिडी छो
जब व्यवस्थाएं बदलती हैं तो वफ़ाएँ भी राह बदलती हैं और इसमें कुछ वक्त लगता ही है. इस बार तो बदलाव कई ओर से आने की सुगबुगाहट हो रही है. ख्यातिलब्ध और वरिष्ठ एक साहित्यकार महोदय से जब इस बारे में चर्चा हुई तो उन्होंने इस विरोध को पूरी तरह से प्रायोजित बताया और कहा कि जिस प्रकार कोई उदण्ड बालक दण्डित होन
देश में नयी सरकार का गठन हो चूका था. अलग अलग मंत्रालयों के लिए उस विषय से सम्बंधित योग्य व्यक्तियों की चर्चा थी. यह पहली बार था, जब देश को आज़ाद होने के 65 साल बाद देशवासियों को वास्तविक लोकतान्त्रिक सरकार मिली थी. भारत के लोगों को सर्वाधिक ख़ुशी तब हुई, जब देश के जाने माने डॉक्टर और ईमानदार राजनेता क
सवाल वही पुराना है कि आज देश में सरकार इतनी मजबूत कैसे हो गयी, कुछ लोगों के शब्दों में कहें तो 'निरंकुश' और 'तानाशाह'! आखिर यह स्थिति कैसे आ गयी कि एक सरकार किसी विशेष 'एजेंडे' को लागू करती जा रही है और उसका विरोध करने भर की राजनीतिक शक्ति किसी पार्टी के भीतर नहीं दिख रही है. विशेषकर, कांग्रेस जैसी
कांग्रेस की केंद्र सरकार के तमाम घोटालों के बाद जब अन्ना हज़ारे का जबरदस्त आंदोलन खड़ा हुआ तो उसकी तुलना जेपी द्वारा किये गए इमरजेंसी के दौरान आंदोलन से की गयी. इस आंदोलन के आउटपुट के रूप में देखा जाय 'अरविन्द केजरीवाल' ही दिखते हैं. व्यवस्था बदलने की इस लड़ाई से एकमात्र अरविन्द की उत्पत्ति ही हो सकी.
जब समाज में उलझन पैदा होती है तब समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर किसकी सुनें और किसकी न सुनें. लोग ऐसे समय बेहद संवेदनशील हो जाते हैं और दिमाग के बजाय दिल से फैसला लेते हैं, जिसमें पुराने तमाम ज़ख्म नकारात्मक रोल प्ले करते हैं. ऐसी स्थिति में जो चतुर लोग होते हैं, वह लोगों की भावनाओं से जमकर खिलवाड़
मुझे लगता है कि हमारी नयी पीढ़ी में भूकम्प की भयावहता अनुभव करने का यह पहला बड़ा अवसर है. ऑनलाइन माध्यमों से लेकर समाचार चैनलों तक पर खौफ पसरा हुआ है. इस बारे में कुछ जानकारियां और सुझाव निम्नलिखित हैं: सूचना सम्बंधित जानकारियां: गूगल द्वारा नेपाल भूकंप में प्रभावितों को ढूँढने के लिए या बताने क
अपराध की दुनिया सदा से ही रहस्यमय रही है और उससे भी ज्यादा रहस्य रहा है पुलिस से इसके संबंधों को लेकर. इस विषय पर कई बेहतर फिल्में भी बनी हैं, जो इस काली दुनिया के कई रहस्यों से परदा उठाने की कोशिश करती नज़र आती हैं. कई कथानकों में हमें अपराधियों के अपराध की दुनिया में जाने की मजबूरी देखने को मिलती ह
जबरदस्त हंगामे और सरगर्मी के बाद आखिर हो ही गयी सीबीआई जांच की घोषणा! सीबीआई अब व्यापम की जांच करेगी, जिसने कथित तौर पर कई लोगों की जानें ले ली हैं, क्योंकि घोटालेबाजों को अपना भेद खुलने का डर जो था. यही नहीं, इसके तार चम्बल से भी जोड़े गए. खूब हो-हल्ला हुआ, इस्तीफे मांगे गए, हाई कोर्ट के रास्ते सुप्
बिहार चुनाव जिस प्रकार से राष्ट्रीय मुद्दे के रूप में चर्चित हुआ और देश भर से पक्ष-विपक्ष दोनों ने जिस प्रकार से पटना में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया, उससे चुनाव परिणाम खुद-ब-खुद राष्ट्रीय महत्त्व के बन गए. बड़ी जीत के नायक नीतीश कुमार और लालू यादव दोनों ने चुनाव परिणाम के बाद राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव क
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को वर्ष प्रतिपदा या युगादि कहा जाता है। इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है। कहते हैं शालिवाहन नामक एक कुम्हार-पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से शत्रुओं का पराभव किया था। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक मे
त्यौहारों पर हालाँकि सकारात्मक बातें करनी चाहिए, किन्तु कभी-कभी ऐसे कटु अनुभव हो जाते हैं कि परदे के पीछे आपकी आँखें चली ही जाती हैं. फेसबुक पर हालाँकि ऐसी कई तस्वीरें आपको दिख जाएगी, किन्तु एक तस्वीर की चर्चा विशेष तौर पर करना चाहूंगा. नीचे की इस तस्वीर को आप भी देखिये. इसमें दीपावली पर मिले बोनस क
पिछले दिनों मुझे एक विचित्र अनुभव से गुजरना पड़ा. एनजीओ चलाने वाले एक मित्र, जिसका ऑफिस सेंट्रल दिल्ली में है, जाया करता हूँ. संयोग से उसके यहाँ काम करने वाली नौकरानी का एक्सीडेंट हो गया और वह दूसरी नौकरानी की तलाश में था. हालाँकि, नौकरानी ढूंढना कितना कठिन काम है, यह हम सबको पता है, लेकिन दोस्त की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह अंदाजा शायद ही लगाया हो कि बिहार में जबरदस्त हार के बाद ब्रिटेन की यात्रा में उन्हें उन सभी कड़वे प्रश्नों से भी गुजरना होगा, जिनसे पार पाना सहज नहीं. पिछले 18 महीने में दुनिया के कई देशों में एक के बाद दुसरे देश में भारतीय पीएम का शासकीय दौरा जिस प्रकार प्रभावी बनता
Read this book in 'PDF' Format... (Click here !!) POEM Book by Mithilesh in hindi book, peom, hindi poem, mithilesh anbhigya, new poem, new poet, kavi, kavitaye, kudaliya, metro poem, children poem, women poem, nari
आखिर अट्ठारह महीने के लम्बे इन्तेजार के बाद वह दिन आ ही गया, जिसका इन्तेजार विपक्ष को सबसे ज्यादा रहा होगा. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि बिहार में नीतीश कुमार की जीत ने विपक्ष को सांस लेने की मोहलत दी है. लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह एक के बाद दुसरे प्रदेश में भाजपा अपना वर्चस्व साबित करती जा रही
कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह भी कभी-कभी ठीक बात कह लेते हैं, अब यदि कोई उनको गंभीरता से नहीं लेता है तो इसमें उनका दोष क्या है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्किल इंडिया प्रॉजेक्ट को पुरानी योजनाओं पर आधारित बताते हुए दिग्गी राजा ने कहा है कि डिजिटल इंडिया की सारी कोशिशों की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत
रवीना टंडन अपने समय की चर्चित अभिनेत्री रही हैं और आमिर खान के बयान पर उनकी प्रतिक्रिया की एक लाइन से यह लेख शुरू करना चाहूंगा कि 'आमिर खान अक्लमंद मगर, राजनीति से प्रेरित हैं.' इस बात से शायद ही किसी को इंकार हो, क्योंकि आमिर खान की पहचान अभिनेता से ज्यादा सामाजिक मुद्दों के सहारे राजनीतिक मुद्दों
कांग्रेस उपाध्यक्ष और युवराज कहे जाने वाले राहुल गांधी जिन समस्याओं से सबसे ज्यादा चिंतित नज़र आते हैं, उसमें पंजाब में नशे के फैलते हुए दायरे का ज़िक्र वह कई बार कर चुके हैं. अच्छा है, एक राष्ट्रीय पार्टी के शीर्ष नेता को समस्याओं की फ़िकर होनी ही चाहिए, किन्तु तब स्थिति विपरीत हो जाती है जब खुद फ़िक्र
भ्रष्टाचार हमारे लिए कोई अपरिचित शब्द नहीं है. ट्रांसपरेन्सी इंटरनेशनल द्वारा २००५ में किये गए एक अध्ययन में यह बात सामने आयी थी कि करीब ६२ फीसदी लोगों द्वारा घूस देने के बाद उनका काम सफलतापूर्वक हो जाता था. इसी संस्था द्वारा २०१५ में किये गए एक अध्ययन के अनुसार भारत भ्रष्ट देशों की सूची में 85 व
इस बात में किसी प्रकार की कोई दुविधा नहीं है कि हमारे संविधान ने भारतीय ढाँचे में निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति को आगे लाने में बड़ी भूमिका का निर्वाह किया है. आज अगर हमारा लोकतंत्र समूचे संसार में गौरव का विषय बना हुआ है तो उसमें भारतीय संविधान की ही भूमिका है. भारी बहुमत से जीतकर सत्ता में आये प्रधान
बेटा, चाय लाना, तुम्हारे रमाशंकर अंकल आये हैं. मैं चाय लेकर बैठक में गया. पाँव छूने पर उनका आशीर्वाद था, बेटा तुम बड़े लेखक बनो. वह जब भी घर आते थे, मेरी लिखी कविताओं, छोटी कहानियों को पढ़ते थे और उसकी गलतियां मुझे बड़े प्यार से समझाते. कई बड़े अख़बारों/ पत्रिकाओं में उन्होंने अपने जीवन के 42 साल से ज्या
कभी-कभी यह बात उलझाऊ और दुखी करने वाली लगती है कि हम राष्ट्रीय सम्मान के विषय को भी बेहद हल्के तरीके से लेते हैं. जब मन भारी हुआ तो बाएं चल पड़े, जब मन हल्का हुआ तो दाहिने चल पड़े. आखिर बात वहीं आकर अँटक गयी है, जहाँ उसे सबसे बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ता है. एक तरफ भारत में क्रिकेट को धर्म का दर्जा
संसद के चालू सत्र में मध्य प्रदेश के कटनी से दिल्ली आए कुछ बच्चे संसद की कार्यवाही देखकर निराश हो गए थे. स्कूल की शिक्षिका की इस बाबत प्रतिक्रिया थी कि 'हम इन बच्चों को इतनी दूर से यहां संसद की कार्यवाही दिखाने लाए, संसद चली नहीं. ये तकरीबन हर रोज़ की कहानी है. जो लोग संसद की कार्यवाही देखने आते हैं
तब हममें से कई लोग उस अन्ना आंदोलन के समर्थक थे, जिसका टैगलाइन बना था 'जनलोकपाल'! आज जब सोचता हूँ तब यह लगता है कि तब के समय में कांग्रेसी शासन अत्यधिक अहंकारी और निरंकुश होने के साथ-साथ भ्रष्टाचार का वट-वृक्ष बन गया था और लोकपाल का योगदान इतना तो है ही कि इसने जनता को अपनी ताकत याद दिलाई तो राजनीति
कंप्यूटर इंजीनियरिंग, एमसीए, बीसीए के ग्रेजुएट जब कॉलेज से निकलते हैं तो बिचारों को कई कठिनाइयों से जूझना पड़ता है. आईआईटी, एनआईटी और कुछ बड़े कॉर्पोरेट इंजीनियरिंग संस्थानों को यदि छोड़ दिया जाय तो दुसरे इंजीनियरिंग कॉलेज से बड़ी संख्या में निकले ग्रेजुएट्स यहाँ, वहां इंटरव्यू देते हुए निराशा की ओर बढ़न
ज़रा गौर करें, जिस शहर में 40 फ़ीसदी मोबाइल फ़ोन और 20 फ़ीसदी लैंडलाइन फ़ोन काम नहीं कर रहे हों, वहां आज के युग में क्या हालात होंगे? जाहिर है, इसके पीछे कुछ दिनों से जारी भारी बारिश वजह बनी है, जिससे तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, क्योंकि शहर के 60-70 फ़ीसदी इलाके प
राजनीति की वर्तमान दुनिया में यदि दो बड़े विरोधियों की बात की जाय तो निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार का नाम सबसे ऊपर आएगा. वैसे, नरेंद्र मोदी के कई कट्टर विरोधी रहे हैं, लेकिन चर्चित तो नीतीश कुमार ही हुए हैं. मोदी का विरोध नीतीश कुमार ने राजनीति से परे हटकर व्यक्तिगत स्तर पर भी निभाया
बार-बार हम आतंक का शिकार होते हैं और बार-बार यह प्रश्न उठने के साथ ही दब सा जाता है कि आतंक के खिलाफ हम वाकई कितने गंभीर हैं? यह प्रश्न सर्वाधिक सरकार से ही पूछा जाता है और पूछा जाना भी चाहिए, लेकिन क्या वाकई अकेले सरकार सक्षम है आतंक से निपटने में? या फिर जनता को भी प्रत्येक स्तर पर इसके लिए गंभीर
अभी नवजात को आये कुछ ही घंटे हुए थे और हॉस्पिटल से जच्चा बच्चा डिस्चार्ज भी नहीं हुए थे कि उसके नामकरण को लेकर परिवार में सियासत शुरू हो गई. उसके दादा ने डिक्टेटरशिप हांकते हुए कहा कि मैंने दो महीने पहले से ही नाम सोच रखा है और वह है देवांश. किसी को कोई ऐतराज है क्या? उसकी दादी ने बोला कि चूँकि वह
भारत सरकार से नेपाल के बिगड़ते रिश्ते दिन-ब-दिन मीडिया की सुर्खियां बनते जा रहे हैं तो हमारा मजबूत प्रतिद्वंदी चीन इसका पूरा फायदा उठाने की कोशिश में लग गया दिखता है. सामान्य तौर पर जो इसका कारण नज़र आ रहा है, वह यही है कि मधेसी लोगों को नेपाल ने अपने संविधान में अधिकारों के लिहाज से दरकिनार करने की भ
पिछले दिनों ऊफ़ा में भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तानी पीएम की बैठकों के बाद कुछ उम्मीद जगी थी कि कम से कम 21वीं सदी में दोनों देश अपने देश की गरीब जनता पर तरस खाएंगे और आतंक की राह छोड़ने की संभावनाएं तलाशेंगे. लेकिन, कुत्ते की दुम में कितना भी घी लगाया जाय, उससे वह सीधी तो हो नहीं जाती है. नरे
इस लेख का टाइटल मैंने किसी भावुकता में नहीं दिया है, जैसा कि कुछ अतिवादी किया करते हैं, बल्कि कई पक्षों को सामने रखने के बाद यह तथ्य आप ही सामने आ जाता है कि पाकिस्तान किसी भी समझौते को लागू करने की स्थिति में या उसका पालन करने की स्थिति में है ही नहीं! विशेषकर भारत के सन्दर्भ में जब बात की जाती है,
.......... लेख मिटा दिया गया है !!
अब तक हम 'वसुधैव कुटुंबकम' का मन्त्र ही सुनते आये थे, किन्तु 2015 के आखिरी महीने में इस मन्त्र को 'वसुधा' की ही खातिर सुनते देखना एक अविश्वसनीय अनुभव सा प्रतीत होता है. पूरे विश्व में जहाँ एक ओर मुसलमानों और उनकी कथित 'आतंकी' संस्कृति को लेकर होहल्ला मचा हुआ है, लोग समर्थन और विरोध में अपनी आवाजें ब
27 जुलाई की शाम तकरीबन 8 बजे जब एक पत्रकार-मित्र ने फोन करके मुझे कहा कि डॉ. अब्दुल कलाम नहीं रहे तो एकबारगी यकीन ही नहीं हुआ. मुझे कुछ दिन पहले की झारखण्ड की शिक्षा मंत्री द्वारा डॉ. कलाम के चित्र पर पुष्पांजलि करने वाली घटना स्मरण हो आयी और मैंने उन मित्र महोदय से फोन पर कई बार कन्फर्म किया. तब तक
वह गाना तो हम सबने सुना ही होगा कि गरीब की सुनो, वो तुम्हारी सुनेगा... लेकिन, सरकार और अफसरशाही इस लोकप्रिय गीत के भाव को उल्टा कर के गाते हैं. सिर्फ गाने तक बात हो तो एक बात है, किन्तु हमारा तथाकथित सिस्टम गरीबों को बेघर करने की कार्रवाई करने में जबरदस्त ढंग से यकीन करने लगा है. मात्र दो-चार दिन पह
बड़ी सरगर्मी थी फिल्म इंडस्ट्री में. गलाकाट प्रतिस्पर्धा और कास्टिंग काउच के सबसे बड़े केंद्र के रूप में कुख्यात बॉलीवुड में लोग एकता का प्रदर्शन करते हुए सुपर स्टार सल्लू चौहान के घर पहुँच रहे थे. उनको किसी गरीब की हत्या के मामले में कोर्ट द्वारा सजा सुनायी गयी थी और वह ज़मानत पर अपने फ्लैट पर मौजूद थ
अभी बहुत ज्यादे दिन नहीं हुए कि देश भर में कुछ हद तक मुफ्त इंटरनेट की सुविधा देने की फैसबुक कवायद पर जमकर होहल्ला मचा था. इंटरनेट डॉट ओआरजी नामक इस प्रोग्राम को नेट न्यूट्रालिटी से जोड़कर तब जमकर एक अभियान सा शुरू किया गया था और कहा गया था कि इंटरनेट की सुरक्षा और स्वायत्ता पर खतरा मडरा रहा है और अगर
पूरे विश्व में फेसबुक, गूगल प्लस, लिंकेडीन और दुसरे प्लेटफॉर्म्स का उभार बेहद तेजी से हुआ है, जिसका प्रयोग लाखों करोड़ों यूजर्स करते हैं. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि ट्विटर, सोशल मीडिया के अन्य सभी प्लेटफॉर्म्स से ज्यादा चर्चा में रहता है. बात चाहे पॉलिटिक्स की हो, सिनेमा की हो या कोई सोशल मुद्
केंद्र की पिछली यूपीए सरकार में और कुछ था या नहीं, किन्तु 'अतिथि देवो भव' का नारा सीने स्टार आमिर खान के मुंह से कहलवाकर इस सरकार ने ऐसा माहौल जरूर खड़ा किया था, जिससे लगा कि पर्यटन उद्योग काफी गति में है. इसके बाद आयी मोदी सरकार ने भी 'रामायण सर्किट' समेत अनेक परियोजनाओं को लेकर ज़ोर शोर दिखाया, किन्
Last Seen: settings> account> privacy> lastseen विकल्प पर जाइये. यहां Everyone, My contacts, Nobody जैसे विकल्प दिखेंगे. इसमें से Nobody पर क्लिक करते ही आपका लास्ट सीन टाइमस्टैम्प पूरी तरह से हाइड कर दिया जाएगा. इसके लिए वॉट्सऐप का लेटेस्ट सिक्युरिटी वर्जन (2.11.444 वर्जन) डाउनलोड करना होगा. यूजर
जैसे-जैसे 2017 नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे चुनावी राजनीति के तमाम सिम्पटम्स दिखने लगे हैं. हालाँकि, अयोध्या का राममंदिर मुद्दा और आंदोलन प्रदेश की चुनावी राजनीति से कहीं ज्यादा अहमियत रखने वाला रहा है. न केवल प्रदेश की राजनीति में, बल्कि देश भर की राजनीति में अयोध्या और राम-मंदिर का एक खास महत्त्
अपने अब तक के इतिहास में कांग्रेस का इतना बुरा दौर शायद ही आया हो. लोकसभा में उसके सदस्यों की संख्या 44 के स्तर तक पहुँचने को तो शर्मनाक कहा ही जा सकता है, मगर उससे भी ज्यादा लज्जास्पद यह बात है कि कांग्रेस वर्तमान के राजनीतिक हालात से अभी भी मुंह चुराती नजर आ रही है. हकीकत में उसे इस बात का अहसास
हाल ही में, ग्लोबल फायरपावर संस्थान ने दुनिया भर के 10 देशों की सबसे ताकतवर मिलिटरी पावर को रैंक दिया. इसमें 68 देशों के डिफेंस फोर्सेज को रैंकिंग के लिए कई मानकों पर परखा गया, जिसमें भारत को चौथे स्थान पर रखा गया. इस आंकलन में मैन पावर, लैंड सिस्टम, एयर पावर, नेवी पावर, संसाधन, सैन्य संचालन के साथ
प्रधानमंत्री की बहुचर्चित चीन यात्रा की बड़ी चर्चाएं हैं. चूँकि अब संघी ही सत्ता में हैं, इसलिए चीन के प्रति बड़े मधुर बयान देकर कूटनीति को साधने की कोशिश हो रही है. भाजपा तो खैर पीआर की कोशिशों में लगी ही है. इस कड़ी में यथार्थवादियों को कोई खास उम्मीद नहीं है और उसका कारण भी बड़ा स्पष्ट है, जो सरकारी
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रह चुके मार्कण्डेय काटजू के उस बयान को मीडिया में कवरेज मिली थी, जिसमें कश्मीर मुद्दे का हल सुझाते हुए उन्होंने कहा था कि सेक्युलर, मजबूत, और आधुनिक सोच वाली सरकार के नेतृत्व में भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश एकीकृत हों. काटजू ने यह भी कहा था कि ऐसा तभी हो सकता है जब इसका
इस बात की सच्चाई पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं है कि आज़ादी के बाद से ही पाकिस्तान भारत विरोध पर ही ज़िंदा रहा है, अन्यथा उसके न केवल कई टुकड़े हो गए होता बल्कि गृह युद्ध के कई दौर उसके सामने आ चुके होते. आतंकवाद के अपने कई प्रयासों के असफल होने के बाद पाकिस्तान की ओर से नयी कोशिशें बदस्तूर जारी हैं. एक ओर ज
26 जनवरी 2015 को जब बराक ओबामा भारत आये तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना नाम लिखा सूट पहना था, जिसकी जमकर चर्चा तो हुई ही, आलोचना भी हुई. खैर, उसके बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र सरकार को लगभग पूरे साल 'सूट-बूट' की सरकार कह कर निशाने पर लेते रहे. पीएम ने कभी इसका सीधा जवाब नहीं दिय
पाकिस्तान के प्रति आज की घटना ने कइयों की तरह मेरे मन में भी सहानुभूति और पीड़ा का पहाड़ बना दिया है. यूं तो पाकिस्तान और उसके रहनुमाओं के लिए यह दो-चार दिन में भूल जाने वाली बात होगी, तथापि विश्व के लिए आतंक की शरणस्थली पाकिस्तान में हुई घटना बेहद चौंकाने वाली है. जिस प्रकार पेशावर के आर्मी स्कूल में
देश में किसी भी विशिष्ट सुविधा को अगर कुतर्क के सहारे सही साबित करना हो तो विशिष्ट जन झट से विदेश के उदाहरणों को सामने ले आते हैं. ऐसे ही तर्क संसद की कैंटीन में भारी-भरकम सब्सिडी देने के लिए प्रयोग किये जाते रहे हैं मसलन, सांसदों के पास समय का अभाव होता है. उन्हें कई बिल पर चर्चा करनी होती है और उन
Indian banking system should be more relevant to citizens, hindi article by mithilesh
कभी-कभी खोटे सिक्के कह लें या फिर अगम्भीर व्यक्ति भी सामूहिक दिलों की भड़ास को एक स्वर दे देते हैं, जो काबिल और जिम्मेदार व्यक्तित्व भी नहीं दे पाते. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने पठानकोट आतंकी हमले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जो करारा हमला बोला है, निश्चित रूप से उसने कई दिलों के ज़ख्मों
ऑनलाइन खबरें पढ़ती हुईं दो ख़बरों पर मेरी नजर रूक गयी. हालाँकि, यह मुद्दा सनसनी पैदा करने वाला नहीं है, किन्तु हमारी जड़ों को खोखला करना अथवा मजबूत करना बहुत कुछ इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमता रहता है. पहली खबर बिहार से है, जहाँ पटना में आयोजित एक सम्मलेन में शामिल होने गए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कु
जब देश का नेतृत्व पेचीदगियों और वैश्विक राजनीति में उलझा हो, तब अपनी बेबशी पर रोने के सिवा किया भी क्या जा सकता है? सीमा के साथ कायराना आतंकी हमलों में सेना के जवान अपनी जान गंवाते रहते हैं और हम नम आँखों से उन्हें श्रद्धांजलि देते रहते हैं. किन्तु, बदलते समय के साथ कुछ लोगों का दिल-ओ-दिमाग किस हद त
शिकायत के बाद भी 'भारतीयों को कुत्ता' कहने वाली लाइन नहीं हटाई 'बीबीसी हिंदी' ने ... !!जी हाँ! अपनी रिपोर्टिंग से नाम कमाने वाला बीबीसी एक बड़ा अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड है. लेकिन, इसके कई लेख और भारत विरोधी सोच काफी कुछ सोचने को मजबूर करती है. पिछली बार, निर्भया के साथ हुए हादसे पर बीबीसी की लेस्ली उडवि
'देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें', इस गीत का मतलब जितना समझने की कोशिश की जाय, उतनी ही गहराई नज़र आती है. वस्तुतः, देश हमें क्या नहीं देता और वह भी जब भारत जैसे उदार, लोकतान्त्रिक और सर्व धर्म समभाव वाले देश की बात हो तो यह बात और भी विशेष हो जाती है. किन्तु, कुछ समझदार और खुद को बुद
You want to make a Website? You already own a website, but having a lot of issues, related? Price Confusion? Social Media, Blogging, CMS, Static Website Confusion, then this article is for you in Hindi, by Mithilesh. वेबसाइट क्यों? (वृहत्तर विजिटिंग कार्ड): शुरूआती स्तर पर वेबसाइट को आप एक तरह का वि
पिछले कुछ दिनों में इतने नए मुद्दे उठे हैं देश में, मानो पहले कोई कार्य होता ही न था या फिर राजनीति में आये केंद्रीय बदलाव से तिलमिलाहट ने नया रूख अख्तियार करना शुरू किया हो. सहिष्णुता-असहिष्णुता के साथ गोमांस, सेंसर-बोर्ड मामला, एफटीआईआई समेत दूसरे मामलों में नियुक्ति विवाद, भाषा-साहित्य विवाद बला.
शुरुआत में जब नयी नयी 'समझ' की कोंपलें फूट रही थीं, तब ऐसी कई बातें थीं जो दिमाग के बहुत ऊपर से निकल जाती थीं. भारत जैसे देश में चूँकि चुनाव होते ही रहते हैं, कभी लोकसभा, कभी विधानसभा, कभी ग्राम-पंचायत और इनके बीच में भी तमाम दुसरे चुनाव. इन चुनावों में एक कॉमन बात यह सुनने को मिलती रहती थी कि अमुक
स्वामी विवेकानंद के विशेष गुणों में अगर एक गुण धर्म को लेकर चला जाय तो उनसे बड़ा सनातन धर्म का प्रचारक कोई दूसरा व्यक्ति नहीं दिखता. न केवल देश में, बल्कि विश्व के अनेक छोरों तक उन्होंने संतान धर्म की कीर्ति को नए आयाम दिए. यहाँ अगर इस उद्धरण को वर्तमान से जोड़ते हुए एक छोटा सा सवाल उठाया जाय कि एक ओर
यूं तो ऐसा कोई दिन नहीं, जब बिहार से सम्बंधित खबरें राष्ट्रीय सुर्खियां न बनती हों. बात चाहें राजनीति की हो, गरीबी की हो, पलायन की हो, जर्जर सड़कों की हो या स्कूल की चारदीवारियों पर चढ़े नक़ल कराते लोगों की हो, बिहार हर रोज राष्ट्रीय परिदृश्य पर चर्चा में बना रहता है. आज के दिन दो ख़बरों ने इस प्रदेश की
आखिर किसने उम्मीद की थी कि भारत-पाकिस्तान सीधे मुंह बात भी कर सकते हैं? मगर, बदले हालात में शुरूआती संकेत कुछ मिले हैं, जिन्हें लेकर उम्मीद की एक किरण जरूर दिख रही है. कहने वाले बेशक इसे कुछ भी कहें कि यह संकेत अस्थायी हैं, अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान आतंकियों पर कार्रवाई का दिखावा कर रहा है, पाकि
हमारे संविधान में कहा गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, लेकिन क्या यह सच में है? शायद नहीं! बल्कि, इस देश में सरकारी नीतियां धर्म से सर्वाधिक प्रभावित होती हैं तो यहाँ की राजनीति तो इसके लिए बदनाम है ही. इतिहास पलटने का कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि शाहबानो से लेकर दुसरे प्रकरण हमारे ज़ख्मों को
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘स्टार्ट अप’ अभियान की शुरुआत से पहले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत इस अभियान पर देर से ‘जागा’ है और इसके लिए वह भी जिम्मेदार हैं क्योंकि वह पहले खुद ही प्रशासन में रहे हैं. जाहिर है, भारत के राष्ट्रपति कोई कठपुतली नहीं हैं और इस पद से पहले उन्होंने कई
थोड़ा तेज भगाओ भाई इस रेगिस्तान के जहाज को, सचिन ऊंट वाले से बोला! जैसलमेर के रेगिस्तान में ऊंट पर मैं अपने दोस्त सचिन के साथ बैठा हुआ था. उस रेगिस्तान में दूर-दूर तक पेड़ पौधों का नामोनिशान तक नहीं दिख रहा था सिवाय कुछ कंटीली झाड़ियों के. और साथ में रेत पर ढ़ेर सारी बियर की बोतलें भी बिखरी हुई थीं. इस
हिंदुत्व में धर्म और मनुष्य की व्याख्या करते हुए कितनी सुन्दर और सटीक बात कही गयी है कि यह शरीर नश्वर है और आत्मा अजर अमर है और मरने के बाद व्यक्ति के कर्म और कर्मफल तक यहीं रह जाते हैं. किन्तु, यही बात हमारे राजनेताओं को कौन समझाए, जो व्यक्ति के मरने के बाद उसकी जाति-धर्म का रोना शुरू कर देते हैं.
जर्मनी की बड़ी कंपनी फॉक्सवैगन के प्रदूषण धोखाधड़ी सॉफ्टवेयर मामले में फंसने से निश्चित रूप से जर्मनी की औद्योगिक साख को चोट पहुंची है. ऐसे ही समय जर्मन की राष्ट्र प्रमुख, जो दुनिया की ताकतववार महिलाओं में शुमार होती रही हैं, उनका भारत यात्रा पर आना, वह भी चार दिनों के लिए अपने आप में महत्वपूर्ण संकेत
सच तो यह है कि पाकिस्तान के ही अलग-अलग धड़े वह चाहे सरकारी हों, फौजी हों या फिर आतंकी संगठन ही क्यों न हों, इस राष्ट्र का मजाक उड़ाने में लगे रहते हैं. ज़रा गौर कीजिए, जमात-उद-दावा चीफ और मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड हाफिज सईद ने भारत को धमकी दी सो अलग और उसने यह तक कह डाला कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारो
विश्व में सर्वाधिक फिल्में बनाने वालीं इंडस्ट्री बॉलीवुड में बेहद कम ऐसी फिल्में बनती हैं, जो अपने मूल उद्देश्य मनोरंजन के साथ साहित्यिक उद्देश्य को भी पूरा करती हैं. साहित्य को समाज का दर्पण बताया गया है और यह बेहद आवश्यक है कि किसी दर्पण की ही भांति समाज को उसका बदलता चेहरा दिखाने की कोशिश करते रह
समाचार" | न्यूज वेबसाइट बनवाएं. | सूक्तियाँ | छपे लेख | गैजेट्स | प्रोफाइल-कैलेण्डरभारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि भारत में आर्थिक सुधार सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उन्होंने देश में अनेक पुराने व बेकार के कायदे कानून बने रहने का जिक्र करते हुए कहा कि सुधार का स्तर ‘ठीक
पिछले दिनों तब बड़ा हंगामा मचा था, जब एक नामी साहित्यकार ने अपने से काफी कम उम्र के एक मुख्यमंत्री का पैर पकड़ लिया था. बड़ा हो हल्ला मचा, खूब सारी बातें कही गयीं कि साहित्य तो राजनीति की दशा दिशा तय करता था, और अब वह राजनीति के चरणों में पड़ा हुआ है. यूं भी साहित्यकारों की बदहाल आर्थिक स्थिति के बारे
समाचार" | न्यूज वेबसाइट बनवाएं. | सूक्तियाँ | छपे लेख | गैजेट्स | प्रोफाइल-कैलेण्डरईमानदारी से देखा जाय तो व्यक्ति हों अथवा राष्ट्र कठिनाइयाँ, चुनौतियां सभी के जीवन का निश्चित रूप से अंग होती ही हैं. ऐसे समय जरूरत होती है पुरुषार्थ की जो चुनौतियों को अवसरों में बदलने का स्वप्न देख सके, उसकी योजना ब
भारतीय टीम जिस बुरे तरीके से ऑस्ट्रेलिया के हाथों वर्ल्ड-कप के सेमीफाइनल में पराजित हुई, उससे देश के करोड़ों क्रिकेट-प्रेमियों का दिल टूट गया, लेकिन इस पूरे वाकये को बड़ी आसानी से सिर्फ खेल भावना का नाम देकर उन प्रशासनिक खामियों पर लीपापोती नहीं की जा सकती है, जो बेहद महत्वपूर्ण हैं. विश्व के सबसे धनी
समाचार" | न्यूज वेबसाइट बनवाएं. | सूक्तियाँ | छपे लेख | गैजेट्स | प्रोफाइल-कैलेण्डरअमीरी-गरीबी का मुद्दा सर्वकालीन है, इस बात में कोई दो राय नहीं है. हाँ! आज चूँकि हम खुद को आधुनिक, शिक्षित, विकासशील, मानवतावादी और जाने क्या-क्या होने का दावा करते रहते हैं तो ऐसे में अमीरी और गरीबी के बीच की खाई को
बिहार विधानसभा का चुनाव राजनीति के लिहाज से कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि चुनाव आयोग ने सुरक्षा की दृष्टि से इसे पांच चरणों में कराने का निर्णय लिया. इतने ज्यादा चरणों में चुनाव जम्मू कश्मीर या नार्थ ईस्ट जैसे क्षेत्रों में कराया जाता रहा है. 12, 16 और 28 अक्टूबर
ऑस्ट्रेलिया में भारतीय क्रिकेट टीम द्वारा क्लीन-स्वीप की घटना ऐतिहासिक है. किसी मित्र ने बताया मुझे कि यह कई दशकों बाद हुई घटना है. हालाँकि, मैंने इसकी तस्दीक नहीं की, लेकिन इस बात में मुझे कतई शक नहीं है कि विदेशी ज़मीन पर भारतीय टीम का यह चमत्कार ही है. इसकी चर्चा आगे करेंगे, लेकिन हमें यह स्वीकार
वर्तमान मैगी विवाद की चर्चा से पहले संजीदा फिल्मकार मधुर भंडारकर की सुपरहिट फिल्म 'कार्पोरेट' की चर्चा नही करना उचित नही होगा. इस फिल्म में बेहद साफ तरीके से दिखाया गया है कि किस प्रकार कार्पोरेट कंपनियाँ अपने ग़लत सही कार्यों को आगे बढ़ाने का कार्य संपादित करती हैं. संयोग से इस फिल्म में भी फूड प
यूं तो हम प्रगतिवादी हैं, लेकिन जब बात महिलाओं की आती है तो हम ज़रा देर में रूढ़िवादी भी हो जाते हैं. इस पूरे सन्दर्भ में शनि महाराज और हाजी अली पर जो हालिया विवाद उत्पन्न हुआ है, उसने एक बार फिर यह साबित किया है कि आदमी खुद को हर किसी से बड़ा समझता है और शनि से लेकर शुक्र और हाजी अली तक सबको वह अपनी स
देश, समाज की ज़रा भी जानकारी रखने वाला व्यक्ति जय प्रकाश नारायण के नाम से न केवल सुपरिचित होगा, बल्कि इस लोकनायक के बारे में और अधिक जानने समझने को उत्सुक भी होगा. मेरा जन्म चूंकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ है, जिसे जय प्रकाश नारायण की जन्मस्थली भी कहा जाता है, इसलिए मेरी उत्सुकता इस म
खुद को आधुनिकता और टैलेंट विकसित करने का ठेकेदार मान चुके अति आधुनिक स्कूलों में से एक रेयान इंटरनेशनल स्कूल में 6 साल के एक बच्चे की मौत का मामला सामने आने के बाद दिल्ली के स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने साफ़ कहा कि वह एक एमसीडी स्कूल
किरण बेदी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. वर्तमान समय में यदि युवकों/ युवतियों से उनके आदर्श व्यक्तित्वों की सूची बनाने को कहा जाय, तो उनमें से अधिकांश की सूची में किरण बेदी का नाम टॉप-१० में जरूर होगा. बचपन से उनके किये गए कार्यों, उनकी सूझबूझ, उनका साहस, दूरदर्शिता और इन सबसे बड़ा उनका जुझारूपन सक्र
अभी ज्यादे दिन नहीं हुए, जब बीते 15 नवंबर 2015 और इस साल 4 जनवरी को दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर (लद्दाख) में बर्फीला तूफान आया था. उस तूफान में सैन्य गश्तीदल को जानमाल की हानि हुई थी, जिसमें चार जवान शहीद हो गए थे. अचानक तेज हवाओं के साथ बर्फीला तूफान शुरू होने की घटनाओं से बच
अनगिनत बुद्धिजीवियों द्वारा, अनेक जगहों पर यह बात कही गयी है कि हिन्दू धर्म सबसे वैज्ञानिक धर्म है और इसके अनेक कर्मकांड सामाजिक कुरीतियों व समस्याओं को दूर करने का सामूहिक प्रयत्न करते हैं. खुद आरएसएस के मोहन भागवत का भी हालिया बयान इसी सन्दर्भ में आया जब उन्होंने हिन्दुओं से वैज्ञानिक सोच रखने की
जिस प्रकार आम आदमी पार्टी और उससे पहले इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन से एक-एक करके ईमानदार और सिद्ध छवि के व्यक्तित्व अलग होते चले गए, उसने इस बात की पुख्ता नींव तैयार कर दी थी कि जो राजनीतिक महल इस नींव पर खड़ा किया जायेगा, उसमें भी वही ईंटें और पत्थर लगेंगे, जो ईंट-पत्थर कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूं तो कई देशों की हाई-प्रोफाइल यात्राएं कर चुके हैं, लेकिन हमारे महत्वपूर्ण पड़ोसी बांग्लादेश की यात्रा कई मायनों में ख़ास है. बांग्लादेश का भारतीय इतिहास में बेहद खास स्थान रहा है. इतिहास के आईने में देखा जाय तो आज़ादी के समय देश का विभाजन, फिर चीन से जंग हारना हमारे राष्
जिस भारत राष्ट्र के लिए सीमाओं पर खड़े सैनिक लड़ाइयों में तो जान देते ही हैं, वगैर लड़ाई लड़े भी उनकी जानें जा रही हों, अगर उसी देश में राष्ट्रद्रोह की बातें बड़े स्तर पर होने लगें तो फिर सोचना जरूरी हो जाता है कि आखिर देश किस दिशा में जा रहा है. सियाचिन की बर्फ में दबे बाकी जवानों की जानें तो पहले ही नि
युवावस्था में तो उसकी कलम रूकती ही नहीं थी। प्रत्येक दिन सामाजिक, राजनैतिक मुद्दों की वह परत-दर-परत व्याख्या कर डालता था, जिसे सराहना के साथ बड़े छोटे अख़बार अपने पृष्ठों पर जगह भी देते थे। जो मुद्दा उसके दिल को छूता था, उस पर जानकारियां जुटाना और अपने विचार उसमें पिरोकर कई सुंदर मालाएं उसने रची... ल
अरविन्द केजरीवाल के राजनीतिक उभार में तमाम अन्य कारण हो सकते हैं, किन्तु उनके जैसी उर्वरा राजनीतिक ज़मीन सैकड़ों सालों में किसी-किसी को मिलती होगी! नेता जो सर्वदा एक-दुसरे की जड़ काटते रहते हैं, उन तक ने एक होकर केजरीवाल को बढ़ाने का कार्य किया है! आखिर कोई नेता इतना सौभाग्यशाली हो सकता है क्या कि दूसरा
एक बार फिर हम सबके प्रिय 'बच्चा भाई' परेशान हैं. वह परेशान हों भी क्यों नहीं! घर-परिवार से लेकर देश-दुनिया तक की समस्याओं पर उनकी चिंता और चिंतन चलता ही रहता है. उनकी बैठक के सामने से गुजरा तो मेरे ही इन्तेजार में बैठे मिले. भला उन्हें मेरे जैसा हामी भरने वाला दूसरा कहाँ मिलता. यूं तो मैं उनसे बचकर
जितना ढिंढोरा पीटा गया इन दो शब्दों का, उतना ही उल्टा हश्र भी हुआ. पिछले 20 साल से जजों की नियुक्ति में सुधार लाने की चर्चाएं हो रही थीं और सुप्रीम कोर्ट ने इसको बड़ी बेदर्दी से असंवैधानिक ही बता डाला. कोर्ट का यह निर्णय आना था कि सरकार ने प्रतिक्रिया देने में ज़रा भी विलम्ब नहीं किया और अति सक्रियता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तमाम योजनाओं के साथ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत कर दी है. महिला एवं बाल विकास, मानव संसाधन मंत्रालय की साथ वाली इस योजना में मुख्य रूप से स्त्री-पुरुष लिंगानुपात घटाने पर ज़ोर देने की बात कही गयी है. इसके अतिरिक्त लड़कियों की उत्तरजीविता और संरक्षण सुरक्षित क
प्रवासियों की निष्ठा पर प्रश्न उठना कोई नई बात नहीं है. कोई उनको अपनी छोड़ी गयी ज़मीन के प्रति गद्दार बताता है तो जिस नयी ज़मीन पर वह गए हैं, वहां उन्हें अपना नहीं माना जाता है. थोड़ा पीछे जाएँ तो भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय जो मुसलमान भारत में अपना सब कुछ छोड़कर भी पाकिस्तान चले गए हैं, उनको भी वहा
दिल्ली के चुनाव परिणामों ने देश की राजनीति में आ रहे बदलावों को व्यापक रूप से पुख्ता किया है. इसे समझने के लिए हमें पिछले लोकसभा चुनावों का पन्ना फिर से पलटना होगा. 9 महीने पहले जब लोकसभा में नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत लेकर लोकसभा में पहुंचे थे तो यह बात बड़ी जोर शोर से कही गयी कि उनकी जीत 'हिंदुत्व क
केंद्र सरकार के खिलाफ जन आंदोलन चरम पर था. वैसे तो ऐसे आन्दोलनों का लाभ विपक्षी पार्टियां उठाने की भरपूर कोशिश करती हैं, किन्तु इस आंदोलन पर देश के नामी संस्थानों से पढ़े लिखे और बेहद प्रोफेशनल्स लोगों का नियंत्रण था. आंदोलन के चेहरे के रूप में बूढ़े और गाँधीवादी विचारों पर जीवन गुजारने वाले जगपति थे.
डॉ. विनोद बब्बर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. उनकी अनेक किताबें हम सब पढ़ चुके हैं. आज के मोबाइल इंटरनेट के ज़माने में जहाँ हिंदी साहित्य की समृद्ध विधाओं में शुमार 'यात्रा-संस्मरण' लुप्त होते जा रहे हैं, वहीं डॉ. बब्बर का लिखा 'इंद्रप्रस्थ से रोम' तक नामक यात्रा-संस्मरण एक सराहनीय प्रयास है. मेरी दृ
देश में यदि पिछले कुछ सालों में सर्वाधिक चर्चित टॉपिक्स को ढूँढा जाय तो उनमें निश्चित रूप से 'इंडियन प्रीमियर लीग' भी शामिल होगा. ललित मोदी से लेकर लोढ़ा कमिटी तक और धोनी से लेकर गावस्कर के रास्तों से होते हुए यह आईपीएल राजीव शुक्ला, शरद पवार और अरुण जेटली तक को खुद में समेटे हुए है. इससे जुड़ी सकार
हाल ही में दिल्ली में लगे इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में जाने का अवसर मिला. एक बात, जो थोड़ी नकारात्मक भी लग सकती है, उनका ज़िक्र करना चाहूंगा. इस अंतर्राष्ट्रीय मेले में हमारे तमाम स्टेट-पाविलियन में जो बात कॉमन दिखी वह यह थी कि 'हमारे यहां बिजनेस करो, हमारे यहाँ निवेश करो, हमारे यहाँ इसकी आसानी है,