किरण बेदी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. वर्तमान समय में यदि युवकों/ युवतियों से उनके आदर्श व्यक्तित्वों की सूची बनाने को कहा जाय, तो उनमें से अधिकांश की सूची में किरण बेदी का नाम टॉप-१० में जरूर होगा. बचपन से उनके किये गए कार्यों, उनकी सूझबूझ, उनका साहस, दूरदर्शिता और इन सबसे बड़ा उनका जुझारूपन सक्रीय और गंभीर युवाओं के लिए प्रेरणास्पद रहा है. स्कूली बच्चों और विशेषकर एनसीसी जैसे ट्रेनिंग संस्थाओं से जुड़ें व्यक्तियों के लिए वह सर्वोच्च प्रेरणादायक रही हैं. एक आदर्श और प्रामाणिक व्यक्तिगत जीवन के साथ किरण बेदी उन नामों में हैं, जिन्होंने अपने वजूद को कायम रखते हुए, सहकर्मियों से सार्थक तालमेल करते हुए अपने प्रोफेशन में ऊंचाई को छुआ. देश भर में छपी 'जीके' (सामान्य ज्ञान) की ऐसी कोई किताब नहीं होगी, जिसमें किरण बेदी का नाम न हो. किरण बेदी के जिस काम ने उनको विश्व-स्तरीय ख्याति दिलाई, वह उनका तिहाड़ जेल में कैदियों के सुधार से जुड़ा विषय है. किरण बेदी ने तिहाड़ जेल और कैदियों की दशा में सुधार के लिए जो कदम उठाए, वह कई जेलरों के लिए आज भी मिसाल है. उन्होंने साबित किया कि अगर कैदियों से मानवीय बर्ताव करते हुए उन्हें सुधार का मौका दिया जाए, तो वे समाज के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं. उनके प्रोफेशनल करियर में ट्रैफिक को सुधारने के लिए उनकी सख्ती और व्यवहारिकता का तालमेल भी हमेशा याद किया जाता रहेगा. इसके अतिरिक्त, वह बचपन से ही उन तमाम महिलाओं के लिए एक मिशाल रही हैं, जो अपने जीवन में कुछ करना चाहती हैं. आधुनिकता से तालमेल करते हुए, पारिवारिक जीवन से सामंजस्य बिठाते हुए अपने प्रोफेशनल दायित्वों को किस प्रकार, सजगता से निभाना चाहिए, इस बात का किरण बेदी से बेहतर उदाहरण कोई और नहीं.
इस कड़ी में किरण बेदी के जीवन पर एक फीचर फिल्म 'यस मैडम सर' बन चुकी है. इसे ऑस्ट्रेलियाई फिल्म निर्माता मेगन डोनेमन ने प्रोड्यूस किया है. इस फिल्म को दुनिया के कई फिल्म महोत्सवों में दिखाया गया है. पुरस्कारों की बात की जाय तो किरण बेदी को शौर्य पुरस्कार, 'एशिया का नोबेल पुरस्कार' कहा जाने वाला 'रमन मैग्सेसे पुरस्कार' के अलावा और भी कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है. दिल्ली में अपने से कनिष्ठ पुलिस अधिकारी के कमिश्नर बनने के उपरांत किरण बेदी ने इस्तीफा देकर अपने आत्म सम्मान को बचाये रखा और उसके बाद उनका जीवन समाज-सेवा को अर्पित हो गया. कई गैर सरकारी संगठनों की स्थापना और सक्रीय कामकाज के अलावा वह २१वीं सदी के सबसे बड़े आंदोलन अन्ना-आंदोलन में बेहद महत्वपूर्ण चेहरा बनीं रहीं. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बैनर तले चले आंदोलन में किरण बेदी ने एक क्रन्तिकारी, अन्ना की विश्वासपात्र सहयोगी की भूमिका का बखूबी निर्वहन किया. भूख हड़ताल किया, जेल गयीं और तब देश की भ्रष्टाचारी सरकार को घुटने के बल टिकने को मजबूर कर दिया. बाद में इस बड़े आंदोलन से जुड़े कुछ लोगों द्वारा आंदोलन को हाईजैक करके उसको राजनीतिक रूप देने से अन्ना हज़ारे और किरण बेदी जैसे दूसरे वरिष्ठों ने किनारा कर लिया और परिणामस्वरूप यह गैर-राजनीतिक आंदोलन बिखर गया. किरण बेदी का जीवट इसके बाद भी कायम रहा और कई राजनीतिक पार्टियों के लुभावने ऑफर के बावजूद उन्होंने अपना आत्म सम्मान बनाये रखा.
किरण बेदी बदले राजनीतिक हालत में अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गयी हैं. उसका लाभ-हानि, गुणा-गणित अपनी जगह है, किन्तु इस बात के लिए हमें और भी खुश होना चाहिए कि किरण जी पूरे स्वाभिमान के साथ राजनीति में आयी हैं, अपने वजूद के साथ उन्होंने खिलवाड़ नहीं किया है. वह चाहतीं तो लोकसभा के चुनाव के समय ही भाजपा में आ जातीं और बेहद आसानी से किसी मंत्रिपद की दावेदार भी होतीं, लेकिन तब उनकी छवि नहीं बचती, और उनके साथ भी लालची की छवि जुड़ जाती. यही नहीं, वह आम आदमी पार्टी से भी मुख्यमंत्री की उम्मीदवार बहुत पहले ही बन जातीं, किन्तु अरविन्द केजरीवाल द्वारा 'टीम-अन्ना' को धोखा देना और आंदोलन को हाईजैक करना उन्हें कभी रास नहीं आया. उनकी छवि पहले भी किसी मुख्यमंत्री से कम नहीं थी और कई लोगों की मुख्यमंत्री बन कर भी कोई छवि नहीं बनी. ठीक उसी प्रकार, जैसे हमारे पिछले प्रधानमंत्री, राजसेवक की छवि से बाहर नहीं निकल पाये. किरण बेदी के भाजपा में आने से विरोधी निश्चित रूप से सहज नहीं हैं और तमाम प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. कुछ लोग कह रहे हैं कि 'अन्ना के सभी बच्चे सेटल हो गए'.तो उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि 'अरविन्द केजरीवाल', अन्ना आंदोलन की पहचान के मुहताज रहे हैं और उसका उन्होंने जमकर फायदा उठाया है और 'अल्पभोग' भी किया है. किरण बेदी, अन्ना और अब भाजपा नेता के अलावा भी पहचान रखती हैं और उनकी इस पहचान पर कोई दूसरी पहचान हावी नहीं होने वाली. यदि किसी को यकीन न हो तो, देश भर में किसी भी स्टोर से 'जीके' (सामान्य ज्ञान) की पुस्तक उठा कर देख लो. उसमें अन्ना या किसी दूसरे का नाम हो न हो, "किरण बेदी" का नाम जरूर मिल जायेगा.
हार के डर से कुछ लोग, किरण बेदी के उन पुराने ट्वीट्स को सामने ला रहे हैं, जिसमें उन्होंने अन्ना आंदोलन के दौरान भाजपा की खिंचाई की है. कई लोग भूल चुके हैं, लेकिन उस आंदोलन को याद रखने वाले जानते हैं कि उस समय पूरा देश ही भाजपा और कांग्रेस की सोच की बुराई कर रहा था. यहाँ तक कि संघ से जुड़े लोग भी भाजपा के खिलाफ आंदोलन से जुड़े थे. सवाल कांग्रेस या भाजपा का नहीं था तब, सवाल उनकी सोच को लेकर था. कांग्रेस बदली नहीं, इसलिए मिट गयी. केजरीवाल भी कमोबेश, कांग्रेस जैसी सोच के हो गए हैं, कांग्रेस के साथ सरकार भी चला चुके हैं, इसलिए वह भी रसातल में हैं. हाँ! भाजपा अन्ना आंदोलन के बाद बदली है, ऊपर से नीचे तक. इसलिए किरण बेदी जैसे कई लोगों का विचार भी बदला है. आज भाजपा देश को आगे ले जा रही है, तो देशवासियों, दिल्लीवासियों और किरण बेदी का उनसे जुड़ना कहाँ से गलत है? आज जब राजनेताओं की साख बची नहीं है और नेता बनने के लिए लोग गलत सही किसी भी रास्ते की परवाह नहीं करते हैं, उम्मीद है किरण जी, राजनीति में रहते हुए भी अपने स्वाभिमान के साथ कोई समझौता नहीं करेंगी और अपने प्रभाव से राजनीति के पेशे को भी गन्दगी से, कुछ हद तक ही सही, निजात दिला सकेंगी. दिल्लीवासियों ने पिछले सालों में बड़ी उठापठक का सामना किया है और अब दिल्लीवासियों का हक है कि उन्हें किरणबेदी जैसा सशक्त और दूरदर्शी नेतृत्व मिले. आखिर, राजधानी का इतना हक तो बनता ही है.
Delhi's future chief minister Kiran Bedi, article in Hindi by Mithilesh.
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– मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.
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