यह बात कोई दबी छुपी नहीं है कि अरविन्द केजरीवाल की महत्वाकांक्षा राष्ट्रीय राजनीति को लेकर रही है और वह कोई दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश से तो पूरी होगी नहीं! इसके लिए, उन्हें यहाँ से बाहर कदम बढ़ाने ही थे और इसकी पहली सटीक शुरुआत होने जा रही है पंजाब से. आने वाले समय में यूं तो कई राज्यों में चुनाव होने हैं, किन्तु इनमें सर्वाधिक महत्त्व का जो चुनाव बताया जा रहा है, वह निश्चित रूप से पंजाब का चुनाव है. कारण भी इसका काफी हद तक साफ़ है, क्योंकि बड़े ज़ोर शोर से राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरने का दावा करने वाली अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को यहाँ काफी हद तक मजबूत बताया जा रहा है. सिर्फ मजबूती की ही बात रहती तो एक अलग बात थी, किन्तु लोकसभा में 44 पर सिमटी कांग्रेस के लिए यहाँ करो-मरो की स्थिति बन गयी है. पहले इस राज्य में बारी-बारी से अकाली और कांग्रेस सत्ता में आती रही हैं, किन्तु इस बार आम आदमी पार्टी के उभरने से सबसे ज्यादा मुश्किल में कांग्रेस ही नज़र आ रही है. राजनीतिक किन्तु-परन्तु में कई पेंच अभी फंसेंगे, पर अगर आम आदमी पार्टी पंजाब में हारती या जीतती है, दोनों ही स्थिति में कांग्रेस के लिए बड़ा झटका तय माना जा रहा है. बात सिर्फ इस एक राज्य की ही नहीं है, बल्कि खुदा न खास्ता अगर अरविन्द केजरीवाल यहाँ जीत गए तो वह कांग्रेस का विकल्प खुद को साबित करने की पुरजोर कोशिश करेंगे! लोकसभा चुनाव के बाद, कांग्रेस के लिए पहली बार यहाँ काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है, क्योंकि महाराष्ट्र, हरियाणा जैसे राज्यों में जो चुनाव हुए, उसमें कांग्रेस की हार इसलिए तय थी, क्योंकि लोकसभा का प्रभाव और असर तब तक विद्यमान था, जबकि बिहार में कांग्रेस की हालत लालू-नीतीश के पिछलग्गू होने से अधिक न थी. पंजाब में संयोग से अकालियों की लोकप्रियता में कमी आयी है तो केजरीवाल वहां रायते के डब्बे लेकर पहुँच गए हैं. बीते 14 जनवरी को पंजाब के मुक्तसर में दिल्ली के मुख्यमंत्री की सभा में उमड़ी भीड़ को ना तो कांग्रेस ही नज़रअंदाज़ कर सकती है और न ही अकाली दल.
साफ़ तौर पर, आम आदमी पार्टी, पंजाब में सशक्त राजनीतिक दल के तौर पर दिखाई तो दे रही है लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या आप मनप्रीत बादल की पार्टी से बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी? मनप्रीत बादल की पीपल्स पार्टी ऑफ़ पंजाब ने 2012 के चुनाव के दौरान पांच फ़ीसदी वोट हासिल किए थे. हालांकि उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में बीते शुक्रवार को कर लिया जो कांग्रेस के लिए बड़ी राहत की बात है. वैसे मनप्रीत बादल ने अपनी पार्टी का गठन, अकाली दल का विरोध करते हुए किया था. केजरीवाल फैक्टर से डरी कांग्रेस के बारे में ऐसी अटकलें भी हैं कि पार्टी राज्य में बहुजन समाज पार्टी से तालमेल करने की कोशिश कर रही है, जिसे पंजाब के दो विधानसभा के चुनावों में पार्टी को चार से छह प्रतिशत वोट मिले थे. हालाँकि, इन तमाम बातों के बीच यह भी साफ़ है कि कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक केजरीवाल की पार्टी की ओर ट्रांसफर हो सकता है, जैसा दिल्ली में देखने को मिला था. वैसे भी, भगवंत मान के रूप में आप के पास एक विश्वसनीय चेहतरा है तो मान की अगुवाई में आम आदमी पार्टी ग़लतियों से सबक़ लेकर आगे बढ़ती दिख रही है और इस नयी पार्टी ने बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को खड़ा करने में कामयाबी भी हासिल की है. आम आदमी पार्टी की जो एक बड़ी कमजोरी नज़र आ रही है, वह उसका बिखराव है, जिसमें पार्टी ने अपने दो सांसदों को निलंबित किया है. ये दोनों पार्टी से निकाले गए नेता योगेंद्र यादव के समर्थक बताए जा रहे हैं. लोकसभा चुनाव में राज्य में पार्टी को 24 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट मिले थे और अगर इसमें बड़ा बिखराव नहीं होता है तो यह कांग्रेस के लिए सर पीटने वाली बात होगी. वैसे भी, आम आदमी पार्टी राज्य में दलितों की मौजूदगी को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है और राज्य की क़रीब एक तिहाई आबादी दलित है जो देश के किसी भी राज्य में दलितों की सबसे ज़्यादा संख्या है. कांग्रेस के लिए मुश्किल यह भी है कि दलित या फिर परंपरागत तौर पर वामपंथी पार्टियां, असंतुष्ट अकाली या नाख़ुश कांग्रेसी, सब आम आदमी पार्टी को उम्मीद से देख रहे हैं.
पंजाब में राजनीतिक विचारधारा के चलते अगर कोई कांग्रेसी अपनी पार्टी से नाराज़ भी हो तो वह सांप्रदायिक अकाली दल को अपना वोट नहीं दे सकता. यही स्थिति अकाली दल से असंतुष्टों की है. वे अपना वोट कथित सिख विरोधी कांग्रेस को नहीं दे सकते. ऐसे लोगों के लिए आम आदमी पार्टी पहली पसंद हो सकती है. कांग्रेस मुक्त भारत का नारा वैसे तो भाजपा के नरेंद्र मोदी ने दिया था, किन्तु पंजाब में अगर कांग्रेस के ऊपर आम आदमी पार्टी हावी हो जाती है तो इस नारे का प्रभाव अन्य जगहों पर भी अवश्य ही दिखेगा! इसके लिए अरविन्द केजरीवाल हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र की ख़ुदकुशी मुद्दे से लेकर चेहरे पर स्याही जैसे मामलों को लेकर खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं. यह सुर्खियां, निश्चित रूप से पंजाब के मतदाताओं तक भी पहुँच रही होंगी और सबसे बड़ी बात यह है कि कुछ नया हमेशा ही आकर्षण का केंद्र होता है. इस 'नया' फैक्टर का भी इस पार्टी को लाभ अवश्य ही मिलेगा, इस बात में कोई दो राय नहीं है! जहाँ तक अकाली-भाजपा का सवाल है तो वह अलोकप्रियता के बावजूद जीत सकती है, अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में वोट बंट गए तो! और अगर वह हारी भी तो उसके लिए उतनी नुक्सान वाली बात नहीं होगी, क्योंकि वह आसानी से 'एंटी-इन्कम्बेंसी' की आड़ में छुप जाएगी! जाहिर है, पंजाब चुनाव में अगर किसी का सबसे बड़ा दाव लगा है तो वह कांग्रेस का ही है और फिर दुसरे स्थान पर आम आदमी पार्टी को भी साबित करना होगा कि उसके नेता अरविन्द केजरीवाल में दिल्ली के बाहर भी दम-खम है. आखिर, प्रधानमंत्री के कुर्सी की यात्रा के लिए कुछ तो साबित करना ही होगा!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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