भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘स्टार्ट अप’ अभियान की शुरुआत से पहले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत इस अभियान पर देर से ‘जागा’ है और इसके लिए वह भी जिम्मेदार हैं क्योंकि वह पहले खुद ही प्रशासन में रहे हैं. जाहिर है, भारत के राष्ट्रपति कोई कठपुतली नहीं हैं और इस पद से पहले उन्होंने कई दशकों तक भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र में अपनी भूमिका निभाई है. यदि राष्ट्रपति महोदय के इस स्टेटमेंट को ही लेकर चलें तो इसका दूसरा हिस्सा गौर करने लायक है कि 'इसके लिए वह खुद भी जिम्मेदार' रहे हैं! इससे यह बात भी निकल कर सामने आती है कि क्या आने वाले समय में हमारे नीति-निर्धारक भ्रष्टाचार, लाल फीताशाही, नीतियों में स्थिरता इत्यादि पर उचित निर्णय लेकर स्टार्टअप इंडिया के लिए सस्टेनेबल प्रोसेस विकसित करने पर ज़ोर देंगे? या फिर हाल और हालात जस के तस ही रहेंगे? यदि वर्तमान आंकड़ों पर गौर किया जाय तो हर साल 1500 तकनीक आधारित और सौ के आसपास गैर तकनीक क्षेत्र में स्टार्ट-अप शुरू हो रहे हैं. वर्ष 2005 की तुलना में आज यह रफ्तार लगभग तीन गुनी हो गई है. विश्व बैंक ने कारोबारी माहौल से सम्बंधित इज ऑफ डूइंग बिजनेस रिपोर्ट में बताया है कि वर्ष 2004 में भारत में कारोबार शुरू करने में औसतन करीब चार महीने लगते थे तो वर्तमान में औसतन करीब 29 दिन लग रहे हैं. जाहिर है, पहले से हालात में काफी सुधार हैं, किन्तु आज के लिहाज से यह एक महीना भी ज्यादा समय है. अगर वैश्विक आंकड़ों पर हम दृष्टिपात करें तो, अमेरिका में स्टार्टअप के लिए औसतन 5-6 दिन ही लगते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में कम समय के साथ स्टार्ट-अप की लागत कम करने पर भी मुख्य ध्यान होना चाहिए. इस कड़ी में, फाइनेंस एक्ट 2013 द्वारा स्टार्ट-अप में निवेश पर घरेलू निवेशकों पर लगने वाले टैक्स को हटाने का प्रस्ताव एक सही प्रयास है. बावजूद इसके, करीब 90 फीसद स्टार्ट-अप विदेशों से पूंजी प्राप्त करके शुरुआत करते हैं, तो घरेलू स्तर पर सार्वजनिक और निजी निवेश का साफ़ अभाव दिखता है. इस कड़ी में, सरकार द्वारा शुरू दो हजार करोड़ रु का इंडिया एस्पिरेशन फंड का उद्देश्य इस कमी को पूरा करना है, लेकिन इसी पर निर्भर रहने से बात नहीं बनेगी, बल्कि घरेलू स्तर पर भी निजी निवेश को बढ़ावा देना होगा. सरकार सहित युवा उद्यमियों के लिए जो बात सबसे चिंताजनक है वह यह है कि अधिकांश स्टार्ट-अप बीच में ही दम तोड़ देते हैं.
जाहिर है, इनके कारणों और निवारणों पर गहराई से कार्य किये जाने की आवश्यकता है तो इसके लिए सिर्फ सरकारी स्तर पर ही प्रयास करने से कार्य नहीं चलने वाला है, बल्कि इसके लिए सामाजिक जागृति, बल्कि मैं कहूँगा कि पारिवारिक सोच भी स्थिर होनी आवश्यक है. इसके लिए कभी-कभार मेरे मन में कुछ उदाहरण समझ आते हैं, जिनको शेयर करना मैं आवश्यक समझता हूँ. कुछ समय पहले तक भारत दुनिया की सबसे मजबूत कृषि आधारित अर्थव्यवस्था रहा है. यह अलग बात है कि आज जीडीपी में इस क्षेत्र का कुल योगदान 15 फीसदी तक आ गिरा है. मैं सोचता हूँ कि कृषि जो पहले इतना मजबूत क्षेत्र था, उसे तो किसी सरकार की कोई खास सहायता या स्कीम उपलब्ध नहीं थी! साफ़ है कि कहीं न कहीं हमारी पारिवारिक प्रणालियां कृषि-क्षेत्र की मजबूती के लिए जिम्मेदार थीं. कृषि को छोड़ भी दें तो कुछ महत्वपूर्ण समुदाय जो उद्योग धंधों के लिए जाने जाते हैं, उनमें बनिया, पंजाबी, गुजराती इत्यादि शामिल हैं. आप इन उदाहरणों को ध्यान से देखें तो समझ जायेंगे कि उद्योग शुरू करना और उसे ड्राइव करना एक पीढ़ीगत संस्कार है, जो आपसी सहयोग से फलता-फूलता है. आज कई स्टार्टअप्स में पति-पत्नी भी मिलकर लग जाते हैं और वह व्यवसाय सफल होने की सम्भावना बढ़ जाती है. साफ़ है, शुरुआत में कम लागत और मजबूत विश्वास परिवार के अतिरिक्त और कहाँ मिल सकता है. पिता से बढ़िया दुनियादारी का अनुभव दूसरा कौन दे सकता है तो भाई से बढ़कर सहयोगी अन्यत्र मिलना मुश्किल है! हालाँकि, आज के समय में परिवारों की टूटन ने हमें सिर्फ एक एम्प्लोयी बनाकर छोड़ दिया है या फिर एक कमजोर और असुरक्षित उद्यमी!
इस सामाजिक संस्कार के अलावा, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी सरकार के स्टार्टअप से जुडी कुछ बातें कही हैं, जिनको एक बार सुना जाना चाहिए. राहुल ने कहा कि स्टार्टअप के लिए एक इकोसिस्टम की जरूरत होती है, यानी ऐसा माहौल जहां आंत्रप्रेन्योर को आगे बढ़ने का मौका मिले. हालाँकि, उनका इरादा राजनीति करने का रहा होगा, किन्तु उनका यह कहना कतई गलत नहीं है कि स्टार्टअप की चुनौतियां कई हैं, जिनमें पैसा, रेगुलेशन और लालफीताशाही की समस्याओं के साथ आपको यह भी समझना पड़ेगा कि सबकुछ कनेक्टेड है, मतलब खेती, इंडस्ट्री, स्टार्टअप सब आपस में जुड़े हैं. यदि आप लीड करना चाहते हैं और समस्याएं सुलझाना चाहते हैं तो सीमाओं में न बंधें, अपने लिए कोई बाउंड्री न बनाएं और किसी संकीर्ण सोच में न फंसें. हालाँकि, स्टार्टअप इंडिया का आयोजन शुरू हो गया है और वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारामन ने इसका उद्घाटन करते हुए भरोसा दिया कि लाइसेंस राज खत्म किया जाएगा. जेटली ने स्टार्टअप के लिए यह भरोसा भी दिलाया कि बजट में एक अनुकूल कर प्रणाली होगी तो बैंकिंग प्रणाली और सरकार दोनों ही स्टार्टअप्स के लिए संसाधन उपलब्ध कराएंगे. जेटली ने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति-जनजाति की महिलाओं को कर्ज देने से अगले दो साल में तीन लाख से अधिक नए उद्यमी तैयार होंगे.
जेटली के भाषण के बाद, नया कारोबार शुरू करने वालों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट 'स्टार्टअप इंडिया' कैंपेन को लॉन्च किया और विज्ञान भवन में कहा कि हम स्टार्टअप को प्राथमिकता देंगे, आप हमें यह बताइए कि सरकार को क्या नहीं करना चाहिए. पीएम ने कहा कि लोगों के पास बहुत से आइडियाज हैं, मौका मिले तो वो कमाल करके दिखा सकते हैं. ठीक वैसे ही, जैसे 'स्टार्टअप से उबर कुबेर बन गया. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में ज़ोर देते हुए कहा कि स्टार्टअप की उपयोगिता जोखिम लेने से तय होती है. लोग आज तकनीक से जुड़कर तुरंत अपनी बात पहुंचा सकते हैं. इसकी महत्ता बताते हुए पीएम ने कहा कि एप से बहुत फायदा होता है और हर किसी को एक शुरुआत की जरूरत होती है.' जाहिर है, पीएम इस तरह के सार्थक प्रयास शुरू से ही करने की कोशिश में हैं, किन्तु साफ़ है कि जब तक पीढ़ियों की मानसिकता उद्यमी की नहीं होगी, तब तक लक्ष्य आधा-अधूरा ही हासिल होगा और कर्ज से लेकर तमाम आश्वासन अपना पूरा प्रभाव दिखा पाने में संदेहास्पद ही रहेंगे!
हालाँकि, इन तमाम आश्वासनों के बावजूद सरकार सिर्फ कर्ज देने को ही स्टार्टअप की गारंटी न मान ले, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक मुद्दों को साथ लेकर एक समग्र अभियान छेड़े जाने से ही परिवर्तन ठोस धरातल पर दिखने की उम्मीद जागेगी! सिलिकॉन वैली के उद्यमियों ने भारत में आर्थिक विकास को लेकर सकारात्मक रूख दिखाया है, किन्तु सरकार को वर्तमान उद्यमियों के साथ समाज के अन्य वर्गों से भी विकास की ठोस संभावनाएं ढूंढनी ही होंगी. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और किसानों को स्किल करने की बातें भी प्रधानमंत्री द्वारा कही गयी हैं, किन्तु इस सेगमेंट में और भी अतिरिक्त प्रयास किये जाने की पुरजोर आवश्यकता है. हालाँकि, केंद्र सरकार की स्टार्टअप योजना की तारीफ़ करनी चाहिए. इस मेगा मीट में विश्वभर के उद्यमी बिजनेस के वर्तमान और भावी परिदृश्य पर चर्चा कर रहे हैं और उन तमाम बातों का जो लब्बू-लुआब निकला उससे साफ़ है कि स्टार्टअप के लिए उपरोक्त कही गयी तमाम बातों के साथ समस्या की सही पहचान करना और फिर खुद को 'प्रॉब्लम सॉल्वर-इन चीफ' (हर समस्या का हल खोजने वाला प्रमुख व्यक्ति) समझ कर आगे आना होगा. इसके अतिरिक्त, कार्यकुशल कर्मियों की कमी से निपटना, तकनीक, डिजाइन और अनुपालन के मामले में सतत सुधार, ग्राहक के लिए उत्पाद की सही परख, बिजनेस की ऊंचाइयां छूने के प्रति गंभीरता बेहद महत्त्व के फैक्टर हैं. जाहिर है, स्टार्टअप्स के लिए कई पेंच मनोभावों से जुड़े हैं और हमें बिजनेस का एक-सिस्टम बनाने के लिए हर स्तर पर जागरूकता अभियान छेड़ना ही होगा! उम्मीद की जानी चाहिए कि नीति-नियंता और सामाजिक सरोकारों के अग्रज स्टार्टअप इंडिया के लिए एग्रीगेट और सस्टेनेबल प्रॉसेस पर जोर देंगे और तभी हमारी इकॉनमी और सोशल स्ट्रक्चर भी समग्र रूप से स्थायित्व की ओर कदम बढ़ाएगा!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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