पाकिस्तान के प्रति आज की घटना ने कइयों की तरह मेरे मन में भी सहानुभूति और पीड़ा का पहाड़ बना दिया है. यूं तो पाकिस्तान और उसके रहनुमाओं के लिए यह दो-चार दिन में भूल जाने वाली बात होगी, तथापि विश्व के लिए आतंक की शरणस्थली पाकिस्तान में हुई घटना बेहद चौंकाने वाली है. जिस प्रकार पेशावर के आर्मी स्कूल में 130 बच्चों का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया, वह पाकिस्तान की एक राष्ट्र के रूप में मान्यता पर प्रश्नचिन्ह है. भारतीय प्रधानमंत्री ने इस कायराना हमले की निंदा करते हुए कहा, स्कूल में छात्रों और अन्य निर्दोष लोगों की जान लेने वाला यह एक ऐसा विवेकहीन बर्बरतापूर्ण कृत्य है, जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. आज जिन लोंगों ने अपने प्रियजनों को खोया है, मैं उनके साथ हूं. हम उनके दर्द को महसूस करते हैं और उनके प्रति हमारी गहरी संवेदना है.
संवेदना का स्नेहलेप पूरे विश्व से आ रहा है, ठीक वैसे ही जैसे हथियारों की खेप पाकिस्तान में आती है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और विदेश मंत्री जान केरी ने आतंक के रूप में इन नयी चुनौतियों का ज़िक्र कर के अपनी खानापूर्ति कर ली है, परन्तु सवाल उठता है कि 21वीं सदी में मंगल और उससे आगे तक कुलांचे भरने वाले इंसान की इंसानियत कहाँ है. अरे! इस बेरहमी से तो कोई जानवर भी अपने शिकार की हत्या नहीं करता है. किसी की आँख में गोली, किसी बच्चे के दिमाग में, किसी के हाथ और पैर में और इससे भी उन जेहादी दरिंदों का जेहाद पूरा नहीं हुआ तो उन बच्चों की टीचर को ज़िंदा जला दिया. आह! मानव इतिहास में बाबर, औरंगज़ेब, हिटलर जैसे कई क्रूर लोग हुए हैं, जिन्होंने मानवता के प्रति घोर अपराध किया है, लेकिन यह अपराध, नहीं नहीं अपराध मत कहिये इसे, वहशीपन भी छोटा शब्द है इसके लिए... मेरी डिक्शनरी में शब्द नहीं मिल रहे हैं इस कुकृत्य के लिए... या रुकिए! 'जिहाद' इसके लिए उपयुक्त शब्द है शायद! हाँ! यह शब्द तो जाना पहचाना होगा आपके लिए भी, किन्तु पहले के तमाम छद्म परिचयों से अलग यह 'जिहाद' शब्द का असली परिचय है. हाँ! हाँ! भारत में मुंबई के 26 /11 हमले के मास्टर-माइंड हाफिज सईद ने अभी हाल ही में एक सभा की थी और उसमें भारत को धमकी देते हुए बोला था कि भारत, चुपचाप कश्मीर पाकिस्तान को दे दे, नहीं तो सारे मुसलमान 'जिहाद' के लिए तैयार हैं. बताना माकूल होगा कि 130 बच्चों की मौत से दुखी नवाज शरीफ की सरकार ने, विश्व समुदाय द्वारा प्रतिबंधित उस आतंकवादी की सभा के लिए बाकायदा सरकारी ट्रेनों की व्यवस्था करवाई और 'जिहाद' ज़िंदाबाद के नारे लगवाये. लेकिन यह सभी आम बातें हैं, विशेषकर पाकिस्तान के सन्दर्भ में जितना भी कह लिया जाय कम ही होगा.
धर्म की बुनियाद पर लाखों लोगों का खून बहाकर जिस पाकिस्तान की नीवं रखी गयी, वह भला सुख-चैन से रह भी कैसे सकता है. अंग्रेजी शासन के अंतिम प्रतिनिधि लार्ड माउंटबेटन ने पाकिस्तान के निर्माण के समय ख़ास रुचि ली थी, तब ब्रिटिश नीतिज्ञों के दिमाग में यह बात जरूर थी कि पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति एवं धर्म के आधार पर उसके कमजोर शासक पश्चिम की नीतियों के प्रति आने वाले समय में मुफीद रहेंगे. अफगानिस्तान, ईरान, चीन और भारत के मध्य पाकिस्तान जैसा सैनिक-बेस उन्हें भला कहाँ मिल सकता था. आज 130 से अधिक बच्चों की निरीह मौत पर मानवाधिकारों के कथित हिमायती पश्चिमी देश भले ही कितने घड़ियाली आंसू बहा लें, लेकिन पाकिस्तान को इन पश्चिम के देशों ने एशिया में अपनी राजनीति साधने के लिए हमेशा बौना बनाये रखा. रूस, चीन जैसी बड़ी महाशक्तियों और भारत जैसे विश्व के बड़े बाज़ार में पाकिस्तान के माध्यम से घुसपैठ बनाने का लगातार प्रयत्न किया है अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों ने.
पाकिस्तानी रहनुमाओं की बिडम्बना भी यही रही कि उन सभी ने सतही तौर पर भारत विरोध की राजनीति के सिवा दूसरा कोई काम किया ही नहीं. इस असफल देश का डगमगाता लोकतंत्र हो या उसके सैनिक शासक, सभी भारत विरोध की खेती करके अपनी आजीविका चलाते रहे. फांसी के तख्ते के करीब, देशद्रोह का आरोप झेल रहे पूर्व सैनिक तानाशाह परवेज मुशर्रफ को जब अपने बचने का समस्त मार्ग बंद होते दिखाई देने लगा तो उन्होंने एक के बाद एक भारत विरोधी बयान देने का सिलसिला शुरू कर दिया. कभी भारत के प्रधानमंत्री को मुस्लिम विरोधी बताने का तो कभी कश्मीर को जेहादियों के भरोसे भारत से छीन लेने का. यह सिर्फ परवेज मुशर्रफ भर की बात भी नहीं है, बल्कि भुट्टो परिवार से लेकर शरीफ खानदान और इमरान की नयी ताज़ी दूकान के यही नज़ारे हैं. भारत-विरोध इनके लिए आसान रहा भी है, क्योंकि धर्म के आधार पर देश का बंटवारा होने से दोनों देशों के नागरिकों के ज़ख्म थे ही, और एक के बाद एक चार सीधी लड़ाइयां और वर्षों से छिड़े छद्म युद्ध ने इस ज़ख्म पर लगातार नमक ही छिड़का है. ऊपर से तुर्रा यह कि इस्लाम, जिहाद के नाम पर 99 फीसदी मुसलमानों से जो भी करवा लो, वह राज़ी हो जाते हैं, क्योंकि उनको जन्नत में कथित तौर पर 72 कमसिन हूरों के साथ जश्न मनाने का सपना सच करना होता है. मुस्लिम समाज की कई बिडम्बनाओं में से यह भी एक बिडम्बना ही है. खैर, बदले वक्त में भारत की बढ़ती ताकत से विश्व की तमाम महाशक्तियां सजग हो गयीं और उन्होंने पिछले दशकों में पाकिस्तान को भारत के खिलाफ खूब इस्तेमाल किया. अमेरिका के हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश पाकिस्तान रहा ही है, अभी हाल ही के दशकों में चीन के हाथों में खेलना पाकिस्तान को खूब रास आ रहा है. सुना तो यहाँ तक है कि दहशतगर्दों को हथियार के साथ सधी हुई मिलिट्री ट्रेनिंग चीन के सैनिक भी दे रहे हैं. बंदरगाह के साथ पाकिस्तान द्वारा काबिज कश्मीर में चीन को रास्ता देना इत्यादि पाकिस्तानी राजनीति के दिवालियेपन को प्रकट करने के लिए काफी है. यहाँ तक कि नेपाल में दक्षेस सम्मलेन में हो रहे समझौतों पर नवाज शरीफ ने जिस प्रकार रोड़ा अटकाया वह चीनी इशारे पर ही था. महान नीतिज्ञ चाणक्य ने कहा है कि दोस्ती और दुश्मनी हमेशा बराबर वालों में ही करनी चाहिए. इस उक्ति पर पाकिस्तान जरा भी अमल कर ले तो उसे समझ आ जाएगी कि चीन और अमेरिका उसके दोस्त न कभी थे, न कभी हो सकते हैं. अमेरिकी कभी भी उसके घर में घुसकर लादेन को मार सकते हैं तो अपनी दोस्ती का दम भरने वाले चीनी राष्ट्रपति भारत तो आ सकते हैं, लेकिन पाकिस्तान को ठेंगा दिखने में जरा भी परहेज नहीं करते हैं. इमरान खान जैसे बुद्धिजीवी राजनीतिज्ञ भी तालिबान की जिस प्रकार हिमायत कर रहे हैं, उससे नुक्सान सिर्फ पाकिस्तान का ही हुआ है.
पाकिस्तानी हुक्मरानों को यह बात साफ़ समझ आ जानी चाहिए थी कि भारत में पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान हैं और आज़ादी के बाद से अब तक उनके मन में पाकिस्तान के प्रति बेहद सॉफ्ट कार्नर रहा है. यदि पाकिस्तान ने इस सॉफ्ट कार्नर का प्रयोग अपने यहाँ उद्योग, व्यापार को बढ़ाने में किया होता तो पाकिस्तान आज खिलौना नहीं बना रहता. बेहद आंतरिक राजनीति की बात है यह. अब तो उसकी नालायकी से भारत के मुसलमान भी कन्नी काटने लगे हैं और जैसे-जैसे समय बीतेगा भारत का मुसलमान पाकिस्तान से दूर होता जायेगा. लाखों पाकिस्तानियों का जीवन-यापन भारत के ऊपर निर्भर है. बॉलीवुड से लेकर, कपडे तक के कारोबार को यदि तरजीह दी गयी होती तो पाकिस्तान कहाँ से कहाँ पहुँच सकता था. लेकिन अब स्थिति बेहद तेजी से बदल रही है और पाकिस्तान गृह-युद्ध की तरफ तेजी से बढ़ रहा है. उसे ग़लतफ़हमी है कि चीन या अमेरिका भारत के खिलाफ उसका साथ देंगे. उसकी ग़लतफ़हमी कश्मीर मुद्दे को लेकर दूर हो जानी चाहिए थी, जब वह चिल्लाता रहा और कोई देश सुनने को राजी न हुआ. लेकिन धर्मांध लोगों को अक्ल कब आयी है, जो आज आएगी. यूं भी विश्व पर काबिज़ ईसाई समुदाय की मंशा कुछ और ही है, जिसकी झलक मुस्लिम समाज को मिल ही गयी होगी, लेकिन उसके पुरोधा भारत के साथ 130 निरीह बच्चों के खिलाफ जिहाद करें तो इसे धर्मान्धता के अतिरिक्त कुछ और नहीं कहा जा सकता. जहाँ तक भारतीय मुसलमानों की बात है, उनमें से अधिसंख्य मुसलमान इन बातों को समझ चुके हैं और कम से कम पाकिस्तानी मुहाजिरों के साथ असली पाकिस्तानियों की दुर्गति से उनकी सोच काफी बदली है. जो थोड़ा बहुत बदलाव है, वह भी समय के साथ हो जायेगा, इस बात में कोई दो राय नहीं है. ईश्वर, अल्लाह उन बच्चों की रूह को शांति दे, हाँ उन बच्चों को 72 कमसिन हूरें न दे, आखिर वह बच्चे अभी बालिग़ नहीं थे, नवीं-दसवीं के बच्चे थे. उन बिचारों को क्या पता होगा कि जिहाद की असलियत क्या है? पाकिस्तानी आर्मी स्कूल पर हुए हमले में घायल एक बच्चा टीवी पर रोते हुए कह रहा था कि वह बड़ा होकर- इन जिहादियों, आतंकियों की नस्ल को ख़त्म कर देगा. आह! उस मासूम को क्या पता... उसके अब्बु, चाचू, अम्मी और उसके पड़ोसी ही उन जिहादियों के प्रति सहानुभूति रखते हैं या खुद ही जिहाद करते हैं. काश! वह बच्चा समझ पाता... !!! और समझ पाते यह बातें पाकिस्तानी हुक्मरान... !!
मिथिलेश कुमार सिंह, उत्तम नगर, नई दिल्ली.
Pakistan Army School Attack and Jihadism
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