रोज की तरह निर्मल अपने नर्सरी में पढ़ने वाले बेटे को छोड़ने स्कूल गया तो गेट पर उसकी क्लास टीचर खड़ी थीं.
स्वभाववश निर्मल ने अभिवादन किया तो इशारे से मैडम ने उसे अपने पास बुलाया तो उसे लगा कि बेटे के बारे में कुछ सुझाव या शिकायत होगी शायद!
जी मैडम!
वो आपसे कुछ बात करनी है...
जी!
प्रिंसिपल सर से नहीं कहियेगा!
जी.
वो मैं इन्सुरेंस का काम भी करती हूँ, तो बेटे के भविष्य के लिए आप एक पालिसी... ..
पहले तो निर्मल को आश्चर्य हुआ, फिर उसने खुद को संभाल लिया. आखिर, इन्सुरेंस वालों से कइयों की तरह उसका भी पाला पड़ चूका था.
झट से झूठ बोला- वो मैडम मैं जरूर कराता लेकिन मेरा भाई भी यही काम करता है.
अपना भाई है, मैडम भी कम न थीं.
जी! बिलकुल सगा और बड़ा भाई.
तभी स्कूल की प्रार्थना शुरू हो गयी और निर्मल जल्दी से जान छुड़ाकर निकला.
घर आकर उसने अपनी पत्नी को इस बारे में सावधान किया तो पत्नी सहानुभूति से बोली कि- अच्छे कहे जाने वाले प्राइवेट स्कूलों में भी इन टीचरों को मिलता ही क्या है! यही 3 - 4 या 5 हजार और किसी-किसी स्कूल में तो 2 तक ही देते हैं. ऐसे में उन बिचारियों का काम कैसे चले!
इतना कम, आश्चर्य से निर्मल की आँखें फ़ैल गयी. इतने में तो झाड़ू-पोछा भी .. ..
हाँ! झाड़ू पोछा वाली भी इससे ज्यादा लेती है.
निर्मल सोच रहा था कि बच्चों का भविष्य वाकई किधर जा रहा है और इसके लिए जिम्मेवार कौन है.
क्या वह क्लास टीचर, या स्कूल प्रबंधन या हमारा ताना बाना..... ...
पर वह भी तमाम बुद्धिजीवियों और कर्णधारों की तरह इस अनसुलझे प्रश्न को सुलझा नहीं पाया !!
- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'
Unsolved question, hindi short story by Mithilesh Anbhigya
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