चुनावी लोकतंत्र में अगर सिद्धांतों की बात की जाय तो यह सिरे से ही एक जुमला कहा जाएगा, क्योंकि इसका अंत उसी प्रकार से होता है कि अंततः येन केन प्रकारेण जीत किस प्रकार हासिल की जाय! और फिर जब देश के सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश में चुनावी बिसात की बात आती है तो फिर यह और भी दिलचस्प हो जाता है. उत्तर प्रदेश की राजनीति का वैसे भी देश की राजनीति में विशेष स्थान है, इसलिए यहाँ छोटी से छोटी खबर भी राष्ट्रीय सुर्खियां बन जाती हैं. और बात जब सपा और बसपा की जुबानी जंग की हो तब यह निश्चित रूप से और भी दिलचस्प हो जाता है. पिछले कई दशक इस बात के गवाह रहे हैं कि दोनों पार्टियों की कार्यशैली, नेतृत्व लगभग एक समान ही है, और दोनों के नेता और कार्यकर्त्ता भी एक समान ही अप्रोच अपनाते हैं. दोनों पार्टियों में हाई-कमांड कल्चर समान रूप से लागू है और दोनों ही के नेता अपने महिमामंडन के ऊपर अथाह खर्च करने में यकीन रखते हैं तो स्तुति करने वालों को टिकट देने में उनका विश्वास अडिग रहता है. इस बात भी कुछ ऐसा ही हुआ है. बसपा सुप्रीमो मायावती ने यूपी में सैफई महोत्सव के जरिए सरकारी पैसे के दुरुपयोग का आरोप समाजवादी पार्टी पर लगाते हुए सरकारी नीतियों पर गंभीर सवाल उठाए. मायावती ने आरोप लगाया , 'यूपी सरकार 50 सूखा प्रभावित जिलों में किसानों के प्रति उदासीन है, जबकि सैफई महोत्सव में सरकारी पैसा पानी की तरह बहाया गया है.' उन्होंने कहा कि लोहिया के नाम पर समाजवादी पार्टी दलित और पिछडों के साथ भेदभाव कर रही है, और अगर लोहियाजी ज़िंदा होते तो खुद मुलायम सिंह यादव को ही पार्टी से निकाल देते. क्या बात कही बहनजी ने! यही नहीं, उन्होंने अपने जन्मदिन को लेकर उठ रहे सवालों पर पर सफाई भी दी और कहा कि मेरा जन्मदिवस जनकल्याणकारी दिवस के रूप में मनाया गया.
गौरतलब है कि बसपा सुप्रीमो का 60वां जन्मदिन राजधानी लखनऊ स्थित 12 मॉल एवेनू पर पार्टी के नेताओं द्वारा केक काटकर मनाया गया. सबसे दिलचस्प बात उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कही कि 2017 के विधान सभा चुनाव के लिए कमर कस कर वह तैयार रहे, क्योंकि उत्तर प्रदेश में अराजक तत्वों और गुंडों की सरकार है, जिससे मुक्ति बसपा ही दिला सकती है. एक तरह जहाँ मायावती ने मुलायम सिंह को लोहिया विचारों से दूर जाता हुआ बताया, वहीँ उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी काशीराम के दिखाए गए रास्ते पर चल रही है. बसपा प्रमुख के इस हमले पर उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री भला किस प्रकार चुप रहते! उन्होंने पलटवार किया कि "मुलायम सिंह का जन्मदिन तो उनके बेटे ने मनाया था, लेकिन मायावती तो अपना जन्मदिन कंटिंजेंसी फंड (यानी अचानक कोई मुसीबत पड़ जाने पर खर्च के लिए रिज़र्व किए गए सरकारी फंड) से मनाती थीं. दोनों दलों की यह दिल्लगी तो चलती ही रहती है, किन्तु सवाल यह है कि जनता का हित आखिर इस दिल्लगी से तो होने वाला नहीं और यह बात उत्तर प्रदेश के इन दो प्रमुख दलों को कब आएगी, यह तो शायद कांशीराम जी और लोहिया जी को भी नहीं पता रही होगी! इनके अलावा जो प्रदेश की तीसरी बड़ी पार्टी है, वह भाजपा भी अपने तरीके से 2017 की गोटियां बिछाने में लगी हुई है, जिसे लेकर मायावती ने अंदेशा जाहिर किया कि बीजेपी यूपी विधानसभा चुनाव से पहले फिर मंदिर मुद्दा गरमाएगी. बहनजी ने अपने कार्यकर्ताओं को समझाते हुए कहा कि "इस चुनाव में मुद्दा मंदिर नहीं बल्कि खराब कानून-व्यवस्था होना चाहिए." मायावती शायद इसलिए भी मोदी पर हमलावर थीं.
केंद्र सरकार पर हमला करते हुए बहनजी ने कहा कि सरकार बनने के बाद उन्होंने वाराणसी के अलावा पूरे राज्य की उपेक्षा की है लेकिन बिहार की तरह चुनाव से पहले वह यूपी के लिए भी कुछ प्रलोभनों की घोषणा कर सकते हैं. जाहिर है, हर स्तर पर तैयारियां चल रही हैं और सबके केंद्र में है उत्तर प्रदेश का आगामी चुनाव. लोहिया और कांशीराम के साथ राममंदिर मुद्दा तो सिर्फ बहाना है, असली निशाना तो उत्तर प्रदेश की गद्दी को हथियाना है और उसे हथियाकर फिर 5 साल ... सैफई या जन्मदिन महोत्सव से दिल बहलाना है! जहाँ तक उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की बात है तो अभी काफी कुछ उलझे हुए समीकरण दिख रहे हैं, किन्तु यह निश्चित है कि मुख्य रूप से सपा, बसपा और भाजपा ही मुख्य लड़ाई में रहने वाले हैं. जिस प्रकार से बिहार चुनाव में नीतीश और लालू ने मिलकर भाजपा को धुल चटाई, उससे सीख लेने की सुगबुगाहट भी गाहे-बगाहे सुनायी देती रहती है. हालाँकि, बात अभी किसी सिरे लगी नहीं है. बसपा अकेले दम पर ही चुनाव लड़ने की कोशिश करेगी और वह मायावती द्वारा सपा और भाजपा दोनों को समान रूप से निशाने पर लिए जाने से भी झलकता है तो कांग्रेस सपा या बसपा के साथ जुड़कर ही चुनाव लड़ना चाहेगी! जाहिर है, अकेले दम पर लड़ने से इस राज्य में 99 फीसदी सीटों पर कांग्रेस की जमानत जब्त होने की सम्भावना बढ़ जाएगी! भाजपा और सपा भी अंदरखाने समीकरण दुरुष्त करने में लगे रहते हैं, किन्तु दोनों का वोट-वर्ग बिलकुल अलग है! अभी के हालात के अनुसार, मुलायम सिंह मुस्लिम वोटों पर अपना एकाधिकार मान कर चल रहे हैं तो भाजपा दलित समेत हिन्दू समुदाय को राम के नाम का भजन सुनाएगी ही! जाहिर है, अभी काफी कुछ बदलाव देखने को मिलेंगे, लेकिन मायावती ने सपा और भाजपा पर लोहिया और राममंदिर के सहारे निशाना साधकर इसकी सधी शुरुआत तो कर ही दी है!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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