भ्रष्टाचार हमारे लिए कोई अपरिचित शब्द नहीं है. ट्रांसपरेन्सी इंटरनेशनल द्वारा २००५ में किये गए एक अध्ययन में यह बात सामने
आयी थी कि करीब ६२ फीसदी लोगों द्वारा घूस देने के बाद उनका काम सफलतापूर्वक हो जाता था. इसी संस्था द्वारा २०१५ में किये गए एक अध्ययन के अनुसार भारत भ्रष्ट देशों की सूची में 85 वें स्थान पर था. यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि 'घूसखोरी' के अधिकांश मामले सरकारी योजनाओं से जुड़े मामले थे, जैसे मनरेगा या नेशनल रूरल हेल्थ स्कीम. अब आप खुद समझ सकते हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में हम कहाँ खड़े हैं. अपने हिंदुस्तान की बात हो और 'घूसखोरी' की बात न हो तो कुछ अधूरा-अधूरा सा लगता है. देसी लोग तो खैर, शुरू से आखिर तक इस शब्द और इसके अर्थ से परिचित हैं, किन्तु विदेशी जीव भी इसी रास्ते से भारत में घुसने में माहिर होने लगे हैं. बहुत पहले एक 'बोफोर्स की दलाली' का मामला सामने आया, जिसने एक भरी पूरी सरकार की बलि ले ली थी और उसके बाद तो जैसे सिलसिला ही चल निकला. इसी तरह का एक खुलासा एक अमेरिकी कंपनी द्वारा 'घूसखोरी' के मामले में लिप्त रहने को लेकर सामने आया है. अमरीका के न्यू जर्सी की कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट कंपनी लुई बर्जर पर भारतीय अधिकारियों को कई करोड़ रुपये की रिश्वत देने के मामले में आरोप भी तय हो चुके हैं. इस कंपनी ने कथित रूप से ये रकम गोवा और गुवाहाटी में जल विकास परियोजनाओं के ठेके पाने के लिए दी थी. आरोप है कि गोवा की एक परियोजना के लिए लुई बर्जर ने 9,76,630 डॉलर की रिश्वत दी थी और जिन लोगों को ये रिश्वत दी गई उनमें एक मंत्री भी शामिल हैं. वैसे, मंत्रियों की संलिप्तता की खबर हम सबको आश्चर्यचकित नहीं करती है, क्योंकि इन महाशयों के बिना कोई गैर कानूनी या देशद्रोही कहानी पूरी हो भी कैसे सकती है. हालांकि अमरीकी न्याय विभाग ने इस बारे में अधिक जानकारी नहीं दी है, मगर जो बात छन छनकर सामने आ रही है, उससे बात स्पष्ट हो जाती है. आश्चर्यजनक बात यह है कि भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम और कुवैत में सरकारी ठेके हासिल करने के लिए रिश्वत देने के आरोप हटाने के बदले लुई बर्जर एक करोड़ 71 लाख डॉलर का जुर्माना देने को राज़ी हो गई. कहने को तो यह जुर्माने का ऑफर है, लेकिन दुसरे एंगल से देखा जाय तो यह एक अतिरिक्त घूसखोरी का मामला ही है. क्या बात है! एक घूसखोरी के आरोप से बचने के लिए, एक और घूस का ऑफर! अमरीकी अधिकारियों ने 11 पन्नों की चार्जशीट में आरोप लगाया है कि लुई बर्जर ने भारतीय अधिकारियों को जो रिश्वत दी उसका ब्यौरा एक डायरी में लिख रखा था. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक अधिकारियों का कहना है कि कंपनी और इसके अधिकारियों ने साल 1998 से 2010 के बीच रिश्वत दी. अब जरा इसके दुसरे पहलु की ओर भी ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि अमेरिका येन, केन, प्रकारेण दुसरे देशों के मामलों में दबाव बनाने में सिद्धस्त है. जिन बातों पर उसका सीधा वश नहीं चलता है, उसको घुमाकर पेश करना उसकी खूबी है. भारत में कुछ एनजीओ की विदेशी फंडिंग पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जिस प्रकार का सख्त रूख अख्तियार किया है, उससे अमेरिकन लॉबी में सरकार के प्रति एक नकारात्मक भाव गया है. इस कंपनी के द्वारा दी जाने वाली घूस के समय पर गौर कीजिये, यह 1998 का समय बताया गया है, जो पहली भाजपा सरकार, अटल बिहारी के नेतृत्व का शुरूआती समय था. इस लिहाज से, यह वर्तमान केंद्र सरकार के लिए कठिनाई वाली स्थिति साबित हो सकती है. हालाँकि, 19998 के बाद 2010 तक इस घूसखोरी प्रकरण का ज़िक्र आ रहा है, जिसमें कांग्रेसी सरकार भी लपेटे में आ गयी है, किन्तु अंततः जवाबदेही तो वर्तमान सरकार के ऊपर ही आएगी, और न सिर्फ जवाबदेही आएगी, बल्कि जांच का दबाव भी वर्तमान सरकार पर ही पड़ेगा. इस खुलासे में, साजिश की बू भी आ रही है, लेकिन घूसखोरी ज़िंदाबाद कहने वाले भ्रष्टाचारियों की हमारे देश में कमी तो है नहीं! इसलिए, इस समूचे प्रकरण की जांच गंभीरता से की जानी चाहिए, क्योंकि इसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कई छुपे हुए रहस्य सामने आ सकते हैं. हालाँकि, इस खुलासे से भाजपा को तात्कालिक लाभ होता दिख रहा है, क्योंकि कांग्रेस के एक वर्तमान और एक पूर्व मुख्यमंत्री मुश्किल में घिर गए हैं. आय से अधिक संपत्ति के मामले में पहले से ही फंसे हिमाचल प्रदेश के सीएम वीरभद्र सिंह के अलावा असम के सीएम तरुण गोगोई और गोवा के पूर्व सीएम दिगंबर कामत पर इस केस को लेकर शिकंजा कस सकता है. यूएस न्याय विभाग के मुताबिक लुई बर्जर के ईमेल रेकॉर्ड बताते हैं कि कॉन्ट्रेक्ट के लिए गोवा के पूर्व मंत्री तक रिश्वत पहुंचाई गई. भाजपाई तो यह भी कह रहे हैं कि इस घोटाले के पैसे कांग्रेस हाई कमान तक पहुंचे हैं, लेकिन असल बात तो जांच के बाद ही सामने आएगी. हालाँकि, इन समस्त बातों से यह साबित हो गया है कि घूसखोरी और राजनीति का कनेक्शन चलता ही रहेगा, बेरोकटोक!
- मिथिलेश, नई दिल्ली.
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